Sunday, June 29, 2025

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भारतीय भाषाएं देश की आत्मा और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं: अमित शाह

गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि भारतीय भाषाएं देश की आत्मा और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं, और अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषाई विरासत को दोबारा अपनाएं और दुनिया के सामने गर्व से आगे बढ़ें.

नई दिल्ली, 19 जून 2025 (यूटीएन)। गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि भारतीय भाषाएं देश की आत्मा और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं, और अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषाई विरासत को दोबारा अपनाएं और दुनिया के सामने गर्व से आगे बढ़ें. नई दिल्ली में पूर्व आईएएस अधिकारी अशुतोष अग्निहोत्री की पुस्तक ‘मैं बूंद स्वयं, खुद सागर हूं’ के विमोचन समारोह में बोलते हुए अमित शाह ने कहा, “अब वह दिन दूर नहीं जब अंग्रेज़ी बोलने वालों को शर्म महसूस होगी. हमें ऐसा समाज बनाना है. बदलाव सिर्फ वे लोग ला सकते हैं जो ठान लेते हैं.
मैं मानता हूं कि हमारे देश की भाषाएं हमारी संस्कृति के गहने हैं. अगर हमारी भाषाएं नहीं होंगी, तो हमारी भारतीय पहचान भी अधूरी रह जाएगी.” शाह ने आगे कहा, “अपने देश, संस्कृति, इतिहास और धर्म को समझने के लिए कोई विदेशी भाषा काफी नहीं है. अधूरी विदेशी भाषा के भरोसे हम संपूर्ण भारत की कल्पना नहीं कर सकते. मैं जानता हूं कि यह लड़ाई आसान नहीं है, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि भारतीय समाज इसमें विजयी होगा. एक बार फिर हम आत्मसम्मान के साथ अपनी भाषाओं में देश चलाएंगे और दुनिया का नेतृत्व करेंगे.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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भारतीय भाषाएं देश की आत्मा और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं: अमित शाह

गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि भारतीय भाषाएं देश की आत्मा और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं, और अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषाई विरासत को दोबारा अपनाएं और दुनिया के सामने गर्व से आगे बढ़ें.

नई दिल्ली, 19 जून 2025 (यूटीएन)। गृह मंत्री अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि भारतीय भाषाएं देश की आत्मा और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं, और अब समय आ गया है कि हम अपनी भाषाई विरासत को दोबारा अपनाएं और दुनिया के सामने गर्व से आगे बढ़ें. नई दिल्ली में पूर्व आईएएस अधिकारी अशुतोष अग्निहोत्री की पुस्तक ‘मैं बूंद स्वयं, खुद सागर हूं’ के विमोचन समारोह में बोलते हुए अमित शाह ने कहा, “अब वह दिन दूर नहीं जब अंग्रेज़ी बोलने वालों को शर्म महसूस होगी. हमें ऐसा समाज बनाना है. बदलाव सिर्फ वे लोग ला सकते हैं जो ठान लेते हैं.
मैं मानता हूं कि हमारे देश की भाषाएं हमारी संस्कृति के गहने हैं. अगर हमारी भाषाएं नहीं होंगी, तो हमारी भारतीय पहचान भी अधूरी रह जाएगी.” शाह ने आगे कहा, “अपने देश, संस्कृति, इतिहास और धर्म को समझने के लिए कोई विदेशी भाषा काफी नहीं है. अधूरी विदेशी भाषा के भरोसे हम संपूर्ण भारत की कल्पना नहीं कर सकते. मैं जानता हूं कि यह लड़ाई आसान नहीं है, लेकिन मुझे पूरा भरोसा है कि भारतीय समाज इसमें विजयी होगा. एक बार फिर हम आत्मसम्मान के साथ अपनी भाषाओं में देश चलाएंगे और दुनिया का नेतृत्व करेंगे.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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