Thursday, July 31, 2025

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अमृता हॉस्पिटल में वगैर ओपन हार्ट सर्जरी के बचाई गई चार जिंदगियां

फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में 4 मरीजों का ट्रांस कैथेटर पल्मोनरी वॉल्व रिप्लेसमेंट नाम की एक खास हार्ट प्रक्रिया से बिना ओपन हार्ट सर्जरी से सफ़ल इलाज़ किया गया।

नई दिल्ली, 11 जुलाई 2025 (यूटीएन)। फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में 4 मरीजों का ट्रांस कैथेटर पल्मोनरी वॉल्व रिप्लेसमेंट नाम की एक खास हार्ट प्रक्रिया से बिना ओपन हार्ट सर्जरी से सफ़ल इलाज़ किया गया। भारत में जन्मजात हार्ट की बीमारियों के इलाज के लिए डॉक्टरों ने इसे एक बड़ी उपलब्धि बताया है। टीपीवीआर एक आसान और कम दर्द वाली प्रक्रिया होती है। इसमें खराब हार्ट वॉल्व को ठीक करने के लिए एक पतली और लचीली ट्यूब (कैथेटर) का इस्तेमाल किया जाता है। यह ट्यूब नस के रास्ते अंदर डाली जाती है, जिससे छाती में चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। इन मरीजों की बचपन में हार्ट की सर्जरी हुई थी।
क्योंकि उन्हें टेट्रालॉजी ऑफ फ्लोट नाम की जन्मजात हार्ट की बीमारी थी। यह बीमारी हार्ट में खून के बहाव को प्रभावित करती है। कई सालों बाद उन्हें दोबारा समस्या होने लगी क्योंकि उनका पल्मोनरी वॉल्व लीक करने लगा। यह लीक होना पहली सर्जरी के सालों बाद एक आम दिक्कत मानी जाती है। आम तौर पर ऐसे मामलों में दोबारा ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ती है। इस तरह की सर्जरी काफी जोखिम भरी होती है और ठीक होने में ज्यादा समय लगता है। अमृता हॉस्पिटल में ओपन हार्ट सर्जरी करने की बजाय कार्डियोलॉजी टीम ने टीपीवीआर नाम की खास तकनीक से इलाज किया। इसमें हार्मोनी ™ वॉल्व सिस्टम का इस्तेमाल हुआ। यह एक नए जमाने का वॉल्व है जो बायोलॉजिकल टिशू से बना होता है
और एक मेटल फ्रेम पर लगाया जाता है। इस इलाज से चार मरीजों को फायदा हुआ। इन मरीजों में 37 साल के मरीज दिल्ली से, 17 साल के नोएडा से, 14 साल के गुरुग्राम से और 15 साल के नोएडा से शामिल थे। सभी को प्रक्रिया के 48 घंटे के अंदर ही हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई। ओपन हार्ट सर्जरी होने पर सामान्य रूप से ऐसे मरीजों को 10 से 12 दिन हॉस्पिटल में रहना पड़ता है। डॉ. एस. राधाकृष्णन, प्रमुख एवं प्रोफेसर, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी और एडल्ट कंजेनिटल हार्ट की बीमारियों के विशेषज्ञ ने कहा, “दुनियाभर में करीब 40% मरीज जिन्हें बचपन में टेट्रालॉजी ऑफ़ फैलोट की सर्जरी हुई होती है, उन्हें 30 साल के अंदर पल्मोनरी वॉल्व बदलवाने की जरूरत पड़ती है।” उन्होंने आगे बताया, “भारत में ज़्यादातर ऐसे केसों में भी पारंपरिक ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है।
जबकि टीपीवीआर एक कम तकलीफदेह और जल्दी ठीक होने वाला विकल्प है। इसकी सफलता दर दुनियाभर में 95% से भी ज्यादा है। हालांकि भारत में अब भी 10% से कम मरीज ही इस तकनीक का फायदा उठा पा रहे हैं। इसका मुख्य कारण है इसकी लागत, सीमित उपलब्धता और यह कि ज़्यादातर ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल अब भी  ओपन सर्जरी को प्राथमिकता देते हैं डॉ. सुशील आज़ाद, डिप्टी हेड और प्रमुख कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी ने कहा, टीपीवीआर प्रक्रिया उन मरीजों के लिए खास तौर पर फायदेमंद होती है, जिन्हें पहले कई बार ओपन हार्ट सर्जरी हो चुकी है या जिनमें सर्जरी का खतरा बहुत ज़्यादा है। भारत जैसे देश में जहां हर साल लगभग 2 लाख बच्चे जन्मजात हार्ट की बीमारी के साथ जन्म लेते हैं और समय पर सर्जरी की सुविधा बहुत कम है, वहां टीपीवीआर का ज़्यादा इस्तेमाल इलाज का तरीका बदल सकता है।
अगर टीपीवीआर को बच्चों में जन्मजात हार्ट की बीमारियों के नियमित इलाज में शामिल किया जाए, तो हम हज़ारों ऐसे मरीजों को ज्यादा सुरक्षित, तेज़ और लंबे समय तक असरदार इलाज दे सकते हैं, जो अभी देर से या बार-बार जोखिम भरी सर्जरी करवा रहे हैं।” इन सफल प्रक्रियाओं में 5 डॉक्टरों की एक मल्टीडिसिप्लिनरी टीम शामिल थी। टीम में इंटरवेंशनल और पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी के विशेषज्ञ थे। इस टीम में डॉ. अंकित गर्ग (कंसल्टेंट, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी), डॉ. सविता कृष्णमूर्ति गुइन (असिस्टेंट प्रोफेसर, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी), और डॉ. शशिकपूर डब्बर यादव (असिस्टेंट प्रोफेसर, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी) शामिल थे। हर प्रक्रिया को पूरा होने में करीब 60 से 90 मिनट लगे। अमृता हॉस्पिटल इस समय भारत का एकमात्र ऐसा सेंटर है जिसे हार्मनी वॉल्व इम्प्लांटेशन को अंतरराष्ट्रीय निगरानी के बिना स्वतंत्र रूप से करने की अधिकृत अनुमति प्राप्त है।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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अमृता हॉस्पिटल में वगैर ओपन हार्ट सर्जरी के बचाई गई चार जिंदगियां

फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में 4 मरीजों का ट्रांस कैथेटर पल्मोनरी वॉल्व रिप्लेसमेंट नाम की एक खास हार्ट प्रक्रिया से बिना ओपन हार्ट सर्जरी से सफ़ल इलाज़ किया गया।

नई दिल्ली, 11 जुलाई 2025 (यूटीएन)। फरीदाबाद के अमृता हॉस्पिटल में 4 मरीजों का ट्रांस कैथेटर पल्मोनरी वॉल्व रिप्लेसमेंट नाम की एक खास हार्ट प्रक्रिया से बिना ओपन हार्ट सर्जरी से सफ़ल इलाज़ किया गया। भारत में जन्मजात हार्ट की बीमारियों के इलाज के लिए डॉक्टरों ने इसे एक बड़ी उपलब्धि बताया है। टीपीवीआर एक आसान और कम दर्द वाली प्रक्रिया होती है। इसमें खराब हार्ट वॉल्व को ठीक करने के लिए एक पतली और लचीली ट्यूब (कैथेटर) का इस्तेमाल किया जाता है। यह ट्यूब नस के रास्ते अंदर डाली जाती है, जिससे छाती में चीरा लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। इन मरीजों की बचपन में हार्ट की सर्जरी हुई थी।
क्योंकि उन्हें टेट्रालॉजी ऑफ फ्लोट नाम की जन्मजात हार्ट की बीमारी थी। यह बीमारी हार्ट में खून के बहाव को प्रभावित करती है। कई सालों बाद उन्हें दोबारा समस्या होने लगी क्योंकि उनका पल्मोनरी वॉल्व लीक करने लगा। यह लीक होना पहली सर्जरी के सालों बाद एक आम दिक्कत मानी जाती है। आम तौर पर ऐसे मामलों में दोबारा ओपन हार्ट सर्जरी करनी पड़ती है। इस तरह की सर्जरी काफी जोखिम भरी होती है और ठीक होने में ज्यादा समय लगता है। अमृता हॉस्पिटल में ओपन हार्ट सर्जरी करने की बजाय कार्डियोलॉजी टीम ने टीपीवीआर नाम की खास तकनीक से इलाज किया। इसमें हार्मोनी ™ वॉल्व सिस्टम का इस्तेमाल हुआ। यह एक नए जमाने का वॉल्व है जो बायोलॉजिकल टिशू से बना होता है
और एक मेटल फ्रेम पर लगाया जाता है। इस इलाज से चार मरीजों को फायदा हुआ। इन मरीजों में 37 साल के मरीज दिल्ली से, 17 साल के नोएडा से, 14 साल के गुरुग्राम से और 15 साल के नोएडा से शामिल थे। सभी को प्रक्रिया के 48 घंटे के अंदर ही हॉस्पिटल से छुट्टी मिल गई। ओपन हार्ट सर्जरी होने पर सामान्य रूप से ऐसे मरीजों को 10 से 12 दिन हॉस्पिटल में रहना पड़ता है। डॉ. एस. राधाकृष्णन, प्रमुख एवं प्रोफेसर, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी और एडल्ट कंजेनिटल हार्ट की बीमारियों के विशेषज्ञ ने कहा, “दुनियाभर में करीब 40% मरीज जिन्हें बचपन में टेट्रालॉजी ऑफ़ फैलोट की सर्जरी हुई होती है, उन्हें 30 साल के अंदर पल्मोनरी वॉल्व बदलवाने की जरूरत पड़ती है।” उन्होंने आगे बताया, “भारत में ज़्यादातर ऐसे केसों में भी पारंपरिक ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है।
जबकि टीपीवीआर एक कम तकलीफदेह और जल्दी ठीक होने वाला विकल्प है। इसकी सफलता दर दुनियाभर में 95% से भी ज्यादा है। हालांकि भारत में अब भी 10% से कम मरीज ही इस तकनीक का फायदा उठा पा रहे हैं। इसका मुख्य कारण है इसकी लागत, सीमित उपलब्धता और यह कि ज़्यादातर ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल अब भी  ओपन सर्जरी को प्राथमिकता देते हैं डॉ. सुशील आज़ाद, डिप्टी हेड और प्रमुख कंसल्टेंट, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी ने कहा, टीपीवीआर प्रक्रिया उन मरीजों के लिए खास तौर पर फायदेमंद होती है, जिन्हें पहले कई बार ओपन हार्ट सर्जरी हो चुकी है या जिनमें सर्जरी का खतरा बहुत ज़्यादा है। भारत जैसे देश में जहां हर साल लगभग 2 लाख बच्चे जन्मजात हार्ट की बीमारी के साथ जन्म लेते हैं और समय पर सर्जरी की सुविधा बहुत कम है, वहां टीपीवीआर का ज़्यादा इस्तेमाल इलाज का तरीका बदल सकता है।
अगर टीपीवीआर को बच्चों में जन्मजात हार्ट की बीमारियों के नियमित इलाज में शामिल किया जाए, तो हम हज़ारों ऐसे मरीजों को ज्यादा सुरक्षित, तेज़ और लंबे समय तक असरदार इलाज दे सकते हैं, जो अभी देर से या बार-बार जोखिम भरी सर्जरी करवा रहे हैं।” इन सफल प्रक्रियाओं में 5 डॉक्टरों की एक मल्टीडिसिप्लिनरी टीम शामिल थी। टीम में इंटरवेंशनल और पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी के विशेषज्ञ थे। इस टीम में डॉ. अंकित गर्ग (कंसल्टेंट, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी), डॉ. सविता कृष्णमूर्ति गुइन (असिस्टेंट प्रोफेसर, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी), और डॉ. शशिकपूर डब्बर यादव (असिस्टेंट प्रोफेसर, पीडियाट्रिक कार्डियोलॉजी) शामिल थे। हर प्रक्रिया को पूरा होने में करीब 60 से 90 मिनट लगे। अमृता हॉस्पिटल इस समय भारत का एकमात्र ऐसा सेंटर है जिसे हार्मनी वॉल्व इम्प्लांटेशन को अंतरराष्ट्रीय निगरानी के बिना स्वतंत्र रूप से करने की अधिकृत अनुमति प्राप्त है।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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