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दांव पर है आयुद्ध कारखानों से बने निगमों का भाग्य

साल 2021 में 220 साल पुराने 41 आयुद्ध कारखानों को जिन सात निगमों में तब्दील किया गया था, अब उनकी स्थिति कैसी है

नई दिल्ली, 24 मार्च  2023 (यूटीएन)। रक्षा पर 38वीं स्थायी समिति की रिपोर्ट (2022-2023) अब सार्वजनिक पटल पर है। साल 2021 में 220 साल पुराने 41 आयुद्ध कारखानों को जिन सात निगमों में तब्दील किया गया था, अब उनकी स्थिति कैसी है, रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है। हालांकि सरकार की ओर से रिपोर्ट में सात निगमों को लेकर गुलाबी तस्वीर दिखाने का हर संभव प्रयास किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘टी-72’ और ‘टी-90’ टैंक में जो इंजन लगते हैं, वे पूरी तरह से स्वदेशी हैं। अगर संपूर्ण टैंक की बात करें तो ‘टी-72’ अब 96 फीसदी स्वदेशी हो गया है। इसी तरह ‘टी-90’ टैंक का भी स्वदेशी स्तर करीब 82 फीसदी तक पहुंच चुका है। दूसरी ओर, एआईडीईएफ के महासचिव सी. श्रीकुमार ने कहा है कि मौजूदा परिस्थितियों में सात निगमों का भाग्य दांव पर लगने वाला है। निगमों की ऑर्डर बुक की स्थिति पर गौर करें तो अगले पांच वर्षों के लिए वह तस्वीर बहुत ही धूमिल है।
*रिपोर्ट में 95 फीसदी स्वदेशी कंटेंट की बात*
रिपोर्ट में एमआईएल को लेकर कहा गया है कि हम लोग आत्मनिर्भर भारत को आत्मसात करते हुए स्वदेशीकरण पर बहुत फोकस करते हैं। इस समय हम जो प्रोडेक्ट बना रहे हैं, उसमें स्वदेशी कंटेंट 95 फीसदी है। केवल पांच फीसदी कंटेंट ही ऐसा है, जिसमें हमें बाहर से लेना पड़ता है। दूसरे निगम एवीएनएल को लेकर कहा गया है कि कुछ प्रोडेक्ट तो सौ फीसदी स्वदेशी हैं। जैसे सीआरएन-91 नेवल गन, कवच, नेवल डेक्वॉय सिस्टम, कुछ माइन प्रोटेक्टिेड व्हीकल और लॉजिस्टिक व्हीकल हैं, जो पूरी तरह स्वदेशी हैं। जितने भी इंजन टी-72 और टी-90 टैंक में लगते हैं, वे पूरी तरह से स्वदेशी हैं। टी-72 टैंक 96 फीसदी और टी-90 टैंक 82 फीसदी स्वदेशी हो चुका है। बीएमपी जो एक आईसीबी व्हीकल है, वह 98 फीसदी है। इसके इंजन का स्वदेशी स्तर 90 फीसदी है। बाकी दोनों इंजन पहले से ही सौ फीसदी स्वदेशी हैं। स्वदेशी आइटमों की संख्या 31 रखी गई है। इनमें से आठ आइटम तो स्वदेशी हो गए हैं। इससे सरकार को 112 करोड़ रुपये की बचत हुई है।
*तीसरे निगम को लेकर 94 फीसदी पर है ग्राफ*
एडब्लूईआईएल को लेकर रिपोर्ट में जो तथ्य हैं, उनमें स्वदेशीकरण का प्रतिशत 94 बताया गया है। इसमें आरएंडडी पर फोकस किया गया है। घरेलू एवं वैश्विक जरुरतों के मुताबिक, विभिन्न प्रोडेक्ट की पहचान की गई है। इन सभी का इंटरनल ट्रायल पूरा हो चुका है। इन्हें लांच करने की तैयारी है। देश का पहला स्वदेशी आइटम आर्टिलरी गन ‘धनुष’ रहा है। ये अब भारतीय सेना में तैनात हो चुकी है। ईशापुर की राइफल फैक्ट्री को गत वर्ष इनोवेशन प्रोडेक्ट की श्रेणी में गोल्ड अवॉर्ड मिला था। चौथे निगम ‘आईओएल’ में बैटल टैंक के साइट सिस्टम के 8-10 स्वदेशीकरण हो चुके हैं।
छह माह के अंदर ड्राइव नाइट साइट विकसित की गई है। पांचवें निगम ‘वाईआईएल’ के बारे में कहा गया कि यह एक ऐसी यूनिट है, जहां पर सौ फीसदी स्वदेशीकरण है। यहां पर कोई भी कच्चा माल कहीं से आयात नहीं होता है। इंडिया लिमिटेड के साथ मिलकर स्मार्ट एम्युनेशन, डीपीआईसी, पिनाका के वैरियर रॉकेट्स, गाइडेड रॉकेट्स और इलेक्ट्रॉनिक एंड मैकेनिकल फ्यूज के नए वर्जन तैयार करने पर काम हो रहा है।
*टीसीएल में भी आयात हुआ सौ फीसदी जीरो*
रिपोर्ट के अनुसार, इस कंपनी के सभी उत्पादों को लेकर आयात सौ फीसदी जीरो है। यहां सब कुछ स्वदेशी है। इसके प्रोडेक्ट का सबसे बड़ा ग्राहक भारतीय सेना है। 90-95 फीसदी सामान इंडियन आर्मी को जाता है। सातवें निगम ‘जीआईएल’ के तहत रिकवरी पैराशूट तैयार किया गया है। इसका ट्रायल बाकी है। ड्रोन रेस्क्यू पैराशूट्स की जरुरत आने वाले समय में बढ़ेगी। मार्केट में इस प्रोडेक्ट को लांच करने की तैयारी है। श्रीकुमार कहते हैं कि निगमों की ऑर्डर बुक स्थिति ठीक नहीं है। वर्ष 2023-24 के लिए इनकी ऑर्डर बुक स्थिति 16,694.58 करोड़ रुपये है।
इसमें केवल एमआईएल और एवीएनएल ही कंफर्टेबल जोन में हैं, जबकि 8 फैक्ट्रियों वाली एडब्लूईएलआई के पास 1915 करोड़ रुपये का लोड है। टीसीएल और वाईआईएल तो सबसे खराब स्थिति में हैं। चार फैक्ट्रियों वाली टीसीएल पर केवल 88.89 करोड़ रुपये का वर्कलोड है, जबकि आठ फैक्ट्रियों वाली वाईआईएल पर 700 करोड़ रुपये का वर्कलोड है। एमआईएल पर 2025-26 के बाद कोई काम का बोझ ही नहीं है। एवीएनएल का वर्कलोड भी 2027-28 में घटकर 560 करोड़ रुपये दिखाया गया है। आयुध कारखानों का निगमीकरण करते हुए केंद्र सरकार ने 30,000 करोड़ रुपये की ऑर्डर बुक होने का दावा किया था।
*हथियार आयातकों में भारत पहले स्थान पर*
सरकार ने अब कई वस्तुओं/उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। संसदीय स्थायी समिति के समक्ष प्रस्तुत रिपोर्ट में मालूम हुआ है कि सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में कई नीतिगत पहल की हैं। रक्षा उपकरणों के स्वदेशी डिजाइन, विकास और निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए कई सुधार किए हैं। इसका मकसद रक्षा निर्माण और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना है। बतौर श्रीकुमार, रिपोर्ट से पता चलता है कि सात निगमों में न तो निर्यात, न अनुसंधान एवं विकास और न ही नवाचार आदि हो रहा है। आज भी भारत दुनिया के शीर्ष 10 हथियार आयातकों में पहले स्थान पर है। भारत के शस्त्र आयात का वैश्विक हिस्सा 11 फीसदी है। पाकिस्तान का 3.7 फीसदी है। दुनिया के टॉप 10 आर्म्स एक्सपोर्टर्स में भारत का नाम गायब है।
सेना द्वारा आयुध कारखानों को मांग देना बंद करने और खुली निविदा के माध्यम से निजी क्षेत्र में जाने के कारण सात निगमों का भाग्य दांव पर लगने वाला है। हाल ही में सेना ने 12 लाख नए डिजाइन वाली वर्दी की खरीद के लिए एक खुली निविदा जारी की है। टीसीएल के तहत चार आयुध कारखानों को प्रतिबंधात्मक शर्तें लगाकर निविदा में भाग लेने की अनुमति भी नहीं दी गई है। ऐसा ही कुछ दूसरे निगमों में देखने को मिल रहा है।
*आयुध कारखानों का निगमीकरण विफल*
तीन प्रमुख कर्मचारी संगठन, एआईडीईएफ, बीपीएमएस और सीडीआरए ने डीडीपी को एक विस्तृत नोट प्रस्तुत किया है। इसमें आरोप लगाया गया है कि आयुध कारखानों का निगमीकरण विफल रहा है। केपीएमजी की सिफारिशें भी विफल रही हैं। अब उन अधिकारियों पर जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए, जिन्होंने गलत निर्णय लेने के लिए राजनीतिक आकाओं को गलत सलाह देकर उन्हें गुमराह किया है। एआईडीईएफ के महासचिव सी श्रीकुमार ने रक्षा की स्थायी समिति की रिपोर्ट पर कहा, सरकार किसी तरह गुलाबी तस्वीर पेश कर यह दिखाना चाहती है कि ओएफबी का निगमीकरण एक सफल अभ्यास था। अभी सात निगमों के भविष्य के बारे में अनिश्चितता है। देश के सर्वश्रेष्ठ कार्यबल को कुछ उदासीन और असंवेदनशील व्यक्तियों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा है।
आयुध कारखानों के निगमीकरण के निर्णय को वापस लेकर सरकार अपनी गलती को सुधार सकती है। सरकार को इस संबंध में कर्मचारी संघों से तत्काल बातचीत शुरू करनी चाहिए। एआईडीईएफ की राष्ट्रीय कार्यकारी समिति की बैठक 29 और 30 मार्च को होगी। उसमें आयुध कारखानों और इसके कर्मचारियों को बचाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए जाने का निर्णय लिया जा सकता है।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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