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डा अंबेडकर का जीवन दर्शन व विचार युवाओं के लिए प्रेरक : डा अनिल आर्य

14 अप्रैल के दिन सन् 1891 में मध्य प्रदेश के महू के एक गांव में भीमराव अंबेडकर बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव का दंश झेलते रहे।

बडौत, 14 अप्रैल 2023 (यूटीएन)। 14 अप्रैल के दिन सन् 1891 में मध्य प्रदेश के महू के एक गांव में भीमराव अंबेडकर बचपन से ही आर्थिक और सामाजिक भेदभाव का दंश झेलते रहे। वहीं स्कूल में छुआछूत और जाति-पाति का भेदभाव भी झेलना पड़ा। इन सभी विषम परिस्थितियों के बाद भी अंबेडकर ने अपनी पढ़ाई पूरी की। ये उनकी काबलियत और मेहनत का ही परिणाम है कि अंबेडकर ने 32 डिग्रियां हासिल की, साथ ही विदेश से डॉक्टरेट की डिग्री भी प्राप्त की।  भारत में दलित समाज के उत्थान के लिए तन मन धन से काम शुरू करते हुए डा अम्बेडकर शीघ्र ही देश में सुविख्यात हो गये।
संविधान सभा के अध्यक्ष बनकर भारत के संविधान के निर्माण में अभूतपूर्व योगदान दिया।  जीवन के हर पड़ाव पर संघर्षों को पार करते हुए उनकी सफलता हर किसी के लिए प्रेरणा है। बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। डा अम्बेडकर का स्पष्ट कहना था कि, वे ऐसे धर्म को मानते हैं, जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता हो। डा अंबेडकर ने श्रम सुधारो में भी अहम भूमिका निभाई, अंबेडकर ने श्रमिक संघों को बढ़ावा दिया और अखिल भारतीय स्तर पर रोजगार कार्यालय की शुरुआत की। ऐसे शुभदिन हम सबका दायित्व है कि, उनके विचारों का प्रचार प्रसार करने का संकल्प लें, उनके कहे कथनों को मानें और अपने जीवन में उतारें।
स्टेट ब्यूरो,( डॉ योगेश कौशिक ) |

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