नई दिल्ली, 01 जून 2025 (यूटीएन)। 80 के दशक में एक शहर के दौरे पर पहुंचे प्रधानमंत्री और उनके सहयोगियों ने खाना खाया और उसका कैटरर बिल भुगतान के लिए वर्षों तक चक्कर लगाता रहा क्योंकि कैटरर के बिल में चिकन डिश भी शामिल थी। वहीं उत्तर प्रदेश के एक पूर्व गृह मंत्री के स्वागत के लिए जब शीर्ष अधिकारी स्टेशन ही नहीं पहुंचे तो क्या स्थिति बनी। ऐसे ही कई रोचक किस्सों का जिक्र है उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी ओ पी सिंह की किताब में।
1983 बैच के आईपीएस अधिकारी रहे ओ पी सिंह
1983 बैच के आईपीएस अधिकारी ओ पी सिंह ने अपने 37 साल के पुलिस करियर के अनुभव के आधार पर किताब ‘थ्रू माई आईज़: स्केचेस फ्रॉम ए कॉप्स नोटबुक’लिखी है। ओ पी सिंह जनवरी 2020 में उत्तर प्रदेश के डीजीपी के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। अपने करियर के दौरान ओ पी सिंह ने सीआईएसएफ और एनडीआरएफ का नेतृत्व भी किया। पिछले साल ओ पी सिंह ने एक संस्मरण ‘क्राइम, ग्रिम और गंपशन: केस फाइल्स ऑफ एन आईपीएस ऑफिसर’ भी लिखा था।

*पीएमओ से नहीं पास हुआ प्रधानमंत्री के खाने का बिल*
लेखक के नोट में उन्होंने लिखा है, ‘यह किताब मेरे जीवन के किस्से, मेरे बचपन से लेकर पुलिस सेवा के वर्षों का संग्रह है।’ उन्होंने कहा कि पुस्तक को पढ़ना किसी पुराने फोटो एल्बम को पलटने जैसा है। किताब में एक किस्सा साझा करते हुए ओ पी सिंह लिखते हैं कि ‘साल 1985 की गर्मियों वे मुरादाबाद जिले में एक नए आईपीएस अधिकारी थे। एक दिन वे सिटी मजिस्ट्रेट और डीएसपी के साथ रेलवे स्टेशन के पास एक रेस्तरां में एक कप चाय पीने के लिए गए थे। वहां एक आदमी हाथ जोड़कर खड़ा था, जो झुककर अभिवादन कर रहा था। उसके चेहरे पर सम्मान और हताशा का मिश्रण था।’ सिटी मजिस्ट्रेट ने उसे कहा ‘अभी नहीं’।
*नौकरशाही की खामियों का उदाहरण है ये घटना*
ओ पी सिंह ने लिखा कि मैंने जानना चाहा कि वह व्यक्ति कौन था? पता चला कि वह व्यक्ति एक कैटरर था। चौधरी चरण सिंह जब प्रधानमंत्री थे तो कुछ साल पहले वे जिले की यात्रा पर आए थे तो उस कैटरर को ही प्रधानमंत्री को खाना पहुंचाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। प्रधानमंत्री और अन्य नेताओं के खाने का बिल बना 7000 रुपये। हालांकि कई वर्ष बीत जाने के बाद भी उस कैटरर का बिल क्लीयर नहीं हो पाया। यह मामला नौकरशाही की खामियों का उदाहरण है कि कैसे बिल फाइल दर फाइल और एक डेस्क से दूसरी डेस्क पर घूमता रहा। कई साल बीतने के बाद वह पीएमओ पहुंचा, जहां से उसे सीधे खारिज कर दिया गया। दरअसल बिल के मेन्यू में चिकन की डिश भी जोड़ी गई थी। यह कहकर बिल खारिज कर दिया गया कि प्रधानमंत्री चिकन नहीं खाते हैं और भुगतान अस्वीकार कर दिया गया।

*जब गृह मंत्री के स्वागत के लिए कोई नहीं पहुंचा*
ऐसे ही एक अन्य किस्से का जिक्र करते हुए किताब में बताया गया है कि साल 1986 में जब ओ पी सिंह वाराणसी जिले के मुगलसराय के सर्किल ऑफिसर (सीओ) के पद पर तैनात थे तो एक दिन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गृह मंत्री गोपी नाथ दीक्षित सुबह की ट्रेन से एक निर्धारित दौरे पर वाराणसी पहुंचे, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से मंत्री का स्वागत करने और उन्हें एस्कॉर्ट करने के लिए वीआईपी कार या प्रोटोकॉल नहीं था। उन्होंने अकेले ही मंत्री का स्वागत किया और उन्हें अपनी जिप्सी में ले गए। सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी ने बताया कि उससे भी बुरा होना अभी बाकी था।
दरअसल सर्किट हाउस में मंत्री के लिए आरक्षित वीआईपी सुइट भी बंद था। इसके बाद मंत्री के पीए ने जिले के प्रशासनिक अधिकारियों को फोन किया, जिसके बाद प्रशासनिक अमला हरकत में आया और सर्किट हाउस पहुंचा। यह किताब छोटी-छोटी कहानियों के रूप में लिखी गई है, जिसमें कई मार्मिक घटनाओं का उल्लेख किया गया है। किताब में योगी आदित्यनाथ से जुड़ी एक घटना का भी जिक्र है।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।