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एम्स का दावा- दुनिया में पहली बार अल्फा थेरेपी से कैंसर का इलाज सफल

एम्स के डॉक्टरों ने अल्फा थेरेपी के जरिए कैंसर के इलाज की सफल स्टडी कर नई उम्मीद जगा दी है।

नई दिल्ली, 27 मई 2023 (यूटीएन)।  एम्स के डॉक्टरों ने अल्फा थेरेपी के जरिए कैंसर के इलाज की सफल स्टडी कर नई उम्मीद जगा दी है। दुनिया में पहली बार अल्फा थेरेपी के जरिए न्यूरोएंडोक्राइन कैंसर का सफल इलाज करने में एम्स के डॉक्टरों को सफलता मिली है। इसे अमेरिका की जनरल ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन ने प्रकाशित किया
और पहली बार भारतीय डॉक्टरों का लोहा भी माना। एम्स के न्यूक्लियर मेडिसिन के एचओडी डॉ सी.एस. बाल का दावा है कि जून में शिकागो में होने वाले इंटरनैशनल कॉन्फ्रेंस में भारत को पहली बार हाइलाइट्स देश का दर्जा दिया गया है। भारत की स्टडी दुनिया जानेगी और इसे अपने यहां इलाज में शामिल करेगी।
डॉक्टर बाल ने कहा कि यह कैंसर के खिलाफ एडवांस टारगेटेड थेरेपी है। इसका मूल सिद्धांत यह होता है कि जहां पर कैंसर होता है उसे रिसेप्टर का इस्तेमाल करना होता है, ताकि जब दवा दी जाए तो वह केवल उसी सेल से चिपके, न कि बाकी सेल से। इससे असर केवल कैंसर के उसी सेल पर होता है, बाकी सेल में कोई नुकसान नहीं होता है।
उदाहरण के तौर पर थायरॉइड कैंसर के लिए रेडियो आयोडीन रिस्पेटर की जरूरत होती है। अल्फा थेरेपी में दो प्रोटीन और दो न्यूट्रॉन का इस्तेमाल हुआ है, इसलिए इसका वजन ज्यादा है। यह बीटा थेरेपी से 20 गुना ज्यादा पावरफुल है, लेकिन इसका वजन ज्यादा है। इसलिए जब इसका इस्तेमाल किया जाता है तो यह ज्यादा दूर तक नहीं जा सकता है।
इसलिए एसी- डोटेट जो एक प्रकार के वाइकल की तरह है, वह दवा को रिस्पेटर तक लेकर जाता है और रेडियोएक्टिव दवा कैंसर सेल को टारगेट करके मार देती है। डॉक्टर ने कह कि अल्फा थेरेपी में जो दवा दी जाती है उसका नाम एक्टिनियम 225 है। इसे जर्मनी से मंगाया जाता है। एक डोज की कीमत लगभग सवा पांच लाख है।
इसे थोरियम से बनाया जाता है। इसे केवल जर्मनी बनाता है, उसी की तकनीक सफल है। अमेरिका भी नहीं बनाता है। लेकिन जर्मनी थोरियम रूस से लेता है। अभी एक साल से रूस और यूक्रेन युद्ध की वजह से जर्मनी को थोरियम नहीं मिल रहा है। पहले हम महीने में 20 से 25 डोज मंगाते थे, अभी एक डोज भी नहीं मिल रहा है। भारत में भी इसे बनाया जा सकता है। लेकिन इसके लिए काम करने की जरूरत है।
*ऐसे हुआ शोध*
अल्फा थेरेपी में दो प्रोटीन और दो न्यूटॉन का इस्तेमाल किया गया है। यह बीटा थेरेपी से 20 गुणा ज्यादा ताकतवर है। यह एक एडवांस वर्जन है। इसमें दवा ज्यादा दूर तक नहीं जा पाती। इसमें दवा को कैंसर के सेल तक लेकर जाया जाता है और रेडियोएक्टिव दवा कैंसर सेल को टारगेट करके मार देती है।
*91 मरीजों पर किया अध्ययन* न्यूक्लियर मेडिसिन विभाग के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. सीएस बाल ने बताया कि इस शोध में 91 मरीजों पर ट्रायल किया गया। इसमें 54 पुरुष और 37 महिलाएं हैं। इसमें दवा के रूप में मरीज को एक्टिनियम 225 दी जाती है। जिसे थोरियम से इसे बनाया जाता है। उन्होंने कहा कि न्यूरोइंडोक्राइन कैंसर में मौत की संभावना बहुत ज्यादा है। एक्टर इरफान खान इसी से पीड़ित था।
*अमेरिका ने माना एम्स का लोहा*
डॉ. बाल ने कहा कि इस शोध के कारण अमेरिका ने भी एम्स का लोहा माना है। अमेरिका ने पहली बार किसी दूसरे देश के रिसर्च को इस तरह से स्वीकार किया है। उन्होंने कहा कि हमारे डॉक्टर जून में होने वाले सम्मेलन में इस शोध पर अपनी बात रखेंगे।
*4 विभागों के प्रमुख छोड़ेंगे अस्पताल*
दिल्ली के एम्स को लेकर बड़ी खबर सामने आई है। एम्स के चार एचओडी ने हॉस्पिटल छोड़ने का मन बना लिया है। इसमें ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख डॉ. राजेश मल्होत्रा, न्यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. एम. पी. पद्मा , ऑन्कोलॉजी के एचओडी डॉ. अतुल शर्मा और गायनी विभाग की एचओडी डॉ. नीरजा भाटला शामिल हैं।
एम्स के ऑर्थोपेडिक विभाग के एचओडी और ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख डॉ. राजेश मल्होत्रा, न्यूरोलॉजी विभाग के एचओडी डॉ. एम. पी. पद्मा, मेडिकल ऑन्कोलॉजी के एचओडी डॉ. अतुल शर्मा और गायनी विभाग की एचओडी डॉ. नीरजा भाटला ने अस्पताल छोड़ने का मन बना लिया है। चारों डॉक्टरों ने वॉलेंट्री रियाटरमेंट स्कीम (VRS) के तहत आवेदन कर दिया है। इसमें दो प्रमुख नाम डॉ. राजेश मल्होत्रा और डॉ. एम. वी. पद्मा डायरेक्टर के पद की रेस में शामिल थे। लेकिन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने डॉ. एम श्रीनिवास को एम्स की जिम्मेदारी सौंपी।
*दो प्रमुख डॉक्टर थे डायरेक्टर पद की रेस में शामिल*
दरअसल, सूत्रों का कहना है कि जो दो प्रमुख डॉक्टर डायरेक्टर पद की रेस में थे। अब उनका डायरेक्टर बनने का सपना पूरा नहीं हो सकता। क्योंकि दोनों अभी एचओडी हैं और अब उनकी उम्र इतनी नहीं बची है कि पांच साल के बाद उन्हें यह पद मिल सके। तब तक वो रिटायर हो जाएंगे, लेकिन दोनों डॉक्टर अपने अपने विभाग के एचओडी और एक्सपर्ट थे। उनके एम्स छोड़े जाने से कहीं न कहीं आम मरीजों का नुकसान होगा। इन दोनों के अलावा एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉक्टर गुलेरिया ने भी एम्स छोड़ दिया, जबकि उनकी दो साल की नौकरी बची हुई थी।
*एम्स छोड़ने के बारे में नहीं बता पा रहे वाजिब कारण*
वहीं, दूसरी ओर मेडिकल ऑन्कोलॉजी के एचओडी डॉक्टर अतुल शर्मा कैंसर के गिने चुने डॉक्टर में से हैं। उन्होंने भी वीआरएस के लिए आवेदन किया है। सूत्र भी डॉक्टर अतुल शर्मा के एम्स छोड़ने के बारे में वाजिब कारण नहीं बता पा रहे हैं। वहीं, गायनी की हेड डॉक्टर नीरजा अगले कुछ महीने में रिटायर होने वाली हैं। इस तरह सीनियर डॉक्टरों द्वारा एम्स छोड़े जाने को लेकर जहां कुछ फैकल्टी बदले माहौल को वजह बता रहे हैं, तो कुछ का कहना है कि जीवन में एक समय ऐसा आता है जब सबके लिए पैसा महत्वपूर्ण हो जाता है। जो फैकल्टी एम्स छोड़ के जा रहे हैं, वो प्रैक्टिस बंद नहीं कर रहे हैं, बल्कि कई गुणा ज्यादा वेतन पर प्राइवेट अस्पतालों में सेवा देने जा रहे हैं।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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