नई दिल्ली, 24 जून 2025 (यूटीएन)। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के प्रवक्ता और वरिष्ठ पदाधिकारी सुनील आंबेकर ने पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में लगे आपातकाल में सैकड़ों संघ के कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को लेकर बड़ा बयान दिया है। मंगलवार को उन्होंने कहा कि 25 जून 1975 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल के दौरान हजारों संघ कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेलों में डाला गया और कई तरह की यातनाएं दी गईं।
*संघ के 100 कार्यकर्ताओं के मौत का दावा*
आंबेकर ने कि इस दौरान कम से कम 100 कार्यकर्ताओं की मौत हुई, जिनमें से कुछ की जेल में और कुछ की बाहर मौत हुई। इनमें संघ की अखिल भारतीय व्यवस्था समिति के तत्कालीन प्रमुख पांडुरंग क्षीरसागर भी शामिल थे, जिनकी मौत जेल में यातना के चलते हुई।
*आपातकाल को बताया भारतीय लोकतंत्र पर धब्बा*
सुनील आंबेकर ने आपातकाल को भारत के लोकतंत्र पर काला धब्बा बताते हुए कहा कि देश में 21 महीने तक चली तानाशाही को कभी नहीं भुलाया जा सकता। उन्होंने कहा कि संघ कार्यकर्ताओं को जबरन सरकार और आपातकाल का समर्थन करने के लिए प्रताड़ित किया गया, यहां तक कि थर्ड डिग्री तक दी गई। उनसे यह भी कहा गया कि वे उन संघ नेताओं के नाम बताएं जो आंदोलन में शामिल थे।
*हजारों स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी*
आंबेकर ने बताया कि उस समय संघ के लगभग 1,300 प्रचारक थे, जिनमें से 189 प्रचारकों को गिरफ्तार किया गया। हजारों स्वयंसेवकों को भी जेलों में बंद किया गया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि संघ ने देशभर में चल रहे लोकतंत्र बचाओ आंदोलन में पूरी ताकत झोंक दी। आरएसएस उस समय देशभर में करीब 50,000 शाखाएं चला रहा था।
*पूर्व संघ प्रमुख के पत्र को लेकर दी सफाई*
बता दें कि आपातकाल के दौरान उस समय के संघ प्रमुख बालासाहेब देवरस ने इंदिरा गांधी को पत्र लिखकर संघ पर से प्रतिबंध हटाने की अपील की थी। इस बात को लेकर कई सारे दावे भी सामने आते रहे हैं। हालांकि इन बातों आंबेकर ने सफाई देते हुए कहा कि देवरस जी के पत्र संघ कार्यकर्ताओं को संघर्ष से बचाने के लिए थे। यह कोई कमजोरी नहीं थी। उन्होंने संवाद की कोशिश की, लेकिन जब बात नहीं बनी तो सत्याग्रह का रास्ता अपनाया गया।
*संघ के सत्याग्रह में शामिल हुए 80000 हजार लोग*
उन्होंने कहा कि संघ के इस सत्याग्रह में 80,000 से एक लाख लोग शामिल हुए और इसी संघर्ष के कारण आपातकाल खत्म हुआ और दोबारा चुनाव की घोषणा हुई। अंत में आंबेकर ने कहा कि आपातकाल की कहानी को एक सम्पूर्ण रूप में समझना जरूरी है, पहला हिस्सा था संवाद के प्रयास, दूसरा था बड़ा संघर्ष, तीसरा था आपातकाल का अंत और फिर चुनाव का आना। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पिछले साल 25 जून को ‘संविधान हत्या दिवस’ के रूप में मनाने की घोषणा की थी ताकि आपातकाल की पीड़ा झेलने वाले लोगों को याद किया जा सके।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।