बिहार,07 अक्टूबर 2025 (यूटीएन)। जैसे जैसे हमारे जीवन में अध्यात्म का प्रवेश होता है वैसे वैसे हम जीवन सुख और आनंद अनुभव करते है।अध्यात्म शब्द सुनते ही कई लोगों के मन में पूजा-पाठ, मंदिर जाना, माला जपना या फिर संसार को छोड़कर वैरागी बनने का विचार आता है। लेकिन, अध्यात्म की वास्तविक परिभाषा इससे कहीं अधिक गहरी और सार्वभौमिक है। अध्यात्म, वास्तव में, स्वयं को जानने की यात्रा है—भीतर झाँकने और जीवन के मूल उद्देश्य को समझने का प्रयास है। यह वह शक्ति है जो न केवल हमारे दृष्टिकोण को, बल्कि हमारे सम्पूर्ण जीवन को एक नई दिशा और गहराई प्रदान करती है। अध्यात्म का अर्थ किसी विशिष्ट धार्मिक कर्मकांड या बाह्य आडम्बर तक सीमित नहीं है। इसका मूल सार है चेतना का विस्तार करना। यह मानना कि, हम केवल यह शरीर, मन या बुद्धि नहीं हैं, बल्कि इनसे परे एक अविनाशी ऊर्जा का अंश हैं। अध्यात्म हमें सिखाता है कि जीवन में सच्चा आनंद भौतिक वस्तुओं के संग्रह या क्षणिक सुखों में नहीं, बल्कि आंतरिक शांति और संतुलन में निहित है। यह विज्ञान है भीतर के ब्रह्मांड को जानने का।
अध्यात्म जीवन की समस्याओं को देखने का हमारा नज़रिया बदल देता है। यह हमें सिखाता है कि हर चुनौती एक अवसर है, और हर दुख एक अस्थायी अनुभव। जब हम स्वयं को आत्मा के रूप में देखने लगते हैं, तो सांसारिक चिंताएँ छोटी लगने लगती हैं। यह दृष्टिकोण हमें वर्तमान में जीना सिखाता है और बीती हुई बातों के पछतावे या भविष्य की अनावश्यक चिंताओं से मुक्त करता है। आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी में तनाव एक महामारी बन चुका है। ध्यान (मेडिटेशन) और योग जो अध्यात्म के अभिन्न अंग हैं, हमें अपने मन पर नियंत्रण रखना सिखाते हैं। जब मन शांत होता है, तो हम परिस्थितियों पर अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया कर पाते हैं, बजाय इसके कि,उन पर भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया करें। यह अभ्यास मानसिक स्पष्टता लाता है और हमें शांत, स्थिर और केंद्रित रहने में मदद करता है।
अध्यात्म हमें यह महसूस कराता है कि, हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। जब यह समझ आती है, तो हमारे भीतर दूसरों के प्रति करुणा ,सहानुभूति और अस्वीकृति-रहित प्रेम का भाव उत्पन्न होता है। हम दूसरों को वैसे ही स्वीकार करने लगते हैं जैसे वे हैं, जिससे हमारे पारिवारिक, सामाजिक और व्यावसायिक संबंध स्वतः ही मधुर और मजबूत होने लगते हैं।
केवल पैसा कमाना, करियर बनाना या परिवार पालना ही जीवन का अंतिम लक्ष्य नहीं है। अध्यात्म एक गहरा उद्देश्य प्रदान करता है—वह है स्व-विकास और मानव सेवा। जब हम अपनी क्षमताओं को पहचान कर दूसरों के कल्याण में लगाते हैं, तो एक असीम संतोष का अनुभव होता है, जो किसी भी भौतिक सफलता से कहीं अधिक मूल्यवान होता है।
अध्यात्म कोई मंजिल नहीं है, बल्कि एक सतत यात्रा है। यह किसी चमत्कार की तरह एक रात में जीवन नहीं बदलता, बल्कि निरंतर अभ्यास और जागरूकता से धीरे-धीरे हमें बेहतर इंसान बनाता है। यह हमें सिखाता है कि जीवन का सबसे बड़ा रहस्य बाहर नहीं, बल्कि हमारे भीतर छिपा है। जब व्यक्ति अध्यात्म को अपने जीवन का आधार बनाते है, तो वह केवल स्वयं के लिए नहीं, बल्कि, पूरे संसार के लिए एक सकारात्मक शक्ति बन जाता है। इस पथ पर चलने से जीवन की हर चुनौती अर्थपूर्ण हो जाती है और हर पल एक आशीर्वाद बन जाता है।
लेखिका- सुनीता कुमारी
बिहार