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ब्रांडेड दवाओं जितनी ही असरदार और सुरक्षित हैं जेनेरिक दवाएं

हाल ही में केंद्र सरकार ने अपने सरकारी अस्पतालों और केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजना के तहत आने वाले आरोग्य केंद्रों से जुड़े चिकित्सकों को सख्ती से हिदायत दी है

नई दिल्ली, 22 मई 2023 (यूटीएन)। हाल ही में केंद्र सरकार ने अपने सरकारी अस्पतालों और केंद्र सरकार की स्वास्थ्य योजना के तहत आने वाले आरोग्य केंद्रों से जुड़े चिकित्सकों को सख्ती से हिदायत दी है कि वे मरीजों के लिए जेनेरिक यानी सस्ती दवाइयां लिखने के नियम का पालन करें। सरकार ने चेताया है कि ऐसा न होने पर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। साथ ही केंद्र सरकार ने चिकित्सकों को यह भी सुनिश्चित करने को कहा कि अस्पतालों में दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों के आने पर रोक लगाई जाए। इस चेतावनी और सख्ती की वजह यह है कि समय-समय पर दिए गए निर्देशों के बावजूद चिकित्सकों द्वारा मरीजों के नुस्खे में जेनेरिक दवाएं नहीं लिखी जा रही हैं।
जबकि जेनेरिक दवाइयों से मरीजों के इलाज का खर्च घट जाता है। जेनेरिक दवाइयों का कोई चर्चित ब्रांड नहीं होता। इन औषधियों को बनाने में लगे केमिकल सॉल्ट के नाम से ही इन्हें बाजार में बेचा जाता है। ऐसे में, इनका मूल्य ब्रांडेड दवाइयों की तुलना में काफी कम होता है। हालांकि जेनेरिक दवाइयां भी ब्रांडेड दवाइयों के समान ही सुरक्षित और असरदार होती हैं। जेनेरिक दवाओं के मामले में हमारा देश आज दुनिया का सबसे बड़ा आपूतिकर्ता है। सरकार इनकी पहुंच बढ़ाने को लेकर प्रतिबद्ध है। यही वजह है कि वर्ष 2025 तक सरकार का 10,500 प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि केंद्र स्थापित करने का लक्ष्य है। इस परियोजना के तहत देश भर में पहले से ही 9,000 से अधिक जन औषधि केंद्र काम कर रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना के तहत सस्ती जेनेरिक दवाएं लोगों तक पहुंचाने के लिए देश भर में जेनेरिक दवाओं की दुकानें खोली गई हैं। बावजूद इसके चिकित्सकों द्वारा मरीजों को अक्सर महंगी दवाइयां ही लिखी जा रही हैं, जबकि परिवार के एक सदस्य की गंभीर बीमारी पूरे घर की आर्थिक स्थिति बिगाड़ देती है। लंबे समय तक चलने वाले इलाज में तो आमदनी ही नहीं, जमा पूंजी का भी बड़ा हिस्सा दवाइयों पर ही खर्च हो जाता है। होना तो यह चाहिए कि स्वयं चिकित्सक लोगों को सस्ती जेनेरिक दवाइयां खरीदने के प्रति जागरूक बनाएं, लेकिन वे ब्रांडेड दवा कंपनियों के प्रभाव में जेनरिक दवा लिखने से परहेज करते हैं। सरकार जेनेरिक दवाओं के उपयोग को प्रोत्साहन देने का काम कर रही है।
पिछले साल उत्तर प्रदेश सरकार ने भी आम जन को सस्ती दवाएं उपलब्ध करवाने के लिए ऐसा ही आदेश जारी किया था। सरकारी नियमों को धरातल पर उतारने की बड़ी ज़िम्मेदारी चिकित्सकों के ही हिस्से में ही है। दरअसल, विशेष ब्रांड की दवाइयों की कीमत ज्यादा होने के पीछे अनुसंधान एवं विकास, विपणन, प्रचार और ब्रांडिंग की बड़ी लागत का होना है। जबकि जेनेरिक दवाइयों का मूल्य सरकार के हस्तक्षेप से तय होता है। साथ ही, इन दवाओं के प्रचार पर भी बड़ा खर्च नहीं किया जाता। कई रोगों की दवाओं की कीमत से जुड़े अध्ययन बताते हैं कि ब्रांडेड और जेनेरिक दवा की कीमतों में 204 गुना तक का अंतर भी देखा गया है। एक अनुमान के अनुसार, किसी भी रोगी की चिकित्सा पर होने वाले व्यय का 70 प्रतिशत केवल दवाओं पर खर्च हो जाता है।
चार वर्ष पहले सरकार ने लोकसभा में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में बताया था कि उपचार और दवा पर होने वाले खर्च की वजह से देश में हर साल तीन करोड़ आठ लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे चले जाते हैं। समझना मुश्किल नहीं कि अपेक्षाकृत कम खर्च में बीमारियों का उपचार करवाने की स्थितियां लोगों के लिए कितनी मददगार हो सकती हैं। स्वास्थ्य हर नागरिक का मूलभूत अधिकार है। बड़ी आबादी वाले हमारे देश में इस मोर्चे पर पहले से ही बहुत-सी समस्याएं मौजूद हैं। ऐसे में सस्ती दवाओं की पहुंच बढ़ाने के लिए बने नियमों को सख्ती से लागू किया जाना आवश्यक है। इसके लिए और नए जन औषधि केंद्र खोलना, जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता एवं आमजन की जागरूकता जरूरी है। साथ ही चिकित्सकों का भी यह नैतिक दायित्व है कि वे मरीजों को सस्ती जेनेरिक दवाओं को अपनाने का सुझाव दें।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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