बागपत,08 अप्रैल 2025 (यूटीएन)। एक पर्यावरणविद एवं जनकल्याण विशेषज्ञ होने के साथ ही गायों की मौतों से व्यथित डॉ देवेंद्र खोखर ने जिलाधिकारी, मंडलायुक्त व मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में बताया कि, पिछले कुछ दिनों में बागपत जनपद की यमुना किनारे की कई गौशालाओं की स्थिति देख सुन और जान कर मेरे हृदय को पीड़ा हुई है। उपेक्षा, भूख, प्यास और अकाल मृत्यु का सामना करना गौमाता को करना पड़ रहा है। यह दृश्य किसी नरसंहार से कम नहीं है।
उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि, जहां गौमाता पीड़ित हैं और आवाज़ भी नहीं उठा सकतीं, सिर्फ़ चुपचाप सहती व मरती जाती हैं। अगर भूख प्यास से ना मरें तो कटती हैं, ये कैसी विडंबना हैं, कृष्ण के देश में, और आखिर ये कब तक होता रहेगा। भूखी गौमाँता की अंतिम साँसें कुरड़ी से लेकर छपरौली, बदरखा एवं काकोर गांव तक हालत खराब हैं, बदरखा की गौशाला में पड़ी हुई गाय को जब देखा, तो उसकी आँखों में बस एक ही विनती रही होगी कि, मुझे एक घूंट पानी दे दो लेकिन वहां न कोई देखभाल करने वाला था, न कोई चिकित्सा सुविधा। वह बिना चारे के, बिना पानी के कई दिनों तक तड़पती रही होंगी और आख़िरकार वही ज़मीन उसकी समाधि बन गई।
*वास्तविक समस्या: ज़मीन तो उसकी है, पर अधिकार उसे नहीं है*
कभी कुरड़ी से बदरखा काकोर तक लगभग 1400 से 1500 बीघा सरकारी चारागाह भूमि गायों के लिए आरक्षित थी। आज वह भूमि तथाकथित दबंगों और नेताओं की निजी कृषि भूमि में बदल चुकी है। इस भूमि का उपयोग यदि आज भी गोचर के रूप में हो, तो न केवल गायें भूख से नहीं मरेंगी, बल्कि एक स्वावलंबी गौशाला मॉडल की स्थापना की जा सकती है। इस संबंध में अपने पत्र में गौशालाएं आत्मनिर्भर बनाने हेतु प्रस्तावित वित्तीय मॉडल भी उनके द्वारा पेश किए गए। अब देखना है कि, शासन या प्रशासन स्तर पर पत्र को कितना तवज्जो मिलता है।
स्टेट ब्यूरो,( डॉ योगेश कौशिक ) |