नई दिल्ली, 01 मई 2023 (यूटीएन)। पूर्वी यूरोप में साल भर से भी ज्यादा समय से जारी जंग ने पूरी दुनिया पर असर डाला है. खासकर अर्थव्यवस्था औ व्यापार के मामले में नए समीकरण उभर कर सामने आए हैं. यह संकट एक तरफ कई देशों के लिए खाने-पीने की चीजों की कमी का कारण बना है, दूसरी ओर कुछ देशों को
फायदा भी हुआ है. भारत की ही बात करें तो जारी संकट के
बीच अपना देश यूरोप के लिए ईंधन का सबसे बड़ा सप्लायर बनकर उभरा है.अप्रैल महीने के दौरान यूरोप के लिए भारत रिफाइंड ईंधनों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर उभरा है. यह बदलाव ऐसे समय हुआ है, जब भारत एक तरफ रूस से रिकॉर्ड मात्रा में कच्चे तेल की खरीद कर रहा है.
पिछले साल फरवरी में रूस ने अपने पड़ोसी देश यूक्रेन पर हमला किया था. उसके बाद से अब तक पूर्वी यूरोप में जंग जारी है. इस हमले के कारण अमेरिका और यूरोप की कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने रूस के ऊपर आर्थिक पाबंदियां लगाई हैं, साथ ही रूस के साथ व्यापारिक ताल्लुकात कम किए हैं. यूरोप
ईंधन के मामले में रूस पर निर्भर रहता आया है. बदले हालात में यूरोप ने
रूस से रिफाइंड ईंधनों की खरीद बंद की है तो अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत पर उसकी निर्भरता बढ़ी है. यूरोप ने अप्रैल महीने के दौरान भारत से हर दिन औसतन 3.60 लाख बैरल से ज्यादा रिफाइंड फ्यूल की खरीद की. यह आंकड़ा सऊदी अरब से की गई औसत खरीद से ज्यादा है.
रिफाइंड फ्यूल उन पेट्रोलियम उत्पादों को कहा जाता है, जिन्हें कच्चे तेल के परिशोधन के बाद तैयार किया जाता है. डीजल व पेट्रोल
जैसे पारंपरिक ईंधन इसके उदाहरण हैं. व्यापार का यह आंकड़ा भारत के लिए अच्छा है, क्योंकि इससे निर्यात को तेज करने में और व्यापार के असंतुलन की खाई को पाटने में
मदद मिल रही है. दूसरी ओर यूरोप के लिए यह विरोधाभास पैदा करता है, क्योंकि कहीं न कहीं रूस का भी कच्चा तेल रिफाइन होकर डीजल के रूप में भारत से उसके पास पहुंच रहा है. साफ शब्दों में कहें तो यूरोप ने भले ही रूस से सीधे तौपर पर डीजल की खरीदारी रोक दी हो या बहुत कम कर दी हो, लेकिन अभी भी उसकी डीजल की खपत रूस के खजाने में मोटा पैसा पहुंचा रही है.
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |