बीएड (बैचलर ऑफ़ एजुकेशन) वो पहले ही कर चुके थे. 36 की उम्र को छू चुके, दो बच्चों के पिता, जितेंद्र कुमार ने इसके लिए कम जद्दोजहद नहीं की. ख़र्च चलाने के लिए क्लर्क से लेकर सुरक्षा गार्ड और बीमा कंपनी तक में काम का सहारा लिया.
वैसे अगर ये शिक्षक बहाल भी हुए तो वैसे शिक्षक होंगे जिन्हें बिहार में ‘दोयम दर्जे’ का टीचर माना जाता है. उन्हें पुराने सरकारी टीचरों (2000 के पहले वालों) के मुक़ाबले वेतन कम होगा. कई सुविधाएं नहीं मिलेंगी, जिसके लिए शायद फिर संघर्ष करना पड़े, जैसे उनके पहले इसी श्रेणी में बहाल हो चुके वो लाख़ों शिक्षक कर रहे हैं जिन्हें सरकारी फाइलों में ‘नियोजित शिक्षक’ कहते हैं.
संयुक्त राष्ट्र की शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था यूनेस्को ने हालांकि भारत में शिक्षा व्यवस्था पर जारी एक रिपोर्ट में ‘पारिश्रमिक में पैदा हो रही विषमता’ को लेकर चिंता जताई है.
इन सबके बावजूद कुर्जी (पटना) के अपने घर में हमारे साथ बैठे जितेंद्र कुमार ज़ोर देकर कहते हैं, ‘हम शिक्षक बनेंगे, शिक्षक ही बनेंगे, हमको शिक्षक ही बनना है’.
शिक्षक बनने का सपना पालने वाले वो अकेले नहीं.
साल 2012 में शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी (टेट) पास कर चुके धर्मेंद्र गोस्वामी से हमारी मुलाक़ात नालंदा ज़िले के परवलपुर क़स्बे में होती है, जहां बातचीत के दौरान वो कहते हैं कि वो ‘उपहास का पात्र बन चुके हैं, सब कहते हैं सबको नौकरी हो गया, तुमको कब होगा.’
10 साल बीत चुके हैं सुजीत कुमार पांडेय को ‘टेट’ किए. सरकारी शिक्षक की नौकरी हो जाएगी, इस उम्मीद में विकलांगता के बावजूद उनकी शादी हो गई.
बिहारशरीफ़ के क़ाग़ज़ी मोहल्ले में मौजूद एक स्टेशनरी की दुकान में बैठे सुजीत कहते हैं,”अब पत्नी को लगता है… जिसकी मेरे जैसे व्यक्ति से शादी हुई हो, वो हैंडीकैप्ड भी है.”
ये दुकान सुजीत कुमार पांडेय के हाल में ही मृत हो गए चाचा की है, जिसे उन्हें चलाने को कहा गया है, वरना उनका ‘जीवन पिता और भाई के सहयोग से चल रहा’ था.
शिक्षा के अधिकार, 2009, के तहत वैसे शिक्षकों की नियुक्ति का का प्रावधान किया गया है, जो समूचित शैक्षणिक योग्यता रखते हों. अब सारे राज्यों और केंद्र द्वारा शिक्षकों के लिए पात्रता परीक्षा का प्रावधान है.
हालांकि ये नियुक्ति की गारंटी नहीं और बहाली अभी भी नियमों के अनुसार मेरिट लिस्ट और ज़रूरत के आधार पर होती है यानी हुकूमतों को जितने टीचरों के पदों की आवश्यकता लगेगी उतनी बहालियां वो करेंगी.
तस्वीर का दूसरा पहलू
यूनेस्को द्वारा पिछले साल (2021) जारी स्टेट ऑफ़ एजुकेशन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के कई राज्यों में 10 से 15 प्रतिशत स्कूल एक शिक्षक के बलबूते काम कर रहे हैं. तेलंगाना और गोवा के मामले में ये प्रतिशत 16 था.
स्कूलों में छात्र और शिक्षकों के अनुपात के मामले में बिहार, गुजरात, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के साथ सबसे निचले पायदान पर है.
प्राइमरी स्कूल के लेवल पर सूबे में 60 बच्चों पर एक शिक्षक हैं, जबकि ये अनुपात 30 छात्रों पर एक टीचर का होना चाहिए.
संसद में एक प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि ‘समग्र शिक्षा अभियान’ के तहत बिहार में 5.92 लाख प्राथमिक शिक्षकों के पद की स्वीकृति दी गई, जिसमें 2.23 लाख रिक्त हैं.
बिहार में हाल तक जद(यू)-बीजेपी की सरकार थी, लेकिन उससे पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई बार ये बयान देते रहे थे कि बिहार को केंद्र उसका हक़ नहीं दे रही थी.