नई दिल्ली, 08 मार्च 2024 (यूटीएन)। काला जादू, टोना-टोटका, वशीकरण, असुरी शक्तियां, ये सब हमेशा से बहस के विषय रहे हैं। इनका कोई प्रमाण नहीं है। पढ़े-लिखे लोग इसे अंधविश्वास मानते हैं, लेकिन शायद ही कोई परिवार होगा, जिसने अपने बच्चों की नजर नहीं उतारी होगी। अजय देवगन की नई फिल्म का ‘शैतान’ कहता है कि जरूरी नहीं कि जो दिखता नहीं है, वो होता भी नहीं है। फिल्म का केंद्र यही काला जादू है जो एकाएक एक हंसते-खेलते परिवार की जिंदगी में भूचाल ला देता है।
*’शैतान’ मूवी की कहानी*
कहानी कबीर (अजय देवगन) और उसके हंसते-खेलते परिवार की है, जो अपनी पत्नी ज्योतिका, बेटी जाह्नवी (जानकी बोडीवाला) और बेटे ध्रुव (अंगद राज) के साथ फॉर्म हाउस पर छुट्टी एंजॉय करने जाता है। वहां उसकी मुलाकात एक अजनबी वनराज (आर माधवन) से होती है, जो कबीर की एक छोटी सी मदद करता है पर यह जान-पहचान कबीर को बहुत भारी पड़ती है।
दरअसल, खुद को भगवान मानने वाला वनराज, जाह्नवी पर काला जादू करके उसे अपने वश में कर लेता है। वह जाह्नवी को अपने साथ ले जाना चाहता है और कबीर के ना मानने पर जाह्नवी को चायपत्ती खाने, नॉनस्टॉप नाचने, बेतहाशा हंसने से लेकर अपने ही मां बाप और भाई पर जानलेवा हमले करने पर मजबूर कर देता है। क्या कबीर अपनी बेटी को बचा पाता है या उसे वनराज को सौंपने को मजबूर हो जाता है? वनराज ये सब क्यों कर रहा है? ये सब आपको फिल्म देखकर पता चलेगा।
*’शैतान’ मूवी का ट्रेलर*
विकास बहल निर्देशित यह फिल्म पिछले साल खूब वाहवाही बटोरने वाली गुजराती साइकोलॉजिकल थ्रिलर फिल्म ‘वश’ का रीमेक है। कहानी एक दिन की है, जो एक ही घर में घटित होती है और बिना वक्त गंवाए मुद्दे पर आ जाती है। कहानी के टेंशन, डर और सिहरन भरे माहौल को दर्शक शुरू से ही महसूस करने लगते हैं। इसका श्रेय एक्टर्स खासकर ‘शैतान’ बने आर. माधवन और उनकी कठपुतली बनी जानकी की कमाल की अदाकारी को जाता है। जानकी गुजराती फिल्म ‘वश’ में भी इस किरदार के लिए खूब तारीफ बटोर चुकी हैं।
वहीं, माधवन ने फिर दिखाया है कि वे कितने उम्दा कलाकार हैं। अजय देवगन और ज्योतिका ने भी एक बेबस मां-बाप की लाचारी को अपनी आंखों से बखूबी उतारा है। हालांकि, अजय देवगन के कद के हिसाब से दर्शक उनके हिस्से में कुछ और मजबूत सीन की उम्मीद करते हैं। तकनीकी रूप से फिल्म मजबूत है। सुधाकर रेड्डी और एकांती की सिनेमटोग्राफी, अमित त्रिवेदी का म्यूजिक और संदीप फ्रांसिस की चुस्त एडिटिंग आपका ध्यान भटकने नहीं देता। दिक्कत फिल्म के सेकंड हाफ में शुरू होती है। ऐसा लगता है कि दूसरे हिस्से को हड़बड़ी में निपटा दिया गया है।
फिल्म का अंत लॉजिक से परे लगता है। माधवन का किरदार शैतान क्यों बनता है, कैसे बनता है, उसके बैकग्राउंड को सिरे से नजरअंदाज कर दिया गया है, जो अखरता है। इलाके में इतनी लड़कियां लापता हैं, लेकिन कहीं कोई हलचल नहीं है? यह और ऐसे कई सवाल मन में ही रह जाते हैं और यही फिल्म के लिए कमजोर कड़ी साबित होते हैं। फिर भी हॉरर फिल्मों के लाइट जलने-बुझने, उल्टा चलने और झाड़-फूंक वाले आम बॉलीवुडिया टोटके ना अपनाने वाली ये फिल्म माधवन और जानकी की बढ़िया एक्टिंग के लिए एक बार देखी जा सकती है।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |