नई दिल्ली, 04 सितम्बर 2025 (यूटीएन)। भारत में हर साल हजारों लोग कॉर्निया डैमेज होने के कारण अंधे हो जाते हैं. कॉर्निया हमारी आंख की सबसे बाहरी परत होती है, जो लाइट को आंख में जाने और फोकस करने में मदद करती है. अगर किसी व्यक्ति की कॉर्निया डैमेज हो जाए, तो उसमें दूसरी कॉर्निया डाली जा सकती है, लेकिन भारत में डोनर कॉर्निया की भारी कमी है. देश में अंगदान करने वालों की संख्या बहुत कम है, जबकि इसकी जरूरत बहुत लोगों को है. डोनर कॉर्निया मिलने के लिए लोगों को सालों तक इंतजार करना पड़ता है. कई बार कॉर्निया ट्रांसप्लांट का मौका ही नहीं मिल पाता है. दिल्ली एम्स और आईआईटी दिल्ली की एक टीम ने मिलकर बायोइंजीनियर्ड कॉर्निया डेवलप कर ली है, जिसका इंसानों पर क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो चुका है.

अगर यह ट्रायल सफल होता है, तो भारत में कॉर्निया ट्रांसप्लांट के लिए डोनर की निर्भरता काफी हद तक कम हो सकती है और हजारों लोगों की आंखों की रोशनी लौट सकती है. यह बायोइंजीनियर्ड कॉर्निया उन डोनेटेड कॉर्नियाज से बनाया गया है, जिन्हें अब तक अनफिट मानकर फेंक दिया जाता था. इस तकनीक से ऐसी कॉर्निया को भी उपयोगी बनाया जा सकता है, जिसमें लाइव सेल्स नहीं होतीं या जो इन्फेक्टेड होती हैं. इस तकनीक से कॉर्निया ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध सामग्री का दायरा बढ़ जाएगा. अब सवाल है कि यह बायोइंजीनियर्ड कॉर्निया कैसे काम करता है? एक्सपर्ट्स की मानें तो इस कॉर्निया में जीवित कोशिकाएं नहीं होती हैं. जब किसी मरीज की कॉर्निया की ऊपरी सतह डैमेज्ड हो, लेकिन नीचे की परत ठीक हो, तब यह तकनीक बहुत प्रभावी साबित होती है.
बायोइंजीनियर्ड कॉर्निया का ग्राफ्ट प्राकृतिक कॉर्निया के साथ जुड़कर धीरे-धीरे शरीर की अपनी कोशिकाओं से ढक जाता है और एक नई पारदर्शी सतह बन जाती है. यह तकनीक उन मरीजों के लिए वरदान है, जिनके कॉर्निया का कोई हिस्सा पतला हो गया हो या संक्रमण के कारण डैमेज होने की कंडीशन में हो. इस स्थिति में पूरी कॉर्निया बदलने की जगह केवल एक छोटा सा पैच लगाकर आंखों को मजबूती दी जा सकती है. इससे न केवल रोशनी बचाई जा सकती है, बल्कि मरीज को कम जोखिम और कम खर्च में इलाज मिल सकता है. डोनेटेड कॉर्नियाज में से बड़ी संख्या में कॉर्निया को उपयोग के लायक नहीं मानकर या तो फेंक दिया जाता है या मेडिकल ट्रेनिंग में इस्तेमाल किया जाता है.
हालांकि इस नई तकनीक से उन सभी कॉर्नियाज को एक स्कैफोल्ड में बदला जा सकता है और मरीज की आंखों में फिर से उपयोग लाया जा सकता है. इससे दान की गई आंखों का उपयोग भी ज्यादा से ज्यादा हो पाएगा. इसका ट्रायल करने से पहले वैज्ञानिकों ने यह सुनिश्चित किया कि यह तकनीक शरीर के लिए सुरक्षित है. लैब में परीक्षण किया गया और पाया गया कि इस कृत्रिम कॉर्निया पर कोशिकाएं न केवल जुड़ती हैं, बल्कि बिना किसी टॉक्सिक इफेक्ट के पनपती भी हैं. इसके बाद खरगोशों पर सफल परीक्षण किए गए, जिससे यह प्रमाणित हुआ कि यह शरीर में एक्सेप्ट हो सकती है.
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।