नई दिल्ली, 27 मई 2025 (यूटीएन)। पं. दीनदयाल उपाध्याय के ‘एकात्म मानवदर्शन’ पर ऐतिहासिक व्याख्यानों की साठवीं वर्षगांठ (षष्ठीपूर्ति) के अवसर पर चार सहयोगी संस्थाओं द्वारा 31 मई और 1 जून को एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में एक राष्ट्रीय स्मृति संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।
1965 में मुंबई में दिए गए इन व्याख्यानों में एकात्म मानवदर्शन की अवधारणा प्रस्तुत की गई थी। यह दर्शन मानव जीवन की भौतिक, बौद्धिक, नैतिक एवं आध्यात्मिक आवश्यकताओं की ऐसी समग्र दृष्टि प्रस्तुत करता है जो समाज और प्रकृति के साथ सामंजस्य में होना चाहिए।
दीनदयाल जी द्वारा ‘अंत्योदय’ यानि अंतिम व्यक्ति के कल्याण पर केन्द्रित विचार हमारे संविधान निर्माताओं की उस भावना का प्रतिबिंब था। जिसमें यह संकल्प लिया गया था कि देश का प्रत्येक नागरिक देश के संसाधनों और अवसरों का समान रूप से लाभ प्राप्त करें। छः दशकों के बाद भी यह नैतिक दृष्टिकोण केवल एक आदर्श भर नहीं है। इसकी छाप आज देश के सार्वजनिक नीतियों में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है।
चाहे वह स्वयं सहायता समूहों को सशक्त बनाने वाली दीनदयाल अंत्योदय योजना’ हो, ग्रामीण युवाओं को कौशल प्रदान करने वाली दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना’, देश के सबसे अंधेरे गाँवों को रोशन करने वाली ग्राम ज्योति योजना, वंचितों को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करने वाली ‘आयुष्मान भारत’ योजना या फिर करोड़ों लोगों को स्वच्छ जल और रसोई गैस उपलब्ध कराने वाले ‘जल जीवन मिशन’ और ‘उज्ज्वला योजना।
इन प्रयासों के साथ-साथ प्रधानमंत्री जन धन योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी अनगिनत योजनाएँ यह सिद्ध करती हैं कि दीनदयाल जी द्वारा प्रतिपादित ट्रस्टीशिप और समावेशी विकास की भावना आज के शासन तंत्र में साकार हो रही है। दो दिवसीय इस गहन संगोष्ठी में विद्वानों, नीति-निर्माताओं, सुरक्षा विशेषज्ञों, अर्थशास्त्रियों और जननेताओं का समागम होगा, जिसमें यह विमर्श किया जाएगा कि।
एकात्म मानवदर्शन किस प्रकार राष्ट्रीय सुरक्षा व रणनीतिक स्वायत्तता, महिला सशक्तिकरण व पारिवारिक कल्याण, सतत जीवनशैली व पर्यावरण संरक्षण, सांस्कृतिक पुनर्जागरण व भारतीयता आधारित शिक्षा, युवाओं की आकांक्षाओं व ग्रामीण परिवर्तन, तथा केवल जीडीपी नहीं बल्कि गरिमा को प्राथमिकता देती अर्थनीति सहित सभी क्षेत्रों को दिशा प्रदान करता है।
इस अवसर पर एक प्रदर्शनी दीनदयाल जी के जीवन और चिंतन को रेखांकित करेगी।
उनके मूल लेखनों के डिजिटल भंडार सहित उनकी विचारधारा की आधुनिक संदर्भों में व्याख्या करती हुई नवीन पुस्तकें भी लोकार्पित की जाएंगी। पं. दीनदयाल उपाध्याय द्वारा दिए गए आह्वान, “सर्वजन हिताय, सर्वजन सुखाय” की पुनः स्मृति के माध्यम से, आयोजक एक ऐसे विकास मॉडल पर सार्वजनिक विमर्श को जीवंत करना चाहते हैं जो सांस्कृतिक रूप से स्वावलम्बी हो, नैतिक मूल्यों पर आधारित हो और समाज के सबसे कमजोर वर्ग के उत्थान के प्रति पूर्णतः प्रतिबद्ध हो।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।