Wednesday, November 12, 2025

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राष्ट्रीय संकल्प की सिद्धि है राम मन्दिर की पूर्णता

प्रधानमंत्री मोदी से भेंट कर आमंत्रण भी दिया, और पिछले सप्ताह श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपतराय ने स्वयं प्रधानमंत्री मोदी से भेंटकर ट्रस्ट की ओर से औपचारिक निमंत्रण पत्र दिया तथा उनके अयोध्या आने की सहमति भी प्राप्त की।

नई दिल्ली, 03 नवंबर 2025 (यूटीएन)। यह वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अर्थात् आरएसएस की स्थापना को सौ वर्ष पूरे होने के कारण समूचे देश में  “शताब्दी वर्ष” के रूप में मनाया जा रहा है, और इसी शताब्दी वर्ष के दौरान अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के पुनर्निर्माण के राष्ट्रीय संकल्प की पूर्तता समारोह आगामी 25 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत की प्रमुख उपस्थिति में संपन्न होने वाला है। विदित है कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीरामलला के विग्रह का प्राणप्रतिष्ठा समारोह पिछले वर्ष 22 जनवरी 2024 पौष शुक्ल द्वादशी को हुआ था। देखते देखते आज एक वर्ष से कहीं अधिक का समय पूरा हो चुका है। अब श्रीराम जन्मभूमि पर प्रभु श्रीरामलला के मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण के राष्ट्रीय संकल्प की पूर्ति के भव्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ध्वज स्थापित किया जाएगा। जिसके लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से भेंट कर आमंत्रण भी दिया, और पिछले सप्ताह श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपतराय ने स्वयं प्रधानमंत्री मोदी से भेंटकर ट्रस्ट की ओर से औपचारिक निमंत्रण पत्र दिया तथा उनके अयोध्या आने की सहमति भी प्राप्त की।
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के अतिरिक्त संघ प्रमुख डॉ मोहनराव भागवत समेत प्रमुख धर्माचार्य, महंत, संत, विभिन्न संप्रदायों के लोगों सहित गांव के अंतिम व्यक्ति के लिए काम करने वाले जमीन से जुड़े लोगों को आमंत्रित किया गया है। एक अनुमान है कि लगभग 10 से 15 हजार के आसपास श्रद्धालु रामभक्त अयोध्या  पहुंचेंगे। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत अन्य वरिष्ठजनों की उपस्थिति में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर शिखर पर “ऱघुवंश” के ध्वज का आरोहण कर सम्पूर्ण विश्व को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की पूर्णता का संदेश देंगे। ट्रस्ट कोषाध्यक्ष गोविंद देवगिरी महाराज ने बताया कि राम मंदिर पर लगने वाले ध्वज की लंबाई 22 फीट व चौड़ाई 11 फीट होगी। 25 नवंबर को श्रीराम मंदिर के 161 फीट ऊंचे शिखर पर लगे 42 (दस फीट ढांचे में, 32 बाहर) फीट ऊंचे ध्वजदंड पर यह ध्वज आरोहित किया जाएगा। इस ध्वज पर वाल्मीकि रामायण में वर्णित रघुवंश के प्रतीक सूर्य, ॐ व कोविदार वृक्ष के प्रतीकों को रखा गया है। इसके गौरव के लिए हिंदू समाज के करोड़ों राम भक्त श्रद्धालुओं ने समूचे देश में संघर्ष किया। यह संघर्ष केवल सड़कों पर ही नहीं अपितु न्यायालयों में भी काफी लंबा चला है, इसे कोई भुला नहीं सकता।
लंबे संघर्ष और हिंदू जागरण के निरंतर अलग-अलग स्तर पर विभिन्न कार्यक्रमों की सफलता और उसके परिणाम स्वरुप भारी एकजुटता के कारण ही आज हम अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण की पूर्णता देख रहे हैं। आज जब मंदिर बनाकर तैयार हो रहा है तो विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख वरिष्ठ नेता स्वर्गीय अशोक सिंघल समेत कई असंख्य  ज्ञात-अज्ञात कार्यकर्ताओं का स्मरण स्वाभाविक है। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए न्यायालय में कानूनी संघर्ष के साथ ही वर्ष 1989 में समूचे देशभर में शिला पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया, यद्यपि इसका भी तत्कालीन कांग्रेस शासित सरकार ने और उनके सहयोगी मित्र दलों ने कड़ा विरोध किया और उसके विरोध में अदालत में भी गए लेकिन उच्चतम न्यायालय ने श्री तारकुंडे द्वारा दायर याचिका को ठुकरा दिया और सारी शिलाओं को अयोध्या तक आने दिया गया। सितंबर 1990 में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक राम रथयात्रा निकाली गई। इसके जरिए भी देश में समूचा माहौल राम मय हो गया था।
इससे पूर्व वर्ष 1982-83 के दौरान एकात्मता यात्रा देश में तीन स्थानों से निकाली गई और करीब पचास हजार किलोमीटर की दूरी तय की गई थी। पहली यात्रा हरिद्वार से कन्याकुमारी, दूसरी नेपाल काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर से रामेश्वर धाम, जबकि तीसरी यात्रा बंगाल के गंगासागर से सोमनाथ तक की थीं। तीनों यात्राओं को एक निश्चित दिन नागपुर में प्रवेश करना था। इस पूरी योजना का नियोजन और संरचना संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्वर्गीय मोरोपंत पिंगले ने की थी। 
उक्त कुछ घटनाएं देश के आम हिंदू जनमानस में प्रभु श्रीराम व अपने आराध्य के प्रति आस्था, श्रद्धाभाव और अस्मिता के जनजागरण को प्रदर्शित करतीं हैं। हिंदू एकजुटता के इन कार्यक्रमों में समाज के सभी वर्गों ने अपनी प्रत्यक्ष-परोक्ष सहभागिता से अपना विश्वास व्यक्त किया। यह बात किसी से नहीं छिपी है कि न्यायालय में कांग्रेस के पूर्व सांसद कपिल सिब्बल ने इस मामले का पुरजोर विरोध किया। सर्वोच्च न्यायालय में लगभग 40 दिन और करीब 170 घंटे तक नियमित सुनवाई के बाद 9 नवंबर 2019 को श्रीराम जन्मभूमि अर्थात् रामलला के पक्ष में अपना फैसला दिया। 
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चंपतराय के अनुसार मंदिर का निर्माण परंपरागत नागर शैली में हुआ है। मंदिर की लंबाई (पूर्व-पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई  250 फीट है। मंदिर तीन मंजिल है और प्रत्येक की ऊंचाई 20 फीट है। मंदिर में  कुल 392 खंभे और 44 द्वार हैं। भूतल गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बाल रूप अर्थात् श्रीराम लला का विग्रह, प्रथम तल गर पर श्रीराम सभा के दर्शन हो रहे हैं। परिसर में पंचायतन के सभी मंदिरों का निर्माण पूरा कर लिया गया है। परकोटा में भगवान सूर्य, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव मंदिर है। उत्तरी भुजा पर मां अन्नपूर्णा, दक्षिणी भुजा पर हनुमान जी का मंदिर है। परिसर में निषादराज,  माता शबरी, देवी अहिल्या, संत तुलसीदास, महर्षि वाल्मीकि,  महर्षि वशिष्ठ. महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, कुबेर टिला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ जटायु की स्थापना की गई है। अत्यंत लघु जीव गिलहरी जिसने रामसेतु बनाने में अहम भूमिका निभाई उसकी भी प्रतिमा परिसर में स्थापित की गई है, जो श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए अपोलो अस्पताल की ओर से मंदिर परिसर स्थित श्रद्धालु सुविधा केंद्र भवन के भूतल में 24 घंटे चलने वाला नि:शुल्क आपातकालीन मेडिकल केयर सेंटर भी है।
दर्शन को आने वाले राम भक्तों के लिए भक्त निवास की विशाल व्यवस्था तैयार की जा रही है। बुजुर्गों और दिव्यांगजनों के लिए लिफ्ट व्यवस्था और साथ ही नि:शुल्क कार्ट से ले जाने लाने की सुविधा भी दी गई है। मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण के लिए हरियाली और पेड़ पौधे भी लगाए गए हैं, साथ ही पंचवटी भी  बनायी जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा और मार्गदर्शन से विश्व हिंदू परिषद ने पहल कर हिंदू समाज के विभिन्न धर्म, मत, पंथ, संप्रदाय के प्रमुख धर्माचार्य, महंत आदि महान विभूतियों की अगुवाई में राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन चलाया। इस आंदोलन को हिंदू समाज के सभी वर्गों भाषा, प्रांत, जाति और घटकों ने प्रत्यक्ष सक्रिय योगदान किया। सच्चे अर्थ से देखे तो मंदिर पुनर्निर्माण का यह संकल्प राष्ट्रीय रूप में परिवर्तित हो गया और इसलिए इसे राष्ट्रीय संकल्प की पूर्णता कहना सर्वथा उचित ही होगा। मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आनंद का अब दोबारा 25 नवंबर 2025 को अनुभव ले सकेंगे। करीब 500 वर्षों के संघर्ष के बाद अपने संकल्प की पूर्णता का अनुभव पाकर समस्त हिंदू समाज निश्चित ही अपने को गौरवान्वित महसूस करेगा।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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राष्ट्रीय संकल्प की सिद्धि है राम मन्दिर की पूर्णता

प्रधानमंत्री मोदी से भेंट कर आमंत्रण भी दिया, और पिछले सप्ताह श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपतराय ने स्वयं प्रधानमंत्री मोदी से भेंटकर ट्रस्ट की ओर से औपचारिक निमंत्रण पत्र दिया तथा उनके अयोध्या आने की सहमति भी प्राप्त की।

नई दिल्ली, 03 नवंबर 2025 (यूटीएन)। यह वर्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ अर्थात् आरएसएस की स्थापना को सौ वर्ष पूरे होने के कारण समूचे देश में  “शताब्दी वर्ष” के रूप में मनाया जा रहा है, और इसी शताब्दी वर्ष के दौरान अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के पुनर्निर्माण के राष्ट्रीय संकल्प की पूर्तता समारोह आगामी 25 नवम्बर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत की प्रमुख उपस्थिति में संपन्न होने वाला है। विदित है कि अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर श्रीरामलला के विग्रह का प्राणप्रतिष्ठा समारोह पिछले वर्ष 22 जनवरी 2024 पौष शुक्ल द्वादशी को हुआ था। देखते देखते आज एक वर्ष से कहीं अधिक का समय पूरा हो चुका है। अब श्रीराम जन्मभूमि पर प्रभु श्रीरामलला के मंदिर का भव्य पुनर्निर्माण के राष्ट्रीय संकल्प की पूर्ति के भव्य समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा ध्वज स्थापित किया जाएगा। जिसके लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से भेंट कर आमंत्रण भी दिया, और पिछले सप्ताह श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महासचिव चंपतराय ने स्वयं प्रधानमंत्री मोदी से भेंटकर ट्रस्ट की ओर से औपचारिक निमंत्रण पत्र दिया तथा उनके अयोध्या आने की सहमति भी प्राप्त की।
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी के अतिरिक्त संघ प्रमुख डॉ मोहनराव भागवत समेत प्रमुख धर्माचार्य, महंत, संत, विभिन्न संप्रदायों के लोगों सहित गांव के अंतिम व्यक्ति के लिए काम करने वाले जमीन से जुड़े लोगों को आमंत्रित किया गया है। एक अनुमान है कि लगभग 10 से 15 हजार के आसपास श्रद्धालु रामभक्त अयोध्या  पहुंचेंगे। इस अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सरसंघचालक डॉक्टर मोहनराव भागवत अन्य वरिष्ठजनों की उपस्थिति में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर शिखर पर “ऱघुवंश” के ध्वज का आरोहण कर सम्पूर्ण विश्व को श्रीराम जन्मभूमि मंदिर की पूर्णता का संदेश देंगे। ट्रस्ट कोषाध्यक्ष गोविंद देवगिरी महाराज ने बताया कि राम मंदिर पर लगने वाले ध्वज की लंबाई 22 फीट व चौड़ाई 11 फीट होगी। 25 नवंबर को श्रीराम मंदिर के 161 फीट ऊंचे शिखर पर लगे 42 (दस फीट ढांचे में, 32 बाहर) फीट ऊंचे ध्वजदंड पर यह ध्वज आरोहित किया जाएगा। इस ध्वज पर वाल्मीकि रामायण में वर्णित रघुवंश के प्रतीक सूर्य, ॐ व कोविदार वृक्ष के प्रतीकों को रखा गया है। इसके गौरव के लिए हिंदू समाज के करोड़ों राम भक्त श्रद्धालुओं ने समूचे देश में संघर्ष किया। यह संघर्ष केवल सड़कों पर ही नहीं अपितु न्यायालयों में भी काफी लंबा चला है, इसे कोई भुला नहीं सकता।
लंबे संघर्ष और हिंदू जागरण के निरंतर अलग-अलग स्तर पर विभिन्न कार्यक्रमों की सफलता और उसके परिणाम स्वरुप भारी एकजुटता के कारण ही आज हम अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण की पूर्णता देख रहे हैं। आज जब मंदिर बनाकर तैयार हो रहा है तो विश्व हिंदू परिषद के प्रमुख वरिष्ठ नेता स्वर्गीय अशोक सिंघल समेत कई असंख्य  ज्ञात-अज्ञात कार्यकर्ताओं का स्मरण स्वाभाविक है। अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के पुनर्निर्माण के लिए न्यायालय में कानूनी संघर्ष के साथ ही वर्ष 1989 में समूचे देशभर में शिला पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया, यद्यपि इसका भी तत्कालीन कांग्रेस शासित सरकार ने और उनके सहयोगी मित्र दलों ने कड़ा विरोध किया और उसके विरोध में अदालत में भी गए लेकिन उच्चतम न्यायालय ने श्री तारकुंडे द्वारा दायर याचिका को ठुकरा दिया और सारी शिलाओं को अयोध्या तक आने दिया गया। सितंबर 1990 में वरिष्ठ भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में गुजरात के सोमनाथ से लेकर अयोध्या तक राम रथयात्रा निकाली गई। इसके जरिए भी देश में समूचा माहौल राम मय हो गया था।
इससे पूर्व वर्ष 1982-83 के दौरान एकात्मता यात्रा देश में तीन स्थानों से निकाली गई और करीब पचास हजार किलोमीटर की दूरी तय की गई थी। पहली यात्रा हरिद्वार से कन्याकुमारी, दूसरी नेपाल काठमांडू के पशुपतिनाथ मंदिर से रामेश्वर धाम, जबकि तीसरी यात्रा बंगाल के गंगासागर से सोमनाथ तक की थीं। तीनों यात्राओं को एक निश्चित दिन नागपुर में प्रवेश करना था। इस पूरी योजना का नियोजन और संरचना संघ के वरिष्ठ प्रचारक स्वर्गीय मोरोपंत पिंगले ने की थी। 
उक्त कुछ घटनाएं देश के आम हिंदू जनमानस में प्रभु श्रीराम व अपने आराध्य के प्रति आस्था, श्रद्धाभाव और अस्मिता के जनजागरण को प्रदर्शित करतीं हैं। हिंदू एकजुटता के इन कार्यक्रमों में समाज के सभी वर्गों ने अपनी प्रत्यक्ष-परोक्ष सहभागिता से अपना विश्वास व्यक्त किया। यह बात किसी से नहीं छिपी है कि न्यायालय में कांग्रेस के पूर्व सांसद कपिल सिब्बल ने इस मामले का पुरजोर विरोध किया। सर्वोच्च न्यायालय में लगभग 40 दिन और करीब 170 घंटे तक नियमित सुनवाई के बाद 9 नवंबर 2019 को श्रीराम जन्मभूमि अर्थात् रामलला के पक्ष में अपना फैसला दिया। 
श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र के महामंत्री चंपतराय के अनुसार मंदिर का निर्माण परंपरागत नागर शैली में हुआ है। मंदिर की लंबाई (पूर्व-पश्चिम) 380 फीट, चौड़ाई  250 फीट है। मंदिर तीन मंजिल है और प्रत्येक की ऊंचाई 20 फीट है। मंदिर में  कुल 392 खंभे और 44 द्वार हैं। भूतल गर्भगृह में प्रभु श्रीराम का बाल रूप अर्थात् श्रीराम लला का विग्रह, प्रथम तल गर पर श्रीराम सभा के दर्शन हो रहे हैं। परिसर में पंचायतन के सभी मंदिरों का निर्माण पूरा कर लिया गया है। परकोटा में भगवान सूर्य, मां भगवती, गणपति व भगवान शिव मंदिर है। उत्तरी भुजा पर मां अन्नपूर्णा, दक्षिणी भुजा पर हनुमान जी का मंदिर है। परिसर में निषादराज,  माता शबरी, देवी अहिल्या, संत तुलसीदास, महर्षि वाल्मीकि,  महर्षि वशिष्ठ. महर्षि विश्वामित्र, महर्षि अगस्त्य, कुबेर टिला पर भगवान शिव के प्राचीन मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ जटायु की स्थापना की गई है। अत्यंत लघु जीव गिलहरी जिसने रामसेतु बनाने में अहम भूमिका निभाई उसकी भी प्रतिमा परिसर में स्थापित की गई है, जो श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र है। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए अपोलो अस्पताल की ओर से मंदिर परिसर स्थित श्रद्धालु सुविधा केंद्र भवन के भूतल में 24 घंटे चलने वाला नि:शुल्क आपातकालीन मेडिकल केयर सेंटर भी है।
दर्शन को आने वाले राम भक्तों के लिए भक्त निवास की विशाल व्यवस्था तैयार की जा रही है। बुजुर्गों और दिव्यांगजनों के लिए लिफ्ट व्यवस्था और साथ ही नि:शुल्क कार्ट से ले जाने लाने की सुविधा भी दी गई है। मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण के लिए हरियाली और पेड़ पौधे भी लगाए गए हैं, साथ ही पंचवटी भी  बनायी जा रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा और मार्गदर्शन से विश्व हिंदू परिषद ने पहल कर हिंदू समाज के विभिन्न धर्म, मत, पंथ, संप्रदाय के प्रमुख धर्माचार्य, महंत आदि महान विभूतियों की अगुवाई में राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन चलाया। इस आंदोलन को हिंदू समाज के सभी वर्गों भाषा, प्रांत, जाति और घटकों ने प्रत्यक्ष सक्रिय योगदान किया। सच्चे अर्थ से देखे तो मंदिर पुनर्निर्माण का यह संकल्प राष्ट्रीय रूप में परिवर्तित हो गया और इसलिए इसे राष्ट्रीय संकल्प की पूर्णता कहना सर्वथा उचित ही होगा। मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह का आनंद का अब दोबारा 25 नवंबर 2025 को अनुभव ले सकेंगे। करीब 500 वर्षों के संघर्ष के बाद अपने संकल्प की पूर्णता का अनुभव पाकर समस्त हिंदू समाज निश्चित ही अपने को गौरवान्वित महसूस करेगा।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।

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