नई दिल्ली, 16 मार्च 2023 (यूटीएन)। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने अच्छी तरह से नियंत्रित और नियमित तरीके से विदेशी वकीलों और कानूनी फर्मों को देश में अभ्यास करने की अनुमति देने पर सहमति व्यक्त की है। बीसीआई भारत में विदेशी वकीलों और विदेशी कानून फर्मों के पंजीकरण के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम, 2022 के साथ आया है ताकि अंतरराष्ट्रीय वकीलों और मध्यस्थता चिकित्सकों को भारत में सलाह देने में सक्षम बनाया जा सके। नियमों के मुताबिक, विदेशी वकील और लॉ फर्म सिर्फ गैर-मुकदमे वाले मामलों में ही प्रैक्टिस करने के हकदार होंगे।
उनके लिए जो तीन व्यापक क्षेत्र खोले गए हैं उनमें विदेशी कानून, मध्यस्थता के मामले और अंतरराष्ट्रीयकानूनी मुद्दे शामिल हैं। बीसीआई के अनुसार, एक वैधानिक निकाय, विदेशी कानून के अभ्यास के क्षेत्र में विदेशी वकीलों के लिए भारत में प्रैक्टिस को खोलने से गैर-मुकदमे वाले मामलों में अंतरराष्ट्रीय कानूनी मुद्दे और अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता मामलों में भारत के वकीलों के लाभ के लिए भारत में कानूनी पेशे/डोमेन को विकसित करने में मदद मिलेगी। विदेशी वकील या फर्म बीसीआई के साथ पंजीकरण के बिना भारत में अभ्यास नहीं कर पाएंगे, और एक विदेशी वकील के लिए पंजीकरण शुल्क 25,000 डॉलर है, और एक कानूनी फर्म के लिए यह 50,000 डॉलर है। बीसीआई ने कहा, नियम 7 के तहत किया गया पंजीकरण केवल पांच वर्ष की अवधि के लिए वैध होगा और विदेशी वकील या लॉ फर्म को तिथि से छह महीने के भीतर फॉर्म बी में नवीनीकरण के लिए आवेदन दाखिल करके इसे नवीनीकृत करने की आवश्यकता होगी।
ये नियम देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रवाह के बारे में व्यक्त की गई चिंताओं को दूर करने और भारत को अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता का केंद्र बनाने में भी मदद करेंगे। विदेशी वकीलों को पारस्परिक आधार पर लेनदेन संबंधी कार्य जैसे संयुक्त उद्यम, विलय और अधिग्रहण, बौद्धिक संपदा मामले, अनुबंधों का मसौदा तैयार करने और अन्य संबंधित मामलों पर अभ्यास करने की अनुमति होगी। बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने इसके लिए नियम तय किए हैं। कहा गया है कि भारत में विदेशी वकीलों को इंटरनेशनल लॉ और विदेशी लॉ के मामले में प्रैक्टिस के लिए इजाजत दी गई है। बार काउंसिल के चेयरमैन ने कहा है कि विदेशी वकीलों और फर्म को सिर्फ इंटरनेशनल लॉ व विदेशी कानून के बारे में कानूनी सलाह की इजाजत दी गई है वह इंडियन कोर्ट में पेश नहीं होंगे। हालांकि दूसरी ओर वकील बिरादरी में इस बात को लेकर आशंका है कि कहीं यह बैकडोर एंट्री तो नहीं है।
वकील इसका 1999 व 2000 में काफी विरोध भी कर चुके हैं। बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मनन कुमार मिश्रा के अनुसार यह इजाजत आदान प्रदान के बेसिस पर होगा यानी भारतीय वकील को अगर विदेश में इंटरनेशनल लॉ और विदेशी लॉ के मामले में जितनी इजाजत होगी उतनी ही इजाजत विदेशी वकील को यहां होगी। हालांकि विदेशी वकीलों का बार काउंसिल में रजिस्ट्रेशन होगा लेकिन वह भारतीय कोर्ट में पेश नहीं होंगे। भारत में चलने वाले कानूनी विवाद के मामले में उन्हें प्रैक्टिस की इजाजत नहीं होगी। उनको एक सीमित क्षेत्र में रेग्युलेटेड तरीके से इजाजत दी जा रही है। बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के चेयरमैन केके मनन का कहना है कि बदलते दौर में यह इजाजत दी गई है और यंग जेनरेशन के वकीलों को इसका फायदा हो सकेगा। लेकिन इस मामले में बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के वाइस चेयरमैन संजीव नसिय्यार और बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के मेंबर राजीव खोसला का कहना है कि यह एक तरह से बैक डोर एंट्री की तरह लग रही है। खोसला बताते हैं कि उनकी अगुवाई में देश भर के वकीलों ने विरोध किया था और सरकार ने इस मामले में अपने कदम वापस ले लिए थे।
उन्हें इस बात की आशंका है कि जैसे ही विदेशी लॉ फर्म को रजिस्ट्रेशन की इजाजत होगी तो उस फर्म में भारतीय कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील जॉइन करेंगे और फिर भारतीय कानून के तहत भी वह प्रैक्टिस करेंगे और इस तरह से देखा जाए तो भारतीय कानून के तहत उनकी प्रैक्टिस पर कोई रोक प्रैक्टिकली नहीं हो पाएगी। खोसला ने बताया कि हम बार काउंसिल ऑफ इंडिया से इस बारे में बात करेंगे कि ऐसे लीगल फर्म में काम करने वाले किसी भी वकील को भारतीय कोर्ट में पेश होने की इजाजत न हो चाहे वह वकील भारतीय ही क्यों न हो। अगर ऐसा नहीं किया जाता है और भारतीय कोर्ट में प्रैक्टिस और पेशी के लिए बैकडोर एंट्री दी गई तो इस पर ऐतराज होगा। नसिय्यार ने बताया कि अगर बैकडोर एंट्री विदेशी फर्म को दी गई और किसी तरह से उन्हें कोर्ट में पेश होने की इजाजत दी गई तो इससे भारतीय वकीलों के रोजगार पर असर होगा और तब इसके विरोध में स्वर उठेंगे।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |