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खतरे में हैं 41 आयुध कारखानों का अस्तित्व

क्षा क्षेत्र से जुड़े तीन बड़े कर्मचारी संगठनों, जिनमें एआईडीईएफ, बीपीएमएस और सीडीआरए शामिल है, उन्होंने 220 साल पुराने 41 आयुध कारखानों के गौरवपूर्ण इतिहास के सिमटने की आशंका जाहिर की है।

नई दिल्ली, 24 मार्च  2023 (यूटीएन)।  रक्षा क्षेत्र से जुड़े तीन बड़े कर्मचारी संगठनों, जिनमें एआईडीईएफ, बीपीएमएस और सीडीआरए शामिल है, उन्होंने 220 साल पुराने 41 आयुध कारखानों के गौरवपूर्ण इतिहास के सिमटने की आशंका जाहिर की है। एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार के मुताबिक, 41 आयुध कारखानों को सात कंपनियों में तब्दील करने के बाद इनका अस्तित्व खतरे में है। इन कारखानों के निगमीकरण को अब डेढ़ साल हो गया है। केंद्र सरकार ने आयुध कारखानों के निगमीकरण के पक्ष में जवाबदेही, स्वायत्तता और दक्षता को लेकर यह तर्क दिया था
कि इनका कारोबार बढ़कर 30,000 करोड़ रुपये हो जाएगा। अभी तक यह वास्तविकता से दूर है। रक्षा मामलों की स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया है कि सात डीपीएसयू ने 2024-25 रुपये में 26,300 करोड़ रुपये के कारोबार का अनुमान लगाया है। 2021-22 का टर्नओवर लगभग 8686 करोड़ रुपये रहा है। श्रीकुमार ने 4 मार्च को सीडीएस द्वारा दिए गए एक बयान का हवाला दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था ‘हमारे लिए सबसे बड़ा सबक आत्मनिर्भर बनना है’। हम बाहर से मिलिट्री सप्लाई पर निर्भर नहीं रह सकते। तीनों कर्मचारी संगठन, निगमीकरण के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।
*ओएफबी को मूल स्थिति में वापस लाना चाहिए*
बतौर श्रीकुमार, केवल सीडीएस ही नहीं, बल्कि सेना प्रमुख भी इस बाबत इशारा कर चुके हैं। आर्मी चीफ ने गत दिनों कहा था कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए, आयुध कारखानों को सरकार के तहत ओएफबी के रूप में अपनी मूल स्थिति में वापस लाना चाहिए। एक सरकारी संगठन के रूप में आयुध कारखानों को जारी रखने के लिए संघों और सीडीआरए द्वारा दिए गए वैकल्पिक और व्यवहार्य प्रस्तावों पर विचार हो।
संगठन के पदाधिकारी कहते हैं कि केंद्र सरकार की नीति 41 आयुध कारखानों के अस्तित्व को ही खतरे में डाल रही है। यह न तो सशस्त्र बलों और न ही देश के हित में है। मोदी सरकार ने एक अक्तूबर 2021 को 41 आयुध कारखानों को, उनकी ट्रेड यूनियनों के तमाम विरोधों को अनदेखा करते हुए उन्हें सात निगमों में परिवर्तित कर दिया था। इसके खिलाफ कर्मचारी संघ, अदालत में गए। वहां पर केंद्र ने अदालत में कहा, ईडीएसए-2021 को अगस्त, 2021 से आगे बढ़ाने की कोई योजना नहीं है। इस पर उच्च न्यायालय ने रिट याचिका का निस्तारण कर दिया।
*सात कंपनियों में तब्दील हो चुके हैं ये कारखाने*
वर्तमान में एआईडीईएफ, बीपीएमएस और सीडीआरए, तीनों कर्मचारी संगठनों ने रक्षा मंत्रालय के समक्ष एक एजेंडा प्रस्तुत किया है। इसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार का आयुध कारखानों को कॉर्पोरेट बनाने का निर्णय एक विफलता और दुस्साहस है। इस पर पुनर्विचार करने और निर्णय वापसी की आवश्यकता है। 41 आयुध कारखानों को रक्षा पीएसयू अर्थात् म्यूनिशन इंडिया लिमिटेड, आर्मर्ड व्हीकल निगम लिमिटेड, एडवांस्ड वेपंस एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड, ट्रूप कम्फर्ट्स लिमिटेड, यंत्र इंडिया लिमिटेड, इंडिया ऑप्टेल लिमिटेड और ग्लाइडर्स इंडिया लिमिटेड को हस्तांतरित कर दिया गया।
आयुध कारखानों के रक्षा नागरिक कर्मचारियों को 01.10.2021 से दो वर्ष की अवधि के लिए प्रतिनियुक्ति पर रखा गया। कर्मचारी संगठनों के पदाधिकारियों का कहना है कि निगमीकरण एक विफल प्रयोग है। इसे राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा तैयारियों, 41 आयुध कारखानों और पूर्व ओएफबी कार्यालयों में कार्यरत रक्षा नागरिक कर्मचारियों के हित में वापस लिया जाना चाहिए। सरकार जिस निगम का दावा कर रही है, उसके लाभ के मामले में पारदर्शिता नहीं है। सरकार अपने उद्यम की सफलता का दावा करने की जल्दबाजी दिखाती रही है। संदिग्ध आंकड़ों के आधार पर सभी निगमों को छह माह के प्रदर्शन के आधार पर लाभदायक घोषित कर दिया गया।
*टेंडर में रखी जा रही हैं प्रतिबंधात्मक शर्तें*
आयुध कारखानों के निगमीकरण के बाद सशस्त्र बलों को अपनी जरुरतें पूरी करने के लिए बाजार की तरफ जाना पड़ रहा है। सेना से जुड़े जिन आइटमों को आयुध कारखानों में दशकों से गुणवत्ता के साथ और समय पर पूरा किया जाता रहा है, आज उन्हें सप्लाई ऑर्डर न देने की साजिश हो रही है। सी. श्रीकुमार बताते हैं, हाल ही एक टेंडर में ऐसी प्रतिबंधात्मक शर्तें रख दी गईं कि उसमें टीसीएल भाग ही न ले सके। इसके चलते 12 लाख नए डिजाइन की डिजिटल सेना वर्दी खरीद का मामला अटक गया।
इसी तरह जीआईएल के तहत ऑर्डनेंस पैराशूट फैक्ट्री की उपेक्षा की गई। फास्ट ट्रैक प्रक्रिया (एफटीपी) के माध्यम से आपातकालीन खरीद के तहत 350 कॉम्बैट फ्री फॉल पैराशूट सिस्टम खरीदने का प्रस्ताव तैयार कर दिया गया। भारतीय वायु सेना ने भी 3,48,400 (ग्राउंड क्रू) (क्यू-3) की खरीद का सप्लाई ऑर्डर टीसीएल को देने की बजाए, उसका टेंडर जारी कर दिया। सरकार ने रक्षा उत्पादन के ढांचे और व्यवस्था के बारे में निर्णय लेने वाले हितधारकों के सभी सुझावों को नजरअंदाज कर दिया।
*छोटे हथियारों को लेकर वर्कलोड की स्थिति गंभीर*
कारखानों के पास जानबूझकर वर्कलोड का संकट खड़ा किया जा रहा है। एडब्लूईआईएल के तहत जीसीएफ में, भले ही यह दावा किया जाता है कि अगले 10 वर्षों के लिए वर्कलोड उपलब्ध है। वहां कच्चे माल और घटकों की उचित आपूर्ति के बिना उत्पादन प्रभावित हो रहा है। छोटे हथियारों के कारखानों में वर्कलोड की स्थिति भी गंभीर है। एवीएनएल के तहत ओएफएमके के पास भी अगले वर्ष के लिए पर्याप्त कार्यभार नहीं है। चालू वर्ष के लिए सामग्री की कमी है। ऐसी ही स्थिति ईएफए की भी है। यह जानबूझकर ऐसा चित्रित करने की साजिश है कि आयुध कारखाने, सशस्त्र बलों को समय पर अपने उत्पादों की आपूर्ति करने में सक्षम नहीं हैं। इसी वजह से सशस्त्र बल निजी स्रोतों से खरीद कर रहे हैं।
*यह कर्मचारियों द्वारा भोगी जाने वाली एक सजा है*
कर्मचारियों की उपलब्धि और योगदान को नकारने का प्रयास हो रहा है। अब यह धारणा बन चुकी है कि यह निगमीकरण, कर्मचारियों द्वारा भोगी जाने वाली एक सजा है। कर्मियों के हित से जुड़े फैसलों पर रोक लग रही है। कारखानों में स्थित अस्पतालों और स्कूलों की स्थिति दयनीय है। डीडीपी द्वारा आयुध निर्माणी स्कूलों में प्रवेश बंद करने से कर्मचारी अपने बच्चों के भविष्य को लेकर परेशान हैं। भर्ती पूरी तरह से रोक दी गई है।
नतीजा, सभी स्तरों पर प्रशिक्षित और योग्य जनशक्ति की कमी हो रही है। सरकार, डीपीएसयू का बजट मंजूर नहीं कर रही है। आयुध कारखानों को बजट की कमी का सामना करना पड़ रहा है। कुछ अधिकारियों द्वारा राजनीतिक नेतृत्व को गुमराह करने के कारण 220 साल पुराने प्रमुख रक्षा उद्योग को नष्ट कर दिया गया है। अब यह साबित हो गया है कि ऑर्डिनेंस फैक्ट्रियों को कॉरपोरेटाइज करने का सरकार का फैसला एक विफल कवायद है। इसे वापस लेने की जरूरत है। 30 सितंबर 2021 को ओएफबी की जो स्थिति थी, उसे बहाल करने की आवश्यकता है।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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