नई दिल्ली, 18 जुलाई 2025 (यूटीएन)। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि जेल नियम हर राज्य के लिए अलग-अलग होते हैं, लेकिन गंभीर रूप से बीमार कैदियों की रिहाई को लेकर सभी राज्यों को समान नियम बनाने चाहिए। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) की उस याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा, जिसमें गंभीर रूप से बीमार या 70 वर्ष से अधिक उम्र के कैदियों की रिहाई की मांग की गई थी। केंद्र सरकार ने बताया कि इस विषय पर एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) बनाई गई है और इसे रिकॉर्ड पर रखा गया है। हालांकि, बेंच ने कहा, आखिरकार जेल नियम राज्यों पर ही लागू होते हैं।
सभी राज्यों को एक समान जेल नियम बनाने होंगे, जिसमें गंभीर बीमारियों से पीड़ित कैदियों की रिहाई का प्रावधान हो। केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि सरकार गंभीर रूप से बीमार कैदियों को लेकर चिंतित है और सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को एसओपी के तहत ऐसे कैदियों की उचित देखभाल और प्रबंधन के लिए कदम उठाने की सलाह दी गई है। सरकार ने यह भी कहा कि राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ‘सामान्य माफी’ (जनरल एमनेस्टी) के तहत भी ऐसे कैदियों की रिहाई पर विचार कर सकते हैं।
बेंच ने इस बात पर चिंता जताई कि इस व्यवस्था का गलत इस्तेमाल भी हो सकता है। इसलिए यह जरूरी है कि यह तय करने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश हों कि कौन-कौन से कैदी इस रिहाई के पात्र होंगे। नालसा की ओर से पेश वकील ने बताया कि उनके द्वारा बनाई गई एसओपी में यह स्पष्ट किया गया है कि कौन से कैदी गंभीर रूप से बीमार की श्रेणी में आएंगे और जेल के मेडिकल अधिकारी से इसका प्रमाण पत्र लिया जाएगा।
इस पर बेंच ने टिप्पणी की, पहचान करना अलग बात है, लेकिन सत्यापित करने में ही असली मुश्किल है। इस व्यवस्था के दुरुपयोग की काफी संभावना है। भाटी ने बताया कि केंद्र की एसओपी में एक मेडिकल बोर्ड गठित करने की बात कही गई है जो ऐसे मामलों की जांच करेगा। उन्होंने यह भी बताया कि एक कैदी 1985 से अस्थमा से पीड़ित है। नालसा की ओर से यह भी बताया गया कि केरल में एक 94 वर्षीय कैदी है जो अब तक जेल में है। बेंच ने उन कैदियों पर भी विचार किया जिन्हें उम्रकैद की सजा दी गई है, जिसमें सजा उनकी प्राकृतिक मृत्यु तक चलती है। जस्टिस मेहता ने कहा, जयपुर केंद्रीय कारागार में कई कैदी हैं, जिन्हें बम विस्फोट के मामलों में सजा हुई है… उनमें से एक डॉक्टर था, जिनकी कुछ महीने पहले मृत्यु हो गई। वह 104 साल के थे।
उत्तर प्रदेश सरकार के वकील ने बताया कि राज्य की 2018 की नीति में गंभीर रूप से बीमार कैदियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं और एक मेडिकल बोर्ड गठित करने की व्यवस्था है। शीर्ष कोर्ट ने पांच मई को केंद्र और बिहार, उत्तर प्रदेश सहित 18 राज्यों से इस याचिका पर जवाब मांगा था। याचिका में कहा गया कि इन बुजुर्ग और गंभीर रूप से बीमार कैदियों को विशेष देखभाल की जरूरत है, लेकिन जेलों में अधिक भीड़ के कारण जेल प्रशासन ऐसा कर पाने में सक्षम नहीं है। नालसा ने बताया कि ये कैदी बिहार, केरल, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और ओडिशा सहित कई राज्यों की जेलों में बंद हैं।
वकील ने कहा कि कई ऐसे गंभीर बीमार कैदी हैं, जिनकी सजा उच्च न्यायालयों की ओर से बरकरार रखी गई है, लेकिन वे सुप्रीम कोर्ट तक नहीं पहुंच पाए हैं और उन्हें जमानत या सजा निलंबित कराने का अवसर नहीं मिला है। इसलिए इस मामले पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया कि 70 वर्ष से अधिक उम्र वाले और गंभीर बीमारियों से ग्रसित कैदियों की रिहाई के लिए दिशानिर्देश जारी किए जाएं।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।