मुंबई, 09 मार्च 2025 (UTN)। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस करीब आ रहा है, और इस मौके पर मून बनर्जी, जो चश्मे बद्दूर, अभिमान, घर एक मंदिर, कसौटी ज़िंदगी की, क्योंकि सास भी कभी बहू थी, मुस्कान, ससुराल सिमर का 2 और डोरी जैसे शोज़ का हिस्सा रही हैं, कहती हैं कि वह खुद अपनी सबसे बड़ी समर्थक हैं और खुद को ही प्रेरणा मानती हैं।
“मैं निश्चित रूप से खुद को प्रेरणा मानती हूं। सबसे पहले, मैंने जिस तरह से कई चीजों को एक साथ संभाला है, वह काबिल-ए-तारीफ है। मैं अपनी सबसे बड़ी चीयरलीडर हूं। इसलिए, मैं खुद को और उन सभी महिलाओं को देखती हूं, जिन्होंने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला है। कहते हैं कि यह पुरुषों की दुनिया है, और आज के समय में एक महिला होना सच में मुश्किल है,” उन्होंने कहा।
जब उनसे पूछा गया कि कौन-सा किरदार उनके दिल के सबसे करीब रहा, तो उन्होंने कुछ रंग प्यार के ऐसे भी में निभाए गए आशा बोस के किरदार का नाम लिया। हालांकि, वह मानती हैं कि पर्दे पर महिलाओं की छवि बदल रही है, लेकिन इसमें अभी भी बहुत सुधार की जरूरत है।
“बदलाव बहुत धीरे-धीरे हो रहा है, लेकिन हो रहा है। हालांकि, अभी भी हम एक तयशुदा फॉर्मूले से बंधे हुए हैं और उसी को अपनाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे मेकर्स हैं जो प्रयोग करने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही, मैं चाहती हूं कि इंडस्ट्री में महिला कलाकारों को ज्यादा सम्मान और समानता मिले,” उन्होंने कहा।
जब उनसे टीवी इंडस्ट्री में वेतन असमानता के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “मुझे नहीं पता कि यह जेंडर की वजह से है या कुछ और, लेकिन इन दिनों इस फील्ड में वेतन असमानता देखने को मिलती है। कमर्शियल प्रोजेक्ट्स तेजी से घट रहे हैं, और यह बहुत दुखद है, खासकर तब जब आप इस इंडस्ट्री में दो दशक से ज्यादा समय बिता चुके हों।”
मून का मानना है कि सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां लैंगिक भेदभाव और असमानता की कोई जगह नहीं है। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि यह एक बहुत ही आधुनिक और प्रगतिशील जगह है।
मुंबई-रिपोर्टर,(हितेश जैन)।