Thursday, July 31, 2025

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राज्यसभा के सभापति ने राजनीतिक दलों के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने का आह्वान किया

उपराष्ट्रपति महोदय ने इस बात पर बल दिया, "जब राष्ट्रीय हित की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब राष्ट्र के विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए।

नई दिल्ली, 21 जुलाई 2025 (यूटीएन)। उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने राजनीतिक दलों के बीच सौहार्द और परस्पर सम्मान का आह्वान किया है। धनखड़ ने कहा, “मैं राजनीतिक जगत के सभी लोगों से अपील करता हूँ कि कृपया परस्पर सम्मान रखें। कृपया टेलीविज़न पर या किसी भी पार्टी के नेतृत्व के विरुद्ध अभद्र भाषा का प्रयोग न करें। यह संस्कृति हमारी सभ्यता का सार नहीं है। हमें अपनी भाषा का ध्यान रखना होगा. व्यक्तिगत आक्षेपों से बचें। मैं राजनेताओं से अपील करता हूँ। अब समय आ गया है कि हम राजनेताओं को गालियाँ देना बंद करें। जब विभिन्न राजनीतिक दलों में लोग दूसरे राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं को गालियाँ देते हैं, तो यह हमारी संस्कृति के लिए अच्छा नहीं है। उपराष्ट्रपति ने कहा, “हममें मर्यादा और परस्पर सम्मान की पूर्ण भावना होनी चाहिए और यही हमारी संस्कृति की मांग है। अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया में एकता नहीं हो सकती विश्वास कीजिए, अगर राजनीतिक संवाद उच्च स्तर पर हो, अगर नेता अधिक बार मिलते-जुलते रहें, वे आपस में अधिक संवाद करें।
वे व्यक्तिगत स्तर पर विचारों का आदान-प्रदान करें  तो राष्ट्र हित की पूर्ति होगी हमें आपस में क्यों लड़ना चाहिए? हमें अपने भीतर शत्रुओं की तलाश नहीं करनी चाहिए। मेरी जानकारी के अनुसार, प्रत्येक भारतीय राजनीतिक दल और प्रत्येक सांसद अंततः एक राष्ट्रवादी है। वह एक राष्ट्र की भावना में विश्वास करता है। वह राष्ट्र की प्रगति में विश्वास करता है लोकतंत्र कभी ऐसा नहीं होता कि एक ही पार्टी सत्ता में आए। हमने अपने जीवनकाल में देखा है कि परिवर्तन राज्य स्तर पर, पंचायत स्तर पर, नगरपालिका स्तर पर होता है, यह एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। लेकिन एक बात निश्चित है, विकास की निरंतरता, हमारी सभ्यतागत लोकाचार की निरंतरता होनी चाहिए, और यह केवल एक पहलू से आती है। हमें लोकतांत्रिक संस्कृति का सम्मान करना चाहिए।
धनखड़ ने कहा, “मित्रों, एक समृद्ध लोकतंत्र निरंतर कटुता का वातावरण सहन नहीं कर सकता… जब आप राजनीतिक कटुता, राजनीतिक वातावरण को अलग दिशा में पाते हैं, तो आपका मन विचलित हो जाता होगा। मैं देश के सभी लोगों से आग्रह करता हूँ कि राजनीतिक तापमान को कम किया जाए। राजनीति टकराव नहीं है, राजनीति कभी भी एकतरफा नहीं हो सकती। अलग-अलग राजनीतिक विचार प्रक्रियाएँ होंगी, लेकिन राजनीति का अर्थ है एक ही लक्ष्य को प्राप्त करना, लेकिन किसी न किसी तरह अलग-अलग माध्यमओं से। मेरा दृढ़ विश्वास है कि इस देश में कोई भी व्यक्ति राष्ट्र के विरुद्ध नहीं सोचेगा। मैं किसी राजनीतिक दल को भारत की अवधारणा के विरुद्ध नहीं देख सकता।
उनके अलग-अलग माध्यम, अलग-अलग सोच हो सकती है; लेकिन उन्हें एक-दूसरे के साथ चर्चा करना, एक-दूसरे के साथ संवाद करना सीखना होगा। टकराव कोई रास्ता नहीं है। जब हम आपस में लड़ते हैं, यहाँ तक कि राजनीतिक क्षेत्र में भी, तो हम अपने दुश्मन को मजबूत कर रहे होते हैं। हम उन्हें हमें विभाजित करने के लिए पर्याप्त सामग्री दे रहे होते हैं। इसलिए, युवा प्रतिभाओं एक बड़ा दबाव समूह है। आपके पास बहुत मजबूत शक्ति है। आपकी विचार प्रक्रिया राजनेता, आपके सांसद, आपके विधायक, आपके पार्षद को नियंत्रित करेगी। राष्ट्र के बारे में सोचें। विकास के बारे में सोचें।”
धनखड़ ने नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में आज राज्यसभा के आठवें बैच के प्रतिभागियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम (आरएसआईपी) के उद्घाटन समारोह को संबोधित किया।
उपराष्ट्रपति महोदय ने इस बात पर बल दिया, “जब राष्ट्रीय हित की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब राष्ट्र के विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए। जब राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय चिंता का विषय हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए और ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि भारत को विभिन्न राष्ट्रों के बीच गर्व के साथ खड़ा होना है। दुनिया में हमारा अच्छा सम्मान है। यह विचार कि भारत को बाहर से नियंत्रित किया जा सकता है, हमारे दावे के खिलाफ जाता है। हम एक राष्ट्र हैं, एक संप्रभु राष्ट्र हैं। हमारा राजनीतिक एजेंडा भारत की विरोधी ताकतों द्वारा क्यों निर्धारित किया जाना चाहिए? हमारे एजेंडे को हमारे दुश्मनों द्वारा भी क्यों प्रभावित किया जाना चाहिए?” उपराष्ट्रपति ने टेलीविजन पर चर्चा कार्यक्रमों में झलकती राजनीतिक दलों की कटुता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, “प्रत्येक राजनीतिक दल का नेतृत्व परिपक्व होता है।
सभी राजनीतिक दल, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, राष्ट्रीय विकास के लिए प्रतिबद्ध होता है और इसलिए युवाओं का कर्तव्य है कि वे इस मानसिकता को सुनिश्चित करें। यह विचार प्रक्रिया सोशल मीडिया में आनी चाहिए और एक बार जब आपको हमारी टेलीविजन चर्चाएं सुखदायक, सकारात्मक और आकर्षक लगेंगी, तो कल्पना कीजिए कि कितना बड़ा बदलाव आ सकता है – बस एक पल के लिए ध्यान दीजिए। हम आमतौर पर क्या देखते हैं? हम क्या सुनते हैं? क्या यह कानों को थका नहीं देता? हमारे कान तो थक गए हैं ना? भाई, ऐसा क्यों है? हम एक महान संस्कृति से आते हैं। हमारी विचारधारा का एक आधार है। हमारे विचारों में मतभेद हो सकते हैं  हमारे विचारों में भिन्नता हो सकती है  लेकिन हमारे दिलों में कटुता कैसे हो सकती है? हम भारतीय हैं।
हमारी संस्कृति हमें क्या सिखाती है? अनंतवाद  अंतहीन संवाद में विश्वास। अनंतवाद का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है चर्चा और बहस। चर्चा और बहस का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है अभिव्यक्ति। और अभिव्यक्ति का अर्थ है – अपने विचारों को खुलकर कहें, लेकिन अपनी ही राय पर इतना आश्वस्त न हो जाएँ कि आप उस पर विश्वास कर लें और यह मान लें कि अही अंतिम और पूर्ण सत्य है। यह मत मानिए कि किसी और का दृष्टिकोण आपसे अलग हो ही नहीं सकता।”
*धनखड़ ने संसद के आगामी मॉनसून सत्र में सार्थक चर्चा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला*
 उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमें दृढ़ रहना होगा। हमें अपने दृष्टिकोण पर विश्वास करना होगा। लेकिन हमें दूसरे के दृष्टिकोण का भी सम्मान करना होगा। अगर हम अपने दृष्टिकोण पर विश्वास करते हैं और सोचते हैं, “मैं ही सही हूँ और बाकी सब गलत हैं” यह लोकतंत्र नहीं है। यह हमारी संस्कृति नहीं है। यह अहंकार है। यह उद्दंडता है। हमें अपने अहंकार पर नियंत्रण रखना होगा। हमें अपनी उद्दंडता पर नियंत्रण रखना होगा। हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति अलग दृष्टिकोण क्यों रखता है यही हमारी संस्कृति है। भारत ऐतिहासिक रूप से किस लिए जाना जाता है? संवाद, वाद विवाद, विचार-विमर्श। आजकल, हम संसद में यह सब होते नहीं देखते।
मुझे लगता है कि आगामी सत्र एक महत्वपूर्ण सत्र होगा। मुझे पूरी आशा है कि सार्थक चर्चाएँ और गंभीर विचार-विमर्श होंगे जो भारत को नई ऊँचाइयों पर ले जाएँगे। ऐसा नहीं है कि सब कुछ सही है। हम कभी भी ऐसे समय में नहीं रहेंगे जहाँ सब कुछ सही हो। किसी भी समय कुछ क्षेत्रों में सदैव कुछ कमियाँ रहेंगी। इसके साथ ही सदैव सुधार की गुंजाइश है। अगर कोई किसी चीज़ में सुधार का सुझाव देता है, तो वह निंदा नहीं है। यह आलोचना नहीं है। यह केवल आगे के विकास के लिए एक सुझाव है। इसलिए, मैं राजनीतिक दलों से रचनात्मक राजनीति करने की अपील करता हूँ। और जब मैं यह कहता हूँ, तो मैं अपील करता हूँ  सत्ता पक्ष, सत्तारूढ़ दल और विपक्ष सभी दलों से अपील करता हूँ।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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राज्यसभा के सभापति ने राजनीतिक दलों के बीच सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने का आह्वान किया

उपराष्ट्रपति महोदय ने इस बात पर बल दिया, "जब राष्ट्रीय हित की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब राष्ट्र के विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए।

नई दिल्ली, 21 जुलाई 2025 (यूटीएन)। उपराष्ट्रपति एवं राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने राजनीतिक दलों के बीच सौहार्द और परस्पर सम्मान का आह्वान किया है। धनखड़ ने कहा, “मैं राजनीतिक जगत के सभी लोगों से अपील करता हूँ कि कृपया परस्पर सम्मान रखें। कृपया टेलीविज़न पर या किसी भी पार्टी के नेतृत्व के विरुद्ध अभद्र भाषा का प्रयोग न करें। यह संस्कृति हमारी सभ्यता का सार नहीं है। हमें अपनी भाषा का ध्यान रखना होगा. व्यक्तिगत आक्षेपों से बचें। मैं राजनेताओं से अपील करता हूँ। अब समय आ गया है कि हम राजनेताओं को गालियाँ देना बंद करें। जब विभिन्न राजनीतिक दलों में लोग दूसरे राजनीतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं को गालियाँ देते हैं, तो यह हमारी संस्कृति के लिए अच्छा नहीं है। उपराष्ट्रपति ने कहा, “हममें मर्यादा और परस्पर सम्मान की पूर्ण भावना होनी चाहिए और यही हमारी संस्कृति की मांग है। अन्यथा हमारी विचार प्रक्रिया में एकता नहीं हो सकती विश्वास कीजिए, अगर राजनीतिक संवाद उच्च स्तर पर हो, अगर नेता अधिक बार मिलते-जुलते रहें, वे आपस में अधिक संवाद करें।
वे व्यक्तिगत स्तर पर विचारों का आदान-प्रदान करें  तो राष्ट्र हित की पूर्ति होगी हमें आपस में क्यों लड़ना चाहिए? हमें अपने भीतर शत्रुओं की तलाश नहीं करनी चाहिए। मेरी जानकारी के अनुसार, प्रत्येक भारतीय राजनीतिक दल और प्रत्येक सांसद अंततः एक राष्ट्रवादी है। वह एक राष्ट्र की भावना में विश्वास करता है। वह राष्ट्र की प्रगति में विश्वास करता है लोकतंत्र कभी ऐसा नहीं होता कि एक ही पार्टी सत्ता में आए। हमने अपने जीवनकाल में देखा है कि परिवर्तन राज्य स्तर पर, पंचायत स्तर पर, नगरपालिका स्तर पर होता है, यह एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया है। लेकिन एक बात निश्चित है, विकास की निरंतरता, हमारी सभ्यतागत लोकाचार की निरंतरता होनी चाहिए, और यह केवल एक पहलू से आती है। हमें लोकतांत्रिक संस्कृति का सम्मान करना चाहिए।
धनखड़ ने कहा, “मित्रों, एक समृद्ध लोकतंत्र निरंतर कटुता का वातावरण सहन नहीं कर सकता… जब आप राजनीतिक कटुता, राजनीतिक वातावरण को अलग दिशा में पाते हैं, तो आपका मन विचलित हो जाता होगा। मैं देश के सभी लोगों से आग्रह करता हूँ कि राजनीतिक तापमान को कम किया जाए। राजनीति टकराव नहीं है, राजनीति कभी भी एकतरफा नहीं हो सकती। अलग-अलग राजनीतिक विचार प्रक्रियाएँ होंगी, लेकिन राजनीति का अर्थ है एक ही लक्ष्य को प्राप्त करना, लेकिन किसी न किसी तरह अलग-अलग माध्यमओं से। मेरा दृढ़ विश्वास है कि इस देश में कोई भी व्यक्ति राष्ट्र के विरुद्ध नहीं सोचेगा। मैं किसी राजनीतिक दल को भारत की अवधारणा के विरुद्ध नहीं देख सकता।
उनके अलग-अलग माध्यम, अलग-अलग सोच हो सकती है; लेकिन उन्हें एक-दूसरे के साथ चर्चा करना, एक-दूसरे के साथ संवाद करना सीखना होगा। टकराव कोई रास्ता नहीं है। जब हम आपस में लड़ते हैं, यहाँ तक कि राजनीतिक क्षेत्र में भी, तो हम अपने दुश्मन को मजबूत कर रहे होते हैं। हम उन्हें हमें विभाजित करने के लिए पर्याप्त सामग्री दे रहे होते हैं। इसलिए, युवा प्रतिभाओं एक बड़ा दबाव समूह है। आपके पास बहुत मजबूत शक्ति है। आपकी विचार प्रक्रिया राजनेता, आपके सांसद, आपके विधायक, आपके पार्षद को नियंत्रित करेगी। राष्ट्र के बारे में सोचें। विकास के बारे में सोचें।”
धनखड़ ने नई दिल्ली में उपराष्ट्रपति एन्क्लेव में आज राज्यसभा के आठवें बैच के प्रतिभागियों के प्रशिक्षण कार्यक्रम (आरएसआईपी) के उद्घाटन समारोह को संबोधित किया।
उपराष्ट्रपति महोदय ने इस बात पर बल दिया, “जब राष्ट्रीय हित की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए, जब राष्ट्र के विकास की बात हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए। जब राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय चिंता का विषय हो तो हमें राजनीति नहीं करनी चाहिए और ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि भारत को विभिन्न राष्ट्रों के बीच गर्व के साथ खड़ा होना है। दुनिया में हमारा अच्छा सम्मान है। यह विचार कि भारत को बाहर से नियंत्रित किया जा सकता है, हमारे दावे के खिलाफ जाता है। हम एक राष्ट्र हैं, एक संप्रभु राष्ट्र हैं। हमारा राजनीतिक एजेंडा भारत की विरोधी ताकतों द्वारा क्यों निर्धारित किया जाना चाहिए? हमारे एजेंडे को हमारे दुश्मनों द्वारा भी क्यों प्रभावित किया जाना चाहिए?” उपराष्ट्रपति ने टेलीविजन पर चर्चा कार्यक्रमों में झलकती राजनीतिक दलों की कटुता की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, “प्रत्येक राजनीतिक दल का नेतृत्व परिपक्व होता है।
सभी राजनीतिक दल, चाहे वह बड़ा हो या छोटा, राष्ट्रीय विकास के लिए प्रतिबद्ध होता है और इसलिए युवाओं का कर्तव्य है कि वे इस मानसिकता को सुनिश्चित करें। यह विचार प्रक्रिया सोशल मीडिया में आनी चाहिए और एक बार जब आपको हमारी टेलीविजन चर्चाएं सुखदायक, सकारात्मक और आकर्षक लगेंगी, तो कल्पना कीजिए कि कितना बड़ा बदलाव आ सकता है – बस एक पल के लिए ध्यान दीजिए। हम आमतौर पर क्या देखते हैं? हम क्या सुनते हैं? क्या यह कानों को थका नहीं देता? हमारे कान तो थक गए हैं ना? भाई, ऐसा क्यों है? हम एक महान संस्कृति से आते हैं। हमारी विचारधारा का एक आधार है। हमारे विचारों में मतभेद हो सकते हैं  हमारे विचारों में भिन्नता हो सकती है  लेकिन हमारे दिलों में कटुता कैसे हो सकती है? हम भारतीय हैं।
हमारी संस्कृति हमें क्या सिखाती है? अनंतवाद  अंतहीन संवाद में विश्वास। अनंतवाद का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है चर्चा और बहस। चर्चा और बहस का क्या अर्थ है? इसका अर्थ है अभिव्यक्ति। और अभिव्यक्ति का अर्थ है – अपने विचारों को खुलकर कहें, लेकिन अपनी ही राय पर इतना आश्वस्त न हो जाएँ कि आप उस पर विश्वास कर लें और यह मान लें कि अही अंतिम और पूर्ण सत्य है। यह मत मानिए कि किसी और का दृष्टिकोण आपसे अलग हो ही नहीं सकता।”
*धनखड़ ने संसद के आगामी मॉनसून सत्र में सार्थक चर्चा की आवश्यकता पर प्रकाश डाला*
 उपराष्ट्रपति ने कहा, “हमें दृढ़ रहना होगा। हमें अपने दृष्टिकोण पर विश्वास करना होगा। लेकिन हमें दूसरे के दृष्टिकोण का भी सम्मान करना होगा। अगर हम अपने दृष्टिकोण पर विश्वास करते हैं और सोचते हैं, “मैं ही सही हूँ और बाकी सब गलत हैं” यह लोकतंत्र नहीं है। यह हमारी संस्कृति नहीं है। यह अहंकार है। यह उद्दंडता है। हमें अपने अहंकार पर नियंत्रण रखना होगा। हमें अपनी उद्दंडता पर नियंत्रण रखना होगा। हमें यह समझने की कोशिश करनी चाहिए कि दूसरा व्यक्ति अलग दृष्टिकोण क्यों रखता है यही हमारी संस्कृति है। भारत ऐतिहासिक रूप से किस लिए जाना जाता है? संवाद, वाद विवाद, विचार-विमर्श। आजकल, हम संसद में यह सब होते नहीं देखते।
मुझे लगता है कि आगामी सत्र एक महत्वपूर्ण सत्र होगा। मुझे पूरी आशा है कि सार्थक चर्चाएँ और गंभीर विचार-विमर्श होंगे जो भारत को नई ऊँचाइयों पर ले जाएँगे। ऐसा नहीं है कि सब कुछ सही है। हम कभी भी ऐसे समय में नहीं रहेंगे जहाँ सब कुछ सही हो। किसी भी समय कुछ क्षेत्रों में सदैव कुछ कमियाँ रहेंगी। इसके साथ ही सदैव सुधार की गुंजाइश है। अगर कोई किसी चीज़ में सुधार का सुझाव देता है, तो वह निंदा नहीं है। यह आलोचना नहीं है। यह केवल आगे के विकास के लिए एक सुझाव है। इसलिए, मैं राजनीतिक दलों से रचनात्मक राजनीति करने की अपील करता हूँ। और जब मैं यह कहता हूँ, तो मैं अपील करता हूँ  सत्ता पक्ष, सत्तारूढ़ दल और विपक्ष सभी दलों से अपील करता हूँ।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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