Wednesday, March 12, 2025

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भारत के जिगरी दोस्त ने बचाने के लिए निकाले परमाणु बम,अमेरिका की धोखेबाजी के बाद यूरोप में हड़कंप

यूरोप को बचाने के लिए फ्रांस ने अपने परमाणु बमों के दरवाजे को खोल दिया है, हालांकि उनके विचार पर दक्षिणपंथी और वामपंथी नेताओं ने गंभीर नाराजगी दर्ज कराई है।

पेरिस, 08 मार्च 2025 (यूटीएन)। भारत के दो जिगरी दोस्त यूरोप में एक दूसरे के सामने टकराने के लिए खड़े हो गये हैं। अमेरिका की ‘धोखेबाजी’ के बाद यूरोप में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इरादों से हड़कंप मचा हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि यूरोप की रक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका की नहीं है। जिससे पता चलता है कि 1960 के दशक में फ्रांस के राष्ट्रपति चार्ल्स डी गॉल की भविष्यवाणी सही थी। उन्होंने ही फ्रांस की राजनीतिक स्वतंत्रता की बुनियाद रखी थी। चार्ल्स डी गॉल ने कहा था कि बेशक अमेरिका, रूसियों के मुकाबले हमारे ज्यादा मित्र हैं लेकिन एक दिन अमेरिका के हित हमारे हित से टकराएंगे।

चार्ल्स डी गॉल ने ही फ्रांस की परमाणु नीति की रूपरेखा तैयार की थी और कहा था कि फ्रांसीसी परमाणु बम यूरोप के अस्तित्व की रक्षा करेगा। फ्रांस के पास करीब 300 परमाणु बम हैं तो यूके के पास करीब 250 न्यूक्लियर वारहेड्स हैं। फ्रांस अपने परमाणु बमों को फाइटर जेट्स और पनडुब्बियों से दाग सकता है। फ्रांस ने अपने परमाणु बमों के साथ साथ पनडुब्बियों और फाइटर जेट्स को खुद ही विकसित किया है। यानि हथियारों के मामले में फ्रांस पूरी तरह से संप्रभुता और आत्मनिर्भर है। लेकिन ब्रिटेन के साथ ऐसा नहीं है। ब्रिटेन अमेरिका पर निर्भर है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने बुधवार को कहा है कि फ्रांस की न्यूक्लियर निवारक शक्ति को इस अत्यधिक अनिश्चित दुनिया में बाकी के यूरोपीय देशों की रक्षा के साथ जोड़ा जा सकता है।

यूरोप को बचाने के लिए फ्रांस ने अपने परमाणु बमों के दरवाजे को खोल दिया है। हालांकि उनके विचार पर दक्षिणपंथी और वामपंथी नेताओं ने गंभीर नाराजगी दर्ज कराई है। लेकिन फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने साफ कर दिया है कि वो अपने परमाणु बमों को दूसरे यूरोपीय देशों के साथ शेयर करने के लिए तैयार हैं। लेकिन फ्रांस के सरकारी अधिकारियों का मानना है कि कुछ भी शेयर नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, देश के रक्षा मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू का कहना है कि न्यूक्लियर डिटरेंट फ्रांसीसी है और राष्ट्रपति के फैसले के तहत इसके उत्पादन से लेकर इसके ऑपरेशन का अधिकार भी फ्रांस के पास ही रहेगा। लिहाजा सवाल ये नहीं है कि न्यूक्लियर बमों पर और ज्यादा उंगलियां आ गई हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या फ्रांसीसी राष्ट्रपति के विचार से यूरोप सहमत है।

क्या फ्रांसीसी परमाणु की छत्रछाया में यूरोप रहने के लिए तैयार है? फ्रांस का परमाणु सिद्धांत अभी तक इस बात पर निर्भर था कि अगर राष्ट्रपति को लगता है कि फ्रांस का अस्तित्व खतरे में है तो परमाणु प्रतिक्रिया दी जा सकती है, इस बात में कोई शक नहीं है कि परमाणु युद्ध शुरू हुआ तो दुनिया करीब करीब खत्म हो जाएगी। सैकड़ों सालों तक परमाणु युद्ध से प्रभावित क्षेत्र विनाश के अंधेरे में रहेंगे। परमाणु भंडार वाले देशों की तरफ देखें तो रूस के पास फिलहाल सबसे ज्यादा परमाणु हथियार हैं। बीबीसी की रिपोर्ट में SIPRI के हवाले से कहा गया है कि रूस के पास 5 हजार 889 परमाणु हथियार है। वहीं अमेरिका के पास 5 हजार 244, चीन के पास 410, फ्रांस के पास 290 और यूनाइटेड किंगडम के पास 225 परमाणु हथियार हैं। चार्ल्स डी गॉल से लेकर अभी तक के करीब करीब सभी फ्रांसीसी राष्ट्रपतियों ने संकेत दिया है कि कुछ यूरोपीय देश पहले से ही फ्रांसीसी न्यूक्लियर छत्रछाया में हो सकते हैं।

1964 में डे गॉल ने कहा था कि फ्रांस खुद को खतरे में समझेगा अगर सोवियत संघ जर्मनी पर हमला करता है। जर्मनी के होने वाले चांसलर फ्रांसीसी राष्ट्रपति के विचार के साथ हैं कि यूरोप में परमाणु हथियारों की तैनाती की जाए। डिफेंस एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये कोई नई बात नहीं है कि कई यूरोपीय देश फ्रांसीसी परमाणु बम की तैनाती अपने देश में चाहते हैं। बीबीसी की रिपोर्ट में कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ लिली के पियरे लारोचे कहते हैं कि “अतीत में जब फ्रांस ने प्रस्ताव रखा था, तो कई देशों ने प्रतिक्रिया नहीं दी थी। क्योंकि वो ये नहीं दिखाना चाहते थे कि उन्हें अमेरिका या नाटो पर भरोसा नहीं है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की नीति ने अविश्वास पैदा किया है और ऐसा लगता है कि अब इसपर विचार होने लगा है। डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि सहमति बनने पर फ्रांसीसी परमाणु हथियारों को जर्मनी और पोलैंड जैसे देशों में तैनात किया जा सकता है। लेकिन हथियारों के इस्तेमाल का अधिकारी फ्रांस के ही पास रहेगा।

इसके अलावा फ्रांसीसी बमवर्षक यूरोपीय सीमाओं पर गश्ती अभियानों का संचालन कर सकते हैं, उसी तरह जैसे वे आज नियमित रूप से फ्रांसीसी सीमाओं पर गश्त अभियान चलाते हैं। इसके अलावा अन्य देशों में हवाई क्षेत्र विकसित किए जा सकते हैं, जहां फ्रांसीसी बमवर्षक आपातकालीन स्थिति में तत्काल तैनात किया जा सके। हालांकि सवाल ये उठ सकते हैं कि रूस के हजारों परमाणु बमों के मुकाबले क्या फ्रांस के करीब 300 परमाणु बम पर्याप्त होंगे? एक्सपर्ट्स का मानना है कि शायद नहीं। लेकिन ब्रिटेन के साथ गठबंधन से संख्या में इजाफा हो सकता है, लेकिन जर्मनी, इटली और नीदरलैंड जैसे देशों में भी परमाणु हथियारों की तैनाती से रूस के पास निश्चित तौर पर एक संदेश जाएगा।

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भारत के जिगरी दोस्त ने बचाने के लिए निकाले परमाणु बम,अमेरिका की धोखेबाजी के बाद यूरोप में हड़कंप

यूरोप को बचाने के लिए फ्रांस ने अपने परमाणु बमों के दरवाजे को खोल दिया है, हालांकि उनके विचार पर दक्षिणपंथी और वामपंथी नेताओं ने गंभीर नाराजगी दर्ज कराई है।

पेरिस, 08 मार्च 2025 (यूटीएन)। भारत के दो जिगरी दोस्त यूरोप में एक दूसरे के सामने टकराने के लिए खड़े हो गये हैं। अमेरिका की ‘धोखेबाजी’ के बाद यूरोप में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के इरादों से हड़कंप मचा हुआ है। डोनाल्ड ट्रंप ने साफ कर दिया है कि यूरोप की रक्षा की जिम्मेदारी अमेरिका की नहीं है। जिससे पता चलता है कि 1960 के दशक में फ्रांस के राष्ट्रपति चार्ल्स डी गॉल की भविष्यवाणी सही थी। उन्होंने ही फ्रांस की राजनीतिक स्वतंत्रता की बुनियाद रखी थी। चार्ल्स डी गॉल ने कहा था कि बेशक अमेरिका, रूसियों के मुकाबले हमारे ज्यादा मित्र हैं लेकिन एक दिन अमेरिका के हित हमारे हित से टकराएंगे।

चार्ल्स डी गॉल ने ही फ्रांस की परमाणु नीति की रूपरेखा तैयार की थी और कहा था कि फ्रांसीसी परमाणु बम यूरोप के अस्तित्व की रक्षा करेगा। फ्रांस के पास करीब 300 परमाणु बम हैं तो यूके के पास करीब 250 न्यूक्लियर वारहेड्स हैं। फ्रांस अपने परमाणु बमों को फाइटर जेट्स और पनडुब्बियों से दाग सकता है। फ्रांस ने अपने परमाणु बमों के साथ साथ पनडुब्बियों और फाइटर जेट्स को खुद ही विकसित किया है। यानि हथियारों के मामले में फ्रांस पूरी तरह से संप्रभुता और आत्मनिर्भर है। लेकिन ब्रिटेन के साथ ऐसा नहीं है। ब्रिटेन अमेरिका पर निर्भर है। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने बुधवार को कहा है कि फ्रांस की न्यूक्लियर निवारक शक्ति को इस अत्यधिक अनिश्चित दुनिया में बाकी के यूरोपीय देशों की रक्षा के साथ जोड़ा जा सकता है।

यूरोप को बचाने के लिए फ्रांस ने अपने परमाणु बमों के दरवाजे को खोल दिया है। हालांकि उनके विचार पर दक्षिणपंथी और वामपंथी नेताओं ने गंभीर नाराजगी दर्ज कराई है। लेकिन फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने साफ कर दिया है कि वो अपने परमाणु बमों को दूसरे यूरोपीय देशों के साथ शेयर करने के लिए तैयार हैं। लेकिन फ्रांस के सरकारी अधिकारियों का मानना है कि कुछ भी शेयर नहीं किया जाना चाहिए। हालांकि, देश के रक्षा मंत्री सेबेस्टियन लेकोर्नू का कहना है कि न्यूक्लियर डिटरेंट फ्रांसीसी है और राष्ट्रपति के फैसले के तहत इसके उत्पादन से लेकर इसके ऑपरेशन का अधिकार भी फ्रांस के पास ही रहेगा। लिहाजा सवाल ये नहीं है कि न्यूक्लियर बमों पर और ज्यादा उंगलियां आ गई हैं, लेकिन सवाल ये है कि क्या फ्रांसीसी राष्ट्रपति के विचार से यूरोप सहमत है।

क्या फ्रांसीसी परमाणु की छत्रछाया में यूरोप रहने के लिए तैयार है? फ्रांस का परमाणु सिद्धांत अभी तक इस बात पर निर्भर था कि अगर राष्ट्रपति को लगता है कि फ्रांस का अस्तित्व खतरे में है तो परमाणु प्रतिक्रिया दी जा सकती है, इस बात में कोई शक नहीं है कि परमाणु युद्ध शुरू हुआ तो दुनिया करीब करीब खत्म हो जाएगी। सैकड़ों सालों तक परमाणु युद्ध से प्रभावित क्षेत्र विनाश के अंधेरे में रहेंगे। परमाणु भंडार वाले देशों की तरफ देखें तो रूस के पास फिलहाल सबसे ज्यादा परमाणु हथियार हैं। बीबीसी की रिपोर्ट में SIPRI के हवाले से कहा गया है कि रूस के पास 5 हजार 889 परमाणु हथियार है। वहीं अमेरिका के पास 5 हजार 244, चीन के पास 410, फ्रांस के पास 290 और यूनाइटेड किंगडम के पास 225 परमाणु हथियार हैं। चार्ल्स डी गॉल से लेकर अभी तक के करीब करीब सभी फ्रांसीसी राष्ट्रपतियों ने संकेत दिया है कि कुछ यूरोपीय देश पहले से ही फ्रांसीसी न्यूक्लियर छत्रछाया में हो सकते हैं।

1964 में डे गॉल ने कहा था कि फ्रांस खुद को खतरे में समझेगा अगर सोवियत संघ जर्मनी पर हमला करता है। जर्मनी के होने वाले चांसलर फ्रांसीसी राष्ट्रपति के विचार के साथ हैं कि यूरोप में परमाणु हथियारों की तैनाती की जाए। डिफेंस एक्सपर्ट्स के मुताबिक ये कोई नई बात नहीं है कि कई यूरोपीय देश फ्रांसीसी परमाणु बम की तैनाती अपने देश में चाहते हैं। बीबीसी की रिपोर्ट में कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ लिली के पियरे लारोचे कहते हैं कि “अतीत में जब फ्रांस ने प्रस्ताव रखा था, तो कई देशों ने प्रतिक्रिया नहीं दी थी। क्योंकि वो ये नहीं दिखाना चाहते थे कि उन्हें अमेरिका या नाटो पर भरोसा नहीं है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप की नीति ने अविश्वास पैदा किया है और ऐसा लगता है कि अब इसपर विचार होने लगा है। डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि सहमति बनने पर फ्रांसीसी परमाणु हथियारों को जर्मनी और पोलैंड जैसे देशों में तैनात किया जा सकता है। लेकिन हथियारों के इस्तेमाल का अधिकारी फ्रांस के ही पास रहेगा।

इसके अलावा फ्रांसीसी बमवर्षक यूरोपीय सीमाओं पर गश्ती अभियानों का संचालन कर सकते हैं, उसी तरह जैसे वे आज नियमित रूप से फ्रांसीसी सीमाओं पर गश्त अभियान चलाते हैं। इसके अलावा अन्य देशों में हवाई क्षेत्र विकसित किए जा सकते हैं, जहां फ्रांसीसी बमवर्षक आपातकालीन स्थिति में तत्काल तैनात किया जा सके। हालांकि सवाल ये उठ सकते हैं कि रूस के हजारों परमाणु बमों के मुकाबले क्या फ्रांस के करीब 300 परमाणु बम पर्याप्त होंगे? एक्सपर्ट्स का मानना है कि शायद नहीं। लेकिन ब्रिटेन के साथ गठबंधन से संख्या में इजाफा हो सकता है, लेकिन जर्मनी, इटली और नीदरलैंड जैसे देशों में भी परमाणु हथियारों की तैनाती से रूस के पास निश्चित तौर पर एक संदेश जाएगा।

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