Tuesday, October 28, 2025

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एम्स में पहली बार हुआ भ्रूण दान, इससे र‍िसर्च को मिलेगी नई दिशा

32 वर्षीय वंदना जैन का पांचवें महीने में गर्भपात हो गया था. इस मुश्किल घड़ी में परिवार ने भ्रूण को शोध और शिक्षा के लिए एम्स को दान करने का निर्णय लिया.

नई दिल्ली, 09 सितम्बर 2025 (यूटीएन)। दिल्ली में एक ऐतिहासिक पहल हुई है. एम्स को पहली बार भ्रूण दान मिला है. ये कदम एक परिवार के दर्द को समाज और विज्ञान की ताकत में बदलने का उदाहरण है. 32 वर्षीय वंदना जैन का पांचवें महीने में गर्भपात हो गया था. इस मुश्किल घड़ी में परिवार ने भ्रूण को शोध और शिक्षा के लिए एम्स को दान करने का निर्णय लिया.
*सुबह से शाम तक संघर्ष और फिर रचा इतिहास*
वंदना जैन के परिवार का सुबह 8 बजे दधीचि देहदान समिति से संपर्क हुआ. समिति के उपाध्यक्ष सुधीर गुप्ता और समन्वयक जी.पी. तायल ने त्वरित पहल करते हुए एम्स के एनाटॉमी विभाग के प्रमुख डॉ. एस.बी. राय और उनकी टीम से बातचीत की. टीम के सहयोग से दिनभर दस्तावेज आद‍ि औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शाम 7 बजे एम्स ने अपना पहला भ्रूण दान प्राप्त किया.
*क्या होगा भ्रूण दान का फायदा*
भ्रूण दान सिर्फ एक मेडिकल प्रोसेस नहीं, बल्कि आने वाले समय की रिसर्च और शिक्षा का बड़ा आधार है. एम्स में एनाटॉमी विभााग के प्रोफेसर डॉ. सुब्रत बासु ने बताया कि कि मानव शरीर के विकास को समझने के लिए भ्रूण अध्ययन बेहद अहम है. रिसर्च और टीचिंग में हमें यह देखने का मौका मिलता है कि किस तरह शरीर के अलग-अलग अंग अलग-अलग समय पर विकसित होते हैं. जैसे बच्चा जब जन्म लेता है तो उसका नर्वस सिस्टम पूरी तरह डेवेलप नहीं होता. वह धीरे-धीरे दो साल बाद विकसित होता है. ऐसे मामलों का अध्ययन मेडिकल छात्रों और वैज्ञानिकों को गहराई से समझने का मौका देता है. डॉ. बासु आगे कहते हैं कि यह शोध एजिंग की प्रक्रिया को समझने में भी मदद करेगा. भ्रूण में टिश्यू लगातार ग्रो करते हैं, वहीं बुढ़ापे में टिश्यू डैमेज होने लगते हैं.
अगर हम यह समझ पाएं कि कौन से फैक्टर टिश्यू को ग्रो कराते हैं और कौन से उन्हें डैमेज करते हैं, तो भविष्य में उम्र से जुड़ी कई बीमारियों का हल निकालने में मदद मिलेगी. वह एक और अहम पहलू बताते हैं कि बच्चों में एनेस्थीसिया का इस्तेमाल एक बड़ी चुनौती है. छोटे बच्चे बोल नहीं पाते, उन्हें कितना डोज देना है, यह सटीक पता होना ज़रूरी है. भ्रूण अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किस स्टेज पर बच्चे का कौन-सा ऑर्गन कितना विकसित है और उसे किस तरह सुरक्षित तरीके से उसे ट्रीट किया जा सकता है.
*जैन परिवार की मिसाल*
इस पहल ने जैन परिवार को समाज में एक अनूठी मिसाल बना दिया. उन्होंने अपने व्यक्तिगत दुख को मानवता और विज्ञान के लिए अमूल्य योगदान में बदल दिया. दधीचि देहदान समिति पहले से ही अंगदान, नेत्रदान और देहदान के क्षेत्र में देशभर में जागरूकता फैलाती रही है. भ्रूण दान का यह पहला मामला समिति की मुहिम को और ऐतिहासिक बना गया है. ये कहानी सिर्फ भ्रूण दान की नहीं है, बल्कि संवेदना, साहस और समर्पण की है. वंदना जैन और उनका परिवार आने वाले समय में लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन गए हैं. एम्स और दधीचि देहदान समिति की ये पहल भविष्य की पीढ़ियों को चिकित्सा की नई राह दिखाएगाा.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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एम्स में पहली बार हुआ भ्रूण दान, इससे र‍िसर्च को मिलेगी नई दिशा

32 वर्षीय वंदना जैन का पांचवें महीने में गर्भपात हो गया था. इस मुश्किल घड़ी में परिवार ने भ्रूण को शोध और शिक्षा के लिए एम्स को दान करने का निर्णय लिया.

नई दिल्ली, 09 सितम्बर 2025 (यूटीएन)। दिल्ली में एक ऐतिहासिक पहल हुई है. एम्स को पहली बार भ्रूण दान मिला है. ये कदम एक परिवार के दर्द को समाज और विज्ञान की ताकत में बदलने का उदाहरण है. 32 वर्षीय वंदना जैन का पांचवें महीने में गर्भपात हो गया था. इस मुश्किल घड़ी में परिवार ने भ्रूण को शोध और शिक्षा के लिए एम्स को दान करने का निर्णय लिया.
*सुबह से शाम तक संघर्ष और फिर रचा इतिहास*
वंदना जैन के परिवार का सुबह 8 बजे दधीचि देहदान समिति से संपर्क हुआ. समिति के उपाध्यक्ष सुधीर गुप्ता और समन्वयक जी.पी. तायल ने त्वरित पहल करते हुए एम्स के एनाटॉमी विभाग के प्रमुख डॉ. एस.बी. राय और उनकी टीम से बातचीत की. टीम के सहयोग से दिनभर दस्तावेज आद‍ि औपचारिकताएं पूरी करने के बाद शाम 7 बजे एम्स ने अपना पहला भ्रूण दान प्राप्त किया.
*क्या होगा भ्रूण दान का फायदा*
भ्रूण दान सिर्फ एक मेडिकल प्रोसेस नहीं, बल्कि आने वाले समय की रिसर्च और शिक्षा का बड़ा आधार है. एम्स में एनाटॉमी विभााग के प्रोफेसर डॉ. सुब्रत बासु ने बताया कि कि मानव शरीर के विकास को समझने के लिए भ्रूण अध्ययन बेहद अहम है. रिसर्च और टीचिंग में हमें यह देखने का मौका मिलता है कि किस तरह शरीर के अलग-अलग अंग अलग-अलग समय पर विकसित होते हैं. जैसे बच्चा जब जन्म लेता है तो उसका नर्वस सिस्टम पूरी तरह डेवेलप नहीं होता. वह धीरे-धीरे दो साल बाद विकसित होता है. ऐसे मामलों का अध्ययन मेडिकल छात्रों और वैज्ञानिकों को गहराई से समझने का मौका देता है. डॉ. बासु आगे कहते हैं कि यह शोध एजिंग की प्रक्रिया को समझने में भी मदद करेगा. भ्रूण में टिश्यू लगातार ग्रो करते हैं, वहीं बुढ़ापे में टिश्यू डैमेज होने लगते हैं.
अगर हम यह समझ पाएं कि कौन से फैक्टर टिश्यू को ग्रो कराते हैं और कौन से उन्हें डैमेज करते हैं, तो भविष्य में उम्र से जुड़ी कई बीमारियों का हल निकालने में मदद मिलेगी. वह एक और अहम पहलू बताते हैं कि बच्चों में एनेस्थीसिया का इस्तेमाल एक बड़ी चुनौती है. छोटे बच्चे बोल नहीं पाते, उन्हें कितना डोज देना है, यह सटीक पता होना ज़रूरी है. भ्रूण अध्ययन से हमें यह समझने में मदद मिलती है कि किस स्टेज पर बच्चे का कौन-सा ऑर्गन कितना विकसित है और उसे किस तरह सुरक्षित तरीके से उसे ट्रीट किया जा सकता है.
*जैन परिवार की मिसाल*
इस पहल ने जैन परिवार को समाज में एक अनूठी मिसाल बना दिया. उन्होंने अपने व्यक्तिगत दुख को मानवता और विज्ञान के लिए अमूल्य योगदान में बदल दिया. दधीचि देहदान समिति पहले से ही अंगदान, नेत्रदान और देहदान के क्षेत्र में देशभर में जागरूकता फैलाती रही है. भ्रूण दान का यह पहला मामला समिति की मुहिम को और ऐतिहासिक बना गया है. ये कहानी सिर्फ भ्रूण दान की नहीं है, बल्कि संवेदना, साहस और समर्पण की है. वंदना जैन और उनका परिवार आने वाले समय में लाखों लोगों के लिए उम्मीद की किरण बन गए हैं. एम्स और दधीचि देहदान समिति की ये पहल भविष्य की पीढ़ियों को चिकित्सा की नई राह दिखाएगाा.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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