Monday, September 1, 2025

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अब भारत में भी एक साल में संभव होगी ऑटिज्म की पहचान

डॉ कोठारी ने बताया कि इस तकनीक को भारत में अगस्त में मंजूरी मिली है,लेकिन इसे पहले ही अमेरिका के 200 से अधिक बाल रोग विशेषज्ञ ने इसका परीक्षण किया और इसे मान्य करार दिया है।

नई दिल्ली, 01 सितम्बर 2025 (यूटीएन)। अब भारत में नियमक-अनुमोदित ऑटिज्म स्क्रीनिंग तकनीक लॉन्च की गई है। इस नई तकनीक से महज एक साल की उम्र में ही पता चल जाएगा कि बच्चा ऑटिस्टिक है या नहीं। बाल चिकित्सा और समावेशी शिक्षा मंच की लॉन्च इस तकनीक का नाम नाम गेट सेट अर्ली है। यह नेत्र ट्रैकिंग तकनीक और व्यवहार विज्ञान की मदद से ऑटिज्म की पहचान के भरोसेमंद नतीजे तेजी से देती है।
यह तकनीक कैलिफोर्निया विवि, सैन डिएगो (यूसीएसडी) में ऑटिज्म सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की सह-निदेशक कैरेन पियर्स के सहयोग से विकसित की गई है। दरअसल, ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं है। ऑटिस्टिक होने का मतलब है कि आपका दिमाग दूसरे लोगों से अलग तरीके से काम करता है। यह एक ऐसा मर्ज है जो पैदा होने के साथ ही बच्चे से जुड़ा होता है। बटरफ्लाई लर्निंग्स की को-फाउंडर और सीईओ डॉ सोनम कोठारी ने बताया कि इस तकनीक को पहले चरण में मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, रायपुर, लखनऊ, नागपुर और दिल्ली में शुरू किया जाएगा।
*जल्द पहचान तो बेहतर विकास संभव*
डॉ. कोठारी ने कहा कि भारत में ज्यादातर बच्चों में ऑटिज्म का पता चार से साढ़े चार साल की उम्र में चलता है और तब- तक उनके दिमाग की महत्वपूर्ण प्लास्टिसिटी (प्राणी की अपनी संरचना,आकार या व्यवहार को बाहरी तनाव के जवाब में स्थायी तौर से बदलने की क्षमता) काफी हद तक नष्ट हो चुकी होती है। नई तकनीक गेट सेट अर्ली से ऐसे बच्चों की पहचान सिर्फ 12 महीने में हो सकेगी। यह उम्र का वह दौर है जब दिमाग सबसे लचीला होता है। इससे वक्त पर बच्चे का इलाज शुरू कर उसका बेहतर विकास संभव हो पाएगा।
*डॉक्टरों, माता-पिता और शिक्षकों को मदद*
भारत में हर 68 में से एक बच्चा और दुनिया में हर 100 में से एक बच्चा ऑटिस्टिक है।
यह तकनीक 12–24 महीने की उम्र में ऑटिज्म का खतरा पहचानने की क्षमता देती है। इससे वक्त रहते ऑटिस्टिक बच्चों का बेहतर इलाज किया जा सकता है ।
*नेत्र ट्रैकिंग के अच्छे नतीजे*
डॉ पियर्स ने कहा कि उनकी शोध का मकसद हमेशा से जितनी जल्दी हो सके ऑटिज्म की पहचान करना रहा है। इसके लिए गेट सेट अर्ली बच्चों की आंखों की गतिविधियों को ट्रैक करता है और उन्हें डाटा में बदल देता है। कुछ ही मिनटों में इससे बच्चों के डॉक्टर न सिर्फ ऑटिज्म की पहचान कर सकते हैं बल्कि उसकी गंभीरता भी जान सकते हैं। इससे ऑटिस्टिक बच्चों के परिवारों को वक्त पर इलाज शुरू करने के लिए एक साफ प्रमाण आधारित आधार मिल जाता है।
*भारत में मंजूरी और परीक्षण*
डॉ कोठारी ने बताया कि इस तकनीक को भारत में अगस्त में मंजूरी मिली है,लेकिन इसे पहले ही अमेरिका के 200 से अधिक बाल रोग विशेषज्ञ ने इसका परीक्षण किया और इसे मान्य करार दिया है। बटरफ्लाई लर्निंग्स अब एनजीओ और सरकारी अस्पतालों के साथ मिलकर इस पर काम शुरू कर रहा है। यह कार्यक्रम अगली तिमाही में लॉन्च होने की उम्मीद है। टीम चाहती है कि इसे राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) जैसी सरकारी योजनाओं में शामिल किया जाए,क्योंकि यह स्क्रीनिंग सस्ती और सुलभ रहेगी। हार्डवेयर डॉक्टरों को मुफ्त दिया जाएगा और परिवारों को केवल नाममात्र का कंसल्टेशन शुल्क देना होगा। डॉ कोठारी ने कहा कि लक्ष्य वित्तीय बोझ हटाना है ताकि हर परिवार बच्चे के ऑटिस्टिक होने की शुरू में ही पहचान कर सकें।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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अब भारत में भी एक साल में संभव होगी ऑटिज्म की पहचान

डॉ कोठारी ने बताया कि इस तकनीक को भारत में अगस्त में मंजूरी मिली है,लेकिन इसे पहले ही अमेरिका के 200 से अधिक बाल रोग विशेषज्ञ ने इसका परीक्षण किया और इसे मान्य करार दिया है।

नई दिल्ली, 01 सितम्बर 2025 (यूटीएन)। अब भारत में नियमक-अनुमोदित ऑटिज्म स्क्रीनिंग तकनीक लॉन्च की गई है। इस नई तकनीक से महज एक साल की उम्र में ही पता चल जाएगा कि बच्चा ऑटिस्टिक है या नहीं। बाल चिकित्सा और समावेशी शिक्षा मंच की लॉन्च इस तकनीक का नाम नाम गेट सेट अर्ली है। यह नेत्र ट्रैकिंग तकनीक और व्यवहार विज्ञान की मदद से ऑटिज्म की पहचान के भरोसेमंद नतीजे तेजी से देती है।
यह तकनीक कैलिफोर्निया विवि, सैन डिएगो (यूसीएसडी) में ऑटिज्म सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की सह-निदेशक कैरेन पियर्स के सहयोग से विकसित की गई है। दरअसल, ऑटिज्म कोई बीमारी नहीं है। ऑटिस्टिक होने का मतलब है कि आपका दिमाग दूसरे लोगों से अलग तरीके से काम करता है। यह एक ऐसा मर्ज है जो पैदा होने के साथ ही बच्चे से जुड़ा होता है। बटरफ्लाई लर्निंग्स की को-फाउंडर और सीईओ डॉ सोनम कोठारी ने बताया कि इस तकनीक को पहले चरण में मुंबई, पुणे, अहमदाबाद, रायपुर, लखनऊ, नागपुर और दिल्ली में शुरू किया जाएगा।
*जल्द पहचान तो बेहतर विकास संभव*
डॉ. कोठारी ने कहा कि भारत में ज्यादातर बच्चों में ऑटिज्म का पता चार से साढ़े चार साल की उम्र में चलता है और तब- तक उनके दिमाग की महत्वपूर्ण प्लास्टिसिटी (प्राणी की अपनी संरचना,आकार या व्यवहार को बाहरी तनाव के जवाब में स्थायी तौर से बदलने की क्षमता) काफी हद तक नष्ट हो चुकी होती है। नई तकनीक गेट सेट अर्ली से ऐसे बच्चों की पहचान सिर्फ 12 महीने में हो सकेगी। यह उम्र का वह दौर है जब दिमाग सबसे लचीला होता है। इससे वक्त पर बच्चे का इलाज शुरू कर उसका बेहतर विकास संभव हो पाएगा।
*डॉक्टरों, माता-पिता और शिक्षकों को मदद*
भारत में हर 68 में से एक बच्चा और दुनिया में हर 100 में से एक बच्चा ऑटिस्टिक है।
यह तकनीक 12–24 महीने की उम्र में ऑटिज्म का खतरा पहचानने की क्षमता देती है। इससे वक्त रहते ऑटिस्टिक बच्चों का बेहतर इलाज किया जा सकता है ।
*नेत्र ट्रैकिंग के अच्छे नतीजे*
डॉ पियर्स ने कहा कि उनकी शोध का मकसद हमेशा से जितनी जल्दी हो सके ऑटिज्म की पहचान करना रहा है। इसके लिए गेट सेट अर्ली बच्चों की आंखों की गतिविधियों को ट्रैक करता है और उन्हें डाटा में बदल देता है। कुछ ही मिनटों में इससे बच्चों के डॉक्टर न सिर्फ ऑटिज्म की पहचान कर सकते हैं बल्कि उसकी गंभीरता भी जान सकते हैं। इससे ऑटिस्टिक बच्चों के परिवारों को वक्त पर इलाज शुरू करने के लिए एक साफ प्रमाण आधारित आधार मिल जाता है।
*भारत में मंजूरी और परीक्षण*
डॉ कोठारी ने बताया कि इस तकनीक को भारत में अगस्त में मंजूरी मिली है,लेकिन इसे पहले ही अमेरिका के 200 से अधिक बाल रोग विशेषज्ञ ने इसका परीक्षण किया और इसे मान्य करार दिया है। बटरफ्लाई लर्निंग्स अब एनजीओ और सरकारी अस्पतालों के साथ मिलकर इस पर काम शुरू कर रहा है। यह कार्यक्रम अगली तिमाही में लॉन्च होने की उम्मीद है। टीम चाहती है कि इसे राष्ट्रीय बाल सुरक्षा कार्यक्रम (आरबीएसके) जैसी सरकारी योजनाओं में शामिल किया जाए,क्योंकि यह स्क्रीनिंग सस्ती और सुलभ रहेगी। हार्डवेयर डॉक्टरों को मुफ्त दिया जाएगा और परिवारों को केवल नाममात्र का कंसल्टेशन शुल्क देना होगा। डॉ कोठारी ने कहा कि लक्ष्य वित्तीय बोझ हटाना है ताकि हर परिवार बच्चे के ऑटिस्टिक होने की शुरू में ही पहचान कर सकें।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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