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क्या है …… भारत में तेजी से बदलते मौसम का कारण

मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आने वाले गर्मी के मौसम में हीटवेव पिछले सालों के मुकाबले ज्यादा परेशान करेगी.

नई दिल्ली, 13 मार्च  2023 (यूटीएन)।  भारत में पिछले साल की तरह इस बार भी कड़ाके की सर्दी नहीं पड़ी. मैदानी इलाकों में तो कुछ ही दिन ठंड का असर देखने को मिला. वहीं फरवरी के मध्य में ही गर्मी महसूस होने लगी.
साल 2022 की तरह ही इस साल भी सर्दियों ने भारत से जल्द विदाई ले ली है. मौसम विशेषज्ञों का कहना है कि पूरे उत्तर-पश्चिम और मध्य भारत में तापमान सामान्य से ऊपर बना हुआ है. ऐसे में इस बार सामान्य से ज्यादा गर्मी होने के आसार हैं. हालात ये हो गए हैं कि साल 1901 के बाद भारत ने 2023 में सबसे गर्म फरवरी का सामना किया. फरवरी में औसत तापमान 29.54 डिग्री सेल्सियस था.
मौसम वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आने वाले गर्मी के मौसम में हीटवेव पिछले सालों के मुकाबले ज्यादा परेशान करेगी. बढ़ती गर्मी के चलते फसलों के नुकसान का खतरा भी मंडरा रहा है. वैज्ञानिकों के अनुसार, मौजूदा मौसम की स्थिति के लिए ‘ग्लोबल वार्मिंग’ जिम्मेदार है. वैश्विक औसत तापमान में निरंतर वृद्धि पश्चिमी विक्षोभ जैसी बड़ी मौसम संबंधी घटनाओं की गतिशीलता को प्रभावित कर रही है. मौसम विज्ञानियों के अनुसार, तापमान और बारिश में असमानता/विसंगति मौसम के मिजाज में बदलाव का परिणाम है. इस सर्दी के मौसम में पश्चिमी विक्षोभ की तीव्रता भी कम रही है. हालांकि, नवंबर के मध्य तक पश्चिमी विक्षोभ की इंटेंसिटी और फ्रीक्वेंसी पश्चिमी हिमालय में बढ़ने लगी थी, लेकिन फिर भी उसका असर ज्यादा देखने को नहीं मिला.
*नवंबर में नहीं दिखा पश्चिमी विक्षोभ का असर*
नवंबर को ‘ट्रांजिशन मंथ’ के रूप में भी जाना जाता है, जिससे सर्दियों का आगमन होता है. आमतौर पर, महीने के अंत तक हिमालयी राज्यों जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के ऊंचे इलाकों में मध्यम से भारी हिमपात और वर्षा हो जाती है, लेकिन नवंबर 2022 में ऐसा नहीं हुआ. पांच पश्चिमी विक्षोभ पश्चिमी हिमालय में चले गए, इनमें से दो पश्चिमी विक्षोभ का थोड़ा बहुत असर पहाड़ी राज्यों और आसपास की तलहटी पर रिकॉर्ड किया गया.
*दिसंबर में भी कड़ाके की सर्दी नहीं पड़ी*
इसके बाद, दिसंबर की शुरुआत भी गरमाहट के साथ हुई. बारिश या बर्फबारी नहीं होने से पूरे उत्तर पश्चिमी मैदानी इलाकों और मध्य भारत के हिस्सों में कड़ाके की ठंड नहीं पड़ी. इस महीने में सात पश्चिमी विक्षोभ देखे गए, इनमें से केवल एक (28-30 दिसंबर) के कारण पश्चिमी हिमालय और आसपास के मैदानी इलाकों में बारिश या बर्फबारी हुई. हालांकि, बाकी छह पश्चिमी विक्षोभ कमजोर थे और इस क्षेत्र को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं किया.
*जनवरी में बदला मौसम का मिजाज*
जनवरी की शुरुआत बिल्कुल अलग थी, जिसमें मध्यम से सक्रिय तीव्रता के कई पश्चिमी विक्षोभ नियमित अंतराल पर दिखाई दिए. इसके साथ, उत्तर पश्चिम भारत, विशेष रूप से पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश और हिमपात दर्ज किया गया. इस क्षेत्र में 28 प्रतिशत की अधिक बारिश हुई. जनवरी के दौरान, सात पश्चिमी विक्षोभ उत्तर भारतीय क्षेत्र में चले गए. वहीं चार बार पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में बारिश और बर्फबारी दर्ज की गई.
*फरवरी में भी रफूचक्कर हो गई सर्दी!*
इसके बाद, फरवरी का मौसम बिल्कुल दिसंबर की तरह रिकॉर्ड किया गया. पश्चिमी विक्षोभ तो थे, लेकिन उनका कोई खास असर दिखाई नहीं दिया. इस वजह से अधिकतम तापमान में लगातार बढ़ोत्तरी होती रही और तापमान सामान्य से काफी ऊपर रहा. मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन का काफी असर दिखाई दे रहा है.
जलवायु परिवर्तन पर इंटर-गवर्नमेंट पैनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, एशिया में आने वाले दिनों में हीटवेव में बहुत ज्यादा वृद्धि होने की संभावना है. अनुमानों से पता चलता है कि भारत सहित दक्षिण एशिया का एक बड़ा हिस्सा आने वाले समय में गर्मी के तनाव की स्थिति का अनुभव करेगा और सर्दियों के दिन कम हो जाएंगे.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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