Sunday, June 29, 2025

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जस्टिस वर्मा के खिलाफ जल्द से जल्द होनी चाहिए कार्रवाई : उपराष्ट्रपति

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों से बातचीत करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, "मैं पीड़ा में, चिंता में, व्याकुलता में स्वयं से एक सवाल पूछता हूं कि वह अनुमति क्यों नहीं दी गई? यह तो न्यूनतम कदम था, जो सबसे पहले उठाया जाना चाहिए था.

नई दिल्ली, 07 जून 2025 (यूटीएन)। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जस्टिस वर्मा का नाम लिए बिना न्यायपालिका में भ्रष्टाचार मामले पर टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “आज की सरकार लाचार है. वह एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती क्योंकि एक न्यायिक आदेश बाधा है और वह आदेश तीन दशक से भी अधिक पुराना है. वह लगभग अभेद्य सुरक्षा प्रदान करता है. जब तक न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर पर कोई पदाधिकारी अनुमति नहीं देता तब तक एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती.
*तीन महीने के बाद भी जांच नहीं हुई शुरू’*
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों से बातचीत करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “मैं पीड़ा में, चिंता में, व्याकुलता में स्वयं से एक सवाल पूछता हूं कि वह अनुमति क्यों नहीं दी गई? यह तो न्यूनतम कदम था, जो सबसे पहले उठाया जाना चाहिए था.” उन्होंने कहा, “मैंने यह मुद्दा उठाया है. अंततः अगर किसी जस्टिस को हटाने का प्रस्ताव आता है क्या वही इसका उत्तर है? अगर कोई ऐसा अपराध हुआ है, जो लोकतंत्र और कानून के शासन की नींव को हिला देता है तो उसे दंड क्यों नहीं मिला? हम तीन महीने से अधिक समय खो चुके हैं और जांच की शुरुआत भी नहीं हुई. जब भी आप कोर्ट जाते हैं, वे पूछते हैं एफआईआर में देरी क्यों हुई?
*जजों की समिति को लेकर उपराष्ट्रपति ने पूछे सवाल*
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “क्या जजों की समिति को संवैधानिक या वैधानिक मान्यता प्राप्त है? क्या उसकी रिपोर्ट से कोई ठोस कार्यवाही हो सकती है? अगर संविधान में जस्टिस को हटाने की प्रक्रिया लोकसभा या राज्यसभा में प्रस्ताव से ही निर्धारित है तो यह समिति उस प्रक्रिया या एफआईआर का विकल्प नहीं हो सकती. अगर हम खुद को लोकतंत्र का दावा करते हैं तो हमें यह मानना होगा कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही केवल कार्यकाल के दौरान अभियोजन से छूट है किसी और को नहीं. अब अगर ऐसा कोई कृत्य जो अपराध है सामने आता है और उसके पीछे नकदी की बात सुप्रीम कोर्ट की ओर से सामने लाई जाती है तो उस पर कार्यवाही क्यों नहीं?
*पूर्व चीफ जस्टिस का आभार व्यक्त किया*
उपराष्ट्रपति ने कहा, “ऐसे मामलों में अनुमति पहले दिन दी जा सकती थी और दी जानी चाहिए थी. रिपोर्ट के बाद तो कम से कम दी ही जानी थी. क्या यह अनुमति न्यायिक पक्ष से दी जा सकती थी? न्यायिक पक्ष में जो हुआ है वह सबके सामने है. मैं पूर्व चीफ जस्टिस का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने दस्तावेजों को सार्वजनिक किया. हम यह कह सकते हैं कि नकदी की जब्ती हुई, क्योंकि रिपोर्ट कहती है और रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक की.
*’लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं करना चाहिए‘*
उन्होंने कहा, “हमें लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं करना चाहिए. हमें अपनी नैतिकता को इस कदर गिराना नहीं चाहिए. हमें ईमानदारी को समाप्त नहीं करना चाहिए. हमारी न्याय प्रणाली एक अत्यंत पीड़ादायक घटना से जूझ रही है, जो मार्च मध्य में दिल्ली में एक कार्यरत जस्टिस के निवास पर हुई थी. वहां नकदी बरामद हुई, जो स्पष्ट रूप से अवैध, बेहिसाब और अपवित्र थी. यह जानकारी 6-7 दिन बाद सार्वजनिक हुई. कल्पना कीजिए यदि यह बाहर नहीं आती तो क्या होता? हमें यह भी नहीं पता चलता कि यह एकमात्र मामला है या और भी हैं. जब भी इस तरह की बेहिसाब नकदी मिलती है तो हमें यह जानना चाहिए कि यह पैसा किसका है? इसकी मनी ट्रेल क्या है? क्या इस पैसे ने न्यायिक कार्य में प्रभाव डाला? यह सब केवल वकीलों की चिंता नहीं, बल्कि आम जनता की भी चिंता है.
*अपराध के लिए जिम्मेदार को नहीं बख्शा जाना चाहिए*
उपराष्ट्रपति ने साफ तौर पर कहा कि मैं केवल इतना कहता हूं कि यह सोचकर कि यह मामला ठंडा पड़ जाएगा या मीडिया का ध्यान नहीं रहेगा, यह गलत होगा. जो लोग इस अपराध के लिए जिम्मेदार हैं उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए. केवल गहन, वैज्ञानिक और निष्पक्ष जांच ही जनता का विश्वास बहाल कर सकती है. मैं किसी को दोषी नहीं ठहरा रहा हूं, लेकिन यह तय है कि एक ऐसा अपराध हुआ है, जिसने न्यायपालिका और लोकतंत्र की नींव हिला दी है. मुझे आशा है कि इसका संज्ञान लिया जाएगा.
*जस्टिस वर्मा को लेकर महाभियोग प्रस्ताव लाएगी सरकार*
केंद्र सरकार की तरफ से साफ कर दिया गया है कि आगामी मानसून सत्र के दौरान जस्टिस वर्मा को लेकर केंद्र सरकार महाभियोग प्रस्ताव लाएगी और इसके लिए तमाम अन्य राजनीतिक दलों से भी संपर्क किया जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक सरकार की कोशिश यही है की मानसून सत्र के दौरान जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्तावना कर उसको पास करवाया जाए. महाभियोग प्रस्ताव पास हो जाता है तो फिर जस्टिस वर्मा को उनके पद से बर्खास्त किया जा सकता है और उसके बाद नियमों के हिसाब से उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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जस्टिस वर्मा के खिलाफ जल्द से जल्द होनी चाहिए कार्रवाई : उपराष्ट्रपति

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों से बातचीत करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, "मैं पीड़ा में, चिंता में, व्याकुलता में स्वयं से एक सवाल पूछता हूं कि वह अनुमति क्यों नहीं दी गई? यह तो न्यूनतम कदम था, जो सबसे पहले उठाया जाना चाहिए था.

नई दिल्ली, 07 जून 2025 (यूटीएन)। भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जस्टिस वर्मा का नाम लिए बिना न्यायपालिका में भ्रष्टाचार मामले पर टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “आज की सरकार लाचार है. वह एफआईआर दर्ज नहीं कर सकती क्योंकि एक न्यायिक आदेश बाधा है और वह आदेश तीन दशक से भी अधिक पुराना है. वह लगभग अभेद्य सुरक्षा प्रदान करता है. जब तक न्यायपालिका के सर्वोच्च स्तर पर कोई पदाधिकारी अनुमति नहीं देता तब तक एफआईआर दर्ज नहीं की जा सकती.
*तीन महीने के बाद भी जांच नहीं हुई शुरू’*
पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट बार एसोसिएशन के सदस्यों से बातचीत करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा, “मैं पीड़ा में, चिंता में, व्याकुलता में स्वयं से एक सवाल पूछता हूं कि वह अनुमति क्यों नहीं दी गई? यह तो न्यूनतम कदम था, जो सबसे पहले उठाया जाना चाहिए था.” उन्होंने कहा, “मैंने यह मुद्दा उठाया है. अंततः अगर किसी जस्टिस को हटाने का प्रस्ताव आता है क्या वही इसका उत्तर है? अगर कोई ऐसा अपराध हुआ है, जो लोकतंत्र और कानून के शासन की नींव को हिला देता है तो उसे दंड क्यों नहीं मिला? हम तीन महीने से अधिक समय खो चुके हैं और जांच की शुरुआत भी नहीं हुई. जब भी आप कोर्ट जाते हैं, वे पूछते हैं एफआईआर में देरी क्यों हुई?
*जजों की समिति को लेकर उपराष्ट्रपति ने पूछे सवाल*
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा, “क्या जजों की समिति को संवैधानिक या वैधानिक मान्यता प्राप्त है? क्या उसकी रिपोर्ट से कोई ठोस कार्यवाही हो सकती है? अगर संविधान में जस्टिस को हटाने की प्रक्रिया लोकसभा या राज्यसभा में प्रस्ताव से ही निर्धारित है तो यह समिति उस प्रक्रिया या एफआईआर का विकल्प नहीं हो सकती. अगर हम खुद को लोकतंत्र का दावा करते हैं तो हमें यह मानना होगा कि राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही केवल कार्यकाल के दौरान अभियोजन से छूट है किसी और को नहीं. अब अगर ऐसा कोई कृत्य जो अपराध है सामने आता है और उसके पीछे नकदी की बात सुप्रीम कोर्ट की ओर से सामने लाई जाती है तो उस पर कार्यवाही क्यों नहीं?
*पूर्व चीफ जस्टिस का आभार व्यक्त किया*
उपराष्ट्रपति ने कहा, “ऐसे मामलों में अनुमति पहले दिन दी जा सकती थी और दी जानी चाहिए थी. रिपोर्ट के बाद तो कम से कम दी ही जानी थी. क्या यह अनुमति न्यायिक पक्ष से दी जा सकती थी? न्यायिक पक्ष में जो हुआ है वह सबके सामने है. मैं पूर्व चीफ जस्टिस का आभार व्यक्त करता हूं कि उन्होंने दस्तावेजों को सार्वजनिक किया. हम यह कह सकते हैं कि नकदी की जब्ती हुई, क्योंकि रिपोर्ट कहती है और रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक की.
*’लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं करना चाहिए‘*
उन्होंने कहा, “हमें लोकतंत्र के विचार को नष्ट नहीं करना चाहिए. हमें अपनी नैतिकता को इस कदर गिराना नहीं चाहिए. हमें ईमानदारी को समाप्त नहीं करना चाहिए. हमारी न्याय प्रणाली एक अत्यंत पीड़ादायक घटना से जूझ रही है, जो मार्च मध्य में दिल्ली में एक कार्यरत जस्टिस के निवास पर हुई थी. वहां नकदी बरामद हुई, जो स्पष्ट रूप से अवैध, बेहिसाब और अपवित्र थी. यह जानकारी 6-7 दिन बाद सार्वजनिक हुई. कल्पना कीजिए यदि यह बाहर नहीं आती तो क्या होता? हमें यह भी नहीं पता चलता कि यह एकमात्र मामला है या और भी हैं. जब भी इस तरह की बेहिसाब नकदी मिलती है तो हमें यह जानना चाहिए कि यह पैसा किसका है? इसकी मनी ट्रेल क्या है? क्या इस पैसे ने न्यायिक कार्य में प्रभाव डाला? यह सब केवल वकीलों की चिंता नहीं, बल्कि आम जनता की भी चिंता है.
*अपराध के लिए जिम्मेदार को नहीं बख्शा जाना चाहिए*
उपराष्ट्रपति ने साफ तौर पर कहा कि मैं केवल इतना कहता हूं कि यह सोचकर कि यह मामला ठंडा पड़ जाएगा या मीडिया का ध्यान नहीं रहेगा, यह गलत होगा. जो लोग इस अपराध के लिए जिम्मेदार हैं उन्हें बख्शा नहीं जाना चाहिए. केवल गहन, वैज्ञानिक और निष्पक्ष जांच ही जनता का विश्वास बहाल कर सकती है. मैं किसी को दोषी नहीं ठहरा रहा हूं, लेकिन यह तय है कि एक ऐसा अपराध हुआ है, जिसने न्यायपालिका और लोकतंत्र की नींव हिला दी है. मुझे आशा है कि इसका संज्ञान लिया जाएगा.
*जस्टिस वर्मा को लेकर महाभियोग प्रस्ताव लाएगी सरकार*
केंद्र सरकार की तरफ से साफ कर दिया गया है कि आगामी मानसून सत्र के दौरान जस्टिस वर्मा को लेकर केंद्र सरकार महाभियोग प्रस्ताव लाएगी और इसके लिए तमाम अन्य राजनीतिक दलों से भी संपर्क किया जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक सरकार की कोशिश यही है की मानसून सत्र के दौरान जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्तावना कर उसको पास करवाया जाए. महाभियोग प्रस्ताव पास हो जाता है तो फिर जस्टिस वर्मा को उनके पद से बर्खास्त किया जा सकता है और उसके बाद नियमों के हिसाब से उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी की जा सकती है.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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