नई दिल्ली, 02 अप्रैल 2024 (यूटीएन)। तकरीबन 50 साल पहले 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार के तमिलनाडु के एक 285 एकड़ वाले निर्जन द्वीप कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपने का मामला देश की सियासत में तेजी से गरमा रहा है। कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका (तत्कालीन सीलोन) को सौंपने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी पर जमकर प्रहार किया, जिसके बाद कांग्रेस लगभग बैकफुट पर आ गई और बचाव की मुद्रा में जुट गई। प्रधानमंत्री का दावा था कि 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने इस द्वीप से अपना दावा छोड़ दिया और यह द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया, जिस पर वह लंबे समय से दावा ठोक रहा था। वहीं बैकफुट पर आई कांग्रेस ने अब 2015 में भारत और बांग्लादेश के बीच हुए भूमि सीमा समझौते को उठाया है। इस समझौते के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार ने 111 भारतीय इलाकों को बांग्लादेश में और 51 बांग्लादेशी इलाकों को भारत में स्थानांतरित किया था। इसे लेकर कांग्रेस ने भाजपा पर हमला बोला है।
*क्या बोल रहे कांग्रेस नेता*
कच्चातिवु मुद्दे पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपने सोशल मीडिया एकाउंट एक्स पर लिखा, क्या डॉ. एस जयशंकर, जो अब विदेश मंत्री हैं, 27 जनवरी, 2015 को विदेश मंत्रालय की तरफ दिए गए जवाब को अस्वीकार कर रहे हैं, जबकि उस समय वही डॉ. जयशंकर विदेश सचिव थे? 2015 में कच्चातिवु पर एक आरटीआई के जवाब में विदेश मंत्रालय ने कहा था, “इस समझौते में भारत से संबंधित इलाके का अधिग्रहण या त्याग शामिल नहीं था, क्योंकि इस विचाराधीन क्षेत्र का कभी सीमांकन नहीं किया गया था। समझौते के तहत, कच्चातिवु द्वीप भारत-श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के श्रीलंकाई हिस्से पर स्थित है।
वहीं जयराम रमेश ने 2015 में भारत और बांग्लादेश के बीच हुए लैंड बाउंड्री एग्रीमेंट पर कहा कि भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के तहत हस्ताक्षरित 2015 के समझौते से भारत का भूमि क्षेत्र ‘10,051 एकड़’ कम हो गया। “2015 में, मोदी सरकार ने बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिसमें 17,161 एकड़ भारतीय क्षेत्र ढाका को दे दिया गया, जबकि बदले में केवल 7,110 एकड़ भारत को मिला। प्रभावी रूप से, भारत का भूमि क्षेत्र 10,051 एकड़ कम हो गया। प्रधानमंत्री पर बचकाना आरोप लगाने के बजाय, कांग्रेस पार्टी ने संसद के दोनों सदनों में विधेयक का समर्थन किया।” इस मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता पवन खेड़ा ने भी केंद्र सरकार को घेरा और एक वीडियो जारी करके कहा कि प्रधानमंत्री जी आपने 111 एन्क्लेव बांग्लादेश को दिए, 55 उनसे लिए। ये क्या था। ये भी मैत्री थी। कोई जोर-जबरदस्ती से नहीं बांग्लादेश ने आपसे लिए। न ही आपने किसी डर से उनको दिए।
*क्या था भूमि सीमा समझौता (एलबीए) विवाद?*
भारत और बांग्लादेश की सीमा रेखा लगभग 4,060 किलोमीटर लंबी है। 1947 के विभाजन के दौरान भारत और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान के बीच सर रेडक्लिफ ने इस सीमा रेखा का निर्धारण किया था। लेकिन यह रेडक्लिफ अवार्ड को लेकर दोनों देशों के बीच हमेशा से ही विवाद रहा। इसकी वजह यह रही कि सीमा पर कुछ ऐसे इलाके या एन्क्लेव थे, जो कहने के लिए भारत के थे, लेकिन बांग्लादेश से घिरे थे। वहीं कुछ ऐसा ही बांग्लादेश के साथ भी था। दोनों देशों के बीच सीमा का निर्धारण करने और दोनों देशों के बीच 160 से अधिक इलाकों की अदला-बदली करने के लिए भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर रहमान उर्फ बंगबंधु ने 16 मई 1974 को समझौता किया। लेकिन इस समझौते पर अमल करना इतना आसान नहीं था।
दोनों देशों की संसद में इस पर मुहर लगनी थी। बांग्लादेश ने पहले ही इस समझौते की पुष्टि कर दी थी, लेकिन भारत को इस समझौते को अमल करने में हिचक हो रही थी, क्योंकि तब इस समझौते में भारत के चार राज्यों पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, मेघालय और असम की कुल 10 हजार एकड़ जमीन बांग्लादेश के हिस्से में जा रही थी, जबकि भारत के हिस्से में बांग्लादेश की सिर्फ 510 एकड़ जमीन ही आ रही थी। वहीं, यह मामला 2011 में फिर से उठा, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बांग्लादेश की शेख हसीना ने भूमि के प्रतिकूल कब्जे के संबंध में यथास्थिति बनाए रखने के लिए एक प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर किए। थिंक टैंक ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत को बांग्लादेश से 2,777.038 एकड़ जमीन प्राप्त करनी थी, और 2,267.682 एकड़ जमीन पड़ोसी को हस्तांतरित करनी थी। हालांकि, भारत में सौदे के राजनीतिक विरोध के कारण इस प्रोटोकॉल को लागू नहीं किया जा सका।
*कैसे 2015 में भूमि सीमा समझौता (एलबीए) को पहनाया अमली जामा?*
जब 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्र में सत्ता में आए, तो उनकी सरकार ने ‘पड़ोसी प्रथम नीति’ को अपनी विदेश नीति का मुख्य हिस्सा बनाया। इस नीति के तहत भाजपा सरकार का लक्ष्य बांग्लादेश समेत अपने अन्य पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते मजबूत करना था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मौदी ने बांग्लादेश की प्रधानमंत्री पीएम शेख हसीना से दो बार, पहले न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र के मौके पर और फिर काठमांडू में दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन में, मुलाकात की। जानकारों का कहना है कि भारत और बांग्लादेश के बीच वर्ष 1974 में हुए सीमा समझौते के 41 साल बाद यानी जून 2015 में बांग्लादेश के साथ कुछ इलाकों और रिहाइशी बस्तियों की अदला-बदली के एतिहासिक 119वें संविधान संशोधन विधेयक पर संसद ने मुहर लगा दी। यह विधेयक राज्यसभा के बाद लोकसभा में भी सर्वसम्मति से पारित हो गया। खास बात यह रही कि विधेयक के खिलाफ किसी भी सदस्य ने मतदान नहीं किया।
सरकार का कहना था कि हालांकि बांग्लादेश के मुकाबले भारत को कम जमीन मिल रही है, लेकिन जो 10 हजार एकड़ जमीन भारत, बांग्लादेश को सौंप रहा है, वहां के हालात कुछ ऐसे हैं कि वहां पहुंचना काफी दुष्कर है, जिसके चलते नागरिक सुविधाएं मुहैया करना में काफी दिक्कतें पेश हो रही थीं। वहीं कुछ ऐसी ही स्थिति बांग्लादेश के सामने भी आ रही थी और इंसानियत के लिहाज से ऐसा करना ही दोनों देशों के लिए हितकर था। साथ ही, इन इलाकों में रह रहे लोग सालों से अपने हक के लिए तरस रहे थे। इन लोगों के पास न तो पूर्ण कानूनी अधिकार थे, और न ही उनके पास बिजली, स्कूल और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सहूलियतें थीं। वहीं समझौते के अमल में आने के बाद, ये लोग भी आम नागरिक की तरह अपनी जिंदगी जी सकेंगे।
*भूमि सीमा समझौता में क्या शामिल रहा?*
जून 2015 में, भारत और बांग्लादेश ने ढाका में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख ने इस एतिहासिक भूमि समझौते पर हस्ताक्षर किए। भूमि सीमा समझौते में 162 इलाकों की अदला-बदली शामिल थी, जिसमें 111 इलाके (17,160 एकड़) बांग्लादेश को और 51 इलाके (7,110 एकड़) भारत के हिस्से आए थे। समझौते ने एन्क्लेव निवासियों को भारत या बांग्लादेश में रहने का विकल्प दिया। इलाकों का आदान-प्रदान 31 जुलाई 2015 को शुरू हुआ। इस समझौते के तहत भारतीय क्षेत्र में स्थित 51 बांग्लादेश इलाकों में रहने वाले लगभग 14,854 निवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान की गई, जबकि बांग्लादेश में भारतीय एन्क्लेव से अन्य 922 व्यक्तियों ने 2015 में कूचबिहार जिले में प्रवेश किया।
बांग्लादेश से आए इन लोगों को पश्चिम बंगाल के दिनहाटा, हल्दीबाड़ी और मेकलीगंज में तीन बस्ती शिविरों में बसाया गया था। वहीं, 36,000 से अधिक एन्क्लेव निवासियों ने बांग्लादेशी राष्ट्रीयता का विकल्प चुना। वहीं देखा जाए तो सीएए लागू होने के बाद सबसे ज्यादा फायदा इन्हीं लोगों को मिलेगा। इस भूमि समझौते से लगभग 50,000 लोगों को फायदा मिला, जो अभी तक किसी देश में नहीं थे और 1947 में भारत के विभाजन के बाद से शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और अन्य सेवाओं जैसी बुनियादी जरूरतों का लाभ प्राप्त किए बिना, एन्क्लेव में रह रहे थे। मोदी सरकार ने बांग्लादेश से भारत आए एन्क्लेव निवासियों के लिए 1005.99 करोड़ रुपये के पुनर्वास पैकेज को भी मंजूरी दी।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |