नई दिल्ली, 22 सितम्बर 2025 (यूटीएन)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने शुल्क और आव्रजन संबंधी अमेरिकी फैसलों की पृष्ठभूमि में कहा कि भारत को उभरी स्थिति से बाहर निकलने के लिए जो भी आवश्यक हो वह करना चाहिए, लेकिन उसे भविष्य में ऐसी समस्याओं से खुद को बचाने के लिए विकास और प्रगति के सनातन दृष्टिकोण का पालन करते हुए अपना रास्ता खुद बनाना शुरू करना चाहिए. देश की राजधानी नई दिल्ली में एक पुस्तक विमोचन समारोह को संबोधित करते हुए सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा कि भारत सहित विश्व के सामने आज जो समस्याएं हैं, वे पिछले 2000 वर्षों से अपनाई जा रही उस व्यवस्था का परिणाम हैं, जो विकास और सुख की खंडित दृष्टि पर आधारित रही हैं. उन्होंने कहा, ‘हम इस स्थिति से मुंह नहीं मोड़ सकते हैं.

हमें इससे बाहर निकलने के लिए जो भी जरूरी हो, वह करना होगा. लेकिन हम आंख मूंदकर आगे नहीं बढ़ सकते. इसलिए हमें अपना रास्ता खुद बनाना होगा. हम कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे. लेकिन अनिवार्य रूप से, भविष्य में किसी न किसी मोड़ पर हमें इन सब चीजों का फिर से सामना करना पड़ेगा. क्योंकि इस खंडित दृष्टिकोण में एक ओर ‘मैं’ होता है और दूसरी ओर बाकी दुनिया या हम और वे.
*भारत को जीवन को चार लक्ष्यों का करना चाहिए पालन*
उन्होंने कहा, ‘भारत को जीवन के चार लक्ष्यों- धर्म, अर्थ (धन), काम (इच्छा और आनंद) और मोक्ष (मुक्ति) के अपने सदियों पुराने दृष्टिकोण का पालन करना चाहिए, जो धर्म से बंधा हो और यह सुनिश्चित करता हो कि कोई भी पीछे न छूटे.
*एक अमेरिकी से मुलाकात का भागवत ने किया जिक्र*
तीन साल पहले अमेरिका के एक सज्जन के साथ अपनी मुलाकात को याद करते हुए भागवत ने उस व्यक्ति का नाम लिए बिना कहा कि उस बातचीत में भारत-अमेरिका साझेदारी और सुरक्षा, आतंकवाद विरोध और अर्थव्यवस्था सहित विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं पर चर्चा हुई थी, लेकिन हर बार वह यही दोहराते रहे बशर्ते अमेरिकी हित सुरक्षित रहें.
भागवत ने किसी का नाम लिए बिना कहा, ‘हर किसी के अलग-अलग हित हैं. इसलिए संघर्ष जारी रहेगा. लेकिन फिर सिर्फ राष्ट्र हित ही मायने नहीं रखता है. मेरा भी हित है. मैं सब कुछ अपने हाथ में रखना चाहता हूं.
*खाद्य श्रृंखला में नीचे रहना है अपराध*
उन्होंने कहा, ‘खाद्य श्रृंखला में जो सबसे ऊपर है, वह सबको खा जाएगा और खाद्य श्रृंखला में सबसे नीचे रहना अपराध है. सिर्फ भारत ही है, जिसने पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर अपनी सभी प्रतिबद्धताएं पूरी की है. और किसने की? क्योंकि इसकी कोई प्रामाणिकता नहीं है. उन्होंने कहा, ‘अगर हमें हर टकराव में लड़ना होता, तो हम 1947 से लेकर आज तक लगातार लड़ते रहते. लेकिन हमने यह सब सहन किया. हमने युद्ध नहीं होने दिया. हमने कई बार उन लोगों की भी मदद की, जिन्होंने हमारी नीतियों का विरोध किया.
*हमारा दृष्टिकोण पूर्वजों के हजारों सालों के अनुभव से लेता है आकार*
भागवत ने कहा कि यदि भारत विश्वगुरु और विश्वमित्र बनना चाहता है तो उसे अपने दृष्टिकोण के आधार पर अपना रास्ता स्वयं बनाना होगा. उन्होंने कहा, ‘अगर हम इसे प्रबंधित करना चाहते हैं, तो हमें अपने दृष्टिकोण से सोचना होगा. सौभाग्य से, हमारे देश का दृष्टिकोण पारंपरिक है. जीवन के प्रति यह दृष्टिकोण पुराना नहीं है; यह सनातन है. यह हमारे पूर्वजों के हजारों वर्षों के अनुभवों से आकार लेता है. उन्होंने कहा, ‘हमारे दृष्टिकोण ने अर्थ और काम को रद्द नहीं किया है. इसके विपरीत, यह जीवन में अनिवार्य है. जीवन के चार लक्ष्यों में धन और काम शामिल हैं. लेकिन यह धर्म से बंधा है. धर्म का अर्थ पूजा पद्धति नहीं है और जो नियम इन सब पर नजर रखता है, वह प्राकृतिक नियम है, यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी पीछे न छूटे. इसका पालन करें. इसके अनुशासन का पालन करें.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।


