Wednesday, July 9, 2025

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जमानत के नियम, जेल सिर्फ अपवाद’ का सिद्धांत भुला दिया गया है: सीजेआई गवई

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई ने कहा है कि आजकल 'जमानत नियम है, जेल अपवाद' वाला सिद्धांत लोग भूल गए हैं, इसस सिद्धांत का मतलब है, आम तौर पर जमानत मिलनी चाहिए और जेल तभी हो, जब बहुत जरूरी है।

नई दिल्ली, 08 जुलाई 2025 (यूटीएन)। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई ने कहा है कि आजकल ‘जमानत नियम है, जेल अपवाद’ वाला सिद्धांत लोग भूल गए हैं। इसस सिद्धांत का मतलब है, आम तौर पर जमानत मिलनी चाहिए और जेल तभी हो, जब बहुत जरूरी है। सीजेआई गवई ने कहा कि कई सालों तक अदालतों ने इस बात को माना है।
लेकिन, आजकल इसे ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है। उन्होंने यह बात कोच्चि में जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर मेमोरियल लॉ लेक्चर देते हुए कही। सीजेआई ने बताया कि उन्होंने खुद कई मामलों में जमानत देते समय इस नियम को फिर से स्थापित करने की कोशिश की है। इससे हाई कोर्ट और निचली अदालतों को भी ऐसा करने का रास्ता मिला। सीजेआई गवई ने कहा, ‘मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है।
मुझे पिछले साल 2024 में, प्रबीर पुरकायस्थ, मनीष सिसोदिया और कविता बनाम ईडी के मामलों में इस कानूनी सिद्धांत को दोहराने का अवसर मिला।’ इसका मतलब है कि उन्होंने इन मामलों में जमानत देते समय इस सिद्धांत को ध्यान में रखा। जस्टिस अय्यर के बारे में बात करते हुए सीजेआई ने कहा कि वे उन लोगों के हक में थे जो बिना मुकदमे के जेल में बंद हैं। उन्होंने हमेशा ऐसे लोगों के अधिकारों की रक्षा की। हमें भी उनका तरीका अपनाना चाहिए।
*गंभीर अपराधों में भी जमानत मिलना हुआ आसान*
सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल के वर्षों में खासकर 2024 में, कई ऐसे फैसले दिए हैं जिनसे उन कैदियों को फायदा हुआ है, जिनका मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर मुकदमा देर से शुरू हो रहा है और कोई व्यक्ति लंबे समय से जेल में है, तो उसे जमानत मिलनी चाहिए। भले ही उस पर पीएमएल ए और यूएपीए जैसे सख्त कानूनों के तहत आरोप लगे हों। इन कानूनों में जमानत मिलना बहुत मुश्किल होता है। इस फैसले से मनी लॉन्ड्रिंग और गैरकानूनी गतिविधियों के मामलों में आरोपियों को जमानत मिलने का रास्ता खुल गया है।
*हाई कोर्ट और निचली अदालतों को मिला संदेश*
सीजेआई ने यह भी याद दिलाया कि जस्टिस अय्यर इस बात के सख्त खिलाफ थे कि किसी को बिना मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रखा जाए। उनका मानना था कि यह गलत है। पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘जमानत नियम है, जेल अपवाद’ वाला नियम सिर्फ आईपीसी के तहत आने वाले अपराधों पर ही नहीं, बल्कि यूएपीए जैसे विशेष कानूनों के तहत आने वाले अपराधों पर भी लागू होना चाहिए।
अगर कानून में जमानत देने की शर्तें पूरी होती हैं, तो जमानत मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट और निचली अदालतों से यह भी कहा है कि वे जमानत देने में उदार रहें। अगर किसी गंभीर अपराध में भी जमानत का मामला बनता है, तो उन्हें जमानत देने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। कुल मिलाकर सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट दोनों का यही कहना है कि लोगों को बिना वजह किसी को जेल में नहीं रखना चाहिए। जमानत एक आम नियम होना चाहिए और जेल सिर्फ तभी जब बहुत जरूरी हो। अदालतों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए और लोगों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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जमानत के नियम, जेल सिर्फ अपवाद’ का सिद्धांत भुला दिया गया है: सीजेआई गवई

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई ने कहा है कि आजकल 'जमानत नियम है, जेल अपवाद' वाला सिद्धांत लोग भूल गए हैं, इसस सिद्धांत का मतलब है, आम तौर पर जमानत मिलनी चाहिए और जेल तभी हो, जब बहुत जरूरी है।

नई दिल्ली, 08 जुलाई 2025 (यूटीएन)। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बीआर गवई ने कहा है कि आजकल ‘जमानत नियम है, जेल अपवाद’ वाला सिद्धांत लोग भूल गए हैं। इसस सिद्धांत का मतलब है, आम तौर पर जमानत मिलनी चाहिए और जेल तभी हो, जब बहुत जरूरी है। सीजेआई गवई ने कहा कि कई सालों तक अदालतों ने इस बात को माना है।
लेकिन, आजकल इसे ठीक से लागू नहीं किया जा रहा है। उन्होंने यह बात कोच्चि में जस्टिस वीआर कृष्णा अय्यर मेमोरियल लॉ लेक्चर देते हुए कही। सीजेआई ने बताया कि उन्होंने खुद कई मामलों में जमानत देते समय इस नियम को फिर से स्थापित करने की कोशिश की है। इससे हाई कोर्ट और निचली अदालतों को भी ऐसा करने का रास्ता मिला। सीजेआई गवई ने कहा, ‘मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है।
मुझे पिछले साल 2024 में, प्रबीर पुरकायस्थ, मनीष सिसोदिया और कविता बनाम ईडी के मामलों में इस कानूनी सिद्धांत को दोहराने का अवसर मिला।’ इसका मतलब है कि उन्होंने इन मामलों में जमानत देते समय इस सिद्धांत को ध्यान में रखा। जस्टिस अय्यर के बारे में बात करते हुए सीजेआई ने कहा कि वे उन लोगों के हक में थे जो बिना मुकदमे के जेल में बंद हैं। उन्होंने हमेशा ऐसे लोगों के अधिकारों की रक्षा की। हमें भी उनका तरीका अपनाना चाहिए।
*गंभीर अपराधों में भी जमानत मिलना हुआ आसान*
सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल के वर्षों में खासकर 2024 में, कई ऐसे फैसले दिए हैं जिनसे उन कैदियों को फायदा हुआ है, जिनका मुकदमा अभी तक शुरू नहीं हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर मुकदमा देर से शुरू हो रहा है और कोई व्यक्ति लंबे समय से जेल में है, तो उसे जमानत मिलनी चाहिए। भले ही उस पर पीएमएल ए और यूएपीए जैसे सख्त कानूनों के तहत आरोप लगे हों। इन कानूनों में जमानत मिलना बहुत मुश्किल होता है। इस फैसले से मनी लॉन्ड्रिंग और गैरकानूनी गतिविधियों के मामलों में आरोपियों को जमानत मिलने का रास्ता खुल गया है।
*हाई कोर्ट और निचली अदालतों को मिला संदेश*
सीजेआई ने यह भी याद दिलाया कि जस्टिस अय्यर इस बात के सख्त खिलाफ थे कि किसी को बिना मुकदमे के लंबे समय तक जेल में रखा जाए। उनका मानना था कि यह गलत है। पिछले साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने एक और महत्वपूर्ण फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘जमानत नियम है, जेल अपवाद’ वाला नियम सिर्फ आईपीसी के तहत आने वाले अपराधों पर ही नहीं, बल्कि यूएपीए जैसे विशेष कानूनों के तहत आने वाले अपराधों पर भी लागू होना चाहिए।
अगर कानून में जमानत देने की शर्तें पूरी होती हैं, तो जमानत मिलनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट और निचली अदालतों से यह भी कहा है कि वे जमानत देने में उदार रहें। अगर किसी गंभीर अपराध में भी जमानत का मामला बनता है, तो उन्हें जमानत देने में हिचकिचाना नहीं चाहिए। कुल मिलाकर सीजेआई और सुप्रीम कोर्ट दोनों का यही कहना है कि लोगों को बिना वजह किसी को जेल में नहीं रखना चाहिए। जमानत एक आम नियम होना चाहिए और जेल सिर्फ तभी जब बहुत जरूरी हो। अदालतों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए और लोगों के अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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