नई दिल्ली, 01 अप्रैल 2023 (यूटीएन)। नई विदेश
व्यापार नीति 2023 का स्वागत करते हुए फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइज़ेशन’के अध्यक्ष डॉ. ए शक्तिवेल ने कहा है कि नई विदेश व्यापार नीति की रूपरेखा अधिक व्यापार को सुगम बनाने, विनिर्माण को बढ़ावा देने, निर्यात में वृद्धि करने, व्यवसाय करने की सुगमता को और बढ़ाने में सक्षम करने तथा वैश्विक मुद्रा के रूप में रुपये को बढ़ावा देने की दिशा में भी काम करेगी जिससे वैश्विक व्यापार हब के रूप में भारत के उद्भव को और
प्रोत्साहन प्राप्त होगा। इस बार बदलाव प्रोत्साहन आधारित व्यवस्था से छूट और पात्रता आधारित व्यवस्था की ओर किया गया है। इसे किसी अंतिम तिथि के बना एक गतिशील एफटीपी करार देते हुए।
फियो अध्यक्ष ने कहा कि इसने
व्यापार और उद्योग के लिए एक विंडो के साथ नीति निरंतरता बनाये रखा है जिससे कि विश्व व्यापार में उभरती स्थिति के अनुरुप व्यापार की आवश्यकताओं और अपेक्षाओं को ध्यान में रख कर एक उत्तरदायी और द्रुतगामी दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सके। डॉ. ए शक्तिवेल ने यह भी कहा कि एफटीपी 2023 का फोकस मुख्य रूप से चार स्तंभों पर रहा है जिसमें प्रोत्साहनों से छूट की ओर बढ़ना, गठबंधनों के माध्यम से निर्यात संवर्धन, व्यवसाय करने की सुगमता, कारोबारी लागत में कमी और प्रौद्योगिकी इंटरफेस तथा
ई-कॉमर्स के उभरते क्षेत्र पर फोकस, जिला को निर्यात हब के रूप में विकसित करने तथा अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी उत्पादों पर फोकस के साथ स्कोमेट नीति को विवेकपूर्ण बनाना शामिल है।
डॉ. ए शक्तिवेल ने कहा कि इस नीति में सही प्रकार से प्रमुख तत्वों पर जोर दिया गया है जिसमें
कारोबारी लागत में कमी और ई-पहल शामिल हैं। भौतिक इंटरफेस के साथ ऑनलाइन मंजूरियों, एए एवं ईपीसीजी के तहत एमएसएमई के लिए उपयोगकर्ता शुल्कों में कमी, उत्पत्ति का ई-प्रमाणपत्र, निर्यात दायित्व निर्वहन आवेदनों की कागजरहित फाइलिंग न केवल निर्यातकों के लिए लेनदेन के समय और लागत को कम करेगी बल्कि उन्हें निर्यात अनुबंध के समय पर निर्वहन में भी सहायता करेगी।
फियो प्रमुख ने बताया कि स्टेटस होल्डर निर्यात थ्रेसहोल्ड को विवेकपूर्ण बनाया जा रहा है जिससे कि अधिक से अधिक निर्यातक निम्न लेनदेन लागत पर ऊंचा स्टेटस प्राप्त कर सकें।
क्लस्टर आधारित
आर्थिक विकास को बल देते हुए विद्यमान 39 में निर्यात उत्कृष्टता के चार नए शहरों को जोड़ दिया गया है। फियो प्रमुख ने दुहराया कि नीति ने चिन्हित उत्पादों और सेवाओं को बढ़ावा देने के लिए राज्य और जिला स्तर पर एक संस्थागत तंत्र के सृजन की शुरुआत की है जिससे एमएसएमई को तथा अर्थव्यवस्था के सभी सेक्टरों में रोजगार के सृजन को और बढ़ावा देने में सहायता मिलेगी। प्रशिक्षण, आरंभिक सहायता,
लोकसंपर्क कार्यक्रमों, जांच सुविधाओंके निर्माण तथा निर्यात के लिए कनेक्टिविटी के माध्यम से क्षमता निर्माण, अवसंरचना तथा लॉजिस्ट्क्सि विकास से मूल्य वर्धन में सहायता मिलेगी जिससे
भारतीय उत्पाद और सेवाएं दुनिया भर में अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाएंगी।
ई-कॉमर्स निर्यात की सुविधा हमारे बास्केट में लगभग 200-300 बिलियन डॉलर के निर्यात में और वृद्धि करेगी। फियो अध्यक्ष ने कहा कि विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिए कई बड़े कदम उठाये गए हैं जिनमें पीएम मित्र योजना भी शामिल है जिसे निर्यात संवर्धन पूंजीगत वस्तु स्कीम (ईपीसीजी) की सीएसपी (कॉमन सेवा प्रदाता) स्कीम के तहत लाभ का दावा करने के लिए एक अतिरिक्त योजना के रूप में जोड़ा गया है। इसके अतिरिक्त, डेयरी सेक्टर को औसत निर्यात दायित्व बनाये रखने से छूट प्रदान की गई है और स्ेटस हाउस सर्टिफिकेशन के तहत निर्यात
निष्पादन की गणना के लिए डबल वेटेज के लिए तथा
डेयरी सेक्टर को प्रौद्योगिकी को अपग्रेड करने में सहायता करने के लिए फलों और सब्जियों के निर्यातकों को शामिल कर दिया गया है जिससे निर्यात के रोजगार सृजन करने वाले इन सेक्टरों को और प्रोत्साहन प्राप्त होगा। डॉ. ए शक्तिवेल ने कहा कि।
भारत निरंतर उच्च निर्यात की
ऊंचाई रिकार्ड करता रहा है क्योंकि देश की विदेश व्यापार नीति ने इस शानदार निर्यात निष्पादन में बेशुमार योगदान दिया है। 2030 तक एक ट्रिलियन डॉलर के वस्तु निर्यात के लक्ष्य को अर्जित करने के लिए सेक्टर विशिष्ट लक्ष्य, व्यापार और उद्योग के मुद्वों के समधान के लिए परामर्शी तंत्र और भारतीय रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार निपटान को सुगम बनाने की दिशा में काम करना कुछ प्रमुख लक्षित पहलें हैं जो इस नीति द्वारा उठाये गए हैं जिससे न केवल विदेश व्यापार खासकर, निर्यात को और बढ़ावा मिलेगा बल्कि यह उच्चतर
आर्थिक विकास अनुमानों में कम से कम कुछ प्रतिशत अंकों की वृद्धि भी कर देगा। फियो प्रमुख ने सरकार से आग्रह किया कि जब कभी विदेश व्यापार नीति में कोई
प्रमुख बदलाव अधिसूचित की जाती है तो 3-6 महीनों का ट्रांजिशन पीरियड भी प्रदान किया जाए जिससे कि मौजूदा अनुबंधों को प्रचलित लाभों को ध्यान में रखते हुए निष्पादित किया जा सके।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |