Friday, July 18, 2025

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कोरोनिल, शरबत जिहाद से लेकर च्यवनप्राश तक फटकार लगने के बाद भी रामदेव हैं कि मानते नहीं

पतंजलि आयुर्वेद एक बार फिर विवादों में है, इस बार भी मामला अदालत से जुड़ा है, दरअसल, पतंजलि च्यवनप्राश को लेकर बाबा रामदेव के एक विज्ञापन और उसमें किए गए दावों का मामला कोर्ट पहुंच गया है।

नई दिल्ली, 05 जुलाई 2025 (यूटीएन)। पतंजलि आयुर्वेद एक बार फिर विवादों में है। इस बार भी मामला अदालत से जुड़ा है। दरअसल, पतंजलि च्यवनप्राश को लेकर बाबा रामदेव के एक विज्ञापन और उसमें किए गए दावों का मामला कोर्ट पहुंच गया है। इन दावों के खिलाफ च्यवनप्राश बनाने वाली एक और कंपनी- डाबर ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि पतंजलि च्यवनप्राश के प्रचार के लिए किए गए दावों के जरिए उसके च्यवनप्राश को गलत तरह से गुणवत्ता में कमतर बताने की कोशिश की गई है।
इस मामले में फिर से पतंजलि समूह की किरकिरी हुई है। पतंजलि च्यवनप्राश के विज्ञापनों पर कोर्ट ने रोक भी लगा दी है। याचिका में आरोप लगाया गया था कि पतंजलि ‘स्पेशल च्यवनप्राश’ विशेष रूप से डाबर च्यवनप्राश और सामान्य रूप से च्यवनप्राश का अपमान कर रहा है। पतंजलि के विज्ञापन में दावा किया गया है कि “किसी अन्य निर्माता को च्यवनप्राश तैयार करने का ज्ञान नहीं है”- जो सामान्य अपमान है। इस मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने 3 जुलाई (गुरुवार) को अहम आदेश जारी किया।
कोर्ट ने पतंजलि को दूसरे ब्रांड्स के च्यवनप्राश का अपमान करने वाले विज्ञापनों को चलाने से रोक दिया। न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करते हुए सख्त लहजे में कुछ टिप्पणियां भी कीं। उन्होंने कहा कि वाणिज्यिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी भी विनियमित औषधि की झूठी क्षमताओं या श्रेष्ठता पर विश्वास करने के लिए गुमराह नहीं किया जाना चाहिए। यह पहली बार नहीं है, जब पतंजलि आयुर्वेद और बाबा रामदेव इस तरह के विवाद में घिरे हैं।
इससे पहले भी उन्हें कई कानूनी और नियामक से जुड़े केसों में कोर्ट की फटकार झेलनी पड़ी है। जिन मामलों में पतंजलि आयुर्वेद और योगगुरु के नाम से लोकप्रिय स्वामी रामदेव उलझे हैं, उनके जरिए कई बार पतंजलि के उत्पादों की सुरक्षा मानक, विज्ञापन से जुड़ी नैतिकताओं और स्वास्थ्य दावों को लेकर सवाल भी खड़े हुए हैं।  ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर डाबर च्यवनप्राश से जुड़े हालिया विवाद से पहले पतंजलि आयुर्वेद और बाबा रामदेव कब-कब विवादों में घिरे हैं।
*1. पतंजलि के लाल मिर्च पाउडर की गुणवत्ता को लेकर उठे सवाल*
रामदेव की कंपनी से सबसे ताजा विवाद इसी साल की शुरुआत में जुड़ा था। भारतीय खाद्य सुरक्षा व मानक प्राधिकरण की ओर से पतंजलि फूड्स को खाद्य सुरक्षा मानदंडों के अनुरूप न होने के कारण पैक किए गए लाल मिर्च पाउडर के एक विशेष बैच को वापस लेने का आदेश दिया था।
इसके बाद पतंजलि फूड्स लिमिटेड ने बाजार से 4 टन लाल मिर्च पाउडर वापस मंगाया। तब पतंजलि को 200 ग्राम के पैक से जुड़े छोटे बैच को वापस लेना पड़ा था। एफएसएसएआई द्वारा उत्पाद के नमूनों की जांच करने पर पाया गया था कि उनमें कीटनाशक अवशेषों की अधिकतम सीमा स्वीकार्य नहीं है। एफएसएसएआई ने लाल मिर्च पाउडर सहित विभिन्न खाद्य पदार्थों के लिए कीटनाशक अवशेषों की अधिकतम अवशेष सीमा (एमआरएल) निर्धारित की है।
*2. भ्रामक स्वास्थ्य दावे और केरल में कानूनी पचड़े*
बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद की विज्ञापनों से जुड़ी कंपनी दिव्य फार्मेसी भी भ्रामक स्वास्थ्य दावों को लेकर जांच के घेरे में हैं। इसी साल फरवरी में केरल के औषधि नियंत्रक विभाग के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर बताया था कि पतंजलि आयुर्वेद ने औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 का उल्लंघन किया है।
उनकी कंपनी की तरफ से कई उत्पादों में औषधियों के चमत्कारिक गुण होने का दावा किया गया था। एफिडेविट में बताया गया था कि रामदेव और उनकी कंपनी के खिलाफ केरल के अलग-अलग जिलों में 31 अभियोजन शुरू किए जा चुके हैं। इससे पहले 1 फरवरी को पलक्कड़ में फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट कोर्ट ने बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ इनमें से एक मामले में पेश न होने के लिए जमानती वॉरन्ट भी जारी किया था। बताया जाता है कि इससे जुड़े केस अप्रैल 2024 से ही दायर होने शुरू हो गए थे।
*3. शरबत जिहाद वाले बयान पर कोर्ट ने लगाई फटकार*
बाबा रामदेव ने 3 अप्रैल 2025 को पतंजलि के शरबत की लॉन्चिंग की थी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा था कि एक कंपनी शरबत बनाती है। उससे जो पैसा मिलता है, उससे मदरसे और मस्जिदें बनवाती है। बाबा रामदेव ने कहा था कि जैसे लव जिहाद और वोट जिहाद चल रहा है, वैसे ही शरबत जिहाद भी चल रहा है। रामदेव के इस बयान को सीधे तौर पर रूह अफजा शरबत बनाने वाली कंपनी हमदर्द से जोड़कर देखा जाने लगा। इसके बाद विवाद बढ़ गया था। रामदेव ने दो वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए थे।
इसबीच हमदर्द ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे धर्म के नाम पर हमला करार दिया था। कंपनी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि रामदेव का नाम मशहूर है, बिना किसी दूसरे उत्पाद की बुराई के वे पतंजलि का सामान बेच सकते हैं। यह बयान बुराई करने से आगे निकल गया है, यह धार्मिक बंटवारा करता है। रामदेव का कमेंट नफरती बयानबाजी (हेट स्पीच) जैसा ही है। रोहतगी ने इस दौरान रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ भ्रामक विज्ञापनों के केस की याद दिलाई और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को लोगों से माफी मांगने का आदेश दिया था।
रोहतगी बोले कि विज्ञापनों के जरिए लोगों में भ्रम फैलाया गया और एलोपैथिक दवाइयों के खिलाफ बयान भी दिए। इस मामले में बाद में हाईकोर्ट ने रामदेव को फटकार लगाई थी और कहा था कि योग गुरु बाबा रामदेव किसी के नियंत्रण में नहीं हैं और अपनी ही दुनिया में रहते हैं। रामदेव को शरबत जिहाद बयान पर प्रथम दृष्टया कोर्ट के आदेश की अवमानना का दोषी पाया। इसके बाद रामदेव की तरफ से कोर्ट में हलफनामा देकर कहा गया कि वे शरबत जिहाद जैसी कोई अपमानजनक टिप्पणी या सोशल मीडिया पोस्ट नहीं करेंगे।
*4. कोरोना संक्रमण के उपचार वाली दवा बनाने का किया था दावा*
2020 में भारत में जब कोरोनावायरस महामारी अपने चरम पर थी, तब रामदेव की तरफ से दावा किया गया था कि कोरोनावायरस को ठीक करने वाली दवा कोरोनिल को पतंजलि आयुर्वेद की तरफ से बना लिया गया। तब दावा किया गया था कि इस दवा का सेवन करने पर रोगी पांच से 14 दिनों के भीतर ठीक हो जाता है।
उन्होंने दावा किया कि कोरोनिल पूरी तरह से वैज्ञानिक दावों पर खरी उतरती है। इस दौरान उनकी तरफ से कोविड-19 महामारी के दौरान एलोपैथिक फार्मास्यूटिकल्स पर कुछ विवादास्पद टिप्पणियां की गई थीं, जिन्हें लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने आपराधिक मामले दर्ज कराए थे। आईएमए ने पतंजलि आयुर्वेद की तरफ से कोरोना के इलाज के लिए ऐसे दावों को झूठा करार दिया था।
आईएमए ने अगस्त 2022 में पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ एक याचिका देते हुए आरोप लगाया था कि पतंजलि ने कोविड-19 वैक्सीनेशन के खिलाफ एक बदनाम करने वाला कैंपेन चलाया और एलोपैथी के विज्ञान पर सवाल उठाए।
2023 के अंतिम महीनों में शीर्ष अदालत में भी सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब पतंजलि को इस तरह के भ्रामक दावे न करने की चेतावनी दी थी। बाद में पतंजलि और रामदेव को भ्रामक विज्ञापन चलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी थी और अखबारों में ‘बिना शर्त के माफी’ लिखा करीब तीन-चौथाई पन्ने का इश्तिहार भी देना पड़ा था।
*5. एस्थमा-डायबिटीज के इलाज पर गलत प्रचार को लेकर भी घिरे*
पतंजलि इन सभी विवादों के बीच कई बार विज्ञापनों के जरिए दावा कर चुकी है कि पतंजलि के उत्पाद कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को ठीक कर सकते हैं। इनमें अस्थमा से लेकर उच्च रक्तचाप और डायबिटीज से लेकर मोटापे तक को ‘पूरी तरह से ठीक’ करने का दावा किया गया था। हालांकि, तब भी आईएमए की शिकायत पर कोर्ट ने मामलों का संज्ञान लिया था। पतंजलि पर इसी तरह कई नियमों और कानूनों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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कोरोनिल, शरबत जिहाद से लेकर च्यवनप्राश तक फटकार लगने के बाद भी रामदेव हैं कि मानते नहीं

पतंजलि आयुर्वेद एक बार फिर विवादों में है, इस बार भी मामला अदालत से जुड़ा है, दरअसल, पतंजलि च्यवनप्राश को लेकर बाबा रामदेव के एक विज्ञापन और उसमें किए गए दावों का मामला कोर्ट पहुंच गया है।

नई दिल्ली, 05 जुलाई 2025 (यूटीएन)। पतंजलि आयुर्वेद एक बार फिर विवादों में है। इस बार भी मामला अदालत से जुड़ा है। दरअसल, पतंजलि च्यवनप्राश को लेकर बाबा रामदेव के एक विज्ञापन और उसमें किए गए दावों का मामला कोर्ट पहुंच गया है। इन दावों के खिलाफ च्यवनप्राश बनाने वाली एक और कंपनी- डाबर ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि पतंजलि च्यवनप्राश के प्रचार के लिए किए गए दावों के जरिए उसके च्यवनप्राश को गलत तरह से गुणवत्ता में कमतर बताने की कोशिश की गई है।
इस मामले में फिर से पतंजलि समूह की किरकिरी हुई है। पतंजलि च्यवनप्राश के विज्ञापनों पर कोर्ट ने रोक भी लगा दी है। याचिका में आरोप लगाया गया था कि पतंजलि ‘स्पेशल च्यवनप्राश’ विशेष रूप से डाबर च्यवनप्राश और सामान्य रूप से च्यवनप्राश का अपमान कर रहा है। पतंजलि के विज्ञापन में दावा किया गया है कि “किसी अन्य निर्माता को च्यवनप्राश तैयार करने का ज्ञान नहीं है”- जो सामान्य अपमान है। इस मामले को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने 3 जुलाई (गुरुवार) को अहम आदेश जारी किया।
कोर्ट ने पतंजलि को दूसरे ब्रांड्स के च्यवनप्राश का अपमान करने वाले विज्ञापनों को चलाने से रोक दिया। न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने अंतरिम निषेधाज्ञा जारी करते हुए सख्त लहजे में कुछ टिप्पणियां भी कीं। उन्होंने कहा कि वाणिज्यिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी भी विनियमित औषधि की झूठी क्षमताओं या श्रेष्ठता पर विश्वास करने के लिए गुमराह नहीं किया जाना चाहिए। यह पहली बार नहीं है, जब पतंजलि आयुर्वेद और बाबा रामदेव इस तरह के विवाद में घिरे हैं।
इससे पहले भी उन्हें कई कानूनी और नियामक से जुड़े केसों में कोर्ट की फटकार झेलनी पड़ी है। जिन मामलों में पतंजलि आयुर्वेद और योगगुरु के नाम से लोकप्रिय स्वामी रामदेव उलझे हैं, उनके जरिए कई बार पतंजलि के उत्पादों की सुरक्षा मानक, विज्ञापन से जुड़ी नैतिकताओं और स्वास्थ्य दावों को लेकर सवाल भी खड़े हुए हैं।  ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आखिर डाबर च्यवनप्राश से जुड़े हालिया विवाद से पहले पतंजलि आयुर्वेद और बाबा रामदेव कब-कब विवादों में घिरे हैं।
*1. पतंजलि के लाल मिर्च पाउडर की गुणवत्ता को लेकर उठे सवाल*
रामदेव की कंपनी से सबसे ताजा विवाद इसी साल की शुरुआत में जुड़ा था। भारतीय खाद्य सुरक्षा व मानक प्राधिकरण की ओर से पतंजलि फूड्स को खाद्य सुरक्षा मानदंडों के अनुरूप न होने के कारण पैक किए गए लाल मिर्च पाउडर के एक विशेष बैच को वापस लेने का आदेश दिया था।
इसके बाद पतंजलि फूड्स लिमिटेड ने बाजार से 4 टन लाल मिर्च पाउडर वापस मंगाया। तब पतंजलि को 200 ग्राम के पैक से जुड़े छोटे बैच को वापस लेना पड़ा था। एफएसएसएआई द्वारा उत्पाद के नमूनों की जांच करने पर पाया गया था कि उनमें कीटनाशक अवशेषों की अधिकतम सीमा स्वीकार्य नहीं है। एफएसएसएआई ने लाल मिर्च पाउडर सहित विभिन्न खाद्य पदार्थों के लिए कीटनाशक अवशेषों की अधिकतम अवशेष सीमा (एमआरएल) निर्धारित की है।
*2. भ्रामक स्वास्थ्य दावे और केरल में कानूनी पचड़े*
बाबा रामदेव, आचार्य बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद की विज्ञापनों से जुड़ी कंपनी दिव्य फार्मेसी भी भ्रामक स्वास्थ्य दावों को लेकर जांच के घेरे में हैं। इसी साल फरवरी में केरल के औषधि नियंत्रक विभाग के अधिकारियों ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर कर बताया था कि पतंजलि आयुर्वेद ने औषधि एवं चमत्कारिक उपचार (आक्षेपणीय विज्ञापन) अधिनियम, 1954 का उल्लंघन किया है।
उनकी कंपनी की तरफ से कई उत्पादों में औषधियों के चमत्कारिक गुण होने का दावा किया गया था। एफिडेविट में बताया गया था कि रामदेव और उनकी कंपनी के खिलाफ केरल के अलग-अलग जिलों में 31 अभियोजन शुरू किए जा चुके हैं। इससे पहले 1 फरवरी को पलक्कड़ में फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट कोर्ट ने बाबा रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ इनमें से एक मामले में पेश न होने के लिए जमानती वॉरन्ट भी जारी किया था। बताया जाता है कि इससे जुड़े केस अप्रैल 2024 से ही दायर होने शुरू हो गए थे।
*3. शरबत जिहाद वाले बयान पर कोर्ट ने लगाई फटकार*
बाबा रामदेव ने 3 अप्रैल 2025 को पतंजलि के शरबत की लॉन्चिंग की थी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर कहा था कि एक कंपनी शरबत बनाती है। उससे जो पैसा मिलता है, उससे मदरसे और मस्जिदें बनवाती है। बाबा रामदेव ने कहा था कि जैसे लव जिहाद और वोट जिहाद चल रहा है, वैसे ही शरबत जिहाद भी चल रहा है। रामदेव के इस बयान को सीधे तौर पर रूह अफजा शरबत बनाने वाली कंपनी हमदर्द से जोड़कर देखा जाने लगा। इसके बाद विवाद बढ़ गया था। रामदेव ने दो वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट किए थे।
इसबीच हमदर्द ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर इसे धर्म के नाम पर हमला करार दिया था। कंपनी की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि रामदेव का नाम मशहूर है, बिना किसी दूसरे उत्पाद की बुराई के वे पतंजलि का सामान बेच सकते हैं। यह बयान बुराई करने से आगे निकल गया है, यह धार्मिक बंटवारा करता है। रामदेव का कमेंट नफरती बयानबाजी (हेट स्पीच) जैसा ही है। रोहतगी ने इस दौरान रामदेव और पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ भ्रामक विज्ञापनों के केस की याद दिलाई और कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और बालकृष्ण को लोगों से माफी मांगने का आदेश दिया था।
रोहतगी बोले कि विज्ञापनों के जरिए लोगों में भ्रम फैलाया गया और एलोपैथिक दवाइयों के खिलाफ बयान भी दिए। इस मामले में बाद में हाईकोर्ट ने रामदेव को फटकार लगाई थी और कहा था कि योग गुरु बाबा रामदेव किसी के नियंत्रण में नहीं हैं और अपनी ही दुनिया में रहते हैं। रामदेव को शरबत जिहाद बयान पर प्रथम दृष्टया कोर्ट के आदेश की अवमानना का दोषी पाया। इसके बाद रामदेव की तरफ से कोर्ट में हलफनामा देकर कहा गया कि वे शरबत जिहाद जैसी कोई अपमानजनक टिप्पणी या सोशल मीडिया पोस्ट नहीं करेंगे।
*4. कोरोना संक्रमण के उपचार वाली दवा बनाने का किया था दावा*
2020 में भारत में जब कोरोनावायरस महामारी अपने चरम पर थी, तब रामदेव की तरफ से दावा किया गया था कि कोरोनावायरस को ठीक करने वाली दवा कोरोनिल को पतंजलि आयुर्वेद की तरफ से बना लिया गया। तब दावा किया गया था कि इस दवा का सेवन करने पर रोगी पांच से 14 दिनों के भीतर ठीक हो जाता है।
उन्होंने दावा किया कि कोरोनिल पूरी तरह से वैज्ञानिक दावों पर खरी उतरती है। इस दौरान उनकी तरफ से कोविड-19 महामारी के दौरान एलोपैथिक फार्मास्यूटिकल्स पर कुछ विवादास्पद टिप्पणियां की गई थीं, जिन्हें लेकर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने आपराधिक मामले दर्ज कराए थे। आईएमए ने पतंजलि आयुर्वेद की तरफ से कोरोना के इलाज के लिए ऐसे दावों को झूठा करार दिया था।
आईएमए ने अगस्त 2022 में पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ एक याचिका देते हुए आरोप लगाया था कि पतंजलि ने कोविड-19 वैक्सीनेशन के खिलाफ एक बदनाम करने वाला कैंपेन चलाया और एलोपैथी के विज्ञान पर सवाल उठाए।
2023 के अंतिम महीनों में शीर्ष अदालत में भी सुनवाई हुई थी। सुप्रीम कोर्ट ने तब पतंजलि को इस तरह के भ्रामक दावे न करने की चेतावनी दी थी। बाद में पतंजलि और रामदेव को भ्रामक विज्ञापन चलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में माफी मांगनी पड़ी थी और अखबारों में ‘बिना शर्त के माफी’ लिखा करीब तीन-चौथाई पन्ने का इश्तिहार भी देना पड़ा था।
*5. एस्थमा-डायबिटीज के इलाज पर गलत प्रचार को लेकर भी घिरे*
पतंजलि इन सभी विवादों के बीच कई बार विज्ञापनों के जरिए दावा कर चुकी है कि पतंजलि के उत्पाद कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को ठीक कर सकते हैं। इनमें अस्थमा से लेकर उच्च रक्तचाप और डायबिटीज से लेकर मोटापे तक को ‘पूरी तरह से ठीक’ करने का दावा किया गया था। हालांकि, तब भी आईएमए की शिकायत पर कोर्ट ने मामलों का संज्ञान लिया था। पतंजलि पर इसी तरह कई नियमों और कानूनों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं।
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