Wednesday, October 8, 2025

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चलो बुलावा आया है माँ झण्डेवाली ने बुलाया है

पूरे नौ दिनों तक भक्त मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा और आंतरिक शांति की अनुभूति होती है.

नई दिल्ली, 20 सितम्बर 2025 (यूटीएन)। राजधानी दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवालान मंदिर न केवल दिल्ली-एनसीआर बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध है और भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. यह मंदिर, श्रद्धा और भक्ति का एक अनोखा संगम है, जहां का माहौल नवरात्रि के दौरान और भी भक्तिमय होकर दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर हो जाता है. प्राचीन ऐतिहासिक झण्डेवाला देवी मंदिर में शारदीय नवरात्र महोत्सव  सोमवार 22 सितंबर से लेकर 1 अक्टूबर तक बड़ी धूमधाम से मनाया जायेगा। पूरे नौ दिनों तक भक्त मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा और आंतरिक शांति की अनुभूति होती है. नवरात्रि के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. लोग सुबह 4 बजे से ही लाइन में लग जाते हैं, और कई घंटों के इंतजार के बाद माता के दर्शन कर पाते हैं.
यह जानकारी देते हुए मंदिर के ट्रस्टी एवं सह प्रबंधक रविन्द्र गोयल ने बताया कि इस अवसर पर साधारणतः लाखों भक्त माँ झंडेवाली देवी जी के दर्शन करने आते हैं और अपनी व अपने परिवार के लिए सुख समृद्धि की कामना करते हैं । प्रत्येक नवरात्र की भांति इस बार भी मंदिर द्वारा उन की सुविधा व सुचारू दर्शन के सभी प्रबंध किये हैं। उन्होंने बताया कि रानी झांसी मार्ग,  देश बंधु गुप्ता मार्ग व वरूणालय साइड से मंदिर में दर्शन के लिए प्रवेश किया जा सकेगा। भक्त माँ के दर्शन कर के निकासी द्वार से बाहर निकलेंगे जहाँ उन्हे माँ के भंडारे का प्रसाद दिया जायेगा। मंदिर में चुन्नी, फूल माला या किसी भी प्रकार के प्रसाद चढ़ाने की व्यवस्था नही है। कोई भक्त बाहर की कोई वस्तु लेकर न आयें । मंदिर के अंदर और बाहर भव्य सजावट की गई है जिसका आकर्षण देखते ही बनता है। नवरात्र से तीन दिन पहले से अनेक स्थानों के मंदिरों से भक्तजन ज्योत लेने आते हैं। उनके ठहरने, भोजन प्रसाद आदि की सभी सुविधाएं मंदिर की ओर से प्रदान की जाती हैं।
नवरात्रो मे माँ की आरती प्रात:4 बजे व साँय 7 बजे की जाती है।  सुबह से शाम तक विभिन्न कीर्तन मंडलियां भवन प्रांगण में मां का गुणगान करेंगी। सभी कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण मंदिर द्वारा यू-टयूब व फेसबुक पर किया जायेगा। सुरक्षा के लिये मंदिर परिसर व बाहर 290 सीसीटीवी कैमर लगाये गये हैं और मंदिर के सुरक्षा कर्मी व पुलिस की कड़ी निगरानी रहेगी। झंडेवाली देवी मंदिर दिल्ली के पहाड़गंज और झंडेवालान क्षेत्रों के बीच स्थित है। यह एक बड़ा और मान्यता वाला हिन्दू मंदिर है। यहां नवरात्रि के पर्व पर अत्यधिक श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवाला देवी मंदिर का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। आज जहां पर यह ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिर स्थित है वह अरावली पर्वत की श्रृंखलाओं में से एक श्रृंखला है। उस समय यह स्थान बड़ा मनमोहक था। शांत वातावरण एवं चारों ओर हरियाली ही हरियाली नजर आती थी और फल-फूलों से लदे वृक्ष इसकी सुंदरता को शोभित करते थे।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस स्थान पर बहुत से लोग साधना करने आते थे। उनमें से एक कपड़ा व्यापारी श्री बद्री दास भी थे, जो वैष्णों माता के भक्त थे। एक दिन जब बद्री दास मां भगवती की साधना में लीन थे तो उन्हें अनुभूति हुई कि यहां पर एक प्राचीन मंदिर है जो कि जमीन में धंसा हुआ है। उन्होंने उस जमीन को खरीदकर उसकी खुदाई करवानी शुरू कर दी। थोड़ी ही खुदाई के पश्चात्‌ मंदिर के अवशेष मिले। इसके पश्चात्‌ खुदाई का कार्य तेज करवा दिया गया। वहां पर एक झंडा मिला जिससे इस स्थान का नाम झंडेवाला रख दिया गया। इस सफलता के बाद जब और खुदाई की गई तो भूमि में दबी हुई मां की मूर्ति मिली। परंतु दुर्भाग्य से खोदते समय मां के हाथ खंडित हो गये। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा वर्जित है। इसलिए मां की मूर्ति में चांदी के हाथ बनवाकर लगाये गये। मां की वह मूर्ति अभी भी मंदिर गुफा में सुरक्षित स्थापित है। प्रारंभ में यहां दोनों नवरात्रों में आस-पास के शहरों, गांवों और कस्बों से लोग आते थे।
इस तरह यहां मेला शुरू हुआ। यह मेला पूरे नवरात्र तक चलता था। मां की भेटें, चौकी, जागरण इत्यादि होते रहते थे। यह कार्यक्रम आज भी चालू है। परंतु भक्त हजारों की संख्या के बजाय अब लाखों की संख्या में आते हैं। और मां से अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना  करते हैं । देवी मंदिर का एक भव्य स्वरूप आज निखर कर सबके सामने आया है। विकास के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मंदिर प्रबंध समिति निरंतर प्रयासरत है। झंडेवाला देवी मंदिर अष्टकोणीय मंदिर है। इसका शीर्ष कमल फलकों के आकार का बना है। सबसे नीचे गुफा में माता की प्राचीन मूर्ति है तथा ठीक इसके पीछे एक शिवलिंग है जो मूर्ति के साथ ही खुदायी में प्राप्त हुआ था। चूंकि माता की मूर्ति खुदायी के समय खण्डित हो गयी थी। अत: उसे उसी प्रकार छोड़ दिया गया ताकि उसकी और क्षति न हो। मूर्ति के नीचे का कुछ भाग आज भी उसी अवस्था में है। इसी प्रकार शिवलिंग की भी क्षति न हो इस कारण जितना भाग ऊपर था उतना छोड़कर बाकी नीचे के भाग को आधार प्रदान करते हुए उसे संरक्षित किया गया है।
मुख्य भवन में मां झंडेवाली की मूर्ति प्रतिष्ठापित है जो अत्यंत ही सुंदर है। जिसकी भव्यता का वर्णन शब्दों से नहीं, बल्कि देखकर स्वयं की अनुभूति से ही किया जा सकता है। भवन के दक्षिण दिशा में शीतला माता, संतोषी माता, वैष्णो माता, गणेश जी, लक्ष्मी जी तथा हनुमान जी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर में प्रत्येक मंगलवार एवं शनिवार को माता की चौकी आदि का आयोजन होता रहता है। मंदिर प्रांगण के उत्तर-पूर्व दिशा में एक मनोरम उद्यान है, जिसमें मंदिर के संस्थापक बद्री भगत की कांस्य प्रतिमा स्थापित है तथा उत्तर की ओर मण्डपों से बना हुआ विशाल द्वार है।
यहां एक कुंआ था जिसका पानी इतना मीठा तथा पवित्र था कि १९४० के बाद तक भी आस-पास के लोग यहां से पानी भरकर ले जाते थे। माता के दरबार को भव्य रूप से फूलों, रोशनी और पारंपरिक सजावट से सजाया गया है. मंदिर के प्रबंधक रविन्द्र गोयल ने बताया कि नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है, जिसमें कलश पूजन, मंत्रोच्चार और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है. नवरात्रि के दौरान यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को एक नई प्रेरणा देती है. जो भी यहां माता के दर्शन करने आते हैं, वे अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव का अनुभव करते हैं. यही कारण है कि सदियों से यह मंदिर भक्तों की आध्यात्मिक आस्था का केंद्र बना हुआ है.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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चलो बुलावा आया है माँ झण्डेवाली ने बुलाया है

पूरे नौ दिनों तक भक्त मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा और आंतरिक शांति की अनुभूति होती है.

नई दिल्ली, 20 सितम्बर 2025 (यूटीएन)। राजधानी दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवालान मंदिर न केवल दिल्ली-एनसीआर बल्कि पूरे भारत में प्रसिद्ध है और भक्तों के लिए एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है. यह मंदिर, श्रद्धा और भक्ति का एक अनोखा संगम है, जहां का माहौल नवरात्रि के दौरान और भी भक्तिमय होकर दिव्यता और आध्यात्मिक ऊर्जा से सराबोर हो जाता है. प्राचीन ऐतिहासिक झण्डेवाला देवी मंदिर में शारदीय नवरात्र महोत्सव  सोमवार 22 सितंबर से लेकर 1 अक्टूबर तक बड़ी धूमधाम से मनाया जायेगा। पूरे नौ दिनों तक भक्त मां के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं, जिससे उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा और आंतरिक शांति की अनुभूति होती है. नवरात्रि के दौरान श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. लोग सुबह 4 बजे से ही लाइन में लग जाते हैं, और कई घंटों के इंतजार के बाद माता के दर्शन कर पाते हैं.
यह जानकारी देते हुए मंदिर के ट्रस्टी एवं सह प्रबंधक रविन्द्र गोयल ने बताया कि इस अवसर पर साधारणतः लाखों भक्त माँ झंडेवाली देवी जी के दर्शन करने आते हैं और अपनी व अपने परिवार के लिए सुख समृद्धि की कामना करते हैं । प्रत्येक नवरात्र की भांति इस बार भी मंदिर द्वारा उन की सुविधा व सुचारू दर्शन के सभी प्रबंध किये हैं। उन्होंने बताया कि रानी झांसी मार्ग,  देश बंधु गुप्ता मार्ग व वरूणालय साइड से मंदिर में दर्शन के लिए प्रवेश किया जा सकेगा। भक्त माँ के दर्शन कर के निकासी द्वार से बाहर निकलेंगे जहाँ उन्हे माँ के भंडारे का प्रसाद दिया जायेगा। मंदिर में चुन्नी, फूल माला या किसी भी प्रकार के प्रसाद चढ़ाने की व्यवस्था नही है। कोई भक्त बाहर की कोई वस्तु लेकर न आयें । मंदिर के अंदर और बाहर भव्य सजावट की गई है जिसका आकर्षण देखते ही बनता है। नवरात्र से तीन दिन पहले से अनेक स्थानों के मंदिरों से भक्तजन ज्योत लेने आते हैं। उनके ठहरने, भोजन प्रसाद आदि की सभी सुविधाएं मंदिर की ओर से प्रदान की जाती हैं।
नवरात्रो मे माँ की आरती प्रात:4 बजे व साँय 7 बजे की जाती है।  सुबह से शाम तक विभिन्न कीर्तन मंडलियां भवन प्रांगण में मां का गुणगान करेंगी। सभी कार्यक्रमों का सीधा प्रसारण मंदिर द्वारा यू-टयूब व फेसबुक पर किया जायेगा। सुरक्षा के लिये मंदिर परिसर व बाहर 290 सीसीटीवी कैमर लगाये गये हैं और मंदिर के सुरक्षा कर्मी व पुलिस की कड़ी निगरानी रहेगी। झंडेवाली देवी मंदिर दिल्ली के पहाड़गंज और झंडेवालान क्षेत्रों के बीच स्थित है। यह एक बड़ा और मान्यता वाला हिन्दू मंदिर है। यहां नवरात्रि के पर्व पर अत्यधिक श्रद्धालुओं की भीड़ रहती है। दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवाला देवी मंदिर का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है। आज जहां पर यह ऐतिहासिक एवं प्राचीन मंदिर स्थित है वह अरावली पर्वत की श्रृंखलाओं में से एक श्रृंखला है। उस समय यह स्थान बड़ा मनमोहक था। शांत वातावरण एवं चारों ओर हरियाली ही हरियाली नजर आती थी और फल-फूलों से लदे वृक्ष इसकी सुंदरता को शोभित करते थे।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर इस स्थान पर बहुत से लोग साधना करने आते थे। उनमें से एक कपड़ा व्यापारी श्री बद्री दास भी थे, जो वैष्णों माता के भक्त थे। एक दिन जब बद्री दास मां भगवती की साधना में लीन थे तो उन्हें अनुभूति हुई कि यहां पर एक प्राचीन मंदिर है जो कि जमीन में धंसा हुआ है। उन्होंने उस जमीन को खरीदकर उसकी खुदाई करवानी शुरू कर दी। थोड़ी ही खुदाई के पश्चात्‌ मंदिर के अवशेष मिले। इसके पश्चात्‌ खुदाई का कार्य तेज करवा दिया गया। वहां पर एक झंडा मिला जिससे इस स्थान का नाम झंडेवाला रख दिया गया। इस सफलता के बाद जब और खुदाई की गई तो भूमि में दबी हुई मां की मूर्ति मिली। परंतु दुर्भाग्य से खोदते समय मां के हाथ खंडित हो गये। हिन्दू शास्त्रों के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा वर्जित है। इसलिए मां की मूर्ति में चांदी के हाथ बनवाकर लगाये गये। मां की वह मूर्ति अभी भी मंदिर गुफा में सुरक्षित स्थापित है। प्रारंभ में यहां दोनों नवरात्रों में आस-पास के शहरों, गांवों और कस्बों से लोग आते थे।
इस तरह यहां मेला शुरू हुआ। यह मेला पूरे नवरात्र तक चलता था। मां की भेटें, चौकी, जागरण इत्यादि होते रहते थे। यह कार्यक्रम आज भी चालू है। परंतु भक्त हजारों की संख्या के बजाय अब लाखों की संख्या में आते हैं। और मां से अपनी मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना  करते हैं । देवी मंदिर का एक भव्य स्वरूप आज निखर कर सबके सामने आया है। विकास के विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए मंदिर प्रबंध समिति निरंतर प्रयासरत है। झंडेवाला देवी मंदिर अष्टकोणीय मंदिर है। इसका शीर्ष कमल फलकों के आकार का बना है। सबसे नीचे गुफा में माता की प्राचीन मूर्ति है तथा ठीक इसके पीछे एक शिवलिंग है जो मूर्ति के साथ ही खुदायी में प्राप्त हुआ था। चूंकि माता की मूर्ति खुदायी के समय खण्डित हो गयी थी। अत: उसे उसी प्रकार छोड़ दिया गया ताकि उसकी और क्षति न हो। मूर्ति के नीचे का कुछ भाग आज भी उसी अवस्था में है। इसी प्रकार शिवलिंग की भी क्षति न हो इस कारण जितना भाग ऊपर था उतना छोड़कर बाकी नीचे के भाग को आधार प्रदान करते हुए उसे संरक्षित किया गया है।
मुख्य भवन में मां झंडेवाली की मूर्ति प्रतिष्ठापित है जो अत्यंत ही सुंदर है। जिसकी भव्यता का वर्णन शब्दों से नहीं, बल्कि देखकर स्वयं की अनुभूति से ही किया जा सकता है। भवन के दक्षिण दिशा में शीतला माता, संतोषी माता, वैष्णो माता, गणेश जी, लक्ष्मी जी तथा हनुमान जी आदि देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं। मंदिर में प्रत्येक मंगलवार एवं शनिवार को माता की चौकी आदि का आयोजन होता रहता है। मंदिर प्रांगण के उत्तर-पूर्व दिशा में एक मनोरम उद्यान है, जिसमें मंदिर के संस्थापक बद्री भगत की कांस्य प्रतिमा स्थापित है तथा उत्तर की ओर मण्डपों से बना हुआ विशाल द्वार है।
यहां एक कुंआ था जिसका पानी इतना मीठा तथा पवित्र था कि १९४० के बाद तक भी आस-पास के लोग यहां से पानी भरकर ले जाते थे। माता के दरबार को भव्य रूप से फूलों, रोशनी और पारंपरिक सजावट से सजाया गया है. मंदिर के प्रबंधक रविन्द्र गोयल ने बताया कि नवरात्रि की शुरुआत घटस्थापना से होती है, जिसमें कलश पूजन, मंत्रोच्चार और गंगाजल से अभिषेक किया जाता है. नवरात्रि के दौरान यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा भक्तों को एक नई प्रेरणा देती है. जो भी यहां माता के दर्शन करने आते हैं, वे अपने जीवन में सकारात्मक बदलाव का अनुभव करते हैं. यही कारण है कि सदियों से यह मंदिर भक्तों की आध्यात्मिक आस्था का केंद्र बना हुआ है.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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