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एम्स में न चीरा, न तामझाम, आधे घंटे में आंखों के कैंसर का हो रहा इलाज

जिसमें सबसे कम उम्र वाला 14 साल का किशोर भी है. खास बात यह है कि इस तकनीक में आंखों की रोशनी जाने का खतरा बहुत मामूली है.

नई दिल्ली, 19 मार्च 2024 (यूटीएन)। देश के सबसे प्रतिष्ठित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स में नई तकनीक से आंखों के कैंसर का इलाज हो रहा है. इस इलाज में कोई ज्यादा तामझाम की जरूरत नहीं है. सिर्फ आधे घंटे में गामा नाइफ तकनीक से आंखों के कैंसर की सर्जरी हो जाती है. वैसे तो हर तरह के कैंसर से इंसान के जीवन में तबाही आती है लेकिन आंखों के कैंसर में अगर बीमारी ठीक भी हो जाती है तो अधिकांश की आंखों की रोशनी चली जाती है. इससे जीवन बहुत कष्टदायक हो जाता है. लेकिन अब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में आंखों के कैंसर के लिए ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसमें कोई तामझाम की जरूरत नहीं होती बल्कि आधे घंटे के अंदर बिना चीरा लगाए कैंसर की सर्जरी हो जाती है.
एम्स देश का पहला संस्थान है जहां गामा नाइफ के जरिए बिना चीरा लगाए आंखों के कैंसर का इलाज किया जाता है. इस तकनीक से अब तक 15 मरीजों का सफल इलाज किया गया है जिसमें सबसे कम उम्र वाला 14 साल का किशोर भी है. खास बात यह है कि इस तकनीक में आंखों की रोशनी जाने का खतरा बहुत मामूली है.
*आंखों की रोशनी नहीं जाती*
दरअसल, गामा नाइफ तकनीक बहुत बेजोड़ है. इस टेक्नीक से आंखों के कैंसर का जड़ से सफाया किया जाता है. वो भी आंखों की रोशनी को बिना नुकसान पहुंचाए. इस तकनीक का काफी फायदा आम लोगों तक पहुंच रहा है. आसान शब्दों में कहे तो कोई बार आंख के कैंसर में इलाज के दौरान मरीज की आंखें तक निकलानी पड़ती थी लेकिन डॉक्टर्स की मानें तो गामा नाईफ तकनीक से कैंसर का भी इलाज किया जा रहा और आंखों की भी सुरक्षा की जा रही है. इस थेरेपी की सबसे अच्छी बात ये है कि इससे आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है.
*सामान्य सर्जरी में जटिलताएं*
एम्स, नई दिल्ली में न्यूरो सर्जरी विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर दीपक अग्रवाल ने बताया कि यदि मरीज बीमारी को शुरुआती दौर में नहीं समझ पाता और किसी वजह से आंखों में ट्यूमर बहुत बड़ा हो गया तो इसमें कई तरह के खतरे रहते हैं. अधिकांश मामलों में इलाज के बावजूद आंखों की रोशनी जाने का खतरा रहता है. इसलिए इसकी जल्दी सर्जरी करनी पड़ती है. दुखद यह है कि कैंसर को हटाने के लिए आंख को भी सर्जरी कर बाहर निकालना पड़ता है. उसकी जगह पर दूसरी आंख ट्रांसप्लांट नहीं की जा सकती है. यानी वह वह व्यक्ति इलाज के बावजूद जिंदगी भर दृष्टिहीन बना रहेगा. पर एम्स में अगर वह व्यक्ति इलाज कराने आ जाए तो इसकी आशंका बहुत कम हो जाएगी.
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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