नई दिल्ली, 25 दिसंबर 2025 (यूटीएन)। भारत में संतुलन विकार की एक चुपचाप फैलती महामारी चल रही है, जो कुल आबादी के 25-30% लोगों को प्रभावित कर रही है। इसमें 25 करोड़ से ज्यादा मरीज शामिल हैं, और हाई स्कूल के बच्चों में 30.8% तक मामले हैं। लेकिन देश में सिर्फ 70-80 विशेष क्लिनिक हैं। चक्कर आना (वर्टिगो) वयस्कों के 40% को और चक्कर के मामलों के 54% को प्रभावित करता है। यह प्राथमिक डॉक्टर विजिट के 5-10% और न्यूरोलॉजी/ईएनटी परामर्श के 30% का कारण बनता है। उम्र बढ़ने के साथ समस्या बढ़ती है: 60 साल से ऊपर 30%, 70 से ऊपर 35%, और 80 से ऊपर 50% लोगों को प्रभावित। हर साल 22.9% लोग चक्कर की समस्या का सामना करते हैं, लेकिन विशेष वेस्टिबुलर क्लिनिक की कमी से गलत जांच और सिर्फ लक्षण दबाने वाली दवाएं मिलती हैं, जिससे मरीज और डॉक्टर दोनों भ्रमित रहते हैं।
इस बड़ी कमी पर ध्यान देते हुए, भारत के प्रमुख न्यूरोटोलॉजी और संतुलन विकार विशेषज्ञ डॉ. अनिर्बन बिस्वास ने इंडिया हैबिटेट सेंटर में पैसिफिक वनहेल्थ और हील फाउंडेशन के साथ आयोजित हील वनहेल्थ कनेक्ट सीरीज में मुख्य भाषण दिया। उन्होंने कहा, “ज्यादातर संतुलन विकार के मरीज चार से सात विशेषज्ञों से मिलते हैं और महंगे स्कैन कराते हैं, जो अक्सर उनकी समस्या से जुड़े नहीं होते। आखिर में उन्हें मिलती है सिर्फ लक्षण दबाने वाली दवा, न कि सही निदान या इलाज। यह वैसी स्वास्थ्य देखभाल नहीं है जैसी होनी चाहिए।
संतुलन विकार जटिल होते हैं, जो सिर्फ कान के अंदरूनी हिस्से को नहीं बल्कि न्यूरोलॉजिकल, हृदय, मनोवैज्ञानिक और मांसपेशी प्रणाली को भी प्रभावित करते हैं। लेकिन भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था में न्यूरोटोलॉजी की सही ट्रेनिंग की कमी है, और ज्यादातर अस्पतालों में कई विशेषज्ञों वाली टीम वाले संतुलन क्लिनिक नहीं हैं। नतीजा, मरीज बार-बार एमआरआई, सीटी स्कैन और ब्लड टेस्ट कराते हैं, जबकि शरीर की स्थिति समझने, दिमागी क्षमता और संतुलन जांच जैसे महत्वपूर्ण टेस्ट नजरअंदाज हो जाते हैं। डॉ. बिस्वास ने आगे कहा, “चक्कर आने वाले सिर्फ 27% मरीजों में ही कान के अंदरूनी हिस्से की समस्या होती है, लेकिन ज्यादातर जांच और इलाज सिर्फ वेस्टिबुलर लैबिरिंथ पर केंद्रित रहते हैं। यही कारण है कि मरीज सालों तक बीमार रहते हैं और मान लिया जाता है कि चक्कर आने का इलाज नहीं हो सकता।
शारीरिक लक्षणों के अलावा, इलाज न होने से संतुलन विकार चिंता, डिप्रेशन, दिमागी कमजोरी और गिरने के डर से जुड़ जाते हैं, जो जीवन की गुणवत्ता को बिगाड़ते हैं। भारत की बढ़ती उम्र वाली आबादी और कामकाजी लोगों पर असर से विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि संतुलन विकार एक चुप लेकिन बड़ा स्वास्थ्य खतरा है। विशेषज्ञ अब विशेष संतुलन और वेस्टिबुलर क्लिनिक, बेहतर ट्रेनिंग और नीति में संतुलन विकार को बहु-विषयी समस्या मानने की मांग कर रहे हैं—ये कदम लंबी बीमारी रोकने और मरीजों की स्थिति सुधारने के लिए जरूरी हैं। पैसिफिक वनहेल्थ और हील फाउंडेशन के साथ आयोजित हील वनहेल्थ कनेक्ट सीरीज का यह मुख्य भाषण एक बड़ा आह्वान है। यह चिकित्सा समुदाय को ‘स्वास्थ्य देखभाल जैसी होनी चाहिए’ की दिशा में चुनौती देता है—सामान्य इलाज से हटकर विशेष, जीवन बचाने वाली संतुलन विकार विशेषज्ञता की ओर।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।


