नई दिल्ली, 04 सितम्बर 2025 (यूटीएन)। जरा सोचकर देखिए कि जब आप या आपके सगे-संबंधी इस दुनिया में नहीं होंगे, लेकिन उनकी आंखें यहां होंगी और ये आंखें उन लोगों की दुनिया को रोशन कर रही होंगी जिनके जीवन में अंधेरे के सिवा कुछ न था. वे इन्हीं आंखों से अपनी मां, अपने बच्चों का चेहरा देखेंगे. उस खुशी का क्या कोई मोल होगा? शायद नहीं! लेकिन ऐसा होना तभी संभव है जब कि आप नेत्रदान के महत्व को समझें, आई डोनेशन को लेकर फैली भ्रंतियों को मिटा दें और मृत्यु के बाद हर कीमत पर अपनी आंखों के दान के लिए खुद को तैयार कर लें. एक नेत्रदान से छह लोगों की जिंदगी में रोशनी लौट सकती है। कल्पना कीजिए-आपके जाने के बाद भी कोई आपकी आंखों से रोशनी देख सके। यही है नेत्रदान की शक्ति। एम्स स्थित देश के सबसे बड़े आई सेंटर, डॉ. राजेंद्र प्रसाद सेंटर फॉर ऑप्थेल्मिक साइंसेज की चीफ डॉ. राधिका टंडन कहती हैं “एक व्यक्ति का नेत्रदान छह लोगों की जिंदगी को रोशनी दे सकता है।
*नेक कार्य की राह में सबसे बड़ी रुकावट है भ्रम और डर*
आँखों को अक्सर आत्मा की खिड़की कहा जाता है, लेकिन जो लोग अपनी दृष्टि खो देते हैं, उनके लिए ये गरिमा, स्वतंत्रता और अस्तित्व की खिड़की भी हो सकती हैं। दृष्टि खोने का मतलब सिर्फ़ दृष्टि खोना नहीं है इसका मतलब अक्सर दूसरों पर निर्भर हुए बिना आज़ादी से जीने की क्षमता खोना होता है। लेकिन इस नेक कार्य में सबसे बड़ी बाधा है भ्रम और डर। बहुत से लोग सोचते हैं कि नेत्रदान से आंखें निकाल ली जाती हैं या इसका गलत इस्तेमाल हो सकता है। जबकि सच्चाई यह है कि कॉर्निया सिर्फ मृत्यु के बाद दान किया जाता है और यह पूरी तरह सुरक्षित और पारदर्शी प्रक्रिया है।

*एम्स का बड़ा प्रयास*
एम्स स्थित नेशनल आई बैंक की चेयरपर्सन डॉ. नम्रता शर्मा ने बताया कि अब तक 36,000 से अधिक कॉर्निया इकट्ठा किए गए और 26,000 से ज्यादा लोगों की आंखों की रोशनी लौटाई जा चुकी है। साल 2024 में ही 1,931 कॉर्निया जुटाए गए जिनमें से 83% अस्पतालों से प्राप्त हुए। फिर भी, देश भर के हज़ारों मरीज़ों के लिए, दिल्ली एम्स आशा की किरण बन गया है, जो जीवन बदल देने वाले कॉर्निया प्रत्यारोपण और अत्याधुनिक नेत्र देखभाल प्रदान करता है।
इस मिशन के केंद्र में एम्स, दिल्ली के आरपी सेंटर फॉर ऑप्थल्मिक साइंसेज की प्रमुख प्रो. राधिका टंडन हैं, जिनके नेतृत्व ने भारत में कॉर्निया प्रत्यारोपण सेवाओं को बदल दिया है। प्रो. टंडन ने बताया कि एम्स नेत्र बैंक ने पहुँच बढ़ाने और सफल प्रत्यारोपणों की संख्या बढ़ाने के लिए अथक प्रयास किया है।
प्रो. टंडन ने पूरे विश्वास के साथ कहा, “पहले, मरीज़ कॉर्निया प्रत्यारोपण के लिए सालों इंतज़ार करते थे, लेकिन आज कहानी बदल रही है। हमारी टीम के प्रयासों और नेत्रदान के प्रति बढ़ती जागरूकता की बदौलत, हम प्रतीक्षा सूची को काफ़ी कम करने में कामयाब रहे हैं। एक देश के रूप में यह हमारे लिए एक बहुत बड़ा सकारात्मक रुझान है, क्योंकि दृष्टि कभी भी एक विशेषाधिकार नहीं होनी चाहिए – यह एक अधिकार होना चाहिए। उन्होंने भविष्य के अपने दृष्टिकोण पर विस्तार से बताया और स्पष्ट किया कि काम अभी पूरा नहीं हुआ है।
हमारा लक्ष्य केवल प्रतीक्षा सूची को कम करना नहीं है, बल्कि उपचार योग्य कॉर्नियल अंधेपन के लंबित मामलों को पूरी तरह से समाप्त करना है। हम अपने लिए महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर रहे हैं – न केवल कॉर्नियल प्रत्यारोपण का विस्तार करना, बल्कि बच्चों में अपरिहार्य अंधेपन को रोकना भी। उदाहरण के लिए, हम उन गाँवों को मान्यता देने और पुरस्कृत करने के विचार पर काम कर रहे हैं जहाँ बच्चों में आँखों की कोई चोट नहीं देखी गई है। यह एक प्रकार की समुदाय-आधारित रोकथाम है जो लंबे समय में बोझ को कम करेगी।
ये है सबसे बड़ी मदद, दूर करें ये भ्रम
डॉ. कहती हैं कि जो भी व्यक्ति आई डोनेशन का संकल्प करता है, उन्हें समझना चाहिए कि उन्होंने इंसानियत की ये सबसे बड़ी मदद की है. इससे ज्यादा खुशी की बात नहीं हो सकती. बहुत सारे लोगों को लगता है कि मृत्यु के बाद आंख दान करने से चेहरा क्षतिग्रस्त हो जाएगा या देखने लायक नहीं रहेगा, तो इस भ्रम को भी दूर करने की जरूरत है. जब भी कॉर्निया लिया जाता है तो पूरी आंख नहीं निकाली जाती, बल्कि आंख की सबसे सामने की कुछ लेयर्स निकाली जाती हैं, या कहें कि आंख का बस कॉर्निया निकाला जाता है, और जब यह निकाल लिया जाता है तो आंख पहले की तरह ही रहती है, कोई भी अंतर नहीं आता है.
*उम्र या मृत्यु का कारण कोई बाधा नहीं*
डॉ. नम्रता बताती हैं “आई डोनेशन में किसी को मना नहीं किया जाता। चाहे उम्र कोई भी हो, मृत्यु का कारण कुछ भी हो, हर कॉर्निया लिया जाता है। 80% कॉर्निया मरीजों के लिए इस्तेमाल हो जाते हैं और शेष मेडिकल शिक्षा में काम आते हैं।
*कॉर्निया के लिए कभी नहीं करते मना*
डॉ. नम्रता कहती हैं कि जब भी कोई व्यक्ति आई डोनेशन के लिए कहता है तो किसी को भी मना नहीं किया जाता. कोई भी उम्र हो, किसी भी तरह मृत्यु हुई हो, हर किसी का कॉर्निया लिया जाता है. ये अलग बात है कि इनमें से सभी कॉर्नियां मरीजों में ट्रांसप्लांट नहीं हो पाते क्योंकि कुछ कमियां भी उनमें होती हैं. हालांकि एम्स में 80 फीसदी कॉर्निया को कहीं न कहीं मरीजों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. बाकी बचे कॉर्निया को मेडिकल कॉलेज में एजुकेशनल प्रयोगों में इस्तेमाल कर लिया जाता है. कॉर्निया सिर्फ मृत्यु के बाद ही दान किया जा सकता है और यह बहुत पारदर्शी प्रक्रिया है. जब अस्पतालों या आई बैंक के द्वारा किसी व्यक्ति की आंख ली जाती है तो उसे प्रोसेस करके सबसे योग्य और सटीक मरीज को लगाया जाता है. ताकि लोग कॉर्नियल बीमारियों से अपनी आंखों की रोशनी खो चुके हैं, उन्हें उनकी रोशनी वापस मिल सके. वे फिर से देख सकें. यही वजह है कि भारत सरकार भी नेत्रदान को बढ़ावा दे रही है.
*नई तकनीक और नवाचार*
एम्स में बिना टांके के कॉर्निया प्रत्यारोपण तकनीक से मरीज जल्दी ठीक हो जाते हैं। 2024 में पहली बार एम्स में ड्रोन से कॉर्निया लाने का प्रयोग हुआ, जिससे समय बचा और ज्यादा मरीजों तक मदद पहुंची।बच्चों के लिए विशेष पेडियाट्रिक केराटोप्लास्टी हेतु टिशू इकट्ठा किए जा रहे हैं। एम्स और आईआईटी दिल्ली एक साथ मिलकर बायोइंजीनियर्ड कॉर्निया पर भी शोध कर रहे हैं, जिससे जरूरत पड़ने पर दूर दराज के इलाकों में भी कॉर्निया प्रत्यारोपण किया जा सकेगा।
*नेत्रदान इंसानियत की सबसे बड़ी सेवा*
डॉ. राजेश सिन्हा कहते हैं “भारत में हर साल हज़ारों कॉर्निया प्रत्यारोपण होते हैं, लेकिन ज़रूरत उससे कहीं ज्यादा है। इसके लिए हर किसी को आगे आकर संकल्प लेना होगा।” नेत्रदान पखवाड़ा हो या कोई अन्य अवसर, संदेश एक ही है “जब आप नहीं रहेंगे, आपकी आंखें फिर भी किसी की जिंदगी रोशन कर सकती हैं।
विशेष- संवाददाता, (प्रदीप जैन)।