Sunday, June 29, 2025

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आपातकाल के 50 साल, लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश ही आपातकाल है – अमित शाह

"अगर हम लोकतंत्र को झकझोर देने वाली आपातकाल जैसी घटनाओं को भूल जाएं, तो यह देश और लोकतंत्र दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है, ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं की याद बनाए रखना जरूरी है, ताकि भविष्य में उनसे सबक लिया जा सके।

नई दिल्ली, 24 जून 2025 (यूटीएन)। आपातकाल के 50 साल’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या है। एक सवाल उठ सकता है कि 50 साल पहले हुई किसी घटना पर अब चर्चा क्यों हो रही है? जब किसी राष्ट्रीय घटना के 50 साल पूरे होते हैं, चाहे वह अच्छी हो या बुरी, समाज में उसकी स्मृति धुंधली हो जाती है। अगर लोकतंत्र को हिला देने वाली आपातकाल जैसी घटना की स्मृति मिट जाती है, तो यह राष्ट्र के लिए हानिकारक है। अमित शाह ने कहा- आपातकाल क्या था, इसकी व्याख्या कोई एक वाक्य में नहीं हो सकती। मैंने बहुत सोच-विचारकर इसे एक परिभाषा देने की कोशिश की है। एक लोकतांत्रिक देश के बहुदलीय लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश ही आपातकाल है।
*यह राष्ट्र के लिए हानिकारक है’*
उन्होंने कहा कि आज आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या है। एक सवाल उठ सकता है कि 50 साल पहले हुई किसी घटना पर अब चर्चा क्यों हो रही है? जब किसी राष्ट्रीय घटना के 50 साल पूरे होते हैं, चाहे वह अच्छी हो या बुरी, समाज में उसकी स्मृति धुँधली हो जाती है। अगर लोकतंत्र को हिला देने वाली आपातकाल जैसी घटना की स्मृति धुँधली हो जाती है, तो यह राष्ट्र के लिए हानिकारक है। अमित शाह ने कहा, “आज हम आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर हैं। यह सवाल उठ सकता है कि पांच दशक पहले हुई घटना पर अब चर्चा क्यों की जाए। लेकिन जब कोई राष्ट्रीय घटना—चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक 50 साल पूरे करती है, तो उसकी स्मृति समाज में धुंधली पड़ने लगती है।” उन्होंने आगे कहा, “अगर हम लोकतंत्र को झकझोर देने वाली आपातकाल जैसी घटनाओं को भूल जाएं, तो यह देश और लोकतंत्र दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं की याद बनाए रखना जरूरी है, ताकि भविष्य में उनसे सबक लिया जा सके।
*भारतीय नहीं करते तानाशाह स्वीकार*
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ‘आपातकाल के 50 साल’ कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान कहा कि उस दौर की लड़ाई इसलिए जीती गई क्योंकि भारतवासी किसी भी प्रकार की तानाशाही को स्वीकार नहीं करते। उन्होंने कहा, “भारत लोकतंत्र की जननी है, और इस देश में अधिनायकवाद की कोई जगह नहीं है।” उन्होंने कहा कि उस समय कुछ तानाशाही प्रवृत्ति वाले लोगों और उनके लाभार्थियों को छोड़कर, देश के आम नागरिकों ने आपातकाल को कभी स्वीकार नहीं किया। “उन्हें यह भ्रम था कि उन्हें कोई चुनौती नहीं देगा,” शाह ने कहा। “लेकिन जैसे ही आपातकाल समाप्त हुआ और चुनाव हुए, तो स्वतंत्र भारत में पहली बार कांग्रेस के बाहर की सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने।” अमित शाह ने कहा कि आपातकाल को केवल एक वाक्य में बांधना आसान नहीं है, लेकिन उन्होंने अपनी ओर से एक परिभाषा देने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “एक लोकतांत्रिक देश में बहुदलीय व्यवस्था को जबरन तानाशाही में बदलने का षड्यंत्र ही आपातकाल कहलाता है।
*मैं उस दिन को कभी नहीं भूलूंगा*
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, “जरा सोचिए, अगर किसी ने सिर्फ आज़ादी की बात की और उसे जेल में डाल दिया गया हो। यह कितना अमानवीय था। हम आज उस पीड़ा की कल्पना भी नहीं कर सकते जो उस सुबह भारतवासियों ने महसूस की होगी।” उन्होंने कहा, “जब आपातकाल लागू किया गया, तब मेरी उम्र केवल 11 साल थी। गुजरात में उस समय आपातकाल का प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम था क्योंकि वहां जनता पार्टी की सरकार थी। हालांकि, कुछ समय बाद वह सरकार भी गिरा दी गई।” अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए अमित शाह ने बताया, “मैं एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखता हूं, और मेरे गांव से ही 184 लोगों को जेल में डाला गया था। वे दिन, वो दृश्य मैं कभी नहीं भूल सकता – जब निर्दोष लोगों को सिर्फ आवाज उठाने के लिए सलाखों के पीछे भेजा गया। वह समय मेरे जीवन की यादों में हमेशा जीवित रहेगा।
*सत्ता बचाना था असली मकसद*
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में कहा, “सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर देश को बताया कि राष्ट्रपति ने आपातकाल लागू कर दिया है। लेकिन क्या इस फैसले से पहले संसद की मंजूरी ली गई थी? क्या कैबिनेट की बैठक हुई थी? क्या विपक्ष को भरोसे में लिया गया था?”
अमित शाह ने कहा, “जो लोग आज लोकतंत्र की दुहाई देते हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि वे उसी पार्टी से जुड़े हैं जिसने देश में लोकतंत्र को कुचल दिया था। आपातकाल लगाने का जो कारण बताया गया वह था राष्ट्रीय सुरक्षा, लेकिन असली वजह थी – अपनी सत्ता को बचाना।” उन्होंने आगे कहा, “इंदिरा गांधी उस समय प्रधानमंत्री थीं, लेकिन अदालत के एक फैसले के बाद वे संसद में वोट नहीं कर सकती थीं। उनके पास प्रधानमंत्री पद के अधिकार नहीं बचे थे। फिर भी उन्होंने पद से इस्तीफा देने के बजाय नैतिकता को त्याग दिया और कुर्सी पर बनी रहीं।
*इंदिरा-संजय के चुनाव हारने पर लोगों के चेहरे पर थी खुशी*
अमित शाह ने कहा मुझे याद है, हम अपने गांव से, टाइम्स ऑफ इंडिया बिल्डिंग के सामने ट्रक में बैठकर लोकसभा चुनाव के नतीजे देख रहे थे। जब हमने देखा कि इंदिरा गांधी चुनाव हार गई हैं, तब सुबह के करीब 3 या 4 बजे थे, हमें पता चला कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों चुनाव हार गए हैं, हजारों लोगों के चेहरों पर जो खुशी थी, वो कुछ ऐसी है जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता। 
*इंदिरा गांधी ने आपातकाल किया लागू*
उन्होंने कहा कि कई घटनाओं ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हिला दिया। कोई राष्ट्रीय खतरा नहीं था। हमने बांग्लादेश के साथ युद्ध जीता था। कोई आंतरिक या बाहरी खतरा नहीं था। एकमात्र खतरा इंदिरा गांधी की स्थिति के लिए था। लोग जाग चुके थे और समझ गए थे कि उन्होंने भावनाओं में बहकर जो वोट दिए थे, उसका दुरुपयोग हो रहा है। इसे समझते हुए इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर दिया। सुबह 4 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई गई। बाबू जगजीवन राम और स्वर्ण सिंह ने बाद में कहा कि उनके साथ एजेंडे पर भी चर्चा नहीं की गई, उन्हें केवल सूचित किया गया, हाउस सेक्रेटरी को बुलाया गया और आगे के आदेश पारित किए गए।
गृह मंत्री ने कहा, “सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर घोषणा की कि राष्ट्रपति ने आपातकाल लगा दिया है। क्या संसद की मंजूरी ली गई थी? क्या कैबिनेट की बैठक बुलाई गई थी? क्या विपक्ष को विश्वास में लिया गया था? जो लोग आज लोकतंत्र की बात करते हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि वे उस पार्टी से जुड़े हैं जिसने लोकतंत्र को खा लिया। कारण बताया गया राष्ट्रीय सुरक्षा, लेकिन असली कारण सत्ता की रक्षा थी। इंदिरा गांधी पीएम थीं, लेकिन उन्हें संसद में वोट देने का अधिकार नहीं था। प्रधानमंत्री के तौर पर उनके पास कोई अधिकार नहीं थे। उन्होंने नैतिकता का दामन छोड़ दिया और प्रधानमंत्री बने रहने का फैसला किया।
*कल लॉन्च होगी पीएम मोदी की किताब*
कार्यक्रम को संबोधित करते अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल पर एक किताब लिखी है। इस किताब को बुधवार को लांच किया जाएगा। यह आपातकाल के दौरान और उसके बाद हुए संघर्षों और घटनाक्रमों पर है।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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आपातकाल के 50 साल, लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश ही आपातकाल है – अमित शाह

"अगर हम लोकतंत्र को झकझोर देने वाली आपातकाल जैसी घटनाओं को भूल जाएं, तो यह देश और लोकतंत्र दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है, ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं की याद बनाए रखना जरूरी है, ताकि भविष्य में उनसे सबक लिया जा सके।

नई दिल्ली, 24 जून 2025 (यूटीएन)। आपातकाल के 50 साल’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि आज आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या है। एक सवाल उठ सकता है कि 50 साल पहले हुई किसी घटना पर अब चर्चा क्यों हो रही है? जब किसी राष्ट्रीय घटना के 50 साल पूरे होते हैं, चाहे वह अच्छी हो या बुरी, समाज में उसकी स्मृति धुंधली हो जाती है। अगर लोकतंत्र को हिला देने वाली आपातकाल जैसी घटना की स्मृति मिट जाती है, तो यह राष्ट्र के लिए हानिकारक है। अमित शाह ने कहा- आपातकाल क्या था, इसकी व्याख्या कोई एक वाक्य में नहीं हो सकती। मैंने बहुत सोच-विचारकर इसे एक परिभाषा देने की कोशिश की है। एक लोकतांत्रिक देश के बहुदलीय लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की साजिश ही आपातकाल है।
*यह राष्ट्र के लिए हानिकारक है’*
उन्होंने कहा कि आज आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या है। एक सवाल उठ सकता है कि 50 साल पहले हुई किसी घटना पर अब चर्चा क्यों हो रही है? जब किसी राष्ट्रीय घटना के 50 साल पूरे होते हैं, चाहे वह अच्छी हो या बुरी, समाज में उसकी स्मृति धुँधली हो जाती है। अगर लोकतंत्र को हिला देने वाली आपातकाल जैसी घटना की स्मृति धुँधली हो जाती है, तो यह राष्ट्र के लिए हानिकारक है। अमित शाह ने कहा, “आज हम आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर हैं। यह सवाल उठ सकता है कि पांच दशक पहले हुई घटना पर अब चर्चा क्यों की जाए। लेकिन जब कोई राष्ट्रीय घटना—चाहे वह सकारात्मक हो या नकारात्मक 50 साल पूरे करती है, तो उसकी स्मृति समाज में धुंधली पड़ने लगती है।” उन्होंने आगे कहा, “अगर हम लोकतंत्र को झकझोर देने वाली आपातकाल जैसी घटनाओं को भूल जाएं, तो यह देश और लोकतंत्र दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है। ऐसी ऐतिहासिक घटनाओं की याद बनाए रखना जरूरी है, ताकि भविष्य में उनसे सबक लिया जा सके।
*भारतीय नहीं करते तानाशाह स्वीकार*
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने ‘आपातकाल के 50 साल’ कार्यक्रम में अपने संबोधन के दौरान कहा कि उस दौर की लड़ाई इसलिए जीती गई क्योंकि भारतवासी किसी भी प्रकार की तानाशाही को स्वीकार नहीं करते। उन्होंने कहा, “भारत लोकतंत्र की जननी है, और इस देश में अधिनायकवाद की कोई जगह नहीं है।” उन्होंने कहा कि उस समय कुछ तानाशाही प्रवृत्ति वाले लोगों और उनके लाभार्थियों को छोड़कर, देश के आम नागरिकों ने आपातकाल को कभी स्वीकार नहीं किया। “उन्हें यह भ्रम था कि उन्हें कोई चुनौती नहीं देगा,” शाह ने कहा। “लेकिन जैसे ही आपातकाल समाप्त हुआ और चुनाव हुए, तो स्वतंत्र भारत में पहली बार कांग्रेस के बाहर की सरकार बनी और मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने।” अमित शाह ने कहा कि आपातकाल को केवल एक वाक्य में बांधना आसान नहीं है, लेकिन उन्होंने अपनी ओर से एक परिभाषा देने की कोशिश की। उन्होंने कहा, “एक लोकतांत्रिक देश में बहुदलीय व्यवस्था को जबरन तानाशाही में बदलने का षड्यंत्र ही आपातकाल कहलाता है।
*मैं उस दिन को कभी नहीं भूलूंगा*
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, “जरा सोचिए, अगर किसी ने सिर्फ आज़ादी की बात की और उसे जेल में डाल दिया गया हो। यह कितना अमानवीय था। हम आज उस पीड़ा की कल्पना भी नहीं कर सकते जो उस सुबह भारतवासियों ने महसूस की होगी।” उन्होंने कहा, “जब आपातकाल लागू किया गया, तब मेरी उम्र केवल 11 साल थी। गुजरात में उस समय आपातकाल का प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम था क्योंकि वहां जनता पार्टी की सरकार थी। हालांकि, कुछ समय बाद वह सरकार भी गिरा दी गई।” अपना व्यक्तिगत अनुभव साझा करते हुए अमित शाह ने बताया, “मैं एक छोटे से गांव से ताल्लुक रखता हूं, और मेरे गांव से ही 184 लोगों को जेल में डाला गया था। वे दिन, वो दृश्य मैं कभी नहीं भूल सकता – जब निर्दोष लोगों को सिर्फ आवाज उठाने के लिए सलाखों के पीछे भेजा गया। वह समय मेरे जीवन की यादों में हमेशा जीवित रहेगा।
*सत्ता बचाना था असली मकसद*
केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ पर आयोजित कार्यक्रम में कहा, “सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर देश को बताया कि राष्ट्रपति ने आपातकाल लागू कर दिया है। लेकिन क्या इस फैसले से पहले संसद की मंजूरी ली गई थी? क्या कैबिनेट की बैठक हुई थी? क्या विपक्ष को भरोसे में लिया गया था?”
अमित शाह ने कहा, “जो लोग आज लोकतंत्र की दुहाई देते हैं, उन्हें यह याद रखना चाहिए कि वे उसी पार्टी से जुड़े हैं जिसने देश में लोकतंत्र को कुचल दिया था। आपातकाल लगाने का जो कारण बताया गया वह था राष्ट्रीय सुरक्षा, लेकिन असली वजह थी – अपनी सत्ता को बचाना।” उन्होंने आगे कहा, “इंदिरा गांधी उस समय प्रधानमंत्री थीं, लेकिन अदालत के एक फैसले के बाद वे संसद में वोट नहीं कर सकती थीं। उनके पास प्रधानमंत्री पद के अधिकार नहीं बचे थे। फिर भी उन्होंने पद से इस्तीफा देने के बजाय नैतिकता को त्याग दिया और कुर्सी पर बनी रहीं।
*इंदिरा-संजय के चुनाव हारने पर लोगों के चेहरे पर थी खुशी*
अमित शाह ने कहा मुझे याद है, हम अपने गांव से, टाइम्स ऑफ इंडिया बिल्डिंग के सामने ट्रक में बैठकर लोकसभा चुनाव के नतीजे देख रहे थे। जब हमने देखा कि इंदिरा गांधी चुनाव हार गई हैं, तब सुबह के करीब 3 या 4 बजे थे, हमें पता चला कि इंदिरा गांधी और संजय गांधी दोनों चुनाव हार गए हैं, हजारों लोगों के चेहरों पर जो खुशी थी, वो कुछ ऐसी है जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता। 
*इंदिरा गांधी ने आपातकाल किया लागू*
उन्होंने कहा कि कई घटनाओं ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हिला दिया। कोई राष्ट्रीय खतरा नहीं था। हमने बांग्लादेश के साथ युद्ध जीता था। कोई आंतरिक या बाहरी खतरा नहीं था। एकमात्र खतरा इंदिरा गांधी की स्थिति के लिए था। लोग जाग चुके थे और समझ गए थे कि उन्होंने भावनाओं में बहकर जो वोट दिए थे, उसका दुरुपयोग हो रहा है। इसे समझते हुए इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर दिया। सुबह 4 बजे कैबिनेट की बैठक बुलाई गई। बाबू जगजीवन राम और स्वर्ण सिंह ने बाद में कहा कि उनके साथ एजेंडे पर भी चर्चा नहीं की गई, उन्हें केवल सूचित किया गया, हाउस सेक्रेटरी को बुलाया गया और आगे के आदेश पारित किए गए।
गृह मंत्री ने कहा, “सुबह 8 बजे प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने ऑल इंडिया रेडियो पर घोषणा की कि राष्ट्रपति ने आपातकाल लगा दिया है। क्या संसद की मंजूरी ली गई थी? क्या कैबिनेट की बैठक बुलाई गई थी? क्या विपक्ष को विश्वास में लिया गया था? जो लोग आज लोकतंत्र की बात करते हैं, मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि वे उस पार्टी से जुड़े हैं जिसने लोकतंत्र को खा लिया। कारण बताया गया राष्ट्रीय सुरक्षा, लेकिन असली कारण सत्ता की रक्षा थी। इंदिरा गांधी पीएम थीं, लेकिन उन्हें संसद में वोट देने का अधिकार नहीं था। प्रधानमंत्री के तौर पर उनके पास कोई अधिकार नहीं थे। उन्होंने नैतिकता का दामन छोड़ दिया और प्रधानमंत्री बने रहने का फैसला किया।
*कल लॉन्च होगी पीएम मोदी की किताब*
कार्यक्रम को संबोधित करते अमित शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल पर एक किताब लिखी है। इस किताब को बुधवार को लांच किया जाएगा। यह आपातकाल के दौरान और उसके बाद हुए संघर्षों और घटनाक्रमों पर है।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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