वाराणसी, 23 मार्च 2025 (यूटीएन)। देश की सांस्कृतिक राजधानी काशी में इस हिंदू संगठनों ने औरंगाबाद मोहल्ले का नाम बदलने की मांग उठाई है। इन हिंदू संगठनों की दलील है कि मुगल शासक औरंगजेब का नाम गुलामी का प्रतीक है और इसे हिंदू धर्मस्थलों के नाम से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। बता दें कि ये मांग कोई नई नहीं है,बल्कि काशी में लंबे समय से इस मुद्दे पर चर्चा होती रही है,लेकिन अब यह मांग फिर से सुर्खियों में है। विश्व वैदिक सनातन न्यास ने मेयर को पत्र लिखकर इस पर कार्रवाई की गुहार लगाई है।
औरंगाबाद मोहल्ले की स्थापना क्रूर औरंगजेब के शासनकाल में हुई थी। इतिहास के पन्नों में औरंगजेब का नाम विवादों से भरा रहा है। खासकर काशी में,जहां औरंगजेब ने कई प्राचीन मंदिरों और धर्मस्थलों को तोड़वाया था। हिंदू संगठनों का तर्क है कि औरंगजेब का शासनकाल धार्मिक असहिष्णुता और सांस्कृतिक विनाश का पर्याय था। ऐसे में उसके नाम पर किसी मोहल्ले का नामकरण न केवल अपमानजनक है, बल्कि यह उस दौर की याद भी दिलाता है, जिसे वे भुलाना चाहते हैं।
*मांग के पीछे की भावना*
विश्व वैदिक सनातन न्यास के अध्यक्ष संतोष सिंह ने इस मुद्दे को जोरदार तरीके से उठाया है। संतोष सिंह का कहना है कि गुलामी के प्रतीक चिन्हों और नामों को क्यों ढोया जाए,हमारा देश अब आजाद है और हमें अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुनर्जनन देना चाहिए। संतोष सिंह की ये बात उन लोगों के दिलों को छूती है, जो मानते हैं कि औपनिवेशिक और मुगलकालीन नामों को बदलकर भारत अपनी खोई हुई गरिमा को वापस पा सकता है। इस मांग के तहत सुझाव दिया गया है कि औरंगाबाद का नाम किसी हिंदू धर्मस्थल या संत के नाम पर रखा जाए, जो काशी की सनातन परंपरा को प्रतिबिंबित करे। हालांकि यह मांग केवल भावनाओं तक सीमित नहीं है।
वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है। वाराणसी हमेशा से ही सांस्कृतिक और धार्मिक मुद्दों को लेकर संवेदनशील रही है। नाम बदलने की मांग को कुछ लोग राजनीतिक लाभ से जोड़कर भी देख रहे हैं। पिछले कुछ सालों में देश में कई शहरों और सड़कों के नाम बदले गए हैं। इलाहाबाद से प्रयागराज, फैजाबाद से अयोध्या तक। ऐसे में औरंगाबाद का नाम बदलना भी उसी कड़ी का हिस्सा माना जा सकता है।काशी के कई लोग इसे सांस्कृतिक गौरव की बहाली के रूप में देखते हैं।
एक स्थानीय निवासी ने कहा कि औरंगजेब ने हमारे मंदिर तोड़े, फिर उनके नाम पर मोहल्ला क्यों। यह सवाल उस भावना को दर्शाता है,जो इस मांग को हवा दे रही है। विश्व वैदिक सनातन न्यास का पत्र मेयर के पास पहुंच चुका है, लेकिन इस पर कोई आधिकारिक फैसला अभी तक नहीं लिया गया है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रशासन इस मांग को स्वीकार करता है या इसे एक और सियासी मुद्दे के रूप में छोड़ देता है। अगर यह मांग पूरी होती है तो यह काशी के इतिहास में एक और अध्याय जोड़ देगा। दारा शिकोह संस्कृत का अध्ययन करने काशी आया था। शिकोह ने यहीं रहकर गीता, रामायण और स्मृतियों का फ़ारसी में अनुवाद किया।
कुरान शरीफ की कुछ आयतों का भी दारा शिकोह ने संस्कृत में अनुवाद किया था। उस दौरान काशी के मौलवियों ने औरंगजेब तक ये बात पहुंचाई कि दारा शिकोह दीन और इस्लाम के ख़िलाफ काम कर रहे हैं। दारा शिकोह के प्रति वैमनस्य का भाव रखने वाले औरंगजेब ने दारा शिकोह की हत्या कर जब बादशाह बना तो अप्रैल 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर तोड़ने और संस्कृत पाठशालाओं को बंद करने का फरमान जारी किया। औरंगजेब के इस फैसले के पीछे दारा का काशी में रहकर सनातन ग्रंथो का अध्ययन एक बड़ा कारण माना जाता है। दारा शिकोह ने अध्ययन करने के बाद शिवा नगर में पांच शिवालय बनवाए थे और त्रिपाठी परिवार को जमीन दान किया था।
*कमला पति त्रिपाठी से जुड़ा हुआ है औरंगाबाद का नाम*
यूपी के सीएम रहे और एक ज़माने में कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय पंडित कमला पति त्रिपाठी के ही पूर्वजों ने दारा शिकोह को संस्कृत की शिक्षा दी थी। यहीं रहकर दारा शिकोह ने गीता, रामायण और स्मृतियों का फ़ारसी अनुवाद किया था। त्रिपाठी परिवार की आज 18 वीं पीढ़ी यहां रहती है। वहीं आज इसे द औरंगाबाद हाउस के नाम से लोग जानते हैं।
बता दें कि औरंगाबाद मोहल्ले का नाम बदलने की मांग सिर्फ एक नाम से कहीं ज्यादा है। यह इतिहास,पहचान और सांस्कृतिक गौरव का सवाल है। एक तरफ जहां यह मांग काशी की सनातन परंपरा को मजबूत करने की कोशिश है,लेकिन इतना तय है कि काशी में औरंगजेब के नाम पर सियासत अभी थमने वाली नहीं है।