Thursday, April 24, 2025

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बसपा मुखिया मायावती ने चला बड़ा दांव,ओबीसी को जोड़ेगी,भाईचारा कमेटी का ऐलान

पूर्व मुख्यमंत्री बहुजन समाज पार्टी मायावती ने 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के खोये जनाधार को फिर से हासिल करने के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रही हैं, इसी क्रम में मायावती दलितों के साथ पिछड़ों को जोड़कर नए समीकरण तैयार करने में लगी हैं।

लखनऊ, 26 मार्च 2025 (यूटीएन)। उत्तर प्रदेश की सियासत की मजबूत धुरी रही बहुजन समाज पार्टी हाशिये की नोक पर है। यूपी की सत्ता से बसपा 13 साल से दूर है। सियासी आधार भी चुनाव दर चुनाव खिसकता जा रहा है। यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री बहुजन समाज पार्टी मायावती ने 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के खोये जनाधार को फिर से हासिल करने के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रही हैं। इसी क्रम में मायावती दलितों के साथ पिछड़ों को जोड़कर नए समीकरण तैयार करने में लगी हैं। मंगलवार को राजधानी लखनऊ में मायावती ने अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी की विशेष बैठक बुलायी थी। मायावती ने भाईचारा कमेटी का ऐलान किया है।
यूपी में साल 2027 में विधानसभा चुनाव होगा। विधानसभा चुनाव होने लगभग दो साल का समय बचा है। ऐसे में अब मायावती ने बड़ा दांव चला है। मायावती अब दलितों के साथ ओबीसी को भी पार्टी से जोड़ेंगी। दरअसल  2027 में दलित-ब्राह्मण गठजोड़ कर बहुमत से सरकार बनाने वाली मायावती अब दलित और पिछड़ा वर्ग को पार्टी से जोड़कर नयी सोशल इंजीनियरिंग की पटकथा लिखने की कोशिश कर रही हैं। अगर उनका यह फार्मूला काम करता है तो इससे भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में सेंध तो लगेगी ही,कांग्रेस की परेशानी भी बढ़ जाएगी। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को पीडीए फॉर्मूले का फायदा हुआ था, जबकि भाजपा को बड़ा झटका लगा था। वहीं बसपा का तो सूपड़ा साफ हो गया था।
बसपा ने इससे पहले साल 2007 में भाईचारा कमिटियां बनाई थी। हालांकि 2012 में मायावती के सरकार नहीं बनी और भाईचारा कमेटी का कार्यकाल खत्म  हो गया। तब से भाईचारा कमेटी का दोबारा गठन नहीं किया गया था। हालांकि अब इसकी कवायद दोबारा शुरू कर दी गई है। दलित-पिछड़ा भाईचारा कमिटियों के बाद मुस्लिम और सवर्ण जातियों के साथ भाईचारा बढ़ाने के लिए भी नए सिरे से कमेटी बनाकर बैठकों का दौर शुरू होगा। बसपा ने एक बार फिर दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी को साथ लाने के लिए सूबे में भाईचारा कमिटियों का गठन किया है।
बसपा की ओर से जारी की गई प्रेस विज्ञाप्ति में कहा गया है कि बहुजन समाज के सभी अंगों को आपसी भाईचारा के आधार पर संगठित राजनीतिक शक्ति बनकर वोटों की ताकत से सत्ता की मास्टर चाबी प्राप्त करने के संकल्प को लेकर अभियान शुरू करने का फैसला किया गया है। इस अभियान के दौरान गांव-गांव में लोगों को खासकर कांग्रेस,भाजपा एवं सपा जैसी पार्टियों के दलित व अन्य पिछड़े वर्ग विरोधी चेहरे को लेकर लोगों को जागरूक किया जाएगा।
बसपा ने कहा है कि गांधीवादी कांग्रेस,आरएसएसवादी भाजपा एवं सपा व इनकी पीडीए में जिसे लोग परिवार डेवल्पमेन्ट अथारिटी भी कहते है,इसमें बहुजन समाज में से ख़ासकर अन्य पिछड़े वर्गों के करोड़ों बहुजनों का हित ना कभी सुरक्षित था और ना ही आगे सुरक्षित रह सकता है। मायावती के नेतृत्व में राजनीतिक सत्ता की मास्टर चाबी हासिल करना ही बहुजनों के सामने अपने अच्छे दिन लाने का एकमात्र बेहतर विकल्प है। इसके साथ ही मायावती ने आगामी 14 अप्रैल को डाॅ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती परम्परागत तौर पर पूरी मिशनरी भावना से मनाने का निर्देश दिया है।
सियासी पंडितों का मानना है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पीडीए फॉर्मूले के सहारे ही 2027 की वैतरणी पार करना चाहती है,लेकिन अब मायावती दलित-ओबीसी गठजोड़ की नई पटकथा तैयार कर रही हैं,जिसका सीधा असर भाजपा,सपा और कांग्रेस पर हो सकता है,हालांकि अभी 2027 के विधानसभा चुनाव में दो साल का समय है,लेकिन यूपी पंचायत चुनाव में मायावती के इस दांव की अग्नि परीक्षा हो जाएगी।
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बसपा मुखिया मायावती ने चला बड़ा दांव,ओबीसी को जोड़ेगी,भाईचारा कमेटी का ऐलान

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लखनऊ, 26 मार्च 2025 (यूटीएन)। उत्तर प्रदेश की सियासत की मजबूत धुरी रही बहुजन समाज पार्टी हाशिये की नोक पर है। यूपी की सत्ता से बसपा 13 साल से दूर है। सियासी आधार भी चुनाव दर चुनाव खिसकता जा रहा है। यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री बहुजन समाज पार्टी मायावती ने 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी के खोये जनाधार को फिर से हासिल करने के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रही हैं। इसी क्रम में मायावती दलितों के साथ पिछड़ों को जोड़कर नए समीकरण तैयार करने में लगी हैं। मंगलवार को राजधानी लखनऊ में मायावती ने अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी की विशेष बैठक बुलायी थी। मायावती ने भाईचारा कमेटी का ऐलान किया है।
यूपी में साल 2027 में विधानसभा चुनाव होगा। विधानसभा चुनाव होने लगभग दो साल का समय बचा है। ऐसे में अब मायावती ने बड़ा दांव चला है। मायावती अब दलितों के साथ ओबीसी को भी पार्टी से जोड़ेंगी। दरअसल  2027 में दलित-ब्राह्मण गठजोड़ कर बहुमत से सरकार बनाने वाली मायावती अब दलित और पिछड़ा वर्ग को पार्टी से जोड़कर नयी सोशल इंजीनियरिंग की पटकथा लिखने की कोशिश कर रही हैं। अगर उनका यह फार्मूला काम करता है तो इससे भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी के वोट बैंक में सेंध तो लगेगी ही,कांग्रेस की परेशानी भी बढ़ जाएगी। लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस को पीडीए फॉर्मूले का फायदा हुआ था, जबकि भाजपा को बड़ा झटका लगा था। वहीं बसपा का तो सूपड़ा साफ हो गया था।
बसपा ने इससे पहले साल 2007 में भाईचारा कमिटियां बनाई थी। हालांकि 2012 में मायावती के सरकार नहीं बनी और भाईचारा कमेटी का कार्यकाल खत्म  हो गया। तब से भाईचारा कमेटी का दोबारा गठन नहीं किया गया था। हालांकि अब इसकी कवायद दोबारा शुरू कर दी गई है। दलित-पिछड़ा भाईचारा कमिटियों के बाद मुस्लिम और सवर्ण जातियों के साथ भाईचारा बढ़ाने के लिए भी नए सिरे से कमेटी बनाकर बैठकों का दौर शुरू होगा। बसपा ने एक बार फिर दलित और अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी को साथ लाने के लिए सूबे में भाईचारा कमिटियों का गठन किया है।
बसपा की ओर से जारी की गई प्रेस विज्ञाप्ति में कहा गया है कि बहुजन समाज के सभी अंगों को आपसी भाईचारा के आधार पर संगठित राजनीतिक शक्ति बनकर वोटों की ताकत से सत्ता की मास्टर चाबी प्राप्त करने के संकल्प को लेकर अभियान शुरू करने का फैसला किया गया है। इस अभियान के दौरान गांव-गांव में लोगों को खासकर कांग्रेस,भाजपा एवं सपा जैसी पार्टियों के दलित व अन्य पिछड़े वर्ग विरोधी चेहरे को लेकर लोगों को जागरूक किया जाएगा।
बसपा ने कहा है कि गांधीवादी कांग्रेस,आरएसएसवादी भाजपा एवं सपा व इनकी पीडीए में जिसे लोग परिवार डेवल्पमेन्ट अथारिटी भी कहते है,इसमें बहुजन समाज में से ख़ासकर अन्य पिछड़े वर्गों के करोड़ों बहुजनों का हित ना कभी सुरक्षित था और ना ही आगे सुरक्षित रह सकता है। मायावती के नेतृत्व में राजनीतिक सत्ता की मास्टर चाबी हासिल करना ही बहुजनों के सामने अपने अच्छे दिन लाने का एकमात्र बेहतर विकल्प है। इसके साथ ही मायावती ने आगामी 14 अप्रैल को डाॅ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती परम्परागत तौर पर पूरी मिशनरी भावना से मनाने का निर्देश दिया है।
सियासी पंडितों का मानना है कि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस पीडीए फॉर्मूले के सहारे ही 2027 की वैतरणी पार करना चाहती है,लेकिन अब मायावती दलित-ओबीसी गठजोड़ की नई पटकथा तैयार कर रही हैं,जिसका सीधा असर भाजपा,सपा और कांग्रेस पर हो सकता है,हालांकि अभी 2027 के विधानसभा चुनाव में दो साल का समय है,लेकिन यूपी पंचायत चुनाव में मायावती के इस दांव की अग्नि परीक्षा हो जाएगी।
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