नई दिल्ली, 31 अक्टूबर (यूटीएन)। सरदार वल्लभभाई पटेल की आज 150वीं जयंती है। आज गुजरात स्थित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर सरदार पटेल की जयंती के अवसर पर भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यह कार्यक्रम गणतंत्र दिवस की तर्ज पर आयोजित हुआ, जिसमें सैन्य परेड, सांस्कृतिक परेड, राज्यों की झांकियां निकाली गईं। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी भी मौजूद रहे। उन्होंने केवडिया में स्थित स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पहुंचकर सरदार पटेल को श्रद्धांजलि अर्पित की. यह कार्यक्रम “एक भारत, श्रेष्ठ भारत” के संकल्प को समर्पित है। राष्ट्रीय एकता दिवस कार्यक्रम में अपने संबोधन में पीएम मोदी ने कहा, ‘सरदार पटेल अमर रहें, आज हम सब एक महान क्षण के साक्षी बन रहे हैं। देशभर में हो रही एकता दौड़ कोटि-कोटि भारतीयों का उत्साह बढ़ा रही है। हम नए भारत की संकल्प शक्ति को साक्षात महसूस कर रहे हैं। हर ऐसी बात जो देश की एकता को कमजोर करती है। हर देशवासी को उससे दूर रहना है।
ये राष्ट्रीय कर्तव्य है, ये सरदार साहब को सच्ची श्रद्धांजलि है। यही आज देश की जरूरत है। यही आज एकता दिवस का हर भारतीय के लिए संदेश भी है, संकल्प भी है। सरदार पटेल की 150वीं जयंती का यह ऐतिहासिक अवसर, एकता नगर की यह दिव्य सुबह, यह विहंगम दृश्य – सरदार साहब के चरणों में हमारी उपस्थिति, आज हम सब एक महान क्षण के साक्षी बन रहे हैं. देशभर में हो रही ‘एकता दौड़ – रन फॉर यूनिटी’ में कोटि-कोटि भारतीयों का उत्साह, हम नए भारत की संकल्प शक्ति को साथ-साथ महसूस कर रहे हैं. अभी यहां जो कार्यक्रम हुए और कल शाम जो अद्भुत प्रस्तुति हुई, उनमें अतीत की परंपरा थी, वर्तमान का श्रम और शौर्य था, और भविष्य की सिद्धि की झलक भी थी. सरदार पटेल की 150वीं जयंती के उपलक्ष्य में स्मृति सिक्का और विशेष डाक टिकट भी जारी किया गया.

*कश्मीर पर कांग्रेस ने की गलती, जिससे देश दशकों तक जलता रहा‘*
पीएम मोदी ने कहा कि ‘सरदार साहब चाहते थे कि जैसे उन्होंने बाकी रियासतों का विलय किया, वैसे ही ओर कश्मीर का विलय हो, लेकिन, पंडित नेहरू ने उनकी वो इच्छा पूरी नहीं होने दी। कश्मीर को अलग संविधान और अलग निशान से बांट दिया गया। कश्मीर पर कांग्रेस ने जो गलती की थी, उसकी आग में देश दशकों तक जलता रहा।
*सरदार पटेल मानते थे कि इतिहास लिखने में समय नहीं गंवाना चाहिए‘*
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘सरदार पटेल मानते थे कि इतिहास लिखने में समय नहीं गंवाना चाहिए, हमें तो इतिहास बनाने के लिए मेहनत करनी चाहिए। उनकी ये भावना हमें उनकी जीवनगाथा में दिखाई देती है। सरदार साहब ने जो नीतियां बनाई, जो निर्णय लिए, उन्होंने नया इतिहास रचा। आजादी के बाद 550 से ज्यादा रियासतों को साथ जोड़ने के असंभव कार्य को उन्होंने संभव करके दिखा दिया। एक भारत-श्रेष्ठ भारत का विचार उनके लिए सर्वोपरि था।
*हमारे देश की एकता और अंदरूनी सुरक्षा को घुसपैठियों से गंभीर खतरा है‘*
पीएम मोदी ने कहा कि ‘आज हमारे देश की एकता और अंदरूनी सुरक्षा को घुसपैठियों से गंभीर खतरा है। दशकों से, विदेशी घुसपैठिए हमारे देश में घुस रहे हैं, इसके संसाधनों का इस्तेमाल कर रहे हैं, और इसका जनसांख्यिकी का संतुलन बिगाड़ रहे हैं। दुर्भाग्य से, पिछली सरकारों ने इस गंभीर मुद्दे को नजरअंदाज किया और इस समस्या से आंखें मूंद लीं। वोट-बैंक की राजनीति के चक्कर में, उन्होंने जानबूझकर देश की सुरक्षा से समझौता किया। पहली बार, देश ने इस चुनौती का सीधे सामना करने और अपनी अखंडता की रक्षा करने के लिए एक मजबूत और निर्णायक रुख अपनाया है।’उन्होंने कहा, जब तक देश नक्सलवाद, माओवादी आतंक और इस तरह के आतंक से पूरी तरह मुक्त नहीं हो जाता, हम रुकने वाले नहीं हैं, चैन से बैठने वाले नहीं हैं. जब तक देश नक्सलवाद, माओवादी आतंक और इस तरह के आतंक से पूरी तरह मुक्त नहीं हो जाता, हम रुकने वाले नहीं हैं, चैन से बैठने वाले नहीं हैं।
पुरानी सरकारें इस इतनी बड़ी समस्या पर आंखें बंद करके रहीं – वोट बैंक की राजनीति के कारण राष्ट्र की सुरक्षा को जानबूझकर खतरे में डाला गया. अब पहली बार देश ने इस बड़े खतरे के खिलाफ निर्णायक लड़ाई लड़ने की ठानी है. लाल किले से मैंने डेमोग्राफ़ी मिशन का ऐलान किया है. लेकिन जब हम इस विषय को गंभीरता से उठा रहे हैं, तब कुछ लोग देशहित से ज़्यादा अपने स्वार्थ को ऊपर रख रहे हैं. ये लोग घुसपैठियों को अधिकार दिलाने के लिए राजनीतिक लड़ाई लड़ रहे हैं; इनको लगता है कि देश एक बार टूटा तो आगे भी टूटता रहेगा – इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. जबकि सच्चाई यह है कि अगर देश की सुरक्षा और पहचान खतरे में आई, तो हर व्यक्ति खतरे में आएगा. इसलिए हमें आज राष्ट्रीय एकता दिवस पर फिर से संकल्प लेना है कि हम भारत में रह रहे हर घुसपैठिये को बाहर निकालकर ही रहेंगे।
जब हम लोकतंत्र में राष्ट्रीय एकता की बात करते हैं, तो इसका एक अर्थ यह भी है कि हम विचारों की विविधता का सम्मान करें. मतभेद स्वीकार्य हैं, मनभेद नहीं होना चाहिए.
लेकिन विडंबना यह है कि आज़ादी के बाद जिन लोगों को देश ने दायित्व सौंपा, उन्हीं लोगों ने ‘द पीपल की स्पिरिट’ की हत्या करने का प्रयास किया. उन्होंने अपनी सोच और विचारधारा से अलग हर व्यक्ति और संगठन का तिरस्कार किया, उन्हें बदनाम करने की कोशिश की. देश में राजनीतिक छुआछूत को एक संस्कृति बना दिया गया था।
*पूर्व की सरकारों ने सरदार साहब की नीतियों पर चलने की जगह रीढ़विहीन रवैये को चुना‘*
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘सरदार साहब ने देश की संप्रभुता को सबसे ऊपर रखा लेकिन दुर्भाग्य से सरदार साहब के निधन के बाद के वर्षों में देश की संप्रभुता को लेकर तब की सरकारों में उतनी गंभीरता नहीं रही। एक ओर कश्मीर में हुई गलतियां, दूसरी ओर पूर्वोत्तर में पैदा हुई समस्याएं और देश में जगह-जगह पनपा नक्सलवाद-माओवादी आतंक, ये देश की संप्रभुता को सीधी चुनौतियां थी लेकिन उस समय की सरकारों ने सरदार साहब की नीतियों पर चलने की जगह रीढ़विहीन रवैये को चुना। इसका परिणाम देश ने हिंसा और रक्तपात के रूप में झेला। 2014 के बाद हमारी सरकार ने नक्सलवाद और माओवादी आतंक पर प्रचंड प्रहार किया।
*एक भारत, श्रेष्ठ भारत का विचार सर्वोपरी*
उन्होंने कहा, “एक भारत, श्रेष्ठ भारत का विचार उनके लिए सर्वोपरी था. इसलिए आज सरदार पटेल की जयंती का दिन स्वाभाविक रूप से राष्ट्रीय एकता का महापर्व बन गया है. जिस तरह 140 करोड़ देशवासी 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं, 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस मनाते हैं, वैसे ही एकता दिवस का महत्व हमारे लिए प्रेरणा का पल है, गर्व का पल है. आज करोड़ों लोगों ने एकता की शपथ ली है. हमने संकल्प लिया है कि हम ऐसे कार्यों को बढ़ावा देंगे जो देश की एकता को मजबूती दें. यहां एकतानगर में ही एकता मॉल, एकता गार्डन – एकता के सूत्र को सशक्त करते दिखाई देते हैं.
*कांग्रेस ने सरदार पटेल और बाबा साहेब की विरासत से खिलवाड़ किया*
हमें याद है कांग्रेस सरकारों में सरदार पटेल और उनकी विरासत के साथ क्या-क्या हुआ. लोगों ने बाबा साहब आंबेडकर के साथ भी क्या किया – जीते जी और बाद में भी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ क्या किया गया, डॉ. राम मनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण जैसे लोगों के साथ भी यही हुआ. इस साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 वर्ष पूरे हुए – संघ पर भी कैसे-कैसे हमले और षड्यंत्र किए गए. एक पार्टी, एक परिवार की शासित सोच ने देश के बाहर हर व्यक्ति और हर विचार को ‘अछूत’ बनाने की भरसक कोशिश की. हमें गर्व है कि हमने देश को बांटने वाली इस राजनीति और छुआछूत को खत्म किया है. हमने सरदार पटेल की स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बनाई; हमने बाबा साहेब के पंच तीर्थ बनवाए – दिल्ली में बाबा साहेब का घर और उनका महापरिनिर्वाण स्थल कांग्रेस के दौर में उपेक्षा के कारण दुर्दशा का शिकार था, जिसे हमने ऐतिहासिक मेमोरियल में बदल दिया.
कांग्रेस के समय में केवल एक पूर्व प्रधानमंत्री के नाम पर म्यूज़ियम था, हमने राजनीति के मतभेदों से ऊपर उठकर देश के विविध नायकों के योगदान को समर्पित प्रधानमंत्री म्यूज़ियम बनाया है. हमने कर्पूरी ठाकुर जैसे जननायक को भारत रत्न दिया; प्रणव दा को भारत रत्न देकर उनके योगदान का सम्मान किया; और विरोधी विचारधारा के मतांतर नेताओं को भी पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया. इन फैसलों के पीछे यही सोच थी कि राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर देश के लिए एकजुट होने की भावना को मजबूत किया जाए.
*वन्दे मातरम देश की एकता और एकजुटता की आवाज बन गया*
ऑपरेशन सिंदूर के बाद विदेशों में गए हमारे सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में भी हमने एकता की इस झलक को देखा है. राजनीतिक हितों के लिए देश की एकता पर प्रहार की सोच गुलामी की मानसिकता का हिस्सा है. कांग्रेस ने अंग्रेजों से केवल पार्टी और सत्ता ही नहीं पाई, बल्कि गुलामी की मानसिकता भी आत्मसात कर ली थी. कुछ दिन बाद हमारे राष्ट्रगीत ‘वन्दे मातरम’ के 150 साल पूरे हो रहे हैं. 1905 में जब अंग्रेजों ने बंगाल का विभाजन किया, तब वन्दे मातरम हर देशवासी का स्वर बन गया था – यह देश की एकता और एकजुटता की आवाज बन गया. अंग्रेजों ने वन्दे मातरम बोलने पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की, लेकिन वे सफल नहीं हुए. कई कोनों से वन्दे मातरम का नारा गूंजता रहा. परंतु जो काम अंग्रेज नहीं कर पाए, वह कार्य कांग्रेस ने कर दिया – कांग्रेस ने धार्मिक आधार पर वन्दे मातरम के एक हिस्से को हटा दिया, समाज को बांटा और अंग्रेजों के एजेंडे को आगे बढ़ाया.
मैं आज ज़िम्मेदारी से कह रहा हूं कि जिस दिन कांग्रेस ने वन्दे मातरम को तोड़ने का निर्णय लिया था, उसी दिन देश के विभाजन की नींव पड़ी थी. यदि कांग्रेस ने वह पाप नहीं किया होता तो आज भारत की तस्वीर कुछ और होती.
*हमने गुलामी की मानसिकता वाले प्रतिकों को बदला*
उस समय सरकार में बैठे लोगों की ऐसी सोच के कारण ही देश ने दशकों तक गुलामी के प्रतीक उठाएं. हमारी नेवी के झंडे से जो गुलामी के निशान हटाए गए, वह तब संभव हुआ जब आपने हमें देश की सेवा का अवसर दिया. हमारी सरकार के आने पर राजपथ और कर्तव्य पथ जैसे बदलाव किए गए. आज़ादी की लड़ाई में क्रांतिकारियों के बलिदान का स्थान – अंडमान की सेल्युलर जेल – उसे राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा तब मिला जब हमारी सरकार बनी. अंडमान के द्वीपों के नाम, जिन्हें पहले अंग्रेजों के नाम पर रखा गया था, हमने नेताजी सुभाष की याद में बदले और कई द्वीपों का नाम परमवीर चक्र विजेताओं के नाम पर रखा.
इंडिया गेट पर हमने नेताजी सुभाष की प्रतिमा लगाई. देश की सुरक्षा में शहीद हुए जवानों को भी गुलामी मानसिकता के कारण सही सम्मान नहीं मिलता था. हमने नेशनल वॉर मेमोरियल की स्थापना कर उन शहीदों की स्मृतियों को अमर बनाया. आंतरिक सुरक्षा के क्षेत्र में भी कमी रही – 36,000 से अधिक जवानों की शहादत हुई है; यह आंकड़ा छोटा नहीं है. हमारी पुलिस, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, सीआरपीएफ और सभी अर्धसैनिक बलों के शौर्य को पहले सम्मान नहीं मिला; हमारी सरकार ने पुलिस मेमोरियल बनाकर उनके शहीदों को सम्मान दिया.
*आज देश गुलामी की मानसिकता के हर निशान को मिटा रहा है*
आज सरदार पटेल के चरणों में खड़े होकर उन सभी लोगों को सलाम करता हूं जिन्होंने पुलिस और सुरक्षा सेवाओं में रहकर देश की सेवा की है और आज भी कर रहे हैं. मैं उनका गौरव करता हूं और उनका सम्मान करता हूं. आज देश गुलामी की मानसिकता के हर निशान को मिटा रहा है. देश के लिए बलिदान देने वालों को सम्मान देकर हम ‘राष्ट्र प्रथम’ की भावना को मजबूत बना रहे हैं. एकता राष्ट्र और समाज के अस्तित्व की नींव है. जब तक समाज में एकता है, राष्ट्र की अखंडता सुरक्षित है. इसलिए विकसित भारत के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए हमें देश की एकता तोड़ने वाले हर षड्यंत्र को विफल बनाना होगा – एकता की ताकत से. इसलिए आज देश राष्ट्रीय एकता के हर मोर्चे पर निरंतर काम कर रहा है.
*राष्ट्रीय एकता दिवस परेड में बीएसएफ, सीआईएसएफ की टुकड़ियां हुईं शामिल*
‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ परेड में बीएसएफ, सीआरपीएफ, सी आई एस एफ, आई टी बी पी और एसएसबी की टुकड़ियां के साथ-साथ असम, त्रिपुरा, ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, पंजाब, जम्मू और कश्मीर, केरल, आंध्र प्रदेश राज्यों के पुलिस बल भी शामिल हैं।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।


