Sunday, June 29, 2025

National

spot_img

भारत का सिंधु नदी बेसिन पर महाप्लान..अब तो बूंद-बूंद पानी को तरसेगा पाकिस्तान

सिंधु जल संधि के तहत पश्चिम की जो तीनों नदियां हैं- चिनाब, झेलम और सिंधु, उनमें भारत जितना निर्माण कर सका है, उससे मात्र 3,482 मेगा वॉट विद्युत उत्पादन की ही क्षमता है, जबकि, इस क्षेत्र की नदियों में भारत के लिए पनबिजली से 20,000 मेगा वॉट उत्पादन करने की क्षमता है।

नई दिल्ली, 05 जून 2025 (यूटीएन)। पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल समझौते को मोदी सरकार ने जो ठंडे बस्ते में डाला था, उसके पीछे की उसकी योजना धरातल पर उतरने लगी है। सरकार ने सिंधु नदी बेसिन से जुड़े सभी प्रोजेक्ट को तेजी से मंजूरी देने का फैसला किया है। जल्द से जल्द पर्यावरण मंजूरी देने की बात कही गई है। सिंधु बेसिन से जुड़े प्रोजेक्ट के लिए सिंगल विंडो सिस्टम पर काम हो रहा है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कह दिया है कि उनका मंत्रालय इन परियोजनाओं को गति देने के लिए तैयार है। ऐसे में यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि मोदी सरकार के इस फैसले से धरातल पर क्या बदलाव आने वाला है। कैसे सिंधु नदी बेसिन से जुड़े एक-एक प्रोजेक्ट पर भारत आगे बढ़ेगा और दुश्मन पाकिस्तान की हलक सूखती चली जाएगी।
*16,000 मेगा वॉट से ज्यादा पनबिजली परियोजनाओं की क्षमता*
अध्ययनों के मुताबिक सिंधु नदी बेसिन में ‘पनबिजली परियोजना’ की मौजूद क्षमता का भारत पांचवां हिस्सा भी उपयोग नहीं कर पाया है। सिंधु जल संधि के तहत पश्चिम की जो तीनों नदियां हैं- चिनाब, झेलम और सिंधु, उनमें भारत जितना निर्माण कर सका है, उससे मात्र 3,482 मेगा वॉट विद्युत उत्पादन की ही क्षमता है। जबकि, इस क्षेत्र की नदियों में भारत के लिए पनबिजली से 20,000 मेगा वॉट उत्पादन करने की क्षमता है।
*सिंधु नदी बेसिन में भारत अपने हक का भी नहीं कर पा रहा था उपयोग*
वैसे भारत को पश्चिमी नदियों पर ‘रन ऑफ द रिवर’ परियोजनाओं के जरिये पनबिजली बनाने का अधिकार सिंधु जल संधि में भ मिला हुआ था। लेकिन,इसके लिए नियम और शर्तें ऐसी रखी गई थीं, जिनका पालन करना आसान नहीं रहा। क्योंकि पाकिस्तान ने कभी ऐसा होने ही नहीं दिया। हर प्रोजेक्ट में अड़ंगा लगाता रहा। ‘रन ऑफ द रिवर’का मतलब है, नदियों के प्राकृतिक बहाव का उपयोग करके बिजली बनाना या अन्य उपयोग के लिए इस्तेमाल करना। जबकि, यह संधि भारत को सिंधु बेसिन की इन तीनों नदियों के बहाव बदलने या स्टोरेज करने की इजाजत तो नहीं ही देती थी।
*आगे चलकर सिंधु नदियों की धाराएं मुड़ेंगी, बड़े जलाशय बनेंगे!*
अब संधि पर ब्रेक लगा है और सरकार की ओर से जो संकेत मिल रहे हैं, उससे साफ है कि वह सिंधु बेसिन की तीनों पश्चिमी नदियों के पानी का भी बड़े पैमाने पर बहाव बदलने और उसे बड़े डैम और जलाशय बनाकर स्टोरेज करने को लेकर काफी तत्पर है। सरकार पहले ही जल के बहाव को मोड़ने के लिए नदियों से गाद निकालने और स्थानीय भंडारण क्षमता बढ़ाने की योजना का संकेत दे चुकी है। अब सरकार की कोशिश होगी कि मौजूदा डैम की ऊंचाई बढ़ाए, नए जलाशयों का निर्माण करे और जहां आवश्यक हो नदी की धाराओं का रुख मोड़ने पर काम आगे बढ़ाए।
*आखिरकार 135 मिलियन एकड़ फीट सिंधु जल का सवाल है*
झेलम नदी पर उरी बांध, चिनाब नदी पर दुल्हस्ती, सलाल और बगलीहार बांध और सिंधु नदी पर नीमू बाजगो और चुटक बांधों में सुधार किया जाना बहुत जरूरी है। इन बांधों से गाद निकालने, क्षमता बढ़ाने और पानी मोड़ने की योजना है। किशनगंगा, रतले, पाकल दुल और तुलबुल परियोजनाओं पर भी तेजी से काम होगा। पाकिस्तान की आपत्ति अब बीते दिनों की बात हो चुकी है,इसलिए इन परियोजनाओं के साथ स्टोरेज क्षमता वाले बैराज भी बनाए जा सकेंगे। अभी भारत के पास पश्चिमी नदियों पर सिर्फ 3.6 मिलियन एकड़ फीट पानी स्टोर करने की क्षमता है। जबकि,इसका 135 मिलियन एकड़ फीट अभी बेरोकटोक पाकिस्तान को जा रहा है। लेकिन, निश्चित रूप से भारत इस क्षमता में बढ़ोतरी कर इसके पानी का इस्तेमाल अपने राज्यों के लिए करेगा।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

International

spot_img

भारत का सिंधु नदी बेसिन पर महाप्लान..अब तो बूंद-बूंद पानी को तरसेगा पाकिस्तान

सिंधु जल संधि के तहत पश्चिम की जो तीनों नदियां हैं- चिनाब, झेलम और सिंधु, उनमें भारत जितना निर्माण कर सका है, उससे मात्र 3,482 मेगा वॉट विद्युत उत्पादन की ही क्षमता है, जबकि, इस क्षेत्र की नदियों में भारत के लिए पनबिजली से 20,000 मेगा वॉट उत्पादन करने की क्षमता है।

नई दिल्ली, 05 जून 2025 (यूटीएन)। पहलगाम हमले के बाद सिंधु जल समझौते को मोदी सरकार ने जो ठंडे बस्ते में डाला था, उसके पीछे की उसकी योजना धरातल पर उतरने लगी है। सरकार ने सिंधु नदी बेसिन से जुड़े सभी प्रोजेक्ट को तेजी से मंजूरी देने का फैसला किया है। जल्द से जल्द पर्यावरण मंजूरी देने की बात कही गई है। सिंधु बेसिन से जुड़े प्रोजेक्ट के लिए सिंगल विंडो सिस्टम पर काम हो रहा है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कह दिया है कि उनका मंत्रालय इन परियोजनाओं को गति देने के लिए तैयार है। ऐसे में यह समझना बहुत महत्वपूर्ण है कि मोदी सरकार के इस फैसले से धरातल पर क्या बदलाव आने वाला है। कैसे सिंधु नदी बेसिन से जुड़े एक-एक प्रोजेक्ट पर भारत आगे बढ़ेगा और दुश्मन पाकिस्तान की हलक सूखती चली जाएगी।
*16,000 मेगा वॉट से ज्यादा पनबिजली परियोजनाओं की क्षमता*
अध्ययनों के मुताबिक सिंधु नदी बेसिन में ‘पनबिजली परियोजना’ की मौजूद क्षमता का भारत पांचवां हिस्सा भी उपयोग नहीं कर पाया है। सिंधु जल संधि के तहत पश्चिम की जो तीनों नदियां हैं- चिनाब, झेलम और सिंधु, उनमें भारत जितना निर्माण कर सका है, उससे मात्र 3,482 मेगा वॉट विद्युत उत्पादन की ही क्षमता है। जबकि, इस क्षेत्र की नदियों में भारत के लिए पनबिजली से 20,000 मेगा वॉट उत्पादन करने की क्षमता है।
*सिंधु नदी बेसिन में भारत अपने हक का भी नहीं कर पा रहा था उपयोग*
वैसे भारत को पश्चिमी नदियों पर ‘रन ऑफ द रिवर’ परियोजनाओं के जरिये पनबिजली बनाने का अधिकार सिंधु जल संधि में भ मिला हुआ था। लेकिन,इसके लिए नियम और शर्तें ऐसी रखी गई थीं, जिनका पालन करना आसान नहीं रहा। क्योंकि पाकिस्तान ने कभी ऐसा होने ही नहीं दिया। हर प्रोजेक्ट में अड़ंगा लगाता रहा। ‘रन ऑफ द रिवर’का मतलब है, नदियों के प्राकृतिक बहाव का उपयोग करके बिजली बनाना या अन्य उपयोग के लिए इस्तेमाल करना। जबकि, यह संधि भारत को सिंधु बेसिन की इन तीनों नदियों के बहाव बदलने या स्टोरेज करने की इजाजत तो नहीं ही देती थी।
*आगे चलकर सिंधु नदियों की धाराएं मुड़ेंगी, बड़े जलाशय बनेंगे!*
अब संधि पर ब्रेक लगा है और सरकार की ओर से जो संकेत मिल रहे हैं, उससे साफ है कि वह सिंधु बेसिन की तीनों पश्चिमी नदियों के पानी का भी बड़े पैमाने पर बहाव बदलने और उसे बड़े डैम और जलाशय बनाकर स्टोरेज करने को लेकर काफी तत्पर है। सरकार पहले ही जल के बहाव को मोड़ने के लिए नदियों से गाद निकालने और स्थानीय भंडारण क्षमता बढ़ाने की योजना का संकेत दे चुकी है। अब सरकार की कोशिश होगी कि मौजूदा डैम की ऊंचाई बढ़ाए, नए जलाशयों का निर्माण करे और जहां आवश्यक हो नदी की धाराओं का रुख मोड़ने पर काम आगे बढ़ाए।
*आखिरकार 135 मिलियन एकड़ फीट सिंधु जल का सवाल है*
झेलम नदी पर उरी बांध, चिनाब नदी पर दुल्हस्ती, सलाल और बगलीहार बांध और सिंधु नदी पर नीमू बाजगो और चुटक बांधों में सुधार किया जाना बहुत जरूरी है। इन बांधों से गाद निकालने, क्षमता बढ़ाने और पानी मोड़ने की योजना है। किशनगंगा, रतले, पाकल दुल और तुलबुल परियोजनाओं पर भी तेजी से काम होगा। पाकिस्तान की आपत्ति अब बीते दिनों की बात हो चुकी है,इसलिए इन परियोजनाओं के साथ स्टोरेज क्षमता वाले बैराज भी बनाए जा सकेंगे। अभी भारत के पास पश्चिमी नदियों पर सिर्फ 3.6 मिलियन एकड़ फीट पानी स्टोर करने की क्षमता है। जबकि,इसका 135 मिलियन एकड़ फीट अभी बेरोकटोक पाकिस्तान को जा रहा है। लेकिन, निश्चित रूप से भारत इस क्षमता में बढ़ोतरी कर इसके पानी का इस्तेमाल अपने राज्यों के लिए करेगा।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

National

spot_img

International

spot_img
RELATED ARTICLES