Sunday, June 29, 2025

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आधार और यूपीआई के बाद सरकार की डीजिटल एड्रेस तैयारी, घरों को मिलेगी खास पहचान

आधार-आधारित डिजिटल पहचान और यूपीआई-आधारित डिजिटल भुगतान के बाद, केंद्र सरकार अब भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में 'डिजिटल एड्रेस' लाने की तैयारी कर रही है।

नई दिल्ली, 28 मई 2025 (यूटीएन)। आधार-आधारित डिजिटल पहचान और यूपीआई-आधारित डिजिटल भुगतान के बाद, केंद्र सरकार अब भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में ‘डिजिटल एड्रेस’ लाने की तैयारी कर रही है। सरकार का लक्ष्य है कि एड्रेस यानी पते को डिजिटल किया जाए। इसके लिए एक स्ट्रक्चर बनाया जाएगा। इससे लोगों को सरकारी सेवाएं आसानी से मिलेंगी और एड्रेस का गलत इस्तेमाल भी रुकेगा।
सरकार एड्रेस सिस्टम को सुधारने के लिए नियम बनाएगी और लोगों की सहमति से ही एड्रेस शेयर किया जाएगा। यह सब कुछ इस साल के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके लिए संसद में एक कानून भी लाया जा सकता है। सरकार ‘एड्रेस इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट’ को ‘कोर पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ के तौर पर मान्यता देगी। अभी भारत में यह क्षेत्र बिना किसी नियम के चल रहा है, जबकि डिजिटलीकरण बढ़ रहा है।
सरकार का मकसद है कि एक ऐसा सिस्टम बनाया जाए जिससे लोगों की सहमति से ही उनका एड्रेस शेयर हो। इससे सरकारी और प्राइवेट सेक्टर की डिजिटल कंपनियां लोगों को सही जगह पर और जल्दी सेवाएं दे पाएंगी। डिपार्टमेंट ऑफ़ पोस्ट्स इस काम को आगे बढ़ा रहा है और प्रधानमंत्री कार्यालय इस पर नजर रख रहा है। ‘डिजिटल एड्रेस’ का एक ड्राफ्ट तैयार किया गया है, जिसमें ‘एड्रेसिंग स्टैंडर्ड’ भी शामिल हैं।
इसे जल्द ही लोगों के सामने रखा जाएगा ताकि वे इस पर अपनी राय दे सकें। सरकार चाहती है कि साल के अंत तक इस ढांचे को अंतिम रूप दे दिया जाए। सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में एक कानून भी ला सकती है, इससे एक डिजिटल एड्रेस-डीपीआई अथॉरिटी या मैकेनिज्म बनाया जा सकेगा। यह अथॉरिटी नए एड्रेस सिस्टम को लागू करेगी और इस पर नजर रखेगी।
*’डिजिटल एड्रेस’ की जरूरत क्यों पड़ी?*
इसके कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि हर डिजिटल कंपनी, चाहे वह ई-कॉमर्स हो या डिलीवरी सर्विस, यूजर्स का ‘एड्रेस इन्फॉर्मेशन’ मांगती है और उसे सेव करती है। कई बार तो यह जानकारी दूसरी कंपनियों को भी दे दी जाती है या उससे पैसे कमाए जाते हैं, और यूजर को पता भी नहीं चलता।
इसलिए सरकार चाहती है कि एड्रेस के इस्तेमाल के लिए नियम बनाए जाएं और यूजर की सहमति के बाद ही उसका एड्रेस इस्तेमाल किया जाए। सरकार एक ऐसा नियम बनाएगी जिसमें लोगों को सबसे पहले रखा जाएगा। इसमें यह भी बताया जाएगा कि सरकारी कंपनियों के साथ डेटा कैसे शेयर किया जाएगा।
*खराब एड्रेस’ भी एक चिंता का विषय*
इसके अलावा, भारत में ‘खराब एड्रेस’ सिस्टम भी एक चिंता का विषय है। कई बार एड्रेस अधूरा होता है या गलत तरीके से लिखा होता है। इसमें लैंडमार्क का इस्तेमाल किया जाता है, जो डिजिटल सिस्टम के लिए ठीक नहीं है। इससे सेवाएं देने में दिक्कत होती है। सरकार के सामने आई एक रिपोर्ट के अनुसार, गलत या अधूरे एड्रेस की वजह से देश को हर साल लगभग 10-14 बिलियन का नुकसान होता है, जो जीडीपी का लगभग 0.5% है।
इस समस्या को देखते हुए सरकार ने दिसंबर 2023 में नेशनल जिओस्पेशियल पॉलिसी के तहत ‘एड्रेस’ पर एक वर्किंग ग्रुप बनाया था। इस ग्रुप का काम ‘एड्रेसिंग स्टैंडर्ड’ बनाना था। 2023 में पोस्ट ऑफिस एक्ट में भी बदलाव किया गया था। इसके तहत केंद्र सरकार को एड्रेस स्टैंडर्ड तय करने और पोस्टकोड का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया है।
2024 में सेक्रेटरीज के एक ग्रुप ने डिजिटल पोस्टल इंडेक्स नंबर प्रोजेक्ट को ‘पब्लिक सर्विस डिलीवरी को बदलने’ के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया। आम तौर पर एक पोस्टल एड्रेस में इलाका, सड़क और मकान नंबर होता है। लेकिन डीजिपीन एक जिओस्पेशियल रेफरेंस है।
यह 10 कैरेक्टर का एक कोड है जो किसी जगह की सही लोकेशन बताता है। यह कोड पूरे भारत के ग्रिड के आधार पर बनाया गया है। डिजीपीन से एड्रेस को मैनेज करना आसान हो जाएगा। यह उन जगहों के लिए बहुत उपयोगी है जहां एड्रेस ठीक से नहीं लिखे होते हैं या बदलते रहते हैं, जैसे कि गांव, जंगल आदि। डिजीपिन एक 10-अंकीय अल्फ़ान्यूमेरिक कोड है। यह किसी विशेष स्थान के सटीक भौगोलिक निर्देशांकों पर आधारित है। यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मददगार होगा। इससे डिलीवरी सेवाओं को सही जगह ढूंढने में आसानी होगी। सरकार का मानना है कि इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी फायदा होगा।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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आधार और यूपीआई के बाद सरकार की डीजिटल एड्रेस तैयारी, घरों को मिलेगी खास पहचान

आधार-आधारित डिजिटल पहचान और यूपीआई-आधारित डिजिटल भुगतान के बाद, केंद्र सरकार अब भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में 'डिजिटल एड्रेस' लाने की तैयारी कर रही है।

नई दिल्ली, 28 मई 2025 (यूटीएन)। आधार-आधारित डिजिटल पहचान और यूपीआई-आधारित डिजिटल भुगतान के बाद, केंद्र सरकार अब भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर में ‘डिजिटल एड्रेस’ लाने की तैयारी कर रही है। सरकार का लक्ष्य है कि एड्रेस यानी पते को डिजिटल किया जाए। इसके लिए एक स्ट्रक्चर बनाया जाएगा। इससे लोगों को सरकारी सेवाएं आसानी से मिलेंगी और एड्रेस का गलत इस्तेमाल भी रुकेगा।
सरकार एड्रेस सिस्टम को सुधारने के लिए नियम बनाएगी और लोगों की सहमति से ही एड्रेस शेयर किया जाएगा। यह सब कुछ इस साल के अंत तक पूरा होने की उम्मीद है। इसके लिए संसद में एक कानून भी लाया जा सकता है। सरकार ‘एड्रेस इन्फॉर्मेशन मैनेजमेंट’ को ‘कोर पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर’ के तौर पर मान्यता देगी। अभी भारत में यह क्षेत्र बिना किसी नियम के चल रहा है, जबकि डिजिटलीकरण बढ़ रहा है।
सरकार का मकसद है कि एक ऐसा सिस्टम बनाया जाए जिससे लोगों की सहमति से ही उनका एड्रेस शेयर हो। इससे सरकारी और प्राइवेट सेक्टर की डिजिटल कंपनियां लोगों को सही जगह पर और जल्दी सेवाएं दे पाएंगी। डिपार्टमेंट ऑफ़ पोस्ट्स इस काम को आगे बढ़ा रहा है और प्रधानमंत्री कार्यालय इस पर नजर रख रहा है। ‘डिजिटल एड्रेस’ का एक ड्राफ्ट तैयार किया गया है, जिसमें ‘एड्रेसिंग स्टैंडर्ड’ भी शामिल हैं।
इसे जल्द ही लोगों के सामने रखा जाएगा ताकि वे इस पर अपनी राय दे सकें। सरकार चाहती है कि साल के अंत तक इस ढांचे को अंतिम रूप दे दिया जाए। सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में एक कानून भी ला सकती है, इससे एक डिजिटल एड्रेस-डीपीआई अथॉरिटी या मैकेनिज्म बनाया जा सकेगा। यह अथॉरिटी नए एड्रेस सिस्टम को लागू करेगी और इस पर नजर रखेगी।
*’डिजिटल एड्रेस’ की जरूरत क्यों पड़ी?*
इसके कई कारण हैं। सबसे बड़ा कारण यह है कि हर डिजिटल कंपनी, चाहे वह ई-कॉमर्स हो या डिलीवरी सर्विस, यूजर्स का ‘एड्रेस इन्फॉर्मेशन’ मांगती है और उसे सेव करती है। कई बार तो यह जानकारी दूसरी कंपनियों को भी दे दी जाती है या उससे पैसे कमाए जाते हैं, और यूजर को पता भी नहीं चलता।
इसलिए सरकार चाहती है कि एड्रेस के इस्तेमाल के लिए नियम बनाए जाएं और यूजर की सहमति के बाद ही उसका एड्रेस इस्तेमाल किया जाए। सरकार एक ऐसा नियम बनाएगी जिसमें लोगों को सबसे पहले रखा जाएगा। इसमें यह भी बताया जाएगा कि सरकारी कंपनियों के साथ डेटा कैसे शेयर किया जाएगा।
*खराब एड्रेस’ भी एक चिंता का विषय*
इसके अलावा, भारत में ‘खराब एड्रेस’ सिस्टम भी एक चिंता का विषय है। कई बार एड्रेस अधूरा होता है या गलत तरीके से लिखा होता है। इसमें लैंडमार्क का इस्तेमाल किया जाता है, जो डिजिटल सिस्टम के लिए ठीक नहीं है। इससे सेवाएं देने में दिक्कत होती है। सरकार के सामने आई एक रिपोर्ट के अनुसार, गलत या अधूरे एड्रेस की वजह से देश को हर साल लगभग 10-14 बिलियन का नुकसान होता है, जो जीडीपी का लगभग 0.5% है।
इस समस्या को देखते हुए सरकार ने दिसंबर 2023 में नेशनल जिओस्पेशियल पॉलिसी के तहत ‘एड्रेस’ पर एक वर्किंग ग्रुप बनाया था। इस ग्रुप का काम ‘एड्रेसिंग स्टैंडर्ड’ बनाना था। 2023 में पोस्ट ऑफिस एक्ट में भी बदलाव किया गया था। इसके तहत केंद्र सरकार को एड्रेस स्टैंडर्ड तय करने और पोस्टकोड का इस्तेमाल करने का अधिकार दिया गया है।
2024 में सेक्रेटरीज के एक ग्रुप ने डिजिटल पोस्टल इंडेक्स नंबर प्रोजेक्ट को ‘पब्लिक सर्विस डिलीवरी को बदलने’ के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया। आम तौर पर एक पोस्टल एड्रेस में इलाका, सड़क और मकान नंबर होता है। लेकिन डीजिपीन एक जिओस्पेशियल रेफरेंस है।
यह 10 कैरेक्टर का एक कोड है जो किसी जगह की सही लोकेशन बताता है। यह कोड पूरे भारत के ग्रिड के आधार पर बनाया गया है। डिजीपीन से एड्रेस को मैनेज करना आसान हो जाएगा। यह उन जगहों के लिए बहुत उपयोगी है जहां एड्रेस ठीक से नहीं लिखे होते हैं या बदलते रहते हैं, जैसे कि गांव, जंगल आदि। डिजीपिन एक 10-अंकीय अल्फ़ान्यूमेरिक कोड है। यह किसी विशेष स्थान के सटीक भौगोलिक निर्देशांकों पर आधारित है। यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में मददगार होगा। इससे डिलीवरी सेवाओं को सही जगह ढूंढने में आसानी होगी। सरकार का मानना है कि इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी फायदा होगा।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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