Wednesday, October 8, 2025

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“एनजीओ चलाना हर दिन तोड़ देता है, लेकिन सर्वाइवर्स मुझे ताक़त देते हैं” – सोमी अली

वह आगे जोड़ती हैं, “सर्वाइवर्स अब भी ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहां अत्याचार करने वालों को मंच, टीवी शो या राजनीतिक कुर्सियाँ दी जाती हैं।

मुंबई, 13 सितंबर 2025 (यूटीएन)। पूर्व बॉलीवुड अभिनेत्री सोमी अली ने लगभग दो दशक पहले नो मोर टीयर्स नामक एनजीओ की शुरुआत की थी। इसका मक़सद था अत्याचार, हिंसा और तस्करी के शिकार लोगों को न सिर्फ़ बचाना, बल्कि उनकी आवाज़ को सामने लाना। हालांकि वह मानती हैं कि अब इन अपराधों को लेकर जागरूकता बढ़ी है, लेकिन आज भी ताक़तवर लोग आसानी से बच निकलते हैं।

सोमी कहती हैं, “जब मैंने नो मोर टीयर्स शुरू किया था, तब सर्वाइवर्स की बातें अक्सर नज़रअंदाज़ कर दी जाती थीं, उन पर शक किया जाता था या उन्हें चुप करा दिया जाता था। लोग असलियत देखने से ज़्यादा नज़रें फेर लेना आसान समझते थे। आज लोग सुनने को तैयार हैं, लेकिन अब भी कार्रवाई करने का साहस बहुत कम है।”

वह आगे जोड़ती हैं, “सर्वाइवर्स अब भी ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहां अत्याचार करने वालों को मंच, टीवी शो या राजनीतिक कुर्सियाँ दी जाती हैं। यह पाखंड साफ़ संदेश देता है कि समाज ताक़तवर को इनाम देना ज़्यादा पसंद करता है बजाय कमज़ोरों की रक्षा करने के। जब तक यह बदलेगा नहीं, तब तक सर्वाइवर्स पूरी तरह से सुरक्षित या विश्वास के लायक़ महसूस नहीं कर पाएंगे।”

सोमी बताती हैं कि समय के साथ उनका एनजीओ भी बदला है। “शुरुआत में हमारा मक़सद सिर्फ़ ज़िंदगियाँ बचाना था। आज भी हम यह करते हैं, लेकिन अब हमने एक हीलिंग इकोसिस्टम भी बनाया है – थेरेपी, शिक्षा, घर और रोज़गार तक। हमने सीखा है कि सिर्फ़ बच जाना ही काफ़ी नहीं, सर्वाइवर्स को आगे बढ़ने और अपनी ज़िंदगी बेहतर बनाने का पूरा हक़ है।”

इस बदलाव की वजह पूछने पर वह कहती हैं, “यह बदलाव खुद सर्वाइवर्स ने सिखाया। उन्होंने बताया कि अत्याचार से निकल आना सिर्फ़ पहला कदम है, असली जीत है सम्मान वापस पाना और आत्मनिर्भर बनना।”

एनजीओ चलाने की मुश्किलों पर सोमी कहती हैं, “यह काम हर दिन आपको भीतर से तोड़ देता है। आप एक बच्चे की आँखों का डर, या किसी सर्वाइवर का दर्द भूल नहीं सकते। ऐसे घाव आपको हर पल भीतर से हिला देते हैं। थकान और टूटना तय है, अगर आप संतुलन न रखें। नो मोर टीयर्स में हम अपनी टीम को भी रोने, समझने और सर्वाइवर्स के साथ-साथ ठीक होने का समय देते हैं। करुणा की थकान असली है, लेकिन करुणा की ताक़त भी उतनी ही असली है। हमें अपनी शुरुआत और अपने मक़सद को याद रखना ही हमें संभाले रखता है।”

कभी सोचा कि एनजीओ आगे नहीं चल पाएगा? इस पर सोमी मानती हैं, “कई बार ऐसा हुआ। रातें थीं जब फंड नहीं बचा था और लगा कि हमें दरवाज़े बंद करने पड़ेंगे, जबकि पीड़ित हमारी मदद की गुहार लगा रहे थे। लेकिन छोड़ देना मतलब होता मौत, ज़ुल्म और ग़ुलामी की तरफ़ धकेल देना – और यह कभी विकल्प नहीं हो सकता था। उन्हीं सर्वाइवर्स ने मुझे ताक़त दी। अगर वे इतना सहकर भी डटे रह सकते हैं, तो मुझे भी कभी हार मानने का हक़ नहीं।

 

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“एनजीओ चलाना हर दिन तोड़ देता है, लेकिन सर्वाइवर्स मुझे ताक़त देते हैं” – सोमी अली

वह आगे जोड़ती हैं, “सर्वाइवर्स अब भी ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहां अत्याचार करने वालों को मंच, टीवी शो या राजनीतिक कुर्सियाँ दी जाती हैं।

मुंबई, 13 सितंबर 2025 (यूटीएन)। पूर्व बॉलीवुड अभिनेत्री सोमी अली ने लगभग दो दशक पहले नो मोर टीयर्स नामक एनजीओ की शुरुआत की थी। इसका मक़सद था अत्याचार, हिंसा और तस्करी के शिकार लोगों को न सिर्फ़ बचाना, बल्कि उनकी आवाज़ को सामने लाना। हालांकि वह मानती हैं कि अब इन अपराधों को लेकर जागरूकता बढ़ी है, लेकिन आज भी ताक़तवर लोग आसानी से बच निकलते हैं।

सोमी कहती हैं, “जब मैंने नो मोर टीयर्स शुरू किया था, तब सर्वाइवर्स की बातें अक्सर नज़रअंदाज़ कर दी जाती थीं, उन पर शक किया जाता था या उन्हें चुप करा दिया जाता था। लोग असलियत देखने से ज़्यादा नज़रें फेर लेना आसान समझते थे। आज लोग सुनने को तैयार हैं, लेकिन अब भी कार्रवाई करने का साहस बहुत कम है।”

वह आगे जोड़ती हैं, “सर्वाइवर्स अब भी ऐसी दुनिया में जी रहे हैं जहां अत्याचार करने वालों को मंच, टीवी शो या राजनीतिक कुर्सियाँ दी जाती हैं। यह पाखंड साफ़ संदेश देता है कि समाज ताक़तवर को इनाम देना ज़्यादा पसंद करता है बजाय कमज़ोरों की रक्षा करने के। जब तक यह बदलेगा नहीं, तब तक सर्वाइवर्स पूरी तरह से सुरक्षित या विश्वास के लायक़ महसूस नहीं कर पाएंगे।”

सोमी बताती हैं कि समय के साथ उनका एनजीओ भी बदला है। “शुरुआत में हमारा मक़सद सिर्फ़ ज़िंदगियाँ बचाना था। आज भी हम यह करते हैं, लेकिन अब हमने एक हीलिंग इकोसिस्टम भी बनाया है – थेरेपी, शिक्षा, घर और रोज़गार तक। हमने सीखा है कि सिर्फ़ बच जाना ही काफ़ी नहीं, सर्वाइवर्स को आगे बढ़ने और अपनी ज़िंदगी बेहतर बनाने का पूरा हक़ है।”

इस बदलाव की वजह पूछने पर वह कहती हैं, “यह बदलाव खुद सर्वाइवर्स ने सिखाया। उन्होंने बताया कि अत्याचार से निकल आना सिर्फ़ पहला कदम है, असली जीत है सम्मान वापस पाना और आत्मनिर्भर बनना।”

एनजीओ चलाने की मुश्किलों पर सोमी कहती हैं, “यह काम हर दिन आपको भीतर से तोड़ देता है। आप एक बच्चे की आँखों का डर, या किसी सर्वाइवर का दर्द भूल नहीं सकते। ऐसे घाव आपको हर पल भीतर से हिला देते हैं। थकान और टूटना तय है, अगर आप संतुलन न रखें। नो मोर टीयर्स में हम अपनी टीम को भी रोने, समझने और सर्वाइवर्स के साथ-साथ ठीक होने का समय देते हैं। करुणा की थकान असली है, लेकिन करुणा की ताक़त भी उतनी ही असली है। हमें अपनी शुरुआत और अपने मक़सद को याद रखना ही हमें संभाले रखता है।”

कभी सोचा कि एनजीओ आगे नहीं चल पाएगा? इस पर सोमी मानती हैं, “कई बार ऐसा हुआ। रातें थीं जब फंड नहीं बचा था और लगा कि हमें दरवाज़े बंद करने पड़ेंगे, जबकि पीड़ित हमारी मदद की गुहार लगा रहे थे। लेकिन छोड़ देना मतलब होता मौत, ज़ुल्म और ग़ुलामी की तरफ़ धकेल देना – और यह कभी विकल्प नहीं हो सकता था। उन्हीं सर्वाइवर्स ने मुझे ताक़त दी। अगर वे इतना सहकर भी डटे रह सकते हैं, तो मुझे भी कभी हार मानने का हक़ नहीं।

 

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