Tuesday, October 7, 2025

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आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने विकसित की लचीली एवं टिकाऊ 2डी सामग्री निर्माण तकनीक अगली पीढ़ी की तकनीकों के लिए वरदान

ग्रैफीन, एक पतली 2डी सामग्री, अपने अद्वितीय गुणों के कारण अगले जनरेशन के फोटोडिटेक्टर, सेंसर, सुपरकैपेसिटर और फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के लिए आधार के रूप में मानी जाती है।

जयपुर,04 सितम्बर (यूटीएन)। वैश्विक स्तर पर लचीली और वियरेबल इलेक्ट्रॉनिक्स की दिशा में_बड़ी मांग है, जिसमें मोड़ने योग्य स्मार्टफोन से लेकर ऐसे मेडिकल सेंसर शामिल हैं जो वास्तविक समय में स्वास्थ्य की निगरानी कर सकते हैं। इन तकनीकों की सफलता काफी हद तक एडवांस्ड मैटेरियल्स पर निर्भर करती है। ग्रैफीन, एक पतली 2डी सामग्री, अपने अद्वितीय गुणों के कारण अगले जनरेशन के फोटोडिटेक्टर, सेंसर, सुपरकैपेसिटर और फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के लिए आधार के रूप में मानी जाती है।

हालांकि, ग्रैफीन और अन्य 2डी मैटेरियल्स में कई कठिनाई हैं। पिछले चार वर्षों के अध्ययन में यह देखा गया कि डब्ल्यूएस₂ जैसी पतली 2डी सामग्रियों में ऑक्सीकरण और डिग्रेडेशन होता है, जिससे उपकरण की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इसके अलावा, पारंपरिक ट्रांसफर टेक्नीकें अक्सर इन नाजुक मोनोलेयर परतों को नुकसान पहुँचाती हैं, जिससे परतों का फिसलना, कमजोर चिपकाव और ऑप्टिकल या इलेक्ट्रिकल गुणों की हानि होती है।

*डब्ल्यूएस₂–पीडीएमएस कॉम्पोज़िट निर्माण का विकास*
इन्हीं चुनौतियों को हल करने के लिए आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने डब्ल्यूएस₂-पीडीएमएस कॉम्पोज़िट निर्माण तकनीक विकसित की है। यह एक लंबी उम्र वाली और लचीली सामग्री है जो अगले जनरेशन के वियरेबल गैजेट्स, मोड़ने योग्य स्मार्टफोन और हेल्थ मॉनिटरिंग उपकरणों को शक्ति प्रदान कर सकती है। इस शोध का नेतृत्व प्रो. विश्वनाथ बालकृष्णन ने किया, साथ में यदु चंद्रन, डॉ. दीपा ठाकुर और अंजलि शर्मा भी शामिल हैं। इस शोध में वॉटर-मीडिएटेड, नॉन-डिस्ट्रक्टिव ट्रांसफर मेथड का उपयोग किया गया, जिससे केमिकल वेपर डिपॉज़िशन (सीवीडी) से तैयार डब्ल्यूएस₂ मोनोलेयर को पीडीएमएस की परतों के बीच सुरक्षित रूप से रखा जा सकता है।

प्रो. विश्वनाथ बालकृष्णन ने कहा, “यह विकास 2डी मैटेरियल्स से लचीली और वियरेबल इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। परमाणुविक स्तर पर पतली परतों को सुरक्षित रखते हुए उनके ऑप्टिकल और इलेक्ट्रिकल गुणों को बनाए रखना, अगली पीढ़ी के सेंसर, डिस्प्ले और हेल्थ मॉनिटरिंग उपकरणों के लिए स्केलेबल और दीर्घकालिक प्लेटफॉर्म तैयार करता है। शोध में दिखाया गया कि डब्ल्यूएस₂ मोनोलेयर को पीडीएमएस में एनकैप्सुलेट करने पर यह एक वर्ष से अधिक समय तक ऑक्सीकरण और डिग्रेडेशन के बिना स्थिर रही। इसके अलावा, डब्ल्यूएस₂-पीडीएमएस परतों का वर्टिकल स्टैकिंग ऑप्टिकल एब्ज़ॉर्प्शन को चार गुना तक बढ़ाता है, जबकि मोनोलेयर के मूल गुण सुरक्षित रहते हैं। यह कॉम्पोज़िट उत्कृष्ट लचीलापन और टिकाऊपन प्रदर्शित करता है, हज़ारों बार मोड़ने के बावजूद डेलैमिनेशन नहीं होता और स्ट्रेन ट्रांसफर प्रभावी रहता है।

कुल मिलाकर, यह शोध एटॉमिकली थिन मैटेरियल्स में आने वाली मुख्य चुनौती – वायु में उनकी अस्थिरता – को हल करता है। पीडीएमएस का उपयोग करके एक सरल कॉम्पोज़िट रणनीति के माध्यम से इन सामग्रियों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है, जबकि उनके अद्वितीय गुण भी  बने रहते हैं। क्योंकि ये फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, वियरेबल हेल्थ मॉनिटर, अगली पीढ़ी के सेंसर और ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का आधार हैं, यह तकनीक उन तकनीकों के विकास में सीधे योगदान देती है जो निकट भविष्य में हमारी दैनिक जिंदगी को प्रभावित करेंगी।

*राष्ट्रीय महत्व*
इस नवाचार का राष्ट्रीय महत्व भी है। यह भारत के नेशनल क्वांटम मिशन में सीधे योगदान देता है, जो क्वांटम लाइट सोर्सेज़, सिंगल-फोटॉन एमिटर और सुरक्षित कम्युनिकेशन तकनीकों के लिए आवश्यक टिकाऊ 2डी मैटेरियल्स को सक्षम बनाता है। यह वैश्विक स्तर पर बढ़ती मांग  फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, वियरेबल हेल्थकेयर सिस्टम और ऊर्जा-कुशल उपकरणों  के अनुरूप भी है। यह पहल भारत को क्वांटम कंप्यूटिंग, सुरक्षित कम्युनिकेशन और उन्नत क्वांटम मैटेरियल्स में वैश्विक नेता बनने की दिशा में अग्रसर कर सकती है।

*प्रैक्टिकल उपयोग*
यह शोध फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, वियरेबल मेडिकल सेंसर, हल्के सोलर सेल, अगली पीढ़ी के स्ट्रेन सेंसर और ट्यून करने योग्य ऑप्टिकल उपकरणों के निर्माण की मजबूत नींव रखता है। पीडीएमएस बायोकंपैटिबल होने के कारण, यह नैनोकॉम्पोज़िट सीधे मानव शरीर पर लगाए जाने वाले हेल्थ मॉनिटरिंग सेंसर के लिए अत्यंत उपयुक्त है। यह विधि वर्टिकल लेयर स्टैकिंग की अनुमति भी देती है, जिससे एक ही कॉम्पैक्ट प्लेटफॉर्म पर कई फंक्शनलिटी को जोड़ा जा सकता है।

यह स्केलेबल, कॉस्ट-इफेक्टिव और किसी जटिल रसायन का उपयोग नहीं करता, जिससे यह इंडस्ट्रियल एडॉप्शन के लिए उपयुक्त बनता है। दीर्घकालिक दृष्टि से, यह विधि टिकाऊ और उच्च प्रदर्शन वाले उपकरणों के विकास को तेज कर सकती है, जो स्मार्ट वियरेबल्स, हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी और ऊर्जा-कुशल सिस्टम में सहज रूप से फिट हो सकें और समाज के व्यापक रूप में योगदान दें।

जयपुर-रिपोर्टर,(नरेंद्र आर्य) |

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आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने विकसित की लचीली एवं टिकाऊ 2डी सामग्री निर्माण तकनीक अगली पीढ़ी की तकनीकों के लिए वरदान

ग्रैफीन, एक पतली 2डी सामग्री, अपने अद्वितीय गुणों के कारण अगले जनरेशन के फोटोडिटेक्टर, सेंसर, सुपरकैपेसिटर और फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के लिए आधार के रूप में मानी जाती है।

जयपुर,04 सितम्बर (यूटीएन)। वैश्विक स्तर पर लचीली और वियरेबल इलेक्ट्रॉनिक्स की दिशा में_बड़ी मांग है, जिसमें मोड़ने योग्य स्मार्टफोन से लेकर ऐसे मेडिकल सेंसर शामिल हैं जो वास्तविक समय में स्वास्थ्य की निगरानी कर सकते हैं। इन तकनीकों की सफलता काफी हद तक एडवांस्ड मैटेरियल्स पर निर्भर करती है। ग्रैफीन, एक पतली 2डी सामग्री, अपने अद्वितीय गुणों के कारण अगले जनरेशन के फोटोडिटेक्टर, सेंसर, सुपरकैपेसिटर और फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों के लिए आधार के रूप में मानी जाती है।

हालांकि, ग्रैफीन और अन्य 2डी मैटेरियल्स में कई कठिनाई हैं। पिछले चार वर्षों के अध्ययन में यह देखा गया कि डब्ल्यूएस₂ जैसी पतली 2डी सामग्रियों में ऑक्सीकरण और डिग्रेडेशन होता है, जिससे उपकरण की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। इसके अलावा, पारंपरिक ट्रांसफर टेक्नीकें अक्सर इन नाजुक मोनोलेयर परतों को नुकसान पहुँचाती हैं, जिससे परतों का फिसलना, कमजोर चिपकाव और ऑप्टिकल या इलेक्ट्रिकल गुणों की हानि होती है।

*डब्ल्यूएस₂–पीडीएमएस कॉम्पोज़िट निर्माण का विकास*
इन्हीं चुनौतियों को हल करने के लिए आईआईटी मंडी के शोधकर्ताओं ने डब्ल्यूएस₂-पीडीएमएस कॉम्पोज़िट निर्माण तकनीक विकसित की है। यह एक लंबी उम्र वाली और लचीली सामग्री है जो अगले जनरेशन के वियरेबल गैजेट्स, मोड़ने योग्य स्मार्टफोन और हेल्थ मॉनिटरिंग उपकरणों को शक्ति प्रदान कर सकती है। इस शोध का नेतृत्व प्रो. विश्वनाथ बालकृष्णन ने किया, साथ में यदु चंद्रन, डॉ. दीपा ठाकुर और अंजलि शर्मा भी शामिल हैं। इस शोध में वॉटर-मीडिएटेड, नॉन-डिस्ट्रक्टिव ट्रांसफर मेथड का उपयोग किया गया, जिससे केमिकल वेपर डिपॉज़िशन (सीवीडी) से तैयार डब्ल्यूएस₂ मोनोलेयर को पीडीएमएस की परतों के बीच सुरक्षित रूप से रखा जा सकता है।

प्रो. विश्वनाथ बालकृष्णन ने कहा, “यह विकास 2डी मैटेरियल्स से लचीली और वियरेबल इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। परमाणुविक स्तर पर पतली परतों को सुरक्षित रखते हुए उनके ऑप्टिकल और इलेक्ट्रिकल गुणों को बनाए रखना, अगली पीढ़ी के सेंसर, डिस्प्ले और हेल्थ मॉनिटरिंग उपकरणों के लिए स्केलेबल और दीर्घकालिक प्लेटफॉर्म तैयार करता है। शोध में दिखाया गया कि डब्ल्यूएस₂ मोनोलेयर को पीडीएमएस में एनकैप्सुलेट करने पर यह एक वर्ष से अधिक समय तक ऑक्सीकरण और डिग्रेडेशन के बिना स्थिर रही। इसके अलावा, डब्ल्यूएस₂-पीडीएमएस परतों का वर्टिकल स्टैकिंग ऑप्टिकल एब्ज़ॉर्प्शन को चार गुना तक बढ़ाता है, जबकि मोनोलेयर के मूल गुण सुरक्षित रहते हैं। यह कॉम्पोज़िट उत्कृष्ट लचीलापन और टिकाऊपन प्रदर्शित करता है, हज़ारों बार मोड़ने के बावजूद डेलैमिनेशन नहीं होता और स्ट्रेन ट्रांसफर प्रभावी रहता है।

कुल मिलाकर, यह शोध एटॉमिकली थिन मैटेरियल्स में आने वाली मुख्य चुनौती – वायु में उनकी अस्थिरता – को हल करता है। पीडीएमएस का उपयोग करके एक सरल कॉम्पोज़िट रणनीति के माध्यम से इन सामग्रियों को लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है, जबकि उनके अद्वितीय गुण भी  बने रहते हैं। क्योंकि ये फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, वियरेबल हेल्थ मॉनिटर, अगली पीढ़ी के सेंसर और ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का आधार हैं, यह तकनीक उन तकनीकों के विकास में सीधे योगदान देती है जो निकट भविष्य में हमारी दैनिक जिंदगी को प्रभावित करेंगी।

*राष्ट्रीय महत्व*
इस नवाचार का राष्ट्रीय महत्व भी है। यह भारत के नेशनल क्वांटम मिशन में सीधे योगदान देता है, जो क्वांटम लाइट सोर्सेज़, सिंगल-फोटॉन एमिटर और सुरक्षित कम्युनिकेशन तकनीकों के लिए आवश्यक टिकाऊ 2डी मैटेरियल्स को सक्षम बनाता है। यह वैश्विक स्तर पर बढ़ती मांग  फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, वियरेबल हेल्थकेयर सिस्टम और ऊर्जा-कुशल उपकरणों  के अनुरूप भी है। यह पहल भारत को क्वांटम कंप्यूटिंग, सुरक्षित कम्युनिकेशन और उन्नत क्वांटम मैटेरियल्स में वैश्विक नेता बनने की दिशा में अग्रसर कर सकती है।

*प्रैक्टिकल उपयोग*
यह शोध फ्लेक्सिबल इलेक्ट्रॉनिक्स, वियरेबल मेडिकल सेंसर, हल्के सोलर सेल, अगली पीढ़ी के स्ट्रेन सेंसर और ट्यून करने योग्य ऑप्टिकल उपकरणों के निर्माण की मजबूत नींव रखता है। पीडीएमएस बायोकंपैटिबल होने के कारण, यह नैनोकॉम्पोज़िट सीधे मानव शरीर पर लगाए जाने वाले हेल्थ मॉनिटरिंग सेंसर के लिए अत्यंत उपयुक्त है। यह विधि वर्टिकल लेयर स्टैकिंग की अनुमति भी देती है, जिससे एक ही कॉम्पैक्ट प्लेटफॉर्म पर कई फंक्शनलिटी को जोड़ा जा सकता है।

यह स्केलेबल, कॉस्ट-इफेक्टिव और किसी जटिल रसायन का उपयोग नहीं करता, जिससे यह इंडस्ट्रियल एडॉप्शन के लिए उपयुक्त बनता है। दीर्घकालिक दृष्टि से, यह विधि टिकाऊ और उच्च प्रदर्शन वाले उपकरणों के विकास को तेज कर सकती है, जो स्मार्ट वियरेबल्स, हेल्थकेयर टेक्नोलॉजी और ऊर्जा-कुशल सिस्टम में सहज रूप से फिट हो सकें और समाज के व्यापक रूप में योगदान दें।

जयपुर-रिपोर्टर,(नरेंद्र आर्य) |

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