नई दिल्ली, 17 जुलाई 2025 (यूटीएन)। रक्त सुरक्षा को राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा में प्राथमिकता देने के केंद्रित प्रयास के रूप में, थैलेसीमिया पेशेंट एडवोकेसी ग्रुप ने नई दिल्ली में “सभी के लिए सुरक्षित रक्त सुनिश्चित करना: रक्त सुरक्षा के अभ्यासों को मज़बूत करना” विषय पर एक प्रभावशाली चर्चा का आयोजन किया। इस रणनीतिक संवाद में जन नेतृत्व, विज्ञान, कानून, जन स्वास्थ्य और रोगी की हिमायत से जुड़े प्रमुख लोग एक साथ आए और अलग-अलग दृष्टिकोण प्रस्तुत किए, लेकिन सभी का एक ही लक्ष्य था: रक्त तक सुरक्षित, समय पर और समान पहुँच सुनिश्चित करना, विशेष रूप से थैलेसीमिया से पीड़ित उन लोगों के लिए जो जीवित रहने के लिए नियमित ब्ल्ड ट्रांसफ्यूजन पर निर्भर हैं।
उद्देश्य था रक्त सुरक्षा के बारे में राष्ट्रीय जागरूकता बढ़ाना, सुरक्षित ब्लड ट्रांसफ्यूजन अभ्यासों पर कार्रवाई योग्य संवाद को बढ़ावा देना और सुरक्षित, अधिक जवाबदेह स्वास्थ्य सेवा नतीजे सुनिश्चित करने के लिए एडवांस डायग्नॉस्टिक तकनीकों के उपयोग में तेज़ी लाना। चर्चा की शुरुआत करते हुए टीपीएजी की सदस्य सचिव, अनुभा तनेजा मुखर्जी ने रक्त सुरक्षा को सिर्फ एक तकनीकी चिंता ही नहीं, बल्कि मानवाधिकारों की अनिवार्यता बताया। उन्होंने कहा, यह केवल स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों के बारे में नहीं है – यह सम्मान, समानता और सुरक्षित जीवन के अधिकार-इसकी सुरक्षा की कार्रवाइयों के बारे में है।” संचालित चर्चा में विविध, कार्रवाई-संचालित विषय शामिल थे भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्त तुहिन ए. सिन्हा ने मजबूत ढाँचों के माध्यम से मरीजों की सुरक्षा के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित किया और रक्त सुरक्षा पारिस्थितिकी तंत्र में सुधार के लिए सहयोगात्मक, बहु-हितधारक कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया।
आईसीएमआर के पूर्व महानिदेशक, प्रो. एन.के. गांगुली ने वैज्ञानिक नवाचार, मानकीकृत जाँच और नियामक सतर्कता के महत्व पर ज़ोर दिया, खासकर ऐसे समय में जब भारत अपनी डायग्नॉस्टिक क्षमताओं का विस्तार कर रहा है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता, श्री पी.सी. सेन ने संवैधानिक अधिकार और स्वास्थ्य सेवा न्याय के रूप में रोगाणु-मुक्त रक्त सुनिश्चित करने के लिए राज्य और संस्थाओं की कानूनी और नैतिक ज़िम्मेदारियों पर ध्यान दिलाया। जन स्वास्थ्य अधिवक्ता, प्रो. बेजोन कुमार मिश्रा ने रक्त आपूर्ति श्रृंखला में सामुदायिक सहभागिता और पारदर्शिता की आवश्यकता पर बल दिया और नागरिकों की अगवाई वाली जवाबदेही और रोगी-प्रथम नीतियों की मांग की।
इंडियन ब्लड ट्रांसफ्यूजन और इम्युनोहैमोटोलॉजी सोसायटी की महासचिव, डॉ. संगीता पाठक ने कहा कि सुरक्षित रक्त आपूर्ति श्रृंखला का बहुत महत्व है और ऐसी उभरती हुई तकनीकें एवं तंत्र हैं जोसुरक्षित और अधिक कुशल ब्लड ट्रांसफ्यूज अभ्यासों को सुनिश्चित कर सकते हैं। कोलकाता की थैलेसीमिया रोगी अधिवक्ता सुश्री सुनेहा पॉल ने अपने अनुभवों को सशक्त रूप से व्यक्त किया—ट्रांसफ्यूजन की पहुँच में निरंतरता, सुरक्षा और सहानुभूति की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला। सिर्फ़ संवाद नहीं—एकरूपता की ओर एक कदम इस चर्चा को विशिष्ट बनाने वाली बात थी विविध क्षेत्रों का रणनीतिक संमिलन—प्रत्येक क्षेत्र इस मुद्दे को अलग नज़रिए से देख रहा है, लेकिन एक एकीकृत संदेश की वकालत कर रहा है: रक्त सुरक्षा को भारत के स्वास्थ्य सेवा परिवर्तन का आधार माना जाना चाहिए, न कि एक गौण चुनौती के रूप में देखा जाना चाहिए। चर्चा में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि हालाँकि प्रगति हुई है, फिर भी रक्त जाँच प्रोटोकॉल, स्वैच्छिक रक्तदान संस्कृति, बुनियादी ढाँचे की तैयारी और एडवांस डायग्नॉस्टिक तक पहुँच जैसे क्षेत्रों में, विशेष रूप से ज़िला और ग्रामीण स्तरों पर, व्यवस्थागत कमियाँ बनी हुई हैं।
सत्र के अंत में श्रोताओं के साथ एक गहन प्रश्नोत्तर सत्र आयोजित किया गया, जिसमें प्रमुख विषयों पर प्रकाश डाला गया: नीति सुधार रोडमैप, प्रभावी सार्वजनिक-निजी सहयोग के प्रेरक और राष्ट्रीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में सुरक्षित रक्त प्रथाओं का एकीकरण। टीपीएजी ने सुरक्षित रक्त के अधिकार की वकालत करने, सुरक्षा प्रोटोकॉल के कार्यान्वयन को मज़बूत करने और नीति निर्माताओं, समाज और स्वास्थ्य सेवा संस्थानों के बीच संवाद को बनाए रखने के लिए अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की। प्रमुख अनुशंसाओं को सम्मिलित करते हुए, एक कार्यक्रम-पश्चात रिपोर्ट संबंधित हितधारकों के साथ साझा की जाएगी और निरंतर वकालत और प्रणालियों में सुधार के लिए एक संदर्भ बिंदु के रूप में काम करेगी।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।