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सीआरपीएफ’ में सब ठीक नहीं है! 23 दिन मे 10 जवानों ने की आत्महत्या

अर्धसैनिक बलों की बात करें तो पांच वर्ष के दौरान 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है।

नई दिल्ली, 06 सितम्बर 2023 (यूटीएन)। देश के सबसे बड़े केंद्रीय अर्धसैनिक बल ‘सीआरपीएफ’ में महज 23 के भीतर दो इंस्पेक्टर और एक एसआई सहित 10 जवानों ने आत्महत्या कर ली है। इनमें से एक इंस्पेक्टर की बॉडी पंखे से झूलती हुई मिली तो दूसरे ने अपनी राइफल से खुद को गोली मार ली। एसआई ने अपने गले में फंदा लगाकर जान दे दी। सीआरपीएफ में पिछले पांच वर्ष के दौरान 240 से अधिक जवान आत्महत्या कर चुके हैं।
अगर सभी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की बात करें तो पांच वर्ष के दौरान 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है। इस तरह की घटनाओं पर गृह मंत्रालय और बल की तरफ से एक ही जवाब मिलता रहा है कि संबंधित जवान को किसी तरह की कोई पारिवारिक समस्या रही होगी। गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय, संसद में जवाब देते हैं कि इन बलों में आत्महत्याओं और भ्रातृहत्याओं को रोकने के लिए जोखिम के प्रासंगिक घटकों एवं प्रासंगिक जोखिम समूहों की पहचान करने तथा उपचारात्मक उपायों से संबंधित सुझाव देने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है। कार्यबल की रिपोर्ट तैयार हो रही है।
*10 जवानों द्वारा आत्महत्या करने का सिलसिला*
12 अगस्त को पुलवामा स्थित 112 बटालियन के सिपाही अजय कुमार ने आत्महत्या कर ली थी। वे झारखंड के रहने वाले थे। 15 अगस्त को इंस्पेक्टर चित्तरंजन बारो (45 वर्ष) ने असम स्थित बल की 20 बटालियन में अपना जीवन खत्म कर लिया। वे मूल रूप के असम के ही कामरूप जिले के रहने वाले थे। अभी उनकी सेवा को 19 साल पूरे हुए थे। सुबह सात बजे उन्होंने अपने गले में फंदा लगा दिया। घटना के वक्त इंस्पेक्टर के हाथ और पांव बंधे हुए थे। उनके गले में जो रस्सी थी, उसी से उनके हाथ बंधे हुए थे। पांव, किसी दूसरे कपड़े से बंधे हुए मिले। 17 अगस्त को सिपाही राहुल कश्यप ने ग्रुप सेंटर जीएनआर में अपना जीवन खत्म कर लिया।
उत्तर प्रदेश के रहने वाले थे। 19 अगस्त को छत्तीसगढ़ स्थित 210 कोबरा में इंस्पेक्टर शफी अख्तर ने अपनी राइफल से खुद को गोली मार ली थी। वे मूलत: दिल्ली के रहने वाले थे।
*एक ही दिन में दो जवानों ने की आत्महत्या*
19 अगस्त को सिपाही जगदीश प्रसाद मीणा ने आत्महत्या कर ली थी। यह घटना झारखंड स्थित 158 बटालियन में हुई। वे राजस्थान के रहने वाले थे। 25 अगस्त को ओडिशा स्थित बल की 127 वीं बटालियन में हवलदार रमेश सी. लाल ने अपना जीवन खत्म कर लिया। वे केरल के रहने वाले थे। एक सितंबर को ग्रुप सेंटर काठगोदाम में एसआई नरेश कुमार ने आत्महत्या कर ली। वे यूपी के रहने वाले थे। दो सितंबर को जम्मू कश्मीर स्थित सी/4 बटालियन के हवलदार विशिष्ट नारायण यादव ने आत्महत्या कर ली।
बिहार के रहने वाले थे। दो सितंबर को श्रीनगर स्थित 54वीं बटालियन के सिपाही संजय कुमार ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। वे दिल्ली के रहने वाले थे। 4 सितंबर को भोपाल स्थित डी/107 बटालियन के सिपाही मोगली सुधाकर ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। वे तेलंगाना के रहने वाले थे।
*पांच साल में 654 से ज्यादा जवानों ने की आत्महत्या*
केंद्रीय अर्धसैनिक बलों सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ, असम राइफल्स और राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड में जवानों व अधिकारियों द्वारा आत्महत्या करने के मामले कम नहीं हो पा रहे हैं। गत पांच वर्ष में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों के 654 से अधिक जवानों ने आत्महत्या कर ली है। आत्महत्या करने वालों में CRPF के 240, बीएसएफ के 174, सीआईएसएफ के 89, एसएसबी के 64, आईटीबीपी के 51, असम राइफल के 43 और एनएसजी के 3 जवान शामिल हैं।
बजट सत्र के दौरान गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने अपनी 242 वीं रिपोर्ट में कहा था कि आत्महत्या के केस, बल की वर्किंग कंडीशन पर असर डालते हैं। सेवा नियमों में सुधार की गुंजाइश है। जवानों को प्रोत्साहन दें। रोटेशन पॉलिसी के तहत पोस्टिंग दी जाए। लंबे समय तक कठोर तैनाती न दें। ट्रांसफर पॉलिसी ऐसी बनाई जाए कि जवानों को अपनी पसंद का ड्यूटी स्थल मिल जाए। अगर ऐसे उपाय किए जाते हैं तो नौकरी छोड़कर जाने वालों की संख्या कम हो सकती है।
*50155 कर्मियों ने जॉब को अलविदा कह दिया*
अगर पिछले पांच वर्ष की बात करें तो सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, एसएसबी, सीआईएसएफ और असम राइफल्स में 50155 कर्मियों ने जॉब को अलविदा कह दिया है। संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में यह सिफारिश भी की है कि सीएपीएफ में वर्किंग कंडीशन को बेहतर बनाया जाए। खाली पदों को शीघ्रता से भरा जाए। संसद सत्र में इस विषय को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा था, इस बात का प्रयास चल रहा है कि सीएपीएफ कार्मिक अपने परिवारों के साथ यथासंभव प्रतिवर्ष 100 दिन बिता सकें।
इन बलों में आत्महत्याओं और भ्रातृहत्याओं को रोकने के लिए जोखिम के प्रासंगिक घटकों एवं प्रासंगिक जोखिम समूहों की पहचान करने तथा उपचारात्मक उपायों से संबंधित सुझाव देने के लिए एक कार्यबल का गठन किया गया है। कार्यबल की रिपोर्ट तैयार हो रही है। सीएपीएफ में तबादले और छुट्टी को लेकर पारदर्शी नीतियां बनाई जा रही हैं। कठिन क्षेत्रों में सेवा करने के पश्चात यथासंभव उसकी पसंदीदा तैनाती पर विचार किया जाता है।
*ड्यूटी पर क्या परेशानी है, इस संबंध में बात नहीं होती*
दूसरी ओर, कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स मार्टियर्स वेलफेयर एसोसिएशन’ का कहना है, इन जवानों को घर की परेशानी नहीं है। सरकार इस मामले में झूठ बोल रही है। इन्हें ड्यूटी पर क्या परेशानी है, इस बारे में सरकार कोई बात नहीं करती। आतंक, नक्सल, चुनावी ड्यूटी, आपदा, वीआईपी सिक्योरिटी और अन्य मोर्चों पर इन बलों के जवान तैनात हैं। इसके बावजूद उन्हें सिविल फोर्स बता दिया जाता है। जवानों को पुरानी पेंशन से वंचित रखा जा रहा है। समय पर प्रमोशन या रैंक न मिलना भी जवानों को तनाव देता है। विभिन्न जगहों पर राशन में भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं।
सीएपीएफ में कई जगहों पर वर्कलोड ज्यादा है। एक कंपनी में जवानों की तय संख्या कभी भी पूरी नहीं रहती। मुश्किल से साठ सत्तर जवान ही ड्यूटी पर रहते हैं। ऐसे में उनके ड्यूटी के घंटे बढ़ जाते हैं। जवान ठीक से सो नहीं पाते हैं। वे अपनी समस्या किसी के सामने रखते हैं, तो वहां ठीक तरह से सुनवाई नहीं हो पाती। ये बातें जवानों को तनाव की ओर ले जाती हैं। कुछ स्थानों पर बैरक एवं दूसरी सुविधाओं की कमी नजर आती है। कई दफा सीनियर की डांट फटकार भी जवान को आत्महत्या तक ले जाती है। नतीजा, जवान टेंशन में रहने लगते हैं।
*काउंसलिंग से लेकर दूसरे उपाय भी बेअसर*
सूत्रों का कहना है कि बल में हो रही आत्महत्याओं को लेकर गंभीरता से काम नहीं हो रहा। फाइल वर्क में ही बहुत कुछ निपट जाता है। जवान अपने परिवार से दूर रहते हैं। वहां पर अगर उनकी निजी समस्या भी है तो वे उसके लिए किसके साथ बातचीत करेंगे। बल में ही किसी से कहेंगे। वहां पर उन्हें धमका कर भगा दिया जाता है। आत्महत्या के केस न बढ़ें, इसके लिए फाइलों में कई तरह की योजनाएं चलती हैं।
हालांकि उसके बाद बल में आत्महत्या के मामले कम नहीं हो रहे हैं। इसके पीछे बल में सीनियर अधिकारियों द्वारा जवानों की बात ठीक तरह से नहीं सुनी जाती। जवान किसी को बताता है तो वहां डांट फटकार पड़ती है। नतीजा, वह घुट कर जीने लगता है। जब वह दबाव सहने की शक्ति से बाहर चला जाता है तो जवान आत्महत्या जैसा घातक कदम उठाता है। अगर बल के भीतर में कोई भी अधिकारी उसके साथ प्यार से बात करे तो वह मौत जैसे कठोर कदम से पीछे हट सकता है।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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