Friday, July 18, 2025

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स्टील उद्योग के भविष्य के लिए एक उन्नत ग्रीन स्टीलमेकिंग की आवश्यकता: इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स

इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने नई दिल्ली में 14वें इंडिया मिनरल्स एंड मेटल्स फोरम की सफल मेजबानी की, जहां स्टील उद्योग के लिए एक टिकाऊ और सर्कुलर भविष्य की दिशा में उन्नत ग्रीन स्टीलमेकिंग की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

नई दिल्ली, 03 जुलाई 2025 (यूटीएन)। इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने नई दिल्ली में 14वें इंडिया मिनरल्स एंड मेटल्स फोरम की सफल मेजबानी की, जहां स्टील उद्योग के लिए एक टिकाऊ और सर्कुलर भविष्य की दिशा में उन्नत ग्रीन स्टीलमेकिंग की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इस अवसर पर नीति निर्माताओं, उद्योग विशेषज्ञों और प्रमुख विचारकों ने भाग लिया और ग्रीन स्टील के लिए दूरदर्शी रोडमैप की जरूरत, भारत को कम कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर तेज़ी से ले जाने में इसकी अहम भूमिका, और देश में सर्कुलर अर्थव्यवस्था को अपनाने में आ रही चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की।
उद्योग से जुड़े आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक इस्पात उद्योग कुल सीओ-2 उत्सर्जन में लगभग 7–9% का योगदान करता है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक होने के नाते, भारत एक ऐसे निर्णायक दौर में है जहां इस क्षेत्र का डीकार्बोनाइजेशन न केवल जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है, बल्कि सतत औद्योगिक विकास के लिए भी बेहद जरूरी है। सम्मेलन के सत्र में कम-कार्बन उत्पादों और हाइड्रोजन-आधारित उत्पादन तकनीकों को निर्माण प्रक्रिया में शामिल करने जैसे स्थायी समाधानों पर चर्चा हुई। इसके साथ ही, भारत में सर्कुलर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में नीतिगत और संरचनात्मक स्तर पर मौजूद चुनौतियों पर भी विचार किया गया।
इस दौरान विभिन्न देशों के केस स्टडीज भी प्रस्तुत किए गए, जिन्होंने यह दिखाया कि किस तरह वे पारंपरिक इस्पात निर्माण से हरित इस्पात की ओर सफलतापूर्वक अग्रसर हो रहे हैं। इन अंतरराष्ट्रीय कोशिशों से भारत को पारंपरिक इस्पात निर्माण से हरित (ग्रीन) स्टील की दिशा में बढ़ने के लिए जरूरी सोच और प्रेरणा मिली, जो देश के जलवायु लक्ष्यों और टिकाऊ विकास के सपने से मेल खाती है। इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अभ्युदय जिंदल ने कहा, “ग्रीन स्टील की ओर बदलाव एक क्रमिक प्रक्रिया है, और उत्पादन में कम उत्सर्जन वाली तकनीकों को अपनाना इसकी सही शुरुआत है। दुनिया के कुछ देशों में ग्रीन स्टील की दिशा में सफल परिवर्तन में सहायक सरकारी नीतियों ने बड़ी भूमिका निभाई है।
भारत में ‘ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’ जैसी राष्ट्रीय पहलें निश्चित रूप से इस दिशा में भारतीय उद्योग के प्रयासों को मजबूत बनाएंगी और ग्रीन स्टील की ओर कदम बढ़ाने में मदद करेंगी। जिंदल स्टेनलेस में हम लगातार अक्षय ऊर्जा स्रोतों में निवेश कर रहे हैं और हमारे पास एक समग्र ग्रीन हाइड्रोजन रोडमैप भी मौजूद है। धातु उद्योग के भविष्य को वास्तव में फिर से परिभाषित करने के लिए पूरी मूल्य श्रृंखला में एकजुट और समन्वित प्रयास आवश्यक होंगे। ऐसे में ‘इंडिया मिनरल्स एंड मेटल्स फोरम’ जैसे मंच इरादों को उद्योग-व्यापी ठोस कार्रवाई में बदलने में अहम भूमिका निभाते हैं।”
इंडियन स्टील एसोसिएशन के महासचिव आलोक सहाय ने कहा “भारत का स्टील उद्योग एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है।
जो मजबूत घरेलू मांग, महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय इन्फ्रास्ट्रक्चर लक्ष्यों और स्थिरता के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता से प्रेरित है। जबकि वैश्विक बाजार अत्यधिक क्षमता और संरक्षण वादी नीतियों से जूझ रहे हैं, भारतीय इस्पात निर्माता देश की विकास यात्रा में मजबूती से जुड़े हुए हैं, निर्यात एक सह-उत्पाद है, न कि फोकस। 2047 तक 500 मिलियन टन के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए, हमें नीतिगत समर्थन सुनिश्चित करना चाहिए, निवेशकों के लिए सुरक्षित रिटर्न सुनिश्चित करना चाहिए और ठोस नियामक प्रावधान के माध्यम से ग्रीन स्टील को अपनाने को बढ़ावा देना चाहिए। तभी हम वास्तव में आत्मनिर्भर और व्यावहारिक इस्पात इकोसिस्टम बना सकते हैं जो भारत के विकास को समर्थन दे और उसके भविष्य को सुरक्षित रखे।”
जेएसपीएल के उपाध्यक्ष वी.आर. शर्मा ने कहा, “ग्रीन स्टील केवल भविष्य का सपना नहीं है, बल्कि यह की जिम्मेदारी है, जिसे हमें अभी से निभाना शुरू करना चाहिए।
भले ही पूरी तरह बदलाव में कई साल लगेंगे, लेकिन भारतीय स्टील उद्योग को अभी से कुछ ठोस कदम उठाने होंगे—जैसे कि उत्सर्जन को घटाना, ऊर्जा की बचत करना और यह सुनिश्चित करना कि नई बनने वाली स्टील उत्पादन क्षमता का कम से कम 10% हिस्सा ग्रीन हाइड्रोजन और स्वच्छ ऊर्जा पर आधारित हो। हम बेहतर हालात का इंतजार नहीं कर सकते। हमें अपनी सीमाओं के भीतर ही नवाचार करना होगा, जैसा कि हमने कोल गैसीफिकेशन और डीआरआई टेक्नोलॉजी के साथ किया है। अब समय आ गया है कि हम यह कहना बंद करें कि ‘हमारे पास नहीं है’, और यह सोचना शुरू करें कि ‘हम इसे कैसे बना सकते हैं’। यही आत्मनिर्भर और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार भारत की दिशा में हमारा रास्ता है।” पूरे दिन सम्मेलन में कई प्रभावशाली सत्रों की श्रृंखला आयोजित की गई, जिनमें भारत में हरित इस्पात निर्माण, इस्पात उद्योग में सर्कुलर (वृत्ताकार) अर्थव्यवस्था, सीबीएएम की भूमिका, और अलौह धातुओं तथा उनके कार्बन उत्सर्जन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चर्चा की गई।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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स्टील उद्योग के भविष्य के लिए एक उन्नत ग्रीन स्टीलमेकिंग की आवश्यकता: इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स

इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने नई दिल्ली में 14वें इंडिया मिनरल्स एंड मेटल्स फोरम की सफल मेजबानी की, जहां स्टील उद्योग के लिए एक टिकाऊ और सर्कुलर भविष्य की दिशा में उन्नत ग्रीन स्टीलमेकिंग की आवश्यकता पर जोर दिया गया।

नई दिल्ली, 03 जुलाई 2025 (यूटीएन)। इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स ने नई दिल्ली में 14वें इंडिया मिनरल्स एंड मेटल्स फोरम की सफल मेजबानी की, जहां स्टील उद्योग के लिए एक टिकाऊ और सर्कुलर भविष्य की दिशा में उन्नत ग्रीन स्टीलमेकिंग की आवश्यकता पर जोर दिया गया। इस अवसर पर नीति निर्माताओं, उद्योग विशेषज्ञों और प्रमुख विचारकों ने भाग लिया और ग्रीन स्टील के लिए दूरदर्शी रोडमैप की जरूरत, भारत को कम कार्बन अर्थव्यवस्था की ओर तेज़ी से ले जाने में इसकी अहम भूमिका, और देश में सर्कुलर अर्थव्यवस्था को अपनाने में आ रही चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की।
उद्योग से जुड़े आंकड़ों के अनुसार, वैश्विक इस्पात उद्योग कुल सीओ-2 उत्सर्जन में लगभग 7–9% का योगदान करता है। दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक होने के नाते, भारत एक ऐसे निर्णायक दौर में है जहां इस क्षेत्र का डीकार्बोनाइजेशन न केवल जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक है, बल्कि सतत औद्योगिक विकास के लिए भी बेहद जरूरी है। सम्मेलन के सत्र में कम-कार्बन उत्पादों और हाइड्रोजन-आधारित उत्पादन तकनीकों को निर्माण प्रक्रिया में शामिल करने जैसे स्थायी समाधानों पर चर्चा हुई। इसके साथ ही, भारत में सर्कुलर अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने में नीतिगत और संरचनात्मक स्तर पर मौजूद चुनौतियों पर भी विचार किया गया।
इस दौरान विभिन्न देशों के केस स्टडीज भी प्रस्तुत किए गए, जिन्होंने यह दिखाया कि किस तरह वे पारंपरिक इस्पात निर्माण से हरित इस्पात की ओर सफलतापूर्वक अग्रसर हो रहे हैं। इन अंतरराष्ट्रीय कोशिशों से भारत को पारंपरिक इस्पात निर्माण से हरित (ग्रीन) स्टील की दिशा में बढ़ने के लिए जरूरी सोच और प्रेरणा मिली, जो देश के जलवायु लक्ष्यों और टिकाऊ विकास के सपने से मेल खाती है। इंडियन चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अभ्युदय जिंदल ने कहा, “ग्रीन स्टील की ओर बदलाव एक क्रमिक प्रक्रिया है, और उत्पादन में कम उत्सर्जन वाली तकनीकों को अपनाना इसकी सही शुरुआत है। दुनिया के कुछ देशों में ग्रीन स्टील की दिशा में सफल परिवर्तन में सहायक सरकारी नीतियों ने बड़ी भूमिका निभाई है।
भारत में ‘ग्रीन हाइड्रोजन मिशन’ जैसी राष्ट्रीय पहलें निश्चित रूप से इस दिशा में भारतीय उद्योग के प्रयासों को मजबूत बनाएंगी और ग्रीन स्टील की ओर कदम बढ़ाने में मदद करेंगी। जिंदल स्टेनलेस में हम लगातार अक्षय ऊर्जा स्रोतों में निवेश कर रहे हैं और हमारे पास एक समग्र ग्रीन हाइड्रोजन रोडमैप भी मौजूद है। धातु उद्योग के भविष्य को वास्तव में फिर से परिभाषित करने के लिए पूरी मूल्य श्रृंखला में एकजुट और समन्वित प्रयास आवश्यक होंगे। ऐसे में ‘इंडिया मिनरल्स एंड मेटल्स फोरम’ जैसे मंच इरादों को उद्योग-व्यापी ठोस कार्रवाई में बदलने में अहम भूमिका निभाते हैं।”
इंडियन स्टील एसोसिएशन के महासचिव आलोक सहाय ने कहा “भारत का स्टील उद्योग एक निर्णायक मोड़ पर खड़ा है।
जो मजबूत घरेलू मांग, महत्वाकांक्षी राष्ट्रीय इन्फ्रास्ट्रक्चर लक्ष्यों और स्थिरता के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता से प्रेरित है। जबकि वैश्विक बाजार अत्यधिक क्षमता और संरक्षण वादी नीतियों से जूझ रहे हैं, भारतीय इस्पात निर्माता देश की विकास यात्रा में मजबूती से जुड़े हुए हैं, निर्यात एक सह-उत्पाद है, न कि फोकस। 2047 तक 500 मिलियन टन के अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए, हमें नीतिगत समर्थन सुनिश्चित करना चाहिए, निवेशकों के लिए सुरक्षित रिटर्न सुनिश्चित करना चाहिए और ठोस नियामक प्रावधान के माध्यम से ग्रीन स्टील को अपनाने को बढ़ावा देना चाहिए। तभी हम वास्तव में आत्मनिर्भर और व्यावहारिक इस्पात इकोसिस्टम बना सकते हैं जो भारत के विकास को समर्थन दे और उसके भविष्य को सुरक्षित रखे।”
जेएसपीएल के उपाध्यक्ष वी.आर. शर्मा ने कहा, “ग्रीन स्टील केवल भविष्य का सपना नहीं है, बल्कि यह की जिम्मेदारी है, जिसे हमें अभी से निभाना शुरू करना चाहिए।
भले ही पूरी तरह बदलाव में कई साल लगेंगे, लेकिन भारतीय स्टील उद्योग को अभी से कुछ ठोस कदम उठाने होंगे—जैसे कि उत्सर्जन को घटाना, ऊर्जा की बचत करना और यह सुनिश्चित करना कि नई बनने वाली स्टील उत्पादन क्षमता का कम से कम 10% हिस्सा ग्रीन हाइड्रोजन और स्वच्छ ऊर्जा पर आधारित हो। हम बेहतर हालात का इंतजार नहीं कर सकते। हमें अपनी सीमाओं के भीतर ही नवाचार करना होगा, जैसा कि हमने कोल गैसीफिकेशन और डीआरआई टेक्नोलॉजी के साथ किया है। अब समय आ गया है कि हम यह कहना बंद करें कि ‘हमारे पास नहीं है’, और यह सोचना शुरू करें कि ‘हम इसे कैसे बना सकते हैं’। यही आत्मनिर्भर और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदार भारत की दिशा में हमारा रास्ता है।” पूरे दिन सम्मेलन में कई प्रभावशाली सत्रों की श्रृंखला आयोजित की गई, जिनमें भारत में हरित इस्पात निर्माण, इस्पात उद्योग में सर्कुलर (वृत्ताकार) अर्थव्यवस्था, सीबीएएम की भूमिका, और अलौह धातुओं तथा उनके कार्बन उत्सर्जन जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर गहन चर्चा की गई।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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