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दुनिया में सबसे ज्यादा भारतीय महिलाएं लेती हैं तनाव

अमेरिका से अफ्रीका और एशिया से यूरोप तक, पिछले 10 साल में दुनिया तेजी से बदली है।

नई दिल्ली, 29 अप्रैल 2023 (यूटीएन)। अमेरिका से अफ्रीका और एशिया से यूरोप तक, पिछले 10 साल में दुनिया तेजी से बदली है। लोगों में तनाव, गुस्सा और चिंता का स्तर बढ़ा है। अब लोग पहले से ज्यादा उदास और दुखी हैं। महिलाएं तो और भी ज्यादा। भारत में भी महिलाएं अन्य देशों की महिलाओं की तुलना में ज्यादा तनाव लेती हैं। डेलॉयट इंडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 53 फीसदी कामकाजी भारतीय महिलाओं ने वित्त वर्ष 2022 की तुलना में वित्त वर्ष 2023 में अधिक तनाव झेला है। यह अन्य देशों की महिलाओं की तुलना में भी सर्वाधिक है।
दुनिया भर में 51 फीसदी महिलाओं ने इस अवधि में तनाव का सामना किया है। गुरुवार को जारी वीमेन एट वर्क ए ग्लोबल आउटलुक रिपोर्ट के अनुसार नौकरी करने वाली 31 फीसदी भारतीय महिलाओं ने बताया कि वे तनाव में थीं। तनाव में रहने वाली महिलाओं का वैश्विक औसत 28 फीसदी है। हालांकि, यह वित्त वर्ष 2022 के 46 फीसदी की तुलना में काफी कम है। रिपोर्ट  में बताया गया है कि वैश्विक औसत (40 फीसदी) की तुलना में भारत में कम महिलाएं (38 फीसदी) अपने नियोक्ताओं से पर्याप्त मानसिक स्वास्थ्य सहायता प्राप्त करती हैं।
यह रिपोर्ट दस देशों में 5,000 महिलाओं के सर्वेक्षण पर आधारित थीं। इसमें भारत में 500 महिलाएं विभिन्न आयु समूहों, रोजगार की स्थिति, क्षेत्रों और वरिष्ठता की थीं। वैश्विक रुझानों के अनुरूप, भारतीय महिलाओं को वित्त वर्ष 2022 की तुलना में वित्त वर्ष 2023 में कम गैर-समावेशी व्यवहार का सामना करना पड़ा। इनमें बैठकों में बाधा डालना, अनौपचारिक बातचीत से उन्हें बाहर रखा जाना और अन्य बातों के अलावा किसी को अपने काम का श्रेय लेना शामिल है।
मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि तमाम देशों में महिलाएं पहले से ज्यादा शिक्षित हुईं और नौकरी करने लगीं।
इससे उनमें आत्मनिर्भरता को लेकर कॉन्फिडेंस आया, लेकिन घरों में पितृसत्तात्मक व्यवस्था अभी बरकरार है, जबकि बाहर बराबरी की बात की जाती है। इस असंतुलन के बीच पिस रही महिलाएं अब आवाज उठाने लगी हैं। वे अपना गुस्सा जाहिर करने लगी हैं। पहले महिलाओं का गुस्सा करना गुस्से की वजह से भी ज्यादा बुरा माना जाता था। हालांकि समाज की सोच बदली है। अब यह नैतिक दबाव कम हुआ है। एक दशक में महिलाएं अपनी भावनाएं जाहिर करने में मुखर हुई हैं। स्वास्थ्य जैसी सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी ज्यादा है, लेकिन काम की अपेक्षा वेतन कम मिलता है। उनसे अपेक्षाएं ज्यादा होती हैं, यही अपेक्षा महिलाओं से घरों में भी होती है। इस वजह से उनमें गुस्सा बढ़ रहा है।
विशेष संवाददाता, (प्रदीप जैन) |

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