Friday, July 18, 2025

National

spot_img

ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद रिसर्च पर जोर देंगी सेनाएं

इस पहल के तहत देश की सेनाओं और अकादमिक संस्थानों के बीच सहयोग को और बढ़ाया जाएगा ताकि रक्षा क्षेत्र की जरूरतों के अनुरूप स्वदेशी और एडवांस टेक्नोलॉजी डेवलप की जा सकें।

नई दिल्ली, 05 जुलाई 2025 (यूटीएन)। ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अब भारतीय सेनाएं रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर जोर दे रही हैं। इसके लिए तीनों सेनाएं यानी ट्राई सर्विसेज देश के टॉप शैक्षणिक संस्थानों (जैसे आईआईटी, एनआईटी, विश्वविद्यालय) के साथ मिलकर एक ऐसा प्लेटफार्म बनाने में जुटी हैं, जहां सेनाओं की जरूरत के मुताबिक नई तकनीकों का विकास हो सके।
इससे न केवल सेना को जरूरी तकनीक मिलेंगी, बल्कि देश में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी। इसी उद्देश्य को आगे बढ़ाते हुए भारतीय सेना ने नई दिल्ली स्थित मानेकशॉ सेंटर में ‘ट्राई-सर्विसेज एकेडमिया टेक्नोलॉजी सिंपोजियम के लिए कर्टेन रेजर कार्यक्रम का आयोजन किया। यह आयोजन भारतीय नौसेना, भारतीय वायुसेना और इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के साथ मिलकर किया गया।
इस पहल के तहत देश की सेनाओं और अकादमिक संस्थानों के बीच सहयोग को और बढ़ाया जाएगा ताकि रक्षा क्षेत्र की जरूरतों के अनुरूप स्वदेशी और एडवांस टेक्नोलॉजी डेवलप की जा सकें। इस आयोजन के जरिए 22–23 सितंबर 2025 को होने वाली मेन सिंपोजियम की तैयारियों की आधिकारिक शुरुआत हो गई है। इस साल की थीम है, “विवेक व अनुसंधान से विजय”, यानी समझदारी और शोध के जरिए जीत।
*देशभर के कॉलेज और संस्थानों को मिलेगा मौका*
इस आयोजन में एक विशेष वेब पोर्टल की शुरुआत की गई, जिसके जरिए देशभर के अकादमिक संस्थान अपने प्रतिनिधियों को रजिस्टर कर सकते हैं। यह पोर्टल 10 अगस्त 2025 तक खुला रहेगा। यह पोर्टल संस्थानों को दो तरह से भाग लेने की सुविधा देता है- या तो वे प्रतिभागी बनकर सेमिनारों और पैनल डिस्कशन में हिस्सा ले सकते हैं। या फिर प्रोजेक्ट और इनोवेशन के तौर पर टेक्निकल प्रपोजल भेज सकते हैं।
आर्मी डिजाइन ब्यूरो के एडीजी मेजर जनरल सीएस मान ने कहा, यह पोर्टल अकादमिक संस्थानों को अपने आइडियाज और प्रोजेक्ट सशस्त्र बलों तक पहुंचाने का मौका देगा। उन्होंने आगे कहा, “हमारा उद्देश्य एक ऐसा तंत्र बनाना है, जिसमें सशस्त्र बलों की जरूरतें और अकादमिक संस्थानों की क्षमताओं को समझा जाए।” उन्होंने कहा कि यह आयोजन पहली बार हो रहा है, जिसमें अकादमिक संस्थानों को अपनी टेक्नोलॉजी और आइडियाज को पेश करने का मौका मिलेगा।
*चुने गए प्रोजेक्ट्स को मिलेगा बड़ा मंच*
मेजर जनरल मान ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत का मतलब केवल हथियार बनाना नहीं है, बल्कि अपनी डिजाइन और अनुसंधान क्षमता को भी बढ़ाना है। इस सिंपोजियम के लिए टॉप 200 अकादमिक संस्थानों और 50 रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन को को निमंत्रण भेजा गया है। अन्य संस्थान भी इसमें हिस्सा ले सकते हैं।
उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा अकादमिक संस्थान इस आयोजन में शामिल हों। इस सिंपोजियम के लिए जो भी संस्थान अपने तकनीकी प्रस्ताव या आइडिया भेजेंगे, उनकी समीक्षा सेनाओं के विषय विशेषज्ञों द्वारा की जाएगी। जिन प्रस्तावों को चुना जाएगा, उन्हें सिंपोजियम के दौरान प्रदर्शनी में शामिल किया जाएगा।
और रक्षा अधिकारियों के साथ वन-ऑन-वन संवाद का मौका मिलेगा। इसके अलावा जिन आइडियाज को सेनाओं के लिए उपयोगी माना जाएगा, उन्हें सिंपोजियम के एग्जीबिशन सेक्शन में दिखाया जाएगा और सेनाओं के अधिकारियों के साथ सीधी बातचीत का मौका मिलेगा। साथ ही, उन्हें रिकॉग्नाइजेशन और अवार्ड भी दिए जाएंगे, जिससे संस्थानों को आगे रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए प्रेरणा मिलेगी।
*अमेरिका का दिया उदाहरण*
आईआईटी गुवाहाटी के डायरेक्टर प्रोफेसर देवेंद्र जलिहाल ने अमेरिका का उदाहरण दिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्वविद्यालयों और रक्षा क्षेत्र ने मिलकर काम किया। वहां एमआईटी, बर्कले और न्यू मैक्सिको जैसे विश्वविद्यालयों में रक्षा प्रयोगशालाएं (लैब्स) हैं, जो रडार, ऊर्जा और पानी के नीचे की तकनीकों पर काम करती हैं। भारत को भी ऐसा मॉडल अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भविष्य के युद्ध टेक्नोलॉजी पर निर्भर होंगे।
जो देश तकनीक में माहिर होगा, वही दुनिया में नेतृत्व करेगा। उन्होंने हाल के घटनाक्रमों, जैसे ऑपरेशन सिंदूर, का हवाला देते हुए बताया कि अब युद्ध सीमाओं को पार करने से ज्यादा तकनीकी स्वरूप में लड़े जाते हैं। जो तकनीक में माहिर होगा, वही भविष्य में आगे रहेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत में टेक्नोलॉजी डेवलप करने वाले (अकादमिक संस्थान) और तकनीक की जरूरत वाले (सशस्त्र बल) लोग एक-दूसरे से संवाद नहीं करते। यह सिंपोजियम दोनों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर इस कमी को दूर करेगा।
भारत सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग इस आयोजन में सहयोग कर रहा है। विभाग ने राष्ट्रीय मिशन के तहत 25 टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन सेंटर बनाए हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सिक्योरिटी और ड्रोन जैसी तकनीकों पर काम कर रहे हैं। गौरतलब है कि इस संगोष्ठी की घोषणा ऑपरेशन सिंदूर के लगभग दो महीने बाद हो रही है, जिसमें भारतीय सेनाओं ने दुश्मन को जवाब देने के लिए बड़े पैमाने पर स्वदेशी तकनीक और प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया था।
इस ऑपरेशन के दौरान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, भारतीय उपग्रह ‘नविक’, ड्रोन और रडार सिस्टम जैसे कई स्वदेशी टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म निर्णायक साबित हुए थे। ऑपरेशन सिंदूर के अनुभवों के बाद सेनाओं को यह महसूस हुआ कि भारत के पास पहले से ही कई हाई लेवल टेक्नोलॉजी मौजूद हैं, जिन्हें बस सही दिशा और विस्तार देने की जरूरत है। इसी सोच के साथ ट्राई-सर्विसेज सिंपोजियम जैसे कार्यक्रमों की योजना बनाई जा रही है, ताकि एकेडमिक रिसर्च को डिफेंस सेक्टर से जोड़ा जा सके।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

International

spot_img

ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद रिसर्च पर जोर देंगी सेनाएं

इस पहल के तहत देश की सेनाओं और अकादमिक संस्थानों के बीच सहयोग को और बढ़ाया जाएगा ताकि रक्षा क्षेत्र की जरूरतों के अनुरूप स्वदेशी और एडवांस टेक्नोलॉजी डेवलप की जा सकें।

नई दिल्ली, 05 जुलाई 2025 (यूटीएन)। ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद अब भारतीय सेनाएं रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर जोर दे रही हैं। इसके लिए तीनों सेनाएं यानी ट्राई सर्विसेज देश के टॉप शैक्षणिक संस्थानों (जैसे आईआईटी, एनआईटी, विश्वविद्यालय) के साथ मिलकर एक ऐसा प्लेटफार्म बनाने में जुटी हैं, जहां सेनाओं की जरूरत के मुताबिक नई तकनीकों का विकास हो सके।
इससे न केवल सेना को जरूरी तकनीक मिलेंगी, बल्कि देश में रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता भी बढ़ेगी। इसी उद्देश्य को आगे बढ़ाते हुए भारतीय सेना ने नई दिल्ली स्थित मानेकशॉ सेंटर में ‘ट्राई-सर्विसेज एकेडमिया टेक्नोलॉजी सिंपोजियम के लिए कर्टेन रेजर कार्यक्रम का आयोजन किया। यह आयोजन भारतीय नौसेना, भारतीय वायुसेना और इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के साथ मिलकर किया गया।
इस पहल के तहत देश की सेनाओं और अकादमिक संस्थानों के बीच सहयोग को और बढ़ाया जाएगा ताकि रक्षा क्षेत्र की जरूरतों के अनुरूप स्वदेशी और एडवांस टेक्नोलॉजी डेवलप की जा सकें। इस आयोजन के जरिए 22–23 सितंबर 2025 को होने वाली मेन सिंपोजियम की तैयारियों की आधिकारिक शुरुआत हो गई है। इस साल की थीम है, “विवेक व अनुसंधान से विजय”, यानी समझदारी और शोध के जरिए जीत।
*देशभर के कॉलेज और संस्थानों को मिलेगा मौका*
इस आयोजन में एक विशेष वेब पोर्टल की शुरुआत की गई, जिसके जरिए देशभर के अकादमिक संस्थान अपने प्रतिनिधियों को रजिस्टर कर सकते हैं। यह पोर्टल 10 अगस्त 2025 तक खुला रहेगा। यह पोर्टल संस्थानों को दो तरह से भाग लेने की सुविधा देता है- या तो वे प्रतिभागी बनकर सेमिनारों और पैनल डिस्कशन में हिस्सा ले सकते हैं। या फिर प्रोजेक्ट और इनोवेशन के तौर पर टेक्निकल प्रपोजल भेज सकते हैं।
आर्मी डिजाइन ब्यूरो के एडीजी मेजर जनरल सीएस मान ने कहा, यह पोर्टल अकादमिक संस्थानों को अपने आइडियाज और प्रोजेक्ट सशस्त्र बलों तक पहुंचाने का मौका देगा। उन्होंने आगे कहा, “हमारा उद्देश्य एक ऐसा तंत्र बनाना है, जिसमें सशस्त्र बलों की जरूरतें और अकादमिक संस्थानों की क्षमताओं को समझा जाए।” उन्होंने कहा कि यह आयोजन पहली बार हो रहा है, जिसमें अकादमिक संस्थानों को अपनी टेक्नोलॉजी और आइडियाज को पेश करने का मौका मिलेगा।
*चुने गए प्रोजेक्ट्स को मिलेगा बड़ा मंच*
मेजर जनरल मान ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत का मतलब केवल हथियार बनाना नहीं है, बल्कि अपनी डिजाइन और अनुसंधान क्षमता को भी बढ़ाना है। इस सिंपोजियम के लिए टॉप 200 अकादमिक संस्थानों और 50 रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन को को निमंत्रण भेजा गया है। अन्य संस्थान भी इसमें हिस्सा ले सकते हैं।
उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा अकादमिक संस्थान इस आयोजन में शामिल हों। इस सिंपोजियम के लिए जो भी संस्थान अपने तकनीकी प्रस्ताव या आइडिया भेजेंगे, उनकी समीक्षा सेनाओं के विषय विशेषज्ञों द्वारा की जाएगी। जिन प्रस्तावों को चुना जाएगा, उन्हें सिंपोजियम के दौरान प्रदर्शनी में शामिल किया जाएगा।
और रक्षा अधिकारियों के साथ वन-ऑन-वन संवाद का मौका मिलेगा। इसके अलावा जिन आइडियाज को सेनाओं के लिए उपयोगी माना जाएगा, उन्हें सिंपोजियम के एग्जीबिशन सेक्शन में दिखाया जाएगा और सेनाओं के अधिकारियों के साथ सीधी बातचीत का मौका मिलेगा। साथ ही, उन्हें रिकॉग्नाइजेशन और अवार्ड भी दिए जाएंगे, जिससे संस्थानों को आगे रिसर्च और डेवलपमेंट के लिए प्रेरणा मिलेगी।
*अमेरिका का दिया उदाहरण*
आईआईटी गुवाहाटी के डायरेक्टर प्रोफेसर देवेंद्र जलिहाल ने अमेरिका का उदाहरण दिया, जहां द्वितीय विश्व युद्ध के बाद विश्वविद्यालयों और रक्षा क्षेत्र ने मिलकर काम किया। वहां एमआईटी, बर्कले और न्यू मैक्सिको जैसे विश्वविद्यालयों में रक्षा प्रयोगशालाएं (लैब्स) हैं, जो रडार, ऊर्जा और पानी के नीचे की तकनीकों पर काम करती हैं। भारत को भी ऐसा मॉडल अपनाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि भविष्य के युद्ध टेक्नोलॉजी पर निर्भर होंगे।
जो देश तकनीक में माहिर होगा, वही दुनिया में नेतृत्व करेगा। उन्होंने हाल के घटनाक्रमों, जैसे ऑपरेशन सिंदूर, का हवाला देते हुए बताया कि अब युद्ध सीमाओं को पार करने से ज्यादा तकनीकी स्वरूप में लड़े जाते हैं। जो तकनीक में माहिर होगा, वही भविष्य में आगे रहेगा। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत में टेक्नोलॉजी डेवलप करने वाले (अकादमिक संस्थान) और तकनीक की जरूरत वाले (सशस्त्र बल) लोग एक-दूसरे से संवाद नहीं करते। यह सिंपोजियम दोनों को एक प्लेटफॉर्म पर लाकर इस कमी को दूर करेगा।
भारत सरकार का विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग इस आयोजन में सहयोग कर रहा है। विभाग ने राष्ट्रीय मिशन के तहत 25 टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन सेंटर बनाए हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, साइबर सिक्योरिटी और ड्रोन जैसी तकनीकों पर काम कर रहे हैं। गौरतलब है कि इस संगोष्ठी की घोषणा ऑपरेशन सिंदूर के लगभग दो महीने बाद हो रही है, जिसमें भारतीय सेनाओं ने दुश्मन को जवाब देने के लिए बड़े पैमाने पर स्वदेशी तकनीक और प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया था।
इस ऑपरेशन के दौरान, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, भारतीय उपग्रह ‘नविक’, ड्रोन और रडार सिस्टम जैसे कई स्वदेशी टेक्नोलॉजी प्लेटफॉर्म निर्णायक साबित हुए थे। ऑपरेशन सिंदूर के अनुभवों के बाद सेनाओं को यह महसूस हुआ कि भारत के पास पहले से ही कई हाई लेवल टेक्नोलॉजी मौजूद हैं, जिन्हें बस सही दिशा और विस्तार देने की जरूरत है। इसी सोच के साथ ट्राई-सर्विसेज सिंपोजियम जैसे कार्यक्रमों की योजना बनाई जा रही है, ताकि एकेडमिक रिसर्च को डिफेंस सेक्टर से जोड़ा जा सके।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

National

spot_img

International

spot_img
RELATED ARTICLES