नई दिल्ली, 01 अक्टूबर 2025 (यूटीएन)। 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के रूप में और संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में वैश्विक स्तर पर मनाया जाता है- यह एक दोहरी श्रद्धांजलि है, जो महात्मा के प्रति राष्ट्रीय गौरव और वैश्विक सम्मान दोनों को दर्शाती है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने जून 2007 में एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें अहिंसा को एक सार्वभौमिक सिद्धांत के रूप में मान्यता दी गई तथा शांति एवं सहिष्णुता की वैश्विक संस्कृति को बढ़ावा दिया गया। गांधी जयंती और अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस की भावना को वैश्विक स्तर पर जीवंत रखा जाता है और बेल्जियम, अमेरिका, स्पेन, सर्बिया, स्विट्जरलैंड, थाईलैंड, कजाकिस्तान तथा नीदरलैंड जैसे देशों में स्मरणोत्सव आयोजित किए जाते हैं। 2 अक्टूबर को, पूरी दुनिया महात्मा गांधी के जन्मदिवस का सम्मान करती है।

भारत में इस दिन को जहां गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है, वहीं 2007 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित एक प्रस्ताव के बाद दुनिया भर में इसे अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में आयोजित किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र में इस प्रस्ताव को 140 से अधिक देशों ने समर्थन दिया था। इस दोहरे आयोजन की वजह से इस दिन का एक अनूठा महत्व है और इसकी जड़ें भारत की राष्ट्रीय स्मृति में निहित हैं तथा इसे मानवता के एक सार्वभौमिक संदेश के रूप में साझा किया जाता है।
संयुक्त राष्ट्र में, यह दिवस महासचिव के वक्तव्यों और गांधीजी के दर्शन को आज की वास्तविकताओं से जोड़ने वाले कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है। हाल के वर्षों में, इन संदेशों ने दुनिया भर में चल रहे संघर्षों की ओर इशारा किया है और दुनिया के देशों को यह याद दिलाया है कि सत्य और अहिंसा में गांधीजी का अटूट विश्वास “किसी भी हथियार से कहीं अधिक शक्तिशाली है। भारत में, यह स्मरणोत्सव राजघाट पर श्रद्धांजलि अर्पित करने, सांस्कृतिक एवं शैक्षिक कार्यक्रमों, और गांधीजी के आदर्शों को रेखांकित करने वाले जन अभियानों के रूप में मनाया जाता है।
पिछले कई वर्षों से, ये स्मरणोत्सव औपचारिकता से परे जाकर राष्ट्रीय मिशनों – स्वच्छता को बढ़ावा देने वाले स्वच्छ भारत अभियान से लेकर आत्मनिर्भरता के प्रतीक खादी एवं ग्रामीण उद्योगों के पुनरुद्धार तक को प्रेरित कर रहे हैं।
इस प्रकार, अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस एक राष्ट्रीय श्रद्धांजलि और वैश्विक कार्रवाई का आह्वान, दोनों है। यह हमें याद दिलाता है कि गांधीजी के संदेश केवल अतीत तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि ये एक ऐसी दुनिया का मार्ग प्रशस्त करते हैं जहां संघर्ष पर शांति, विभाजन पर संवाद और भय पर करुणा की जीत होती है।

*सत्याग्रह का जन्म*
पेशे से वकील, मोहनदास करमचंद गांधी 1893 में एक कानूनी मामले की सुनवाई के लिए दक्षिण अफ्रीका गए थे। वे प्रिटोरिया जाने वाली गाड़ी के प्रथम श्रेणी के डिब्बे में अपनी बर्थ पर सो रहे थे, तभी एक सहयात्री ने उनकी शक्ल पर नजर डाली और उन्हें एक ‘अश्वेत’ व्यक्ति जानकर पूर्वाग्रह से भर गया। गांधीजी को प्रथम श्रेणी के डिब्बे से वैन वाले डिब्बे में जाने का आदेश दिया गया, जिसे मानने से उन्होंने दृढ़तापूर्वक इनकार कर दिया। परिणामस्वरूप, उन्हें पीटरमैरिट्ज़बर्ग स्टेशन पर कड़ाके की ठंड में रात बितानी पड़ी। अगली सुबह, उन्होंने प्रिटोरिया जाने वाली अगली उपलब्ध ट्रेन पकड़ी।
अगले दिन, चार्ल्सटाउन से जोहान्सबर्ग जाते समय, गांधीजी को गोरे यात्रियों के साथ अंदर बैठने नहीं दिया गया और उन्हें चालक के बगल वाले डिब्बे में बैठने के लिए मजबूर किया गया। बाद में, उन्हें पायदान पर एक गंदे टाट के कपड़े पर बैठने का आदेश दिया गया। जब गांधीजी ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, तो उन पर बेरहमी से हमला किया गया।
गांधीजी ने रंगभेद से ग्रस्त दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले अन्य भारतीयों से भी ऐसी ही कहानियां सुनीं। दक्षिण अफ्रीका के औपनिवेशिक प्रशासन के तहत भारतीयों और अन्य अश्वेत लोगों के साथ होने वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार से क्षुब्ध होकर, गांधीजी ने साथी सामाजिक कार्यकर्ताओं को संगठित किया और दमनकारी शासन के खिलाफ कई विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया। यहां तक कि इस प्रक्रिया में वे गिरफ्तार भी हुए। इसी दौरान गांधीजी ने “सत्याग्रह” का नया शब्द गढ़ा – जोकि “सत्य” और “आग्रह” से मिलकर बना है और इसमें अहिंसक प्रतिरोध का उनका राजनीतिक दर्शन भी शामिल है।
गांधीजी ने 1920 में यंग इंडिया में लिखा, “अहिंसा मानव जाति की सबसे बड़ी शक्ति है। यह मानव बुद्धि द्वारा निर्मित विनाश के सबसे घातक हथियार से भी कहीं अधिक शक्तिशाली है।
चाहे नमक कानून को तोड़ने के लिए हजारों लोगों को समुद्र की ओर कूच करने के लिए प्रेरित करने वाला 1930 का दांडी मार्च हो या फिर पूरे देश को एकजुट करने वाला 1942 का भारत छोड़ो आंदोलन, महात्मा गांधी ने यह दिखलाया कि नैतिक बल कोई हथियार उठाए बिना ही लाखों लोगों को प्रेरित कर सकता है। और उनका यह संदेश भारत की सीमाओं से बहुत आगे तक भी पहुंचा। महात्मा गांधी से प्रेरित होकर ही, अमेरिका में मार्टिन लूथर किंग जूनियर और दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला को नस्लवाद और रंगभेद को चुनौती देने की शक्ति मिली। विभिन्न संस्कृतियों एवं पीढ़ियों में, उनका दर्शन कायम रहा है और मानवता को इस बात की याद दिलाता रहा है कि अहिंसा कोई कमजोरी नहीं, बल्कि सबसे क्रांतिकारी शक्ति है।
*संयुक्त राष्ट्र में गांधी: पांचवां अहिंसा व्याख्यान*
अहिंसा पर केन्द्रित व्याख्यानों की एक सतत श्रृंखला के हिस्से के रूप में, पांचवां अहिंसा व्याख्यान, पिछली बार सितंबर 2022 में संयुक्त राष्ट्र में यूनेस्को के महात्मा गांधी शांति एवं सतत विकास शिक्षा संस्थान (एमजीआईईपी) द्वारा भारत के स्थायी मिशन के साथ साझेदारी में आयोजित किया गया था। इसमें गांधीजी के दर्शन को जीवंत रूप से प्रस्तुत किया गया था। “मानव उत्कर्ष के लिए शिक्षा” विषय पर केन्द्रित इस कार्यक्रम में इस बात पर जोर दिया गया कि सच्ची शिक्षा शरीर, मन एवं आत्मा को समृद्ध करती है और ज्ञान के साथ-साथ सहानुभूति एवं नैतिक कल्पना को भी विकसित करती है। इस कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण महात्मा गांधी के आदमकद होलोग्राम का उपयोग था, जिसने शिक्षा और अहिंसा पर उनके विचारों को व्यक्त किया – यह परंपरा और तकनीक का एक ऐसा खूबसूरत मिश्रण था, जिसने अद्भुत प्रभाव छोड़ा।
इस व्याख्यान में संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि राजदूत रुचिरा कंबोज, बर्निस किंग (मार्टिन लूथर किंग जूनियर की बेटी) जैसी वैश्विक स्तर की प्रतिष्ठित हस्तियों, युवा प्रतिनिधियों और शिक्षा विशेषज्ञों ने भाग लिया।
इन हस्तियों ने इस बात पर जोर दिया कि गांधीजी के आदर्श शांतिपूर्ण, दयालु और समावेशी समाजों के निर्माण में मार्गदर्शन का एक महत्वपूर्ण स्रोत बने हुए हैं। खासकर ऐसे समय में, जब शिक्षा को केवल आर्थिक उन्नति के बजाय मानव के उत्कर्ष के एक उपकरण के रूप में नए सिरे से परिभाषित किया जा रहा है।
*गांधीवादी दर्शन पर आधारित सरकारी पहल*
जिस प्रकार गांधीजी की रेल यात्राओं ने उन्हें भारत की विविध जरूरतों को समझने में मदद की, ठीक उसी तरह आधुनिक भारत ने उनके मूल दर्शन को व्यापक राष्ट्रीय कार्यक्रमों में रूपांतरित किया है। ये कार्यक्रम उन्हीं मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जिनके वे समर्थक थे।
*गांधी की समकालीन वैश्विक प्रासंगिकता*
*आधुनिक संकटों का समाधान:*
गांधीजी का अहिंसा का दर्शन हिंसक संघर्ष, आतंकवाद, आर्थिक असमानता, महामारी एवं जलवायु परिवर्तन सहित आज की विविध चुनौतियों से निपटने की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है।
*संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सिद्धांत:* संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि गांधीजी का दृष्टिकोण संयुक्त राष्ट्र के कामकाज का प्रमुख स्तंभ है और उनके विचार सतत विकास के 2030 के एजेंडे का पूर्वाभास देते हैं। गांधीजी ने सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के निर्माण से बहुत पहले ही स्वच्छता, मातृ स्वास्थ्य, शिक्षा, लैंगिक समानता, भुखमरी निवारण और विकास के क्रम में साझेदारी की दिशा में व्यापक काम किया था। गुटेरेस ने इस बात पर जोर दिया कि अहिंसा न्याय का एक ऐसा शक्तिशाली साधन है, जिसके लिए साहस और सामूहिक संकल्प की जरूरत होती है।
यह स्थायी प्रासंगिकता वैश्विक स्तर के नीतिगत ढांचों और गांधीजी की परिवर्तनकारी यात्राओं के निरंतर स्मरण में परिलक्षित होती है।
*अंतरराष्ट्रीय मान्यता और सहयोग*
नई दिल्ली में आयोजित 2023 के जी20 शिखर सम्मेलन के दौरान, जी20 के सदस्य देशों तथा अंतरराष्ट्रीय संगठनों के नेता महात्मा गांधी की समाधि राजघाट पर श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एकत्रित हुए। इस यात्रा के बाद अपने सार्वजनिक संदेश में, प्रधानमंत्री मोदी ने गांधीजी को “शांति, सेवा, करुणा और अहिंसा का प्रकाश स्तंभ” कहा और इस तथ्य को रेखांकित किया कि महात्मा के शाश्वत आदर्श एक सामंजस्यपूर्ण एवं समावेशी भविष्य की वैश्विक आकांक्षाओं का मार्गदर्शन करते रहेंगे। श्रद्धांजलि का यह कार्य औपचारिक मात्र नहीं था। इसने इस बात का एक ठोस एवं समवेत संकेत दिया कि प्रतिस्पर्धी भू-राजनैतिक दबावों और वैश्विक चुनौतियों के बीच, अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में गांधी के अहिंसा के दर्शन के लिए जगह अभी भी बनी हुई है।
*अंतरराष्ट्रीय स्मारक एवं स्मरणोत्सव*
*गांधी मार्च*
अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के उपलक्ष्य में 1 अक्टूबर, 2017 को 800 से अधिक प्रतिभागियों के साथ अब तक का सबसे बड़ा गांधी मार्च.
*रेल डिब्बों में आयोजित प्रदर्शनी के जरिए गांधीजी की परिवर्तनकारी यात्राओं का सम्मान*
केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने 11 सितंबर, 2024 को नई दिल्ली के राजघाट स्थित गांधी दर्शन में महात्मा गांधी को समर्पित एक विशेष रेल डिब्बे का उद्घाटन किया। यह डिब्बा महात्मा गांधीजी की यात्रा और उनकी स्थायी विरासत की याद दिलाता है। इस प्रदर्शनी में महात्मा गांधी के समय के एक रेल डिब्बे को प्रदर्शित किया गया है, जिसे बेहद बारीकी से पुनर्निर्मित किया गया है। यह डिब्बा उनकी प्रसिद्ध रेल यात्राओं का प्रतीक है, जो राष्ट्र को एकजुट करने और न्याय एवं समानता की हिमायत करने के उनके मिशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थीं। दक्षिण अफ्रीका में कई वर्षों तक विभिन्न राजनीतिक आंदोलनों का नेतृत्व करने के बाद, गांधीजी भारत लौट आए और भारत के बारे में अपनी समझ तथा एक एकीकृत राष्ट्र के अपने दृष्टिकोण को बेहतर बनाने के लिए तृतीय श्रेणी के रेलवे डिब्बों में भारतीय उपमहाद्वीप की यात्रा की।
गांधी दर्शन के उपाध्यक्ष विजय गोयल ने उद्घाटन के दौरान कहा, “गांधीजी के लिए रेलवे सिर्फ परिवहन का एक साधन मात्र नहीं था, बल्कि यह भारत को उसकी संपूर्णता में समझने का एक माध्यम था।
*निष्कर्ष*
अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस, गांधीजी की अहिंसा, सत्य एवं सामाजिक न्याय के अनुभवातीत दृष्टिकोण व दर्शन की याद दिलाता है। ये दर्शन आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उनके जीवनकाल में थे। ये दर्शन अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानव जाति की समग्र एवं समावेशी प्रगति के लिए बेहद महत्वपूर्ण माने जाते हैं। भारत सरकार के साथ-साथ पूरी दुनिया आज ही नहीं बल्कि भविष्य में भी वैश्विक समाजों को शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण एवं करुणामय बनाने के उनके राजनीतिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण से प्रेरित है।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।