नई दिल्ली, 17 अप्रैल 2024 (यूटीएन)। भारत में चुनावी माहौल के बीच सभी पार्टियों ने अपने-अपने मेनिफेस्टो में युवाओं को रोजगार देने का वादा किया है. पिछले लोकसभा चुनाव के प्रचार प्रसार के दौरान भारतीय जनता पार्टी ने भी लोगों को नौकरी देने के तमाम वादे किए थे, इतना ही नहीं केंद्र सरकार ने युवाओं में स्किल्स को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं की शुरुआत भी की थी. लेकिन, इसके बावजूद भी 2024 में आई इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में वर्तमान में लगभग 83% युवा बेरोजगार हैं.
ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि आखिर तमाम योजनाओं और प्रयासों के बाद भी देश में बेरोजगारी कम क्यों नहीं हो रही है. केंद्र सरकार ने लोगों को स्किल सिखाने के लिए इन योजनाओं पर कितना खर्च किया है. युवाओं को नौकरी पाने लायक बनाने वाले योजनाओं में से एक है स्किल इंडिया मिशन.
इस मिशन की शुरुआत साल 2015 में की कई थी. हाल ही में राज्यसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में कौशल विकास और उद्यमशीलता मंत्रालय में राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने बताया था कि भारत में पिछले पांच सालों में स्किल इंडिया मिशन के तहत 15 हजार 192 करोड़ रुपये आवंटित किए जा चुके हैं. इसके अलावा राज्यसभा के आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए पिछले पांच सालों में 91 लाख, जन शिक्षण संस्थान योजना के तहत 14 लाख आवंटित किए जा चुके हैं.
*तो क्या वाकई इस तरह की योजनाएं मददगार साबित हो पा रही हैं?*
राज्यसभा की रिपोर्ट के अनुसार प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत स्किल सीखने वाले युवाओं को अन्य योजनाओं की तुलना में ज्यादा सैलरी वाली नौकरी मिल पा रही है. इन तमाम सरकारी योजनाओं का हिस्सा रह चुके युवाओं में लगभग 76 प्रतिशत उम्मीदवारों ने स्वीकार किया कि प्रशिक्षण के बाद उन्हें पहले से ज्यादा रोजगार के अवसर मिले हैं.
*क्यों नहीं मिल पा रहा लोगों को रोजगार*
दरअसल अलग-अलग रिपोर्ट के अनुसार भारत में ज्यादातर नौकरी अनस्किल्ड और सेमी स्किल्ड श्रमिकों के लिए है. पिछले कुछ सालों में ग्रेजुएटेड युवाओं को रोजगार पाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है.
साल 2017-18 (जून-जुलाई) से ही भारत में ग्रेजुएट और डिग्रीधारकों के लिए बेरोजगारी की प्रतिशत गिरती जा रही है. हालांकि रोजगार के अवसर कम पढ़े लिखे लोगों के लिए भी कम हुए हैं.
*शिक्षित युवाओं के पास नहीं है नौकरी*
साल 2024 की इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) और इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेवलपमेंट (IHD) की एक रिपोर्ट ने भारत में बेरोजगारी को लेकर एक चिंता जाहिर की है. रिपोर्ट के अनुसार देश के शिक्षित युवाओं में बेरोजगारी की हिस्सेदारी बढ़ी है. साल 2000 में देश में 54.2 फीसदी शिक्षित युवा बेरोजगार थे. यही संख्या 2022 तक बढ़कर 65.7 फीसदी हो गई है. यानी वर्तमान में लगभग 65.7 फीसदी युवा ऐसे हैं जो पढ़े लिखे तो हैं लेकिन उनके पास नौकरी नहीं है.रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि देश में माध्यमिक शिक्षा के बाद स्कूल छोड़ने वाले युवाओं की संख्या भी पिछले कुछ सालों में बढ़ गई है. ये बढ़ती संख्या खासकर गरीब राज्यों और हाशिए पर रहने वाले समूहों में देखी गई है. वहीं उच्च शिक्षा में बढ़ते एनरोलमेंट के बावजूद गुणवत्ता संबंधी चिंताएं बनी हुई हैं.
*बढ़ रही है बेरोजगारी दर, घट रहा वेतन*
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन की इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2019 के बाद से ही रेगुलर वर्कर्स और सेल्फ-एम्प्लॉयड के वेतन में गिरावट का ट्रेंड देखा गया है. इतना ही नहीं अनस्किल्ड लेबर फोर्स में भी कैजुअल श्रमिकों को साल 2022 से ही न्यूनतम मजदूरी नहीं मिली है. रिपोर्ट के अनुसार बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, मध्य प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में रोजगार की स्थिति काफी दयनीय है.
*क्या है बेरोजगारी दर?*
इस शब्द को आसान भाषा में समझें तो बेरोजगारी दर का मतलब देश की आबादी के उस हिस्से से है जिन्होंने काम तो मांगा मगर उनके लिए काम था नहीं.
*महिला बनाम पुरुष*
एक सर्वे के मुताबिक साल 2023 में महिलाओं के बीच बेरोजगारी दर 3 फीसदी रही थी जो कि 2022 में 3.3 फीसदी और 2021 के 3.4 फीसदी के आंकड़े से कम थी. वहीं, पुरुषों के बीच साल 2023 में बेरोजगारी दर 3.2 फीसदी दर्ज की गई थी जो कि साल 2022 के 3.7 फीसदी और 2021 के 4.5 फीसदी के आंकड़े से काफी कम है.
*शहर बनाम गांव*
शहर और गांव में बेरोजगारी दर की बात की जाए तो साल 2023 में शहरी इलाकों में बेरोजगारी दर 5.2 प्रतिशत दर्ज की गई थी. जबकि एक साल पहले यानी 2022 में दर 5.7 प्रतिशत और 2021 में 6.5 प्रतिशत थी.
ग्रामीण इलाकों की बात की जाए तो 2021 में बेरोजगारी दर 3.3 फीसदी थी. जबकि यही 2022 में 2.8 फीसदी और साल 2023 में घटकर महज 2.4 प्रतिशत रह गई है.
ये तो हुई बेरोजगारी की बात. सरकारी सर्वे एजेंसी अपनी रिपोर्ट में एक एलएफपीआर (LFPR) का जिक्र भी करती है. एलएफपीआर बोले तो लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट यानी श्रम बल भागीदारी दर.
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |